पहले पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने की रणनीति पर तालिबान
कैर्स्टेन क्निप्प
१५ मार्च २०२४
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता प्रदान करने के प्रति वैश्विक समुदाय ने अभी तक संकोच ही दिखाया है. लेकिन काबुल अपने क्षेत्रीय विस्तार की कड़ियां जोड़ने के प्रयास में है.
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इस वर्ष जनवरी में काबुल में व्यापक कूटनीतिक गतिविधियां देखने को मिलीं. तालिबान ने ‘अफगानिस्तान क्षेत्रीय सहयोग पहल' नाम से एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन की योजना बनाई, जिसमें 11 देशों ने सहभागिता का आमंत्रण भी स्वीकार कर लिया.
तालिबान से संबंधित एजेंसियों के अनुसार इस बहुस्तरीय बैठक का उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना था, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
यह स्पष्ट नहीं कि इस आयोजन का मकसद पूरा हुआ या नहीं, लेकिन इससे तालिबान की वह मंशा जरूर सामने आई कि वह पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने का इच्छुक है.
इस संबंध में यह इस्लामिक कट्टरपंथी समूह अपने खाते में कुछ शुरुआती सफलताओं का दावा कर सकता है. उदाहरण के तौर पर जब चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने जनवरी के अंत में तालिबान द्वारा नियुक्त अफगान राजदूत मावलावी असदुल्ला बिलाल करीमी को स्वीकार कर लिया.
तालिबान की 'होली' में जलाये गए गिटार, हारमोनियम, तबला
तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता में आते ही सार्वजनिक स्थानों पर संगीत बजाने पर पाबंदी लगा दी थी. अब वाद्य यंत्रों को जला कर तालिबान ने संगीत के प्रति अपनी नफरत का और भी वीभत्स चेहरा दिखाया है. देखिये तस्वीरों में.
तस्वीर: Afghanistan's Ministry for the Propagation of Virtue and the Prevention of Vice/AFP
वाद्य यंत्रों की 'होली'
तालिबान सरकार के नैतिकता मंत्रालय ने जब्त किये हुए वाद्य यंत्रों और उपकरणों की 'होली' जलाई है. यह 'होली' 30 जुलाई को को हेरात प्रांत में जलाई गई.
तस्वीर: Afghanistan's Ministry for the Propagation of Virtue and the Prevention of Vice/AFP
गिटार, हारमोनियम, तबला - सब खाक
जिन चीजों को आग लगाई गई उनमें एक गिटार, दो और तार वाले वाद्य यन्त्र, एक हारमोनियम, एक तबला, एम्पलीफायर और स्पीकर भी शामिल थे. इनमें से अधिकांश चीजों को हेरात के वेडिंग हॉलों से जब्त किया गया था.
तस्वीर: Afghanistan's Ministry for the Propagation of Virtue and the Prevention of Vice/AFP
सैकड़ों डॉलर का सामान
जला दिए गए समाना की कीमत सैकड़ों डॉलर थी, लेकिन संगीत प्रेमियों के लिए यह सब बेशकीमती सामान था. तालिबान संगीत को अनैतिक मानता है.
तस्वीर: Hussein Malla/AP Photo/picture alliance
क्या कहा तालिबान ने
'सदाचार को बढ़ावा देने और दुराचार को रोकने' के मंत्रालय के हेरात विभाग के मुखिया अजीज अल-रहमान अल-मुहाजिर ने कहा, "संगीत को बढ़ावा देने से नैतिक भ्रष्टाचार होता है और उसे बजाने से युवा भटक जाएंगे."
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
इस्लाम के बहाने
अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के बाद से तालिबान के अधिकारियों का इस्लाम के जिस कट्टर रूप में विश्वास है उसे लागू करने के लिए कई नियम और कानूनों की घोषणा की है. इनमें सार्वजनिक स्थानों पर संगीत बजाने पर बैन भी शामिल है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP/picture alliance
महिलाओं पर गिरी गाज
नए नियमों का सबसे बड़ा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ा है. वो बिना हिजाब पहने घर से बाहर नहीं का सकतीं. किशोर लड़कियों और महिलाओं को स्कूलों और विश्वविद्यालयों से प्रतिबंधित कर दिया है. देशभर में हजारों ब्यूटी पार्लरों को भी बहुत खर्चीली या गैर-इस्लामी बता कर बंद कर दिया गया है.
सीके/एए (एएफपी)
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
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तब चीन ने इस बात पर भी जोर दिया था कि कूटनीतिक स्वीकृति का यह अर्थ नहीं कि बीजिंग अफगानिस्तान के मौजूदा शासन को आधिकारिक रूप से मान्यता प्रदान करता है. हालांकि, अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता संभालने के बाद से दोनों देश एक दूसरे के निकट आए हैं.
