तालिबान के लड़ाके महीने भर में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को बाकी मुल्क से अलग-थलग कर सकते हैं और इस पर कब्जा करने में उन्हें 90 दिन लग सकते हैं. अमेरिका के एक रक्षा अधिकारी ने जासूसी एजेंसी के हवाले से यह बात कही है.
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रॉयटर्स एजेंसी से बातचीत में इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि तालिबान जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसके आधार पर आकलन किया गया कि उसे काबुल तक पहुंचने में कितना वक्त लगेगा.
इस अधिकारी ने कहा, "यह अंतिम विश्लेषण नहीं है. अफगान सेना ज्यादा विरोध के जरिए बढ़त को उलट भी सकती है.” इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान ने देश के लगभग 65 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया है. एक यूरोपीय अधिकारी के मुताबिक 11 प्रांतों की राजधानियां या तो कब्जा ली गई हैं या उन पर खतरा मंडरा रहा है.
देखिएः किस हाल में हैं अफगान
तालिबान के बढ़ते कदमों के बीच किस हाल में हैं अफगान
नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान छोड़ देने के बाद, देश के इलाकों पर तालिबान का कब्जा बढ़ता जा रहा है. नाटो सेनाओं के पूर्व स्थानीय सैनिक विशेष रूप से डरे हुए हैं और देश छोड़ कर निकल जाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
युद्ध के बाद का युद्ध
अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के देश छोड़ देने के बाद देश गंभीर अशांति की ओर अग्रसर है. तालिबान का कब्जा बढ़ता जा रहा है. अफगान सेना के अलावा लड़ाकों के कुछ निजी समूह भी तालिबान से लड़ रहे हैं.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
तालिबान की घेराबंदी
तालिबान के लड़ाकों के कदम बढ़ रहे हैं. उनके हमले आम लोगों को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं. यह तस्वीर काबुल के दक्षिण में स्थित लश्कर गाह की है जहां एक हवाई हमले में एक अस्पताल और स्कूल नष्ट हो गए.
तस्वीर: Abdul khaliq/AP/picture alliance
घर छोड़ कर जाने को मजबूर
नाटो सेनाओं के साथ काम कर चुके अफगान लोगों के लिए स्थिति विशेष रूप से खराब होती जा रही है. उन्हें बदला लेने के लिए किए जाने वाले हमलों का डर है और इस वजह से वे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा का इंतजाम करने में लगे हुए हैं. तालिबान के आ जाने पर सिर्फ सबसे जरूरी सामान बांध कर निकल जाना पड़ता है. यह तस्वीर काबुल के पश्चिम में हेरात के पास से इसी तरह भागते एक परिवार की है.
तस्वीर: Hamed Sarfarazi/AP/picture alliance
कुंदूज पर कब्जा
तालिबान ने कुंदूज में भी लड़ाई जीत ली है और राज्यपाल के दफ्तर और पुलिस मुख्यालय पर कब्जा जमा लिया. शहर के कुछ इलाके पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, जैसे कि ये दुकानें.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
हार का प्रतीक
कुंदूज में अब तालिबान का झंडा लहरा रहा है, जो अफगानिस्तान के भविष्य के लिए संघर्ष में अफगान सेना की विफलता का प्रतीक बन गया है. नाटो सेनाओं के चले जाने से तालिबान के लिए 20 साल बाद सत्ता हथिया लेने के दरवाजे खुल गए.
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance
पार्क में शरण
कई विस्थापित अफगानों ने काबुल में शरण ले ली है लेकिन वे राजधानी में आवास की कमी की वजह से पार्कों में शरण लेने पर मजबूर हैं. अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के साथ काम कर चुके अफगानियों को कई देशों ने शरण देने के प्रस्तावों का दावा किया था, लेकिन अक्सर आवेदनों का जवाब ही नहीं आता. (सारा क्लाइन, क्लॉडिया डेन)
तस्वीर: Rahmat Gul/AP/picture alliance
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बुधवार को तालिबान ने उत्तर पूर्व में बादकशां प्रांत की राजधानी फैजाबाद पर भी कब्जा कर लिया. इसके साथ ही आठ राज्यों की राजधानियों पर उसका पूर्ण कब्जा हो चुका है. कंधार शहर में भी तेज लड़ाई जारी है. दक्षिणी कंधार से एक डॉक्टर ने बताया कि बड़ी संख्या में अफगान फौजियों के शव और घायल तालिबान अस्पताल में पहुंचे हैं.
