सीरियाई शरणार्थी की आंखों में जर्मन सांसद बनने का सपना
३ फ़रवरी २०२१
सीरिया के गृह युद्ध से बचकर भागे तारेक अलाओस की आंखों में एक बड़ा सपना पल रहा है. इस साल जर्मनी में चुनाव होने हैं और वह इन चुनावों में हिस्सा लेकर जर्मन संसद का सदस्य बनना चाहते हैं.
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31 साल के अलाओस अब एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. सात साल पहले वह सीरिया के अलेप्पो और दमिश्क में कानून की पढ़ाई कर रहे थे. जब देश में गृह युद्ध भड़का, तो उन्होंने भी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. उन्होंने रेड क्रॉस के साथ मिलकर सीरिया में लगातार बढ़ रहे युद्ध क्षेत्र में जरूरतमंदों तक मदद भी पहुंचाई. लेकिन फिर वह राष्ट्रपति असद की सरकार के निशाने पर आ गए. शुरुआती हिचकिचाहट के बाद उन्होंने जुलाई 2015 में सीरिया से भागकर जर्मनी में शरण ली.
अब अलाओस ऐसे पहले सीरियाई शरणार्थी बनना चाहते हैं जो जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग का सदस्य हो. जर्मन नागरिकता के लिए आवेदन करने के साथ ही उन्होंने ग्रीन पार्टी से टिकट पाने की मुहिम भी शुरू कर दी है. वह संसद में जर्मनी के पश्चिमी राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के ओबरहाउजेन इलाके का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं.
जर्मनी में इस साल 26 सितंबर को संसदीय चुनाव होने हैं. इस बार जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल चुनावी मैदान में नहीं होंगी. उन्होंने ही 2015 में शरणार्थियों के लिए जर्मनी के दरवाजे खोले थे. इसके बाद सीरिया, अफगानिस्तान और दूसरे संकट ग्रस्त इलाकों से लाखों शरणार्थी जर्मनी में आए. शरणार्थी संकट के बाद से इस साल जर्मनी में दूसरा आम चुनाव होगा. 2017 के चुनाव में धुर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी ने राष्ट्रीय संसद में मजबूत विपक्ष के तौर पर जगह बनाई थी और वह शरणार्थियों के मुद्दे पर अकसर सरकार से टकराती रहती है.
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घर से बेघर हुए पर बुलंदियों पर पहुंचे
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मारलेने डिट्रीश
जर्मन गायिका और अभिनेत्री डिट्रीश नाजी जर्मनी को छोड़ कर अमेरिका गई थीं और 1939 में उन्होंने वहां की नागरिकता ली. वो एक अहम शरणार्थी शख्सियत थीं जिसने हिटलर के खिलाफ खुलकर बोला. उन्होंने कहा था, "वो जर्मन पैदा हुई हैं और हमेशा जर्मन रहेंगी."
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हेनरी किसिंजर
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विद्वान और अमेरिका के 56वें विदेश मंत्री. लेकिन उनका जन्म जर्मन राज्य बवेरिया में हुआ था और उन्हें भी नाजी अत्याचारों से बचने के लिए 1938 में जर्मनी छोड़ना पड़ा था.
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मेडलीन अलब्राइट
अलब्राइट अमेरिकी विदेश मंत्री बनने वाली पहली महिला हैं और 1997 से 2001 तक इस पद पर रहीं. उनका जन्म आधुनिक समय के चेक गणराज्य में हुआ था. जब 1948 में वहां सरकार पर कम्युनिस्टों का नियंत्रण हो गया तो उनके परिवार को भाग कर अमेरिका जाना पड़ा.
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अलबर्ट आइंसटाइन
सापेक्षता के सिंद्धांत के लिए मशहूर जर्मन यहूदी नोबेल विजेता अलबर्ट आइंसटाइन 1933 में अमेरिका के दौरे पर थे जब यह साफ हो गया कि वो वापस नाजी जर्मनी नहीं लौट सकते हैं.
