चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच ताइवान ने कहा है कि अमेरिका उसका साथ देता रहेगा. मंगलवार को ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि चीन के साथ हम ताइवान समझौते पर सहमत रहेंगे.
विज्ञापन
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि हम ‘ताइवान समझौते' का पालन करेंगे. चीन और ताइवान के बीच ताजा तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने मंगलवार को कहा कि इस बारे में चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग से उनकी बातचीत हो चुकी है.
उन्होंने कहा, "मैंने ताइवान के बारे में शी से बात की है. हम इस बात पर सहमत हैं कि हम ताइवान समझौते का पालन करेंगे. हमने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि समझौते का पालन करने के अलावा उन्हें (चीन को) और कुछ नहीं करना चाहिए.”
जानिए, कैसे शुरू हुआ चीन-ताइवान में झगड़ा
कैसे शुरू हुआ ताइवान और चीन के बीच झगड़ा
1969 में साम्यवादी चीन को चीन के रूप में मान्यता मिली. तब से ताइवान को चीन अपनी विद्रोही प्रांत मानता है. एक नजर डालते हैं दोनों देशों के उलझे इतिहास पर.
तस्वीर: Imago/Panthermedia
जापान से मुक्ति के बाद रक्तपात
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के साथ ही जापानी सेना चीन से हट गई. चीन की सत्ता के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्सेतुंग और राष्ट्रवादी नेता चियांग काई-शेक के बीच मतभेद हुए. गृहयुद्ध शुरू हो गया. राष्ट्रवादियों को हारकर पास के द्वीप ताइवान में जाना पड़ा. चियांग ने नारा दिया, हम ताइवान को "आजाद" कर रहे हैं और मुख्य भूमि चीन को भी "आजाद" कराएंगे.
तस्वीर: AFP/Getty Images
चीन की मजबूरी
1949 में ताइवान के स्थापना के एलान के बाद भी चीन और ताइवान का संघर्ष जारी रहा. चीन ने ताइवान को चेतावनी दी कि वह "साम्राज्यवादी अमेरिका" से दूर रहे. चीनी नौसेना उस वक्त इतनी ताकतवर नहीं थी कि समंदर पार कर ताइवान पहुंच सके. लेकिन ताइवान और चीन के बीच गोली बारी लगी रहती थी.
तस्वीर: Imago/Zuma/Keystone
यूएन में ताइपे की जगह बीजिंग
1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चीन के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में सिर्फ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चुना. इसके साथ ही रिपब्लिक ऑफ चाइना कहे जाने वाले ताइवान को यूएन से विदा होना पड़ा. ताइवान के तत्कालीन विदेश मंत्री और यूएन दूत के चेहरे पर इसकी निराशा साफ झलकी.
तस्वीर: Imago/ZUMA/Keystone
नई ताइवान नीति
एक जनवरी 1979 को चीन ने ताइवान को पांचवा और आखिरी पत्र भेजा. उस पत्र में चीन के सुधारवादी शासक डेंग शिआयोपिंग ने सैन्य गतिविधियां बंद करने और आपसी बातचीत को बढ़ावा देने व शांतिपूर्ण एकीकरण की पेशकश की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/UPI
"वन चाइना पॉलिसी"
एक जनवरी 1979 के दिन एक बड़ा बदलाव हुआ. उस दिन अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच आपसी कूटनीतिक रिश्ते शुरू हुए. जिमी कार्टर के नेतृत्व में अमेरिका ने स्वीकार किया कि बीजिंग में ही चीन की वैधानिक सरकार है. ताइवान में मौजूद अमेरिकी दूतावास को कल्चरल इंस्टीट्यूट में तब्दील कर दिया गया.