काबुल की किलेबंदी
एक सुरक्षा सूत्र ने बताया है कि पहाड़ियों से घिरी राजधानी काबुल में आने जाने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं. रॉयटर्स एजेंसी से इस सूत्र ने कहा, "इस बात का डर है कि खुदकुश हमलावर शहर के कूटनीतिक दफ्तरों वाले इलाकों में घुसकर हमला कर सकते हैं ताकि वे लोगों को डरा सकें और सुनिश्चित कर सकें कि जल्द से जल्द सारे लोग चले जाएं.”
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले एक महीने में एक हजार से ज्यादा आम नागरिकों की मौत हो चुकी है. रेड क्रॉस ने कहा है कि सिर्फ इस महीने में 4,042 घायल लोगों का 15 अस्पतालों में इलाज हुआ है.
तस्वीरों मेंः 20 साल से जारी युद्ध की कीमत
अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध की कीमत
सितंबर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ अफगानिस्तान में युद्ध अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध बन चुका है. अब स्पष्ट हो चुका है कि संसाधनों और जिंदगियों की असीमित कीमत चुकाने के बाद भी अमेरिका यह युद्ध जीत नहीं पाया.
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AFP
एक खूनी अभियान
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत अफगानियों ने चुकाई है. ब्राउन विश्वविद्यालय के "युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के कम से कम 47,245 नागरिक मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 66,000-69,000 अफगान सैनिकों के भी मारे जाने का अनुमान है. अमेरिका ने 2,442 सैनिक और 3,800 निजी सुरक्षाकर्मी गंवाएं हैं और नाटो के 40 सदस्य राष्ट्रों के 1,144 कर्मी मारे गए हैं.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
भारी विस्थापन
युद्ध की वजह से 27 लाख से भी ज्यादा अफगानी लोग दूसरे देश चले गए. इनमें से अधिकतर ईरान, पाकिस्तान और यूरोप चले गए. जो देश में ही रह गए उनमें से 40 लाख देश के अंदर ही विस्थापित हो गए. देश की कुल आबादी 3.6 करोड़ है.
तस्वीर: Aref Karimi/DW
पैसों की बर्बादी
"युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक अमेरिका ने इस युद्ध पर 2260 अरब डॉलर खर्च दिए हैं. अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक सिर्फ युद्ध लड़ने में ही 815 अरब डॉलर खर्च हो गए. युद्ध के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्र निर्माण की अलग अलग परियोजनाओं में 143 अरब डॉलर खर्च हो गए. इतिहास में पहली बार एक युद्ध के लिए अमेरिका ने उधार भी लिया और पिछले सालों में वो 530 अरब डॉलर मूल्य के ब्याज का भुगतान कर चुका है.
तस्वीर: Gouvernement Media and Information Center
यह खर्च अभी भी चलता रहेगा
अमेरिका ने सेवानिवृत्त सैनिकों के इलाज और देखभाल पर 296 अरब डॉलर खर्च किए हैं. यह खर्च आने वाले कई सालों तक चलता रहेगा.
अमेरिकी सरकार का अनुमान है कि राष्ट्र निर्माण पर हुए खर्च में से अरबों रुपए बेकार चले गए. नहरें, बांध और राज्य मार्गों का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया, नए अस्पताल और स्कूल खाली पड़े हैं और भ्रष्टाचार भी पनपा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. S. Arman
जाने का खर्च अलग है
कई लोगों को डर है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और महिलाओं के लिए अधिकारों के क्षेत्र में अफगानिस्तान में जो भी थोड़ी-बहुत तरक्की हुई है, वो अमेरिका के यहां से चले जाने के बाद संकट में पड़ जाएगी. पिछले 20 सालों में देश में अनुमानित जीवन-काल 56 से बढ़कर 64 हो गया है. मातृत्व मृत्यु दर आधे से भी ज्यादा कम हो गई है. साक्षरता दर आठ प्रतिशत बढ़ कर 43 प्रतिशत पर पहुंची है. बाल विवाह में भी 17 प्रतिशत की कमी आई है.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
अनिश्चितता का दौर
निश्चित रूप से अमेरिका एक स्थिर, लोकतांत्रिक अफगानिस्तान बनाने के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया और अब जब अमेरिकी सैनिक देश छोड़ रहे हैं, अफगानिस्तान का भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ नजर आ रहा है. (एपी)
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AFP
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तालिबान आम नागरिकों को निशाना बनाने की बात से इनकार करता है. बुधवार को जारी एक बयान में संगठन के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि तालिबान ने "आम नागरिकों, उनके घरों या बस्तियों को निशाना नहीं बनाया है बल्कि अभियान चलाते वक्त बहुत सावधानी बरती गई है.”