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जॉर्ज वीडनफेल्ड
ब्रिटिश यहूदी लेखक वीडनफेल्ड का जन्म 1919 में विएना में हुआ था. लेकिन जब नाजियों ने ऑस्ट्रिया को अपना हिस्सा बना लिया तो वो लंदन चले गए. उन्होंने अपनी एक प्रकाशन कंपनी भी खोली और इस्राएल के पहले राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ भी रहे.
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बेला बारटोक
20वीं सदी के हंगेरियन संगीतकार बेला बारतोक यहूदी नहीं थे लेकिन वो नाजीवाद के उभार और यहूदियों पर होने वाले अत्याचारों के विरोधी थे. 1940 में उन्हें अमेरिका जाना पड़ा.
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मिलोस फोरमैन
मशहूर फिल्म निर्देशक मिलोस फोरमैन को 1968 की प्राग क्रांति के बाद चेकोस्लोवाकिया छोड़ कर अमेरिका का रुख करना पड़ा. उन्होंने दो विश्व विख्यात और ऑस्कर प्राप्त फिल्में "वन फेलो ओवर द कूकूज नेस्ट" (1975) और "अमादेओस" (1984) बनाईं.
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इसाबेल अलेंदे
चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे का 1973 में तख्तापलट किया गया और इस दौरान उनकी मौत भी हो गई. तब उनकी भतीजी इसाबेल को भाग कर वेनेजुएला जाना पड़ा. बाद में वो अमेरिका में बस गईं और लेखिका के तौर पर उन्हें बहुत शोहरत मिली.
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मिरियम मकेबा
मिरियम मकेबा जिन्हें मामा अफ्रीका के नाम से भी जाना जाता है. वो अमेरिका के दौरे पर थी जब दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने रंगभेदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने के लिए उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया था और इस महान गायिका को अमेरिका में बसना पड़ा.
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सिटिंग बुल
टाटांका इयोटेक यानी सिटिंग बुल अमेरिकी इतिहास में सबसे मशहूर मूल निवासी नेताओं में से एक थे. अमेरिकी सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ने वाले सिंटिंग बुल को 1877 से 1881 तक शरणार्थी के तौर पर कनाडा में रहना पड़ा था.
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गरिमा के लिए संघर्ष
ट्विटर पर पोस्ट की गई अपनी प्रचार मुहिम के एक वीडियो में तारेक अलाओस ने कहा, "जर्मनी में, एनआरडब्ल्यू मेरा घर है. यहीं पर मेरे निर्वाचन क्षेत्र ओबरहाउजेन और डिंसलाकेन में मेरे राजनीतिक कार्य की शुरुआत हुई."
अलाओस दो महीनों तक कुख्यात बाल्कन रूट पर चलते हुए जर्मनी के बोखुम शहर में पहुंचे. उन्होंने जर्मन अखबार टागेसश्पीगल के साथ बातचीत में कहा, "मैं बस ऐसा जीवन चाहता हूं जिसमें सुरक्षा और गरिमा हो."
जर्मनी में शरणार्थी जिस हाल में रह रहे हैं, उसे देखकर वह स्तब्ध रह गए. इसलिए उन्होंने जर्मनी में आने के कुछ ही महीनों बाद ही एक पहल शुरू की जो आप्रवासियों की ज्यादा भागीदारी और उनके रहने की परिस्थितियों में सुधार की वकालत करती है.
अलाओस ने सिर्फ छह महीनों में जर्मन भाषा सीख ली. इसके बाद उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर नया करियर शुरू किया. वह दूसरे शरणार्थियों को कानूनी मदद देने लगे. जब 2018 में यूरोप में नए शरणार्थियों को आने की अनुमति पर राजनीतिक टकराव शुरू हुआ तो उन्होंने "सी ब्रिज" नाम से एक संस्था बनाई, जो समुद्र में फंसे शरणार्थियों को बचाने के लिए आवाज उठाती है.