तस्वीर: AFP/AFP/Getty Images
"एक चीन, दो सिस्टम"
अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर के साथ बातचीत में डेंग शिआयोपिंग ने "एक देश, दो सिस्टम" का सिद्धांत पेश किया. इसके तहत एकीकरण के दौरान ताइवान के सोशल सिस्टम की रक्षा का वादा किया गया. लेकिन ताइवान के तत्कालीन राष्ट्रपति चियांग चिंग-कुओ ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 1987 में ताइवानी राष्ट्रपति ने एक नया सिद्धांत पेश किया, जिसमें कहा गया, "बेहतर सिस्टम के लिए एक चीन."
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
स्वतंत्रता के लिए आंदोलन
1986 में ताइवान में पहले विपक्षी पार्टी, डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की स्थापना हुई. 1991 के चुनावों में इस पार्टी ने ताइवान की आजादी को अपने संविधान का हिस्सा बनाया. पार्टी संविधान के मुताबिक, ताइवान संप्रभु है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Yeh
एक चीन का पेंच
1992 में हॉन्ग कॉन्ग में बीजिंग और ताइपे के प्रतिनिधियों की अनऔपचारिक बैठक हुई. दोनों पक्ष आपसी संबंध बहाल करने और एक चीन पर सहमत हुए. इसे 1992 की सहमति भी कहा जाता है. लेकिन "एक चीन" कैसा हो, इसे लेकर दोनों पक्षों के मतभेद साफ दिखे.
तस्वीर: Imago/Xinhua
डीपीपी का सत्ता में आना
सन 2000 में पहली बार विपक्षी पार्टी डीपीपी के नेता चेन शुई-बियान ने राष्ट्रपति चुनाव जीता. मुख्य चीन से कोई संबंध न रखने वाले इस ताइवान नेता ने "एक देश दोनों तरफ" का नारा दिया. कहा कि ताइवान का चीन से कोई लेना देना नहीं है. चीन इससे भड़क उठा.
तस्वीर: Academia Historica Taiwan
"एक चीन के कई अर्थ"
चुनाव में हार के बाद ताइवान की केमटी पार्टी ने अपने संविधान में "1992 की सहमति" के शब्द बदले. पार्टी कहने लगी, "एक चीन, कई अर्थ." अब 1992 के समझौते को ताइवान में आधिकारिक नहीं माना जाता है.
तस्वीर: AP
पहली आधिकारिक मुलाकात
चीन 1992 की सहमति को ताइवान से रिश्तों का आधार मानता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 2005 में पहली बार ताइवान की केएमटी पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की मुलाकात हुई. चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ (दाएं) और लियान झान ने 1992 की सहमति और एक चीन नीति पर विश्वास जताया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Reynolds
"दिशा सही है"
ताइवान में 2008 के चुनावों में मा यिंग-जेऊ के नेतृत्व में केएमटी की जीत हुई. 2009 में डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में मा ने कहा कि ताइवान जलडमरूमध्य" शांति और सुरक्षित इलाका" बना रहना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम इस लक्ष्य के काफी करीब हैं. मूलभूत रूप से हमारी दिशा सही है."
तस्वीर: GIO
मा और शी की मुलाकात
नवंबर 2015 में ताइवानी नेता मा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. दोनों के कोट पर किसी तरह का राष्ट्रीय प्रतीक नहीं लगा था. आधिकारिक रूप से इसे "ताइवान जलडमरूमध्य के अगल बगल के नेताओं की बातचीत" कहा गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में मा ने "दो चीन" या "एक चीन और एक ताइवान" का जिक्र नहीं किया.
तस्वीर: Reuters/J. Nair
आजादी की सुगबुगाहट
2016 में डीपीपी ने चुनाव जीता और तसाई इंग-वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं. उनके सत्ता में आने के बाद आजादी का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है. तसाई 1992 की सहमति के अस्तित्व को खारिज करती हैं. तसाई के मुताबिक, "ताइवान के राजनीतिक और सामाजिक विकास में दखल देने चीनी की कोशिश" उनके देश के लिए सबसे बड़ी बाधा है. (रिपोर्ट: फान वांग/ओएसजे)
तस्वीर: Sam Yeh/AFP/Getty Images
14 तस्वीरें1 | 14
चीन ने हाल ही में ताइवान के इर्दगिर्द सैन्य गतिविधियां बढ़ाई हैं जिस कारण इलाके में तनाव है. पिछले हफ्ते चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के 120 से ज्यादा विमान ताइवान के एयर डिफेंस आईडेंटिफिकेशन जोन में उड़ान भरते देखे गए थे.
