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ज्यादा गोला-बारूद बनाने में जर्मनी के सामने बड़ी मुश्किलें

सबीने किंकार्त्स
९ अप्रैल २०२४

टैंकों, मिसाइलों और गोला-बारूद की मांग काफी बढ़ी है. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स अकेले नहीं हैं, जो जर्मनी में इनका उत्पादन बढ़ते हुए देखना चाहते हैं. लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है.

राइनमेटाल की युद्ध सामग्री बनाने वाली फैक्ट्री का दौरा करते जर्मन चांसलर शॉल्त्स
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने फरवरी में हथियार निर्माता कंपनी राइनमेटाल के कारखाने का दौरा कियातस्वीर: Fabian Bimmer/Getty Images

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स जटिल बयान देना पसंद करते हैं. वे अक्सर इतने लंबे होते हैं, कि अंत तक आप यह भूल जाते हैं कि उन्होंने शुरुआत में क्या बोला था. लेकिन फरवरी में राइनमेटाल की नई गोला-बारूद फैक्ट्री के निर्माण समारोह के दौरान चांसलर काफी स्पष्ट थे. राइनमेटाल, जर्मनी की सबसे बड़ी हथियार बनाने वाली कंपनी है.

शॉल्त्स का कहना है कि काफी लंबे समय से हथियार नीति के मामले में जर्मनी का दृष्टिकोण कार खरीदने जैसा रहा है. बस एक ऑर्डर दीजिए और गाड़ी घर ले जाइए. शॉल्त्स कहते हैं, "लेकिन हथियारों का उत्पादन इस तरह नहीं होता. टैंक, होवित्जर, हेलिकॉप्टर्स और एयर डिफेंस सिस्टम ऐसे ही कहीं बिकने के लिए नहीं रखे रहते. अगर सालों तक कोई ऑर्डर नहीं दिया जाए, तो कुछ भी नहीं बनाया जाएगा."

इस तरह चांसलर ने जर्मन सरकार की दुविधा को रेखांकित किया. हथियारों और गोला-बारूद की जरूरत बहुत ज्यादा है. यह सिर्फ यूक्रेन को अतिरिक्त सैन्य सहायता उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं है.

राइनमेटाल, जर्मनी की सबसे बड़ी हथियार बनाने वाली कंपनी हैतस्वीर: Philipp Schulze/dpa/picture alliance

रोबर्ट हाबेक, ग्रीन पार्टी के वाइस-चांसलर और जर्मनी के अर्थव्यवस्था मामलों के मंत्री हैं. मार्च में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा, "हम हमेशा हर चीज का बिल चुकाने और जरूरी सामान उपलब्ध कराने के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकते. इसका मतलब है कि सैन्य उत्पादन, रक्षा और हथियार उद्योग को बढ़ाने की जरूरत है. राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े परिदृश्यों को बढ़ावा देने की जरूरत है. इन सभी को दोबारा सक्रिय करने की जरूरत है."

राइनमेटाल की नई फैक्ट्री के निर्माण समारोह के दौरान शॉल्त्स ने बताया कि एक लचीला, आधुनिक और सक्षम रक्षा उद्योग होना कितना जरूरी है. लातविया की प्रधानमंत्री इविका सिलिना की बर्लिन यात्रा के दौरान शॉल्त्स ने कहा था कि उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है.

मौत के साथ व्यापार करने में रुचि नहीं

दशकों तक चले निशस्त्रीकरण के बाद, ऐसा करना यू-टर्न लेने के बराबर है. 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने और 1990 में जर्मनी का एकीकरण होने के बाद देश में शांति स्थापित हो गई थी. जर्मन सेना बुंडेसवेयर का आकार छोटा कर दिया गया और सैन्य उपकरणों पर खर्च में कटौती की गई.

फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन, शॉल्त्स की पार्टी सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) से संबंध रखती है. इसके एक अध्ययन के मुताबिक, जर्मनी का रक्षा उद्योग 60 फीसदी तक सिकुड़ गया है. करीब 2.9 लाख नौकरियों में से एक लाख से भी कम नौकरियां बची हैं.

