यूरोपीय संघ ने चेतावनी दी है कि यदि तालिबान ने हिंसा से सत्ता हासिल की तो उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग कर दिया जाएगा. तालिबान ने हेरात और कंधार भी जीत लिए हैं और वह काबुल से 130 किलोमीटर दूर है.
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गुरुवार को यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख योसेप बोरेल ने एक बयान जारी कर कहा, "अगर ताकत से सत्ता हथियाई जाती है और एक इस्लामिक अमीरात स्थापित किया जाता है तो तालिबान को मान्यता नहीं मिलेगी और उसे अंतरराष्ट्रीय असहयोग का सामना करना होगा. लड़ाई जारी रहने की संभावना अफगानिस्तान की अस्थिरता भी उसके सामने होंगी.”
बोरेल ने कहा कि यूरोपीय संघ अफगान लोगों के साथ साझीदारी और समर्थन जारी रखना चाहता है लेकिन यह समर्थन शांतिपूर्ण और समावेशी समझौते व महिलाओं, युवाओं और अल्पसंख्यकों समेत सभी अफगान लोगों के मूलभूत अधिकारों के सम्मान की शर्त पर होगा.
देखिए, किस हाल में हैं अफगान
तालिबान के बढ़ते कदमों के बीच किस हाल में हैं अफगान
नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान छोड़ देने के बाद, देश के इलाकों पर तालिबान का कब्जा बढ़ता जा रहा है. नाटो सेनाओं के पूर्व स्थानीय सैनिक विशेष रूप से डरे हुए हैं और देश छोड़ कर निकल जाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
युद्ध के बाद का युद्ध
अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के देश छोड़ देने के बाद देश गंभीर अशांति की ओर अग्रसर है. तालिबान का कब्जा बढ़ता जा रहा है. अफगान सेना के अलावा लड़ाकों के कुछ निजी समूह भी तालिबान से लड़ रहे हैं.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
तालिबान की घेराबंदी
तालिबान के लड़ाकों के कदम बढ़ रहे हैं. उनके हमले आम लोगों को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं. यह तस्वीर काबुल के दक्षिण में स्थित लश्कर गाह की है जहां एक हवाई हमले में एक अस्पताल और स्कूल नष्ट हो गए.
तस्वीर: Abdul khaliq/AP/picture alliance
घर छोड़ कर जाने को मजबूर
नाटो सेनाओं के साथ काम कर चुके अफगान लोगों के लिए स्थिति विशेष रूप से खराब होती जा रही है. उन्हें बदला लेने के लिए किए जाने वाले हमलों का डर है और इस वजह से वे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा का इंतजाम करने में लगे हुए हैं. तालिबान के आ जाने पर सिर्फ सबसे जरूरी सामान बांध कर निकल जाना पड़ता है. यह तस्वीर काबुल के पश्चिम में हेरात के पास से इसी तरह भागते एक परिवार की है.
तस्वीर: Hamed Sarfarazi/AP/picture alliance
कुंदूज पर कब्जा
तालिबान ने कुंदूज में भी लड़ाई जीत ली है और राज्यपाल के दफ्तर और पुलिस मुख्यालय पर कब्जा जमा लिया. शहर के कुछ इलाके पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, जैसे कि ये दुकानें.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
हार का प्रतीक
कुंदूज में अब तालिबान का झंडा लहरा रहा है, जो अफगानिस्तान के भविष्य के लिए संघर्ष में अफगान सेना की विफलता का प्रतीक बन गया है. नाटो सेनाओं के चले जाने से तालिबान के लिए 20 साल बाद सत्ता हथिया लेने के दरवाजे खुल गए.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
पार्क में शरण
कई विस्थापित अफगानों ने काबुल में शरण ले ली है लेकिन वे राजधानी में आवास की कमी की वजह से पार्कों में शरण लेने पर मजबूर हैं. अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के साथ काम कर चुके अफगानियों को कई देशों ने शरण देने के प्रस्तावों का दावा किया था, लेकिन अक्सर आवेदनों का जवाब ही नहीं आता. (सारा क्लाइन, क्लॉडिया डेन)
तस्वीर: Rahmat Gul/AP/picture alliance
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बोरेल ने जोर देकर कहा कि पिछले दो दशकों में महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति में जो तरक्की हुई है, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में, उसकी सुरक्षा की जाए. उन्होंने अफगानिस्तान में फौरन हिंसा रोकने और काबुल स्थित सरकार के साथ शांति वार्ता शुरू करने की अपील की.
बोरेल ने अफगानिस्तान की सरकार से भी अपील की है कि वे अपने राजनीतिक मुतभेद सुलझाएं और सभी पक्षों का प्रतिनिधित्व बढ़ाएं तथा एक होकर तालिबान से बातचीत करें.
तालिबान की जीत जारी
यूरोपीय संघ का यह बयान तब आया है जबकि तालिबान तेजी से अफगानिस्तान में एक के बाद एक इलाकों पर कब्जा करता जा रहा है. गुरुवार को उसने देश के तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात पर कब्जा कर लिया. इसके साथ ही 11 प्रांतों की राजधानियों पर उसका कब्जा हो गया है.