मीडिया संस्थान अल जजीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में कई चीनी कंपनियों ने तालिबान के साथ कारोबारी अनुबंध किए. इनमें 25 वर्षीय तेल उत्पादन अनुबंध भी शामिल है, जिसमें पहले वर्ष 15 करोड़ डॉलर (137.5 मिलियन यूरो) का निवेश होगा, जो अगले तीन वर्षों में बढ़कर 54 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा.
ईरान भी कई वर्षों से काबुल के साथ करीबी रिश्ते बनाने में लगा है. तेहरान ने तालिबान के काबुल की सत्ता पर काबिज होने के कुछ महीनों बाद अक्टूबर 2021 में अपने राजनयिक हसन काजमी कोमी को अफगानिस्तान में अपना विशेष दूत नियुक्त किया था.
यूं तो ईरान सरकार ने तालिबान सरकार को पूरी तरह से मान्यता प्रदान नहीं की, लेकिन संकेत दिए कि उसके अनुसार तालिबान के साथ संबंध समूचे क्षेत्र के लिए लाभकारी हैं. राजनीतिक स्थिरता पर जोर देते हुए भारत का दृष्टिकोण भी कुछ ऐसा ही है.
केंद्रीय भूमिका में भू-राजनीतिक हित
इस क्षेत्र में यह घटनाक्रम तालिबान के साथ कूटनीतिक रिश्तों की ओर रुझान को रेखांकित करता है. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप नामक थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान के पड़ोसियों का रुझान तेजी से काबुल में मौजूदा शासन के पक्ष में झुक रहा है. इस क्षेत्र में सक्रिय एक राजनयिक के नाम का उल्लेख किए बिना रिपोर्ट में उनके हवाले से लिखा गया है, ‘हम तालिबान के पक्ष में पश्चिम के मिजाज बदलने का इंतजार नहीं कर सकते. हम यहां पहली पंक्ति में बैठे हैं.'
स्वतंत्र थिंक टैंक अफगानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क के सह-संस्थापक थॉमस रुटीग का कहना है कि पड़ोसियों के साथ नए सिरे से सक्रियता तालिबान के लिए बड़ी जीत होगी.
अफगानिस्तान: ब्यूटी पार्लर बैन होने से 60,000 महिलाओं के सामने खड़ा हुआ संकट
तालिबान के आदेश के बाद अफगानिस्तान के हजारों ब्यूटी पार्लर 25 जुलाई से बंद कर दिए गए. इन ब्यूटी पार्लरों के बंद होने से वहां काम करने वाली महिलाओं की आय का जरिया तो बंद ही हो गया,साथ ही अन्य महिलाओं से संपर्क भी टूट गया.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
ब्यूटी पार्लर आय का एक जरिया
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत तो पहले से ही पतली है, लेकिन तालिबान के आदेश के बाद 25 जुलाई को देश के सभी ब्यूटी पार्लर बंद कर दिए गए. उद्योग से जुड़े जानकारों का अनुमान है कि देश में कुल 12 हजार ब्यूटी पार्लर हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
खत्म हो गई आर्थिक आजादी
34 साल की मरजिया रेयाजी पिछले आठ साल से अफगानिस्तान में केवल महिलाओं का ब्यूटी पार्लर चलाती आ रही थीं. ब्यूटी पार्लर के सहारे वो अपने परिवार का समर्थन करती रही हैं लेकिन अब ब्यूटी पार्लर का बिजनेस बंद होने से उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचेगा. उन्होंने अपना बिजनेस शुरू करने के लिए करीब 18 हजार डॉलर खर्च किए थे.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
"हम काम करना चाहते हैं"
रेयाजी कहती हैं, "अब हम यहां काम नहीं कर पाएंगे. हम अपने परिवार का पेट नहीं पाल पाएंगे. हम काम करना चाहते हैं." रेयाजी अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा ब्यूटी पार्लर चलाने वाली हजारों महिलाओं में से एक हैं. एक अनुमान के मुताबिक तालिबान के इस आदेश के बाद इस सेक्टर से जुड़ीं 60,000 महिलाएं प्रभावित होंगी.
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तालिबान छीन रहा अधिकार
काबुल के एक ब्यूटी पार्लर में बहारा नाम की ग्राहक ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हम यहां आकर अपने भविष्य के बारे में बातें कर समय बिताते थे. लेकिन अब हमसे यह अधिकार भी छीन लिया गया है."