क्या है ताइवान समझौता?
ताइवान समझौते से अमेरिकी राष्ट्रपति का अभिप्राय 1979 के ताइवान रिलेशंस एक्ट (TRA) से है. इस समझौते के अनुसार अमेरिका के चीन के साथ कूटनीतिक संबंध इस पर निर्भर करेंगे कि ताइवान के भविष्य को शांतिपूर्ण तरीकों से तय किया जाएगा.
मेलबर्न यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले चीन मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर प्रदीप तनेजा कहते हैं कि यह स्थिति अमेरिका के लिए भी दोधारी तलवार है.
डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "ताइवान ने ये माना हुआ है कि हम रिपब्लिक ऑफ चाइना हैं. और 1970 के दशत तक बाकी दुनिया भी यही मानती रही है. तब के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की चीन यात्रा के बाद अमेरिका ने चीन को मान्यता दी और तब ताइवान यानी रिपब्लिक ऑफ चाइना की मान्यता खत्म हो गई.”
निक्सन की यात्रा के बाद अमेरिका की संसद ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पास किया था जिसमें यह बात कहीं नहीं है कि अमेरिकी सेना ताइवान की रक्षा करेगी.
प्रोफेसर तनेजा बताते हैं, "उस एक्ट में यह लिखा है कि अमेरिका ताइवान को समर्थन देगा ताकि ताइवान अपनी रक्षा कर सके. अब कुछ लोग कहते हैं कि चीन को मान्यता देने और ताइवान की मान्यता खारिज करने का अर्थ यह है कि अमेरिका को इसे चीन का अंदरूनी मामला मानना चाहिए. लेकिन अमेरिका इस बात को लेकर स्पष्ट रहा है कि इस मामले में ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.”
विज्ञापन
ताइवान संतुष्ट
ताइवान ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इस बयान पर संतोष जताया है और कहा है कि अमेरिका को उसका समर्थन बना हुआ है. ताइवान की राष्ट्रपति के प्रवक्ता जेवियर चैंग ने बुधवार को कहा कि अमेरिका की ताइवान के प्रति नीति चट्टान की तरह मजबूत है.
चीन के पांच सिरदर्द
चीन के पांच सिर दर्द
पूरी दुनिया में चीन का रुतबा बढ़ रहा है. वह आर्थिक और सैन्य तौर पर महाशक्ति बनने की तरफ अग्रसर है. लेकिन कई अंदरूनी संकट उसे लगातार परेशान करते रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Shemetov
शिनचियांग
चीन का पश्चिमी प्रांत शिनचियांग अक्सर सुर्खियों में रहता है. चीन पर आरोप लगते हैं कि वह इस इलाके में रहने वाले अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों पर कई तरह की पाबंदियां लगता है. इन लोगों का कहना है कि चीन उन्हें धार्मिक और राजनीतिक तौर पर प्रताड़ित करता है. हालांकि चीन ऐसे आरोपों से इनकार करता है.
तस्वीर: Getty Images
तिब्बत
चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है. लेकिन इस इलाके में रहने वाले बहुत से लोग निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को अपना नेता मानते हैं. दलाई लामा को उनके अनुयायी जीवित भगवान का दर्जा देते हैं. लेकिन चीन उन्हें एक अलगाववादी मानता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS
सिछुआन
चीन का सिछुआन प्रांत हाल के सालों में कई बार तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं के आत्मदाहों को लेकर सुर्खियों में रहा है. चीनी शासन के विरोध में 2011 के बाद से वहां 100 से ज्यादा लोग आत्मदाह कर चुके हैं. ऐसे लोग अधिक धार्मिक आजादी के साथ साथ दलाई लामा की वापसी की भी मांग करते हैं. दलाई लामा अपने लाखों समर्थकों के साथ भारत में शरण लिए हुए हैं.