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अमेरिका को पछतावा नहीं
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि उन्हें अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुलाने के निर्णय पर कोई पछतावा नहीं है. बाइडेन ने अफगान नेतृत्व से अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने का आह्वान किया.
बाइडेन ने कहा कि पिछले 20 साल में अमेरिका ने एक खरब डॉलर खर्च किए और हजारों सैनिकों की जान गंवाई.
वाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अब "अफगानों को यह तय करना होगा कि उनके जवाब देने की राजनीतिक इच्छा और एक होकर लड़ने की क्षमता है या नहीं.”
देखिए, तालिबान से पहले का अफगानिस्तान
तालिबान से पहले ऐसा दिखता था अफगानिस्तान
आज जब अफगानिस्तान का जिक्र होता है तो बम धमाके, मौतें, तालिबान और पर्दे में रहने वाली औरतों की छवी सामने उभर कर आती है. लेकिन अफगानिस्तान 60 दशक पहले ऐसा नहीं था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
डॉक्टर बनने की चाह
यह तस्वीर 1962 में काबुल विश्वविद्यालय में ली गई थी. तस्वीर में दो मेडिकल छात्राएं अपनी प्रोफेसर से बात कर रही हैं. उस समय अफ्गान समाज में महिलाओं की भी अहम भूमिका थी. घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में वे मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चला करती थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सबके लिए समान अधिकार
1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. यह तस्वीर काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय की है.
तस्वीर: Getty Images/Hulton Archive/Zh. Angelov
कंप्यूटर साइंस के शुरुआती दिन
इस तस्वीर में काबुल के पॉलीटेक्निक विश्वविद्यालय में एक सोवियत प्रशिक्षक को अफगान छात्राओं को तकनीकी शिक्षा देते हुए देखा जा सकता है. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाया करते थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP
काबुल की सड़कों पर स्टाइल
काबुल में रेडियो काबुल की बिल्डिंग के बाहर ली गई इस तस्वीर में इन महिलाओं को उस समय के फैशनेबल स्टाइल में देखा जा सकता है. 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुर्का पहनने की सख्त ताकीद की गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बेबाक झलक
1981 में ली गई इस तस्वीर में महिला को अपने बच्चों के साथ लड़क पर बिना सिर ढके देखा जा सकता है. लेकिन आधुनिक अफगानिस्तान में ऐसा कुछ दिखाई देना संभव नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
पुरुषों संग महिलाएं
1981 की यह तस्वीर दिखाती है कि महिलाओं और पुरुषों का एक साथ दिखाई देना उस समय संभव था. 10 साल के सोवियत हस्तक्षेप के खत्म होने के बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद तालिबान ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सबके लिए स्कूल
सोवियतकाल की यह तस्वीर काबुल के एक सेकेंडरी स्कूल की है. तालिबान के आने के बाद यहां लड़कियों और महिलाओं के शिक्षा हासिल करने पर पाबंदी लग गई. उनके घर के बाहर काम करने पर भी रोक लगा दी गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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तालिबान की आगे बढ़ने की रफ्तार ने सरकार और उसके सहयोगियों को हैरान किया है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि तालिबान के हमले 2020 में हुए समझौते की भावना के खिलाफ हैं.
प्राइस ने कहा कि तालिबान ने शांति वार्ता के लिए प्रतिबद्धता जताई थी जो स्थायी और विस्तृत युद्ध विराम सुनिश्चित करे उन्होंने कहा, "सारे संकेत कहते हैं कि तालिबान युद्ध के जरिए जीत हासिल करना चाहता है. प्रांतीय राजधानियों और आम नागरिकों पर हमले समझौते की भावना के खिलाफ हैं.”