जर्मनी में राजनेताओं ने भी हथियार उद्योग से दूरी बनाकर रखी. 2014 में तत्कालीन वाइस-चांसलर जिग्मार गाब्रिएल (एसपीडी) ने कहा था कि वह मौत के साथ कारोबार करने के इच्छुक नहीं हैं. उस दौरान क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (सीडीयू) की अंगेला मैर्केल चांसलर थीं. उनकी भी हथियारों के कारोबार में विशेष दिलचस्पी नहीं थीं. राइनमेटाल जैसी बड़ी कंपनियां अपने कारोबार को विदेशों में लेकर जा रही थीं, ताकि हथियारों के निर्यात पर जर्मनी के प्रतिबंधों से बचा जा सके.

2021 के अंत में एसपीडी, ग्रीन्स और एफडीपी ने मौजूदा सरकार बनाई. उस दौरान भी जर्मनी के हथियार सौदों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की योजना थी. लेकिन फिर 2022 में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. अब स्थिति को पलटना कठिन होगा.

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जर्मनी की रक्षा नीति ने नया आकार लिया. युद्ध ने ना केवल यूरोप में असुरक्षा की भावना बढ़ाई, बल्कि राष्ट्रीय हितों से जुड़ी रक्षा प्राथमिकताओं पर नए सिरे से ध्यान खींचातस्वीर: /Bildgehege/imago images

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद जर्मन संसद के निचले सदल बुंडेसटाग ने सेना को 100 बिलियन यूरो का विशेष फंड उपलब्ध कराया था. इस फंड के बड़े हिस्से से अनुबंध दिए जा चुके हैं, लेकिन सैन्य उपकरणों की डिलीवरी में सालों लग जाएंगे और ज्यादातर उपकरणों का उत्पादन जर्मनी में भी नहीं होगा. उदाहरण के लिए, जर्मन सरकार द्वारा ऑर्डर किए गए 120 टैंकों का उत्पादन राइनमेटाल के ऑस्ट्रेलिया स्थित प्लांट में होगा.

सीडीयू और सीएसयू रूढ़िवादी विपक्षी पार्टियां हैं. उन्होंने यह कहकर सरकार की आलोचना की है कि जर्मनी में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए बेहद कम प्रयास किए गए हैं. मार्च में बुंडेसटाग में हुई एक चर्चा के दौरान सीडीयू/सीएसयू संसदीय समूह ने कहा, "रूस ने खुद को एक युद्ध आधारित अर्थव्यवस्था में बदल लिया है. लेकिन जर्मन सरकार ने बेहद जरूरी रक्षा उद्योग को मजबूत करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं."

2023 की गर्मियों में सरकार ने वादा किया था कि वह सुरक्षा और रक्षा उद्योग के लिए 2020 की रणनीति को अपडेट करेगी. यह अभी तक नहीं हुआ है. हाबेक स्वीकार करते हैं कि गठबंधन को इस मुद्दे पर चर्चा करने की जरूरत है. यह जरूरी है कि "हथियार उत्पादन से जुड़े सवालों, चिंताओं और आशंकाओं" पर उचित चर्चा की जाए.

कैसा है हथियार उद्योग का भविष्य?

हाबेक जिस ओर इशारा कर रहे थे, उसे बुंडेसटाग की बहसों में देखा जा सकता है. उदाहरण के लिए, हथियार उद्योग से जुड़ी एक बहस में ग्रीन पार्टी की सांसद मेर्ले स्पेलरबर्ग ने कहा, "यूक्रेन की स्थिति को देखते हुए इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि सैन्य उत्पादन क्षमताओं में जल्द-से-जल्द वृद्धि करनी होगी. लेकिन साथियो, यह भी जरूरी है कि सुरक्षा स्थिति सामान्य होने पर हम उत्पादन को घटाने में भी सक्षम हों."