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अफगान समाज से गायब होती महिलायें
ब्यूटी सलून में बतौर मेक अप आर्टिस्टि काम करने वाली एक महिला ने नम आंखों से कहा, "तालिबान दिन-ब-दिन महिलाओं को समाज से खत्म करने की कोशिश कर रहा है. हम भी तो इंसान हैं." इस महिला ने सुरक्षा कारणों से अपना नाम नहीं बताया.
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देश की महिला उद्यमियों का क्या होगा
अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि रोजा इसाकोवना ओटुनबायेवा ने तालिबान के आदेश पर चिंता जताते हुए कहा, "यह महिला उद्यमियों पर प्रभाव डालेगा, गरीबी में कमी लाने के कदम और आर्थिक सुधार के लिए यह एक झटका है."
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कम हो जाएंगी कमकाजी महिलाएं
अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आईएलओ) ने रॉयटर्स को बताया कि प्रतिबंध से महिलाओं के रोजगार में भी "महत्वपूर्ण" कमी आएगी. आईएलओ के मुताबिक अफगानिस्तान की विदेश समर्थित सरकार के शासन के दौरान औपचारिक कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 23 प्रतिशत के आसपास थी.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
तालिबान का बेतुका तर्क
अफगानिस्तान के नैतिकता मंत्रालय की ओर से चार जुलाई को ब्यूटी पार्लर को बैन करने संबंधी आदेश में कहा गया था कि उसने यह आदेश इसलिए दिया क्योंकि मेकअप पर बहुत ज्यादा खर्च हो रहा है और गरीब परिवारों को कठिनाई होती है. तालिबान का कहना है कि सैलून में होने वाले कुछ ट्रीटमेंट गैर-इस्लामी हैं.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
महिलाओं के लिए बदतर होते हालात
अगस्त 2021 में सत्ता कब्जाने के बाद से तालिबान ने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं. उनका हाई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ना बंद कर दिया गया है. उन्हें पार्कों, मेलों और जिम आदि सार्वजनिक स्थानों पर जाने की मनाही है.
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महिलाओं के लिए क्या है तालिबान की सोच
तालिबान के सुप्रीम लीडर अखुंदजादा ने जून 2023 में कहा था कि इस्लामिक नियमों को अपनाकर महिलाओं को पारंपरिक अत्याचारों से बचाया जा रहा है और उनके "सम्मानित और स्वतंत्र इंसान" के दर्जे को फिर से स्थापित किया जा रहा है. तालिबान का कहना है कि वह इस्लामी कानून और अफगान संस्कृति की अपनी व्याख्या के मुताबिक ही महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करता है.
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उन्होंने कहा कि 1996 से 2001 के बीच पिछली बार अपनी सत्ता के दौरान भी तालिबान अपने लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाह रहे थे. रूटिग ने आगे कहा कि यह समूह इससे भलीभांति परिचित है कि पश्चिम के साथ कड़ियां जोड़ने की राह में तमाम बाधाएं मौजूद हैं, जिनमें अपनी खुद की जनसंख्या के प्रति दृष्टिकोण विशेषकर महिलाओं के अधिकारों के दमन जैसी तालिबान की कड़ी नीतियां शामिल हैं.
रूटिग ने डीडब्ल्यू को बताया, ‘परिणामस्वरूप, तालिबान अब इस क्षेत्र के देशों के साथ ही संपर्क साध रहा है, क्योंकि उनके साथ ऐसा करना अपेक्षाकृत आसान है.'
आईसीजी की रिपोर्ट रेखांकित करती है कि रीअप्रोचमेंट यानी नए सिरे से सक्रियता का वैचारिक समानता के साथ उतना सरोकार नहीं. इसके बजाय यह भू-राजनीतिक हितों से अधिक संचालित हो रही है, जिसमें क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थायित्व कायम रखने की आकांक्षा भी शामिल है.
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आतंक पर अंकुश
रूटिग ने कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई अफगानिस्तान के पड़ोसियों का साझा लक्ष्य है. इनमें मध्य एशियाई लोकतंत्रों से लेकर चीन और ईरान एवं अन्य देश भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) के क्षेत्रीय संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरसान का बढ़ता खतरा इन देशों को तालिबान के साथ अपने रिश्ते बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा है. पाकिस्तान की स्थिति दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना आतंकवाद से लड़ना कितना कठिन हो सकता है.
‘द डिप्लोमैट' पत्रिका के अनुसार तालिबान के सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तान में आतंकी हमलों में काफी इजाफा हुआ है. केवल 2023 के दौरान ही आतंकी हमलों में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई. आतंकी हमलों में करीब 970 लोग मारे गए, जबकि तकरीबन 1,350 घायल हुए.