तस्वीर: dapd
हांगकांग
लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के कारण हांगकांग अकसर सुर्खियों में रहता है. 1997 तक ब्रिटेन के अधीन रहने वाले हांगकांग में "एक देश एक व्यवस्था" के तहत शासन हो रहा है. लेकिन अक्सर इसके खिलाफ आवाजें उठती रहती हैं. 1997 में ब्रिटेन से हुए समझौते के तहत चीन इस बात पर सहमत हुआ था कि वह 50 साल तक हांगकांग के सामाजिक और आर्थिक ताने बाने में बदलाव नहीं करेगा. हांगकांग की अपनी अलग मुद्रा और अलग झंडा है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Kyodo
ताइवान
ताइवान 1950 से पूरी तरह एक स्वतंत्र द्वीपीय देश बना हुआ है, लेकिन चीन उसे अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है और उसके मुताबिक ताइवान को एक दिन चीन का हिस्सा बन जाना है. चीन इसके लिए ताकत का इस्तेमाल करने की बात कहने से भी नहीं हिचकता है. लेकिन अमेरिका ताइवान का अहम दोस्त और रक्षक है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.Lin
5 तस्वीरें1 | 5
दरअसल 1982 में ‘छह आश्वासन' नाम से एक नीति के तहत ताइवान को अमेरिकी हथियार बेचे जाने पर फैसला हुआ था, जिसे ताइवान अपने पक्ष में मानता है.
1949 से ही ताइवान की एक स्वतंत्र सरकार है लेकिन चीन उसे अपना हिस्सा मानता है और इस बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच लगातार तनाव बना रहता है.
क्यों बढ़ा तनाव?
1 अक्टूबर को चीन का राष्ट्रीय दिवस था. उसी दिन पीएलए के 39 विमान ताइवानी इलाके में उड़ान भरकर आए. इनमें परमाणु हथियार ले जा सकने वाले लड़ाकू विमान भी शामिल थे. इस घटना की ताइवान के अलावा अमेरिका ने भी निंदा की थी.
सोमवार को ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने युद्ध की चेतावनी दी थी. ऑस्ट्रेलिया के सार्वजनिक टीवी चैनल एबीसी को दिए एक विशेष इंटरव्यू में वू ने चेतावनी दी कि चीन के साथ युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर चीन की सेना हमला करती है तो उनका देश जवाब देने के लिए तैयार है.
वू ने कहा, "ताइवान की रक्षा हमारे हाथ में है और उसे लेकर हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं. मुझे पूरा यकीन है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो उन्हें खासा नुकसान उठाना पड़ेगा."
विवेक कुमार (डीपीए)
जो देश होकर भी देश नहीं हैं
दुनिया के कई हिस्से खुद को एक अलग देश मानते हैं, उनकी अपनी सरकार, संसद और अर्थव्यवस्था है. कइयों की अपनी मुद्रा भी है. फिर भी उन्हें पूरी दुनिया में मान्यता नहीं है और न ही वे यूएन के सदस्य हैं. ऐसे ही देशों पर एक नजर.