गुरुवार को एक हथियारबंद दस्ते ने गजनी प्रांत की राजधानी गजनी पर नियंत्रण कर लिया था. गजनी देश की राजधानी काबुल से महज 130 किलोमीटर दूर है. इसके अलावा कंधार में भी तेज लड़ाई जारी है.
इतनी तेजी से मिल रही जीत को तालिबान ने अपने लिए लोगों का समर्थन बताया है. संगठन के एक प्रवक्ता ने समाचार चैनल अल जजीरा को बताया कि बड़े शहरों पर जल्दी नियंत्रण इस बात का संकेत है कि अफगान तालिबान का स्वागत कर रहे हैं. हालांकि प्रवक्ता ने कहा कि वह राजनीतिक रास्ते बंद नहीं कर रहे हैं.
अफगानिस्तान की विधवाओं का दर्द
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गुरुवार को ही ऐसी खबरें आई थीं कि अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान के सामने सत्ता में हिस्सेदारी का प्रस्ताव रखा था. हालांकि तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि उन्हें ऐसी किसी पेशकश के बारे में नहीं पता है.
जबीउल्लाह ने कहा, ”हम ऐसी कोई पेशकश स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि हम काबुल सरकार के साथ हिस्सेदारी नहीं करना चाहते. उसके साथ हम एक दिन भी ना रहेंगे और ना काम करेंगे.”
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अमेरिका, ब्रिटेन ने बुलाई सेना
अमेरिका और ब्रिटेन ने कहा है कि वे नागरिकों को निकालने के लिए हजारों सैनिकों को अफगानिस्तान भेजेंगे. गुरुवार को अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि दूतावास के कर्मचारियों को निकालने के लिए 48 घंटे के अंदर 3,000 जवान भेजे जाएंगे. ब्रिटेन ने 600 जवान भेजने की बात कही है.
यूं तो युद्ध क्षेत्र से अपने नागरिकों को निकालने के लिए अमेरिका सैनिक पहले भी भेजता रहा है लेकिन यह पहली बार होगा जबकि उसकी सेना की वापसी की समयसीमा अभी पूरी भी नहीं हुई है कि उसे अतिरिक्त सैनिक भेजने पड़े हैं.
तस्वीरों मेंः पहले ऐसा था अफगानिस्तान
तालिबान से पहले ऐसा दिखता था अफगानिस्तान
आज जब अफगानिस्तान का जिक्र होता है तो बम धमाके, मौतें, तालिबान और पर्दे में रहने वाली औरतों की छवी सामने उभर कर आती है. लेकिन अफगानिस्तान 60 दशक पहले ऐसा नहीं था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
डॉक्टर बनने की चाह
यह तस्वीर 1962 में काबुल विश्वविद्यालय में ली गई थी. तस्वीर में दो मेडिकल छात्राएं अपनी प्रोफेसर से बात कर रही हैं. उस समय अफ्गान समाज में महिलाओं की भी अहम भूमिका थी. घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में वे मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चला करती थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सबके लिए समान अधिकार
1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. यह तस्वीर काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय की है.
तस्वीर: Getty Images/Hulton Archive/Zh. Angelov
कंप्यूटर साइंस के शुरुआती दिन
इस तस्वीर में काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय में एक सोवियत प्रशिक्षक को अफगान छात्राओं को तकनीकी शिक्षा देते हुए देखा जा सकता है. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाया करते थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP
काबुल की सड़कों पर स्टाइल
काबुल में रेडियो काबुल की बिल्डिंग के बाहर ली गई इस तस्वीर में इन महिलाओं को उस समय के फैशनेबल स्टाइल में देखा जा सकता है. 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुर्का पहनने की सख्त ताकीद की गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बेबाक झलक
1981 में ली गई इस तस्वीर में महिला को अपने बच्चों के साथ लड़क पर बिना सिर ढके देखा जा सकता है. लेकिन आधुनिक अफगानिस्तान में ऐसा कुछ दिखाई देना संभव नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
पुरुषों संग महिलाएं
1981 की यह तस्वीर दिखाती है कि महिलाओं और पुरुषों का एक साथ दिखाई देना उस समय संभव था. 10 साल के सोवियत हस्तक्षेप के खत्म होने के बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद तालिबान ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सबके लिए स्कूल
सोवियतकाल की यह तस्वीर काबुल के एक सेकेंडरी स्कूल की है. तालिबान के आने के बाद यहां लड़कियों और महिलाओं के शिक्षा हासिल करने पर पाबंदी लग गई. उनके घर के बाहर काम करने पर भी रोक लगा दी गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि तालिबान के राजधानी काबुल तक पहुंचने का आम नागरिकों पर बहुत भयानक असर होगा. पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका और जर्मनी ने अपने नागरिकों को फौरन अफगानिस्तान छोड़ देने को कहा है.
इसी हफ्ते अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने देश की जासूसी एजेंसियों के हवाले से खबर छापी थी कि तालिबान को काबुल तक पहुंचने में 30 दिन लगेंगे और 90 दिन के भीतर काबुल उनके कब्जे में हो सकता है.