तालिबान ने आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं की है. इसकी एक वजह तो यही हो सकती है कि तालिबान ऐसी कार्रवाई करने की स्थिति में ही नहीं है या फिर वह पड़ोसी देश पर राजनीतिक दबाव डालना चाहता हो. ‘द डिप्लोमैट‘ को अंदेशा है कि तालिबान की इस निष्क्रियता के पीछे पाकिस्तान की वह नीति हो सकती है, जिसमें उसने हजारों अफगान शरणार्थियों को वापस भेज दिया.
इसके बावजूद दोनों देश नए व्यापारिक मार्गों जैसे आर्थिक मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं.
क्या होगा उन अफगान शरणार्थियों का जिन्हें निकाल रहा है पाकिस्तान
वो तालिबान से बचने के लिए अफगानिस्तान से भाग निकले थे और पाकिस्तान में शरण ली थी. अब इन दो लाख से भी ज्यादा अफगान शरणार्थियों को पाकिस्तान से निकाला जा रहा है. देखिए किस हाल में हैं ये लोग.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
जाने को मजबूर
हजारों लोग उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में तोरखम सीमा पर पहुंचे हैं. पाकिस्तान ने घोषणा की है कि बिना कागजों के देश में रह रहे अफगान लोगों को देश से निकालने के लिए कैम्पों में ले जाया जाना शुरू हो चुका है. पाकिस्तान में करीब 40 लाख अफगान रहते हैं. पाकिस्तानी सरकार मानती है कि उनमें से करीब 17 लाख अवैध रूप से रह रहे हैं.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
दशकों से बसे हैं पाकिस्तान में
2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद करीब छह लाख अफगान भाग कर पड़ोसी देश पाकिस्तान चले गए थे. लेकिन उससे भी पहले 1970 और 1980 के दशकों के संकटों की वजह से कई अफगान पाकिस्तान में बस गए थे. कई दूसरी और तीसरी पीढ़ी के अफगान लोग कभी अफगानिस्तान नहीं गए हैं.
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अपना सब कुछ साथ लिए
अफगानिस्तान का नांगरहार प्रांत पाकिस्तान की सीमा के ठीक दूसरी तरफ है. पूरी तरह से लदे हुए ट्रक अफगान परिवारों को सीमा के पार ले जा रहे हैं.
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वापसी को लेकर डर
तालिबान सरकार ने इन लोगों के लिए तोरखम के पास दो तंबू वाले कैंप लगाए हैं. पाकिस्तान की सरकार ने घोषणा कर दी थी कि अवैध आप्रवासियों को एक नवंबर तक देश छोड़ देना पड़ेगा. लेकिन कई अफगान लोगों को उस देश में वापस लौटने से डर लग रहा है जहां से वो भाग गए थे.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
तालिबान के नियंत्रण में
तालिबान के लड़ाके पाकिस्तान से आने वालों के लिए बनाए गए एक पंजीकरण स्थान पर पहरा दे रहे हैं. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने बताया है कि करीब 200 अफगान मीडियाकर्मी भी पाकिस्तान से निकाल दिए जाने के खतरे का सामना कर रहे हैं. तालिबान के सत्ता में वापसी के बाद कई अफगान रिपोर्टर दमन के डर से भाग कर पाकिस्तान और दूसरे देश चले गए थे.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
गंभीर हालात
कई अंतरराष्ट्रीय राहत संगठनों ने चिंता जताई है कि पाकिस्तान से निकाले गए कई अफगान संकटपूर्ण स्थिति का सामना कर रहे हैं. सीमा पार अफगानिस्तान में आवास, भोजन, पीने का पानी, गर्मी और सफाई सुविधाओं की कमी है. कई लोग खुले में सो रहे हैं.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
सर्दियों में बेघर
रात में यहां तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे गिर जाता है. पाकिस्तान के फैसले की कड़ी आलोचना हुई है. संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था ने चेतावनी दी है कि सर्दियां करीब हैं और ऐसे में एक मानवीय तबाही सिर पर है. कई परिवारों के पास तो अफगानिस्तान में लौट कर रहने के लिए कोई जगह भी नहीं है.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
तालिबान का खतरा
शरणार्थी सुरक्षा संगठन प्रोएसील ने जर्मन सरकार से मांग की है कि वो उन अफगान लोगों को जल्द अपने पास ले ले जो विशेष रूप से खतरे में हैं. अफगानिस्तान के लिए प्रोएसील की प्रवक्ता अलेमा अलेमा ने कहा, "कई लोगों को जर्मनी और दूसरे देशों में जाने के लिए आप्रवासन कार्रवाई को पूरा करने के लिए पाकिस्तान जाना पड़ा था. केंद्रीय विदेश मंत्रालय को उन्हें जल्दी से निकालने के लिए कदम उठाने चाहिए." (यूली ह्यूएनकेन)
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रूटिग ने कहा कि आतंक प्रभावित अधिकांश देश तालिबान के सहयोग पर भरोसा कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘उन्हें उम्मीद है कि तालिबान उनके सबसे महत्वपूर्ण घरेलू शत्रु के खिलाफ कदम उठाएगा. वैसे तो तालिबान कुछ समूहों के खिलाफ कदम उठा रहा है, लेकिन वे सभी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे. मिसाल के तौर पर, अभी तक उन्होंने उइगर चीन को नहीं सौंपे जबकि पिछली सरकार ने ऐसा किया था.”