तस्वीर: DW
फलस्तीन
फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 136 सदस्य देशों और वेटिकन की मान्यता हासिल है और फलस्तीनी इलाकों में फलस्तीनी विधायी परिषद की सरकार चलती है. लेकिन लगातार खिंच रहे इस्राएल-फलस्तीन विवाद के कारण एक संपूर्ण राष्ट्र के निर्माण का फलस्तीनियों का सपना अधूरा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Momani
कोसोवो
कोसोवो ने 2008 में एकतरफा तौर पर आजादी की घोषणा की, लेकिन सर्बिया आज भी उसे अपना हिस्सा समझता है. वैसे कोसोवो को संयुक्त राष्ट्र के 111 सदस्य देश एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे चुके हैं. साथ ही वह विश्व बैंक और आईएमएफ जैसी विश्व संस्थाओं का सदस्य है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सहारा रिपब्लिक
पश्चिमी सहारा के इस इलाके ने 1976 में सहारावी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (एसएडीआर) नाम से एक आजाद देश की घोषणा की. उसे संयुक्त राष्ट्र के 84 देशों की मान्यता हासिल है. लेकिन मोरक्को पश्चिमी सहारा को अपना क्षेत्र मानता है. एसआएडीआर यूएन का तो नहीं, लेकिन अफ्रीकी संघ का सदस्य जरूर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Messara
ताइवान
चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है जिसे एक दिन चाहे जैसे हो, चीन में ही मिल जाना है. चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण दुनिया के मुट्ठी भर देशों ने ही ताइवन के साथ राजनयिक संबंध रखे हैं. हालांकि अमेरिका ताइवान का अहम सहयोगी है और उसकी सुरक्षा को लेकर बराबर आश्वस्त करता रहा है.
तस्वीर: Taiwan President Office
दक्षिणी ओसेतिया
दक्षिणी ओसेतिया ने आजादी की घोषणा 1991 में सोवियत संघ के विघटन के समय ही कर दी थी. लेकिन उसे आंशिक रूप से मान्यता 2008 में उस वक्त मिली जब रूस और जॉर्जिया के बीच युद्ध हुआ. रूस के अलावा निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य भी उसे मान्यता दे चुके हैं.
तस्वीर: DW
अबखाजिया
2008 के युद्ध के बाद रूस ने जॉर्जिया के अबखाजिया इलाके को भी एक देश के तौर पर मान्यता दे दी, जिसे जॉर्जिया ने अखबाजिया पर रूस का "कब्जा" बताया. अबखाजिया को संयुक्त राष्ट्र के छह सदस्य देशों की मान्यता हासिल है जबकि कुछ गैर मान्यता प्राप्त इलाके भी उसे एक देश मानते हैं.
तस्वीर: Filip Warwick
तुर्क साइप्रस
1983 में आजादी की घोषणा करने वाले तुर्क साइप्रस को सिर्फ तुर्की ने एक देश के तौर पर मान्यता दी है. हालांकि इस्लामी सहयोग संगठन और आर्थिक सहयोग संगठन ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया है. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 541 में उत्तरी साइप्रस की आजादी को अमान्य करार दे रखा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Hatzistavrou
सोमालीलैंड
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोमालीलैंड को सोमालिया का एक स्वायत्त इलाका माना जाता है. लेकिन बाकी सोमालिया से शांत और समृद्ध समझे जाने वाले इस इलाके की चाहत एक देश बनने की है. उसने 1991 में अपनी आजादी का एलान किया, लेकिन उसे मान्यता नहीं मिली.
अर्टसाख रिपब्लिक
सोवियत संघ के विघटन के समय जब अजरबाइजान ने आजादी की घोषणा की, तभी अर्टसाख ने भी आजादी का एलान किया. अजरबाइजान इसे अपना हिस्सा मानता है. यूएन के किसी सदस्य देश ने इसे मान्यता नहीं दी है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/C. Arce
ट्रांसनिस्त्रिया
ट्रांसनिस्त्रिया का आधिकारिक नाम प्रिदिनेस्त्रोवियन मोल्दोवियन रिपब्लिक है, जिसने 1990 में मोल्दोवा से अलग होने की घोषणा की थी. लेकिन इसे न तो मोल्डोवा ने आज तक माना है और न ही दुनिया के किसी और देश ने मान्यता दी है.