ग्रीन पार्टी की सांसद मेर्ले स्पेलरबर्ग ज्यादा हथियारों की जरूरत को स्वीकार करती हैं, लेकिन उनके कई सवाल भी हैं. वह रेखांकित करती हैं कि नई सुरक्षा नीति में शांति और रक्षा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, ना कि हथियार बनाने वाली कंपनियों के मुनाफे पर जोर होना चाहिएतस्वीर: Sebastian Gabsch/Geisler-Fotopre/picture alliance

27 वर्षीय सांसद स्पेलरबर्ग ने कहा, "हथियारों का उत्पादन मूल्यों और हितों के अनुसार होना चाहिए. कई सवालों के जवाब भी अभी नहीं मिले हैं. जैसे- क्या हथियारों का इस्तेमाल मुनाफा कमाने के लिए होना चाहिए. और फिर इस मुनाफे के साथ क्या करना चाहिए. हमें ऐसी नीतियों की जरूरत है, जो हथियार कंपनियों के मुनाफे को नहीं, बल्कि शांति और हमारी सुरक्षा को प्राथमिकता दें."

ऐसे बयान हथियार उद्योग की चिंता बढ़ा सकते हैं. लेकिन हथियार कंपनियों को पता है कि रूस के खिलाफ संघर्ष की वजह से उनका पलड़ा भारी है. ईस्टर से पहले रक्षा उद्योग के प्रतिनिधियों ने चांसलर ऑफिस, रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और अर्थव्यवस्था मंत्रालय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी. इस दौरान यह चर्चा हुई कि उद्योग को उत्पादन बढ़ाने के लिए किन गारंटियों की जरूरत है.

रक्षा कंपनियां लंबी अवधि के अनुबंध करना चाहती हैं, जिनमें निश्चित राशि की खरीद का वादा हो. इसके लिए संघीय बजट में पर्याप्त धन होना चाहिए. लेकिन यही तो समस्या है. बुंडेसवेयर का विशेष फंड 2027 में खत्म हो जाएगा. इसके बाद एक बड़ा अंतर पैदा हो जाएगा. बजट विशेषज्ञों का अनुमान है कि सालाना अंतर करीब 5,000 करोड़ यूरो का होगा.

लेकिन इतना पैसा कहां से आएगा? चांसलर यह बात जानते हैं कि उनकी पार्टी सामाजिक कल्याण के खर्च में कटौती का समर्थन नहीं करेगी. कई जर्मन नागरिक भी ऐसा नहीं करेंगे. यह मुद्दा 2025 के संघीय चुनाव अभियान में बड़ी भूमिका निभा सकता है.

शॉल्त्स ने रक्षा नीति के मामले में नया युग लाने की बात कही है. लेकिन यह बात बहुत सारे जर्मन नागरिकों के दिमाग में नहीं बैठ पाई है. हथियार उत्पादन के लिए नई जगहों की तलाश के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई.

"ट्रॉइसडॉर्फ में गोला-बारूद की फैक्ट्री नहीं लगेगी, हम बर्लिन के दबाव के आगे नहीं झुकेंगे,"  नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया के छोटे कस्बे ट्रॉइसडॉर्फ के नागरिक और स्थानीय नेता यह नारा लगा रहे हैं. वे डिएल डिफेंस की निर्माण योजनाओं का विरोध कर रहे हैं. इस विरोध की एक वजह यह बताई जा रही है कि सुरक्षा कारणों से निकासी क्षेत्र बनाने होंगे. इनमें जाने वाली जमीन घर बनाने के लिए जरूरी है.

ट्रॉइसडॉर्फ कोई इकलौता मामला नहीं है. पिछले साल सैक्सनी में भी विरोध प्रदर्शन हुए थे क्योंकि राइनमेटाल ने घोषणा की थी कि वह वहां एक फैक्ट्री बनाने पर विचार कर रहा है. हालांकि, अंत में ये योजनाएं सफल नहीं हुईं क्योंकि संघीय सरकार शुरुआती फंडिंग देने के लिए तैयार नहीं थी. एक सीडीयू सांसद ने बुंडेसटाग के अपने भाषण में सरकार पर यही आरोप लगाया था.

यूरोप अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित

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