बेजुबानों की आवाज
खासतौर से पर्यावरण के लिए आवाज उठाने वाली ग्रीन पार्टी के टिकट पर अलाओस चुनाव लड़ना चाहते हैं. वह जलवायु परिवर्तन और माइग्रेशन नीतियों के बीच सीधा संबंध देखते हैं. उन्होंने अपने ट्विटर वीडियो में कहा, "जलवायु संकट दक्षिणी गोलार्ध में रहने वाले लोगों की जिंदगी को और मुश्किल बनाएगा. इसीलिए एक निष्पक्ष जलवायु नीति में शरणार्थियों और आप्रवासन पर ध्यान दिया जाना चाहिए."
वह कहते हैं, "बुंडेस्टाग में पहले सीरियाई शरणार्थी के तौर पर मैं उन लाखों लोगों को आवाज देना चाहता हूं जिन्हें भागने के लिए मजबूर होना पड़ा और जो हमारे साथ रह रहे हैं." वह कहते हैं कि अगर सफल रहे तो वह सभी शरणार्थियों की आवाज बनना चाहते हैं.
दुनिया में इस समय लाखों लोग स्टेटलेस हैं. नागरिकता नहीं होने के कारण वे नागरिक सुविधाओं से वंचित हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था नागरिकता विहीनता की स्थिति को 2024 तक खत्म करने के लिए संघर्ष कर रही है.
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कौन हैं स्टेटलेस
कानूनी व्याख्या के अनुसार स्टेटलेस वह होता है जिसे कोई देश अपने कानूनों के अनुसार नागरिक नहीं मानता. स्टेटलेस लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं होती. कुछ लोग जन्म से स्टेटलेस होते हैं तो कुछ बना दिए जाते हैं.
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तादाद
स्टेटलेस लोगों की सही तादाद के बारे में किसी को पता नहीं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था के अनुसार दुनिया भर में लाखों लोगों के पास कोई नागरिकता नहीं है. इनमें से एक तिहाई बच्चे हैं.
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कैसे बनते हैं स्टेटलेस
लोगों के नागरिकता खोने और स्टेटलेस होने के कई कारण हो सकते हैं. इसमें किसी जातीय या धार्मिक समुदाय के साथ भेदभाव, लैंगिक आधार पर भेदभाव, नए देशों का बनना या राष्ट्रीयता कानूनों में विवाद शामिल है.
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रोहिंग्या संकट
अक्सर नागरिकताविहीन होना उन नीतियों का नतीजा होता है जिनका मकसद कथित रूप से बाहरी समझे जाने वाले लोगों को अलग रखना होता है. म्यांमार मे राखाइन इलाके में 600,000 लोग मौजूदा नागरिकता कानून के कारण नागरिकता से बेदखल हो गए हैं.
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पिता नहीं तो स्टेटलेस
करीब 25 देशों में बहुत से बच्चों की कोई नागरिकता नहीं है क्योंकि वहां बच्चों को मांओं की नागरिकता नहीं दी जाती. पिता के अंजान, लापता या मृत होने से ऐसी स्थिति बड़ी आसानी से आ सकती है.
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सात लाख लोग अधर में
राजनीतिक उथल पुथल के समय विस्थापन भी नागरिकता खोने का बड़ा कारण होता है. अफ्रीका के आइवरी कोस्ट में करीब 700,000 लोग इसलिए बिना नागरिकता के हैं कि वे 1960 में आजादी के बाद आइवरी कोस्ट की नागरिकता के हकदार नहीं हैं.
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समाधान की कोशिश
नागरिकता के मुद्दे को हल करने की मिसालें भी हैं. बांग्लादेश ने 2008 में करीब 300,000 उर्दू भाषियों की समस्या सुलझाई. एस्टोनिया और लाटविया ने गैर नागरिक मां बाप की संतानों को नागरिकता देने का फैसला लिया है.