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राजनीतिस्विट्जरलैंड

"मजबूरन" भारत में जासूसी सक्रियता बढ़ाएगा स्विट्जरलैंड

२७ जून २०२३

स्विट्जरलैंड की जासूसी एजेंसी एफआईएस ने कहा है कि मजबूरन उसे उन इलाकों में भी निगरानी बढ़ानी पड़ेगी, जिन पर अब तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था.

स्विट्जरलैंड में जासूसी
स्विट्जरलैंड में जासूसीतस्वीर: Francois Glories/MAXPPP/dpa/picture alliance

स्विट्जरलैंड की जासूसी एजेंसी स्विस इंटेलिजेंस सर्विस (एफआईएस) ने कहा है कि यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध ने उनके देश को दुनिया के कई देशों के जासूसों का अड्डा बना दिया है.

सोमवार को अपनी सालाना रिपोर्ट में फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस ने कहा कि स्विट्जरलैंड दुनियाभर के जासूसों का अड्डा बन गया है. उन्होंने चीन और रूस का नाम खासतौर पर लिया. एफआईएस ने कहा, "रूस ने यूरोप में शांति के लिए कानून के राज को नष्ट कर दिया है.”

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर असर

रिपोर्ट कहती है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का प्रभाव लगातार कम हो रहा है. एफआईएस ने कहा, "शांति और सुरक्षा बनाये रखने के लिए काम करने वाली संस्थाओं जैसे कि यूएन या ऑर्गेनाइजेशन फॉर सिक्यॉरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप का प्रभाव लगातार कम हुआ है. एक स्थायी वैश्विक व्यवस्था के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे हैं.”

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इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन युद्ध में विभिन्न महाशक्तियों की आपसी होड़ और ज्यादा बढ़ गयी है जिससे स्विट्जरलैंड की सुरक्षा स्थिति प्रभावित हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया अब चीन और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय प्रतिद्वन्द्विता के इर्द-गिर्द दो हिस्सों में बंट रही है. लेकिन फिलवक्त चीन और रूस को स्विट्जरलैंड की सुरक्षा के लिहाज से सबसे अहम केंद्र बिंदु बताया गया है.

एफआईएस ने कहा, "खासतौर पर चीन और रूस के कारण स्विट्जरलैंड को विदेशी जासूसी से खतरा पैदा हो गया है. यूरोप में स्विट्जरलैंड उन देशों में से एक है जहां सबसे ज्यादा रूसी जासूसी राजनयिकों के भेष में सक्रिय हैं. ऐसा होने की एक वजह यह है कि यहां विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मुख्यालय हैं.”

संयुक्त राष्ट्र का यूरोपीय मुख्यालय जेनेवा में है. यूएन की कई और एजेंसियों के मुख्यालय भी स्विट्जरलैंड के इसी शहर में हैं, जहां अंतरराष्ट्रीय राजनयिक समय-समय पर बैठकों के लिए जमा होते हैं.

एफआईएस के मुखिया क्रिस्टियान डूसी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "जेनेवा और बर्न में रूस के लगभग 220 राजनयिक या तकनीकी कर्मचारी आधिकारिक रूप से काम कर रहे हैं जिनमें से कम से कम एक तिहाई रूसी जासूसी एजेसियों के लिए काम करते हैं.”

भारत जैसे देशों में सक्रियता

एफआईएस के 450 कर्मचारी हैं. एजेंसी का कहना है कि यूक्रेन में युद्ध के कारण उसे अपनी सक्रियता का दायरा उन देशों में भी बढ़ाना पड़ रहा है, जहां अब तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. इनमें तुर्की, भारत और यूरेशियन इकनॉमिक यूनियन जैसे इलाके शामिल हैं, जहां कंपनियों को रूस खरीद-फरोख्त के लिए इस्तेमाल कर रहा है.

रूस के अलावा एफआईएस ने चीन पर भी अपने यहां जासूस भेजने का आरोप लगाया है. उसकी रिपोर्ट कहती है कि चीन ने अपने दर्जनों जासूस स्विट्जरलैंड में भेजे हैं. हालांकि रूस के उलट चीनी जासूस राजनयिक भेष पर कम निर्भर हैं और वे आमतौर पर वैज्ञानिक, पत्रकार या व्यापार प्रतिनिधियों के रूप में आ रहे हैं.

डूसी ने कहा कि इसमें कोई दोराय नहीं कि भविष्य में यूरोप में चीनी जासूसी और ज्यादा बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि वे अपने साधनों और संसाधनों का विस्तार कर रहे हैं.

एफआईएस प्रमुक ने कहा, "हम हदों को तय करने की भरसक जमीनी कोशिशें कर रहे हैं. जासूसी सक्रियता का जेनेवा की अंतरराष्ट्रीय अहमियत पर बुरा असर पड़ता है और यह स्विट्जरलैंड की विश्वसनीयता के लिए नुकसानदेह है.”

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स्विट्जरलैंड को पहली बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता मिली है और एफआईएस का कहना है कि इस कारण उसके नेताओं और अधिकारियों की जासूसी का खतरा बढ़ गया है क्योंकि वे परिषद के डोजियर तैयार करने और उसके फैसलों को प्रस्तुत करने में शामिल होते हैं.

डूसी ने कहा कि पिछले सप्ताहांत पर रूस में वागनर के सैनिकों द्वारा विद्रोह की घटना रूस की एक आंतरिक चुनौती है और उसका फायदा उठाने या उसमें दखल देने का कोई प्रश्न नहीं है.

वीके/एए (एएफपी)

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