क्षेत्रीय सहयोग का एक और पहलू आर्थिक हितों से जुड़ा है. आईसीजी के अध्ययन के अनुसार अफगानिस्तान में युद्ध समाप्त होने के बाद से व्यापार धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है. खासतौर से ऊर्जा क्षेत्र में.
हालांकि व्यापारिक संबंधों की राह में अभी भी लचर मानवाधिकार स्थितियों और विधि यानी कानून के शासन के अभाव जैसे अवरोध कायम हैं लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर व्यापार में सुधार की उम्मीद है ताकि व्यापक आबादी विकास की ओर उन्मुख अर्थव्यवस्था से लाभ उठा सके.
दबाव में मानवाधिकार
अफगानिस्तान के लिए यूरोपीय संघ (ईयू) के विशेष दूत थॉमस निकलॉसन ने क्षेत्रीय स्तर पर सक्रियता का स्वागत किया है. उनका कहना है कि अफगानिस्तान में दशकों के युद्ध के बाद यह ‘आवश्यक' है.
अफगानिस्तान: डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना अधूरा
साल 2021 में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने के बाद धीरे-धीरे लड़कियों की शिक्षा ठप्प हो गई. अब लड़कियां मदरसों में किसी तरह से इस्लामी पढ़ाई कर रही हैं.
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स्कूल बंद, मदरसों में पढ़ाई
काबुल के उत्तर में एक मदरसे के प्रमुख मंसूर मुस्लिम ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि स्कूल बंद होने के कारण उनके मदरसे में छात्राओं की संख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
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इस्लामी शिक्षा ही सहारा
सत्ता में आने के बाद तालिबान ने लड़कियों की माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसलिए मदरसों में लड़कियों की संख्या बढ़ रही है.
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"सपना पूरा नहीं होगा"
17 साल की मुरसल को तीन महीने पहले काबुल के एक मदरसे में भर्ती कराया गया था. वह कहती हैं, "मैं भविष्य में डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन वह अब मुमकिन नहीं है. अब यहां पढ़कर सिर्फ टीचर बन सकती हूं."
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अन्य विषयों को शुरू करने की योजना
सूचना मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल मतीन ने रॉयटर्स को बताया कि एक सरकारी समिति धार्मिक विषयों के अलावा मदरसों में अन्य धर्मनिरपेक्ष विषयों को शामिल करने के मुद्दे पर विचार कर रही है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
अन्य विषय भी पढ़ना चाहती हैं लड़कियां
रॉयटर्स ने लगभग 30 मदरसा छात्राओं और शिक्षकों से बात की उनमें से कुछ ने कहा कि इस्लामी शिक्षा ने उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन वे दूसरी चीजें भी पढ़ना चाहती हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
लड़कियों को व्यस्त रखने के लिए
दक्षिण-पश्चिमी फराह प्रांत की महिला अधिकार कार्यकर्ता मरजिया नूरजई ने कहा कि उनकी भतीजी पिछले साल हाई स्कूल खत्म कर चुकी होती लेकिन यह संभव नहीं हुआ, अब वह एक स्थानीय मदरसे में जा रही है. उन्होंने कहा, "उसे वहां सिर्फ व्यस्त रखने के लिए भेजा जा रहा है, क्योंकि वह निराश हो रही थी."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Gul
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साथ ही साथ उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ईयू की मुख्य चिंता महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों, विशेषकर उनकी शिक्षा एवं रोजगार से जुड़ी है.
अफगानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क के रुटिग ने कहा, ‘इस क्षेत्र में ना तालिबान और ना रूस, चीन या फिर कोई अन्य देश भी स्वाभाविक रूप से मानवाधिकारों पर ध्यान देता है. इस लिहाज से पश्चिम की तुलना में उनके लिए तालिबान के साथ संबंध स्थापित करना अमूमन आसान है.'