तालिबान ने महिलाओं के विश्वविद्यालय जाने पर लगाया बैन
२१ दिसम्बर २०२२तालिबान ने अफगानिस्तान में महिला शिक्षा के दरवाजे लगभग बंद कर दिए हैं. यूनिवर्सिटी में उनके जाने पर पाबंदी लगा दी गई है. मंगलवार को तालिबान अधिकारियों ने यह आदेश जारी किया.
अगस्त 2021 में जब तालिबान सत्ता में आए, तो उन्होंने कहा था कि यह 1990 वाला तालिबान नहीं है और बदल चुका है. उसने महिलाओं की आजादी को लेकर भी कई वादे किए थे. हालांकि, एक-एक कर वे सारे वादे तोड़े जा रहे हैं.
अफगानिस्तान के उच्च शिक्षा मंत्री निदा मोहम्मद नदीम ने एक आदेश मे कहा, "आप सभी को सूचित किया जाता है कि इस आदेश को तुरत प्रभाव से लागू किया जा रहा है." मंत्रालय के प्रवक्ता जिआउल्लाह हाशमी ने यह नोटिस ट्विटर पर शेयर किया है. समाचार एजेंसी एएफपी ने भी इस आदेश की पुष्टि की है.
यह आदेश तब आया है, जब तीन महीने पहले ही हजारों लड़कियों और महिलाओं ने यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा दी थी. बहुत सारी महिलाओं ने शिक्षा और चिकित्सा को अपने करियर का क्षेत्र चुना है.
धीरे-धीरे बदतर होती स्थिति
तालिबान ने पिछले साल काबुल पर कब्जा करने के बाद ही शिक्षा के नियमों में बदलाव करने शुरू कर दिए थे. विश्वविद्यालयों को नए नियम मानने को मजबूर किया गया था. इनमें कक्षाओं में पुरुषों और स्त्रियों को अलग-अलग बिठाना और लड़कियों की कक्षाओं में सिर्फ महिला या बुजुर्ग शिक्षकों के पढ़ाने के प्रावधान शामिल हैं.
ज्यादातर किशोरियों को तो सेकंड्री स्कूलों से हटा दिया गया था. विश्वविद्यालयों में भी लड़कियों के लिए सीटें बहुत सीमित कर दी गई थीं. मार्च में ही नीतियों में पूरी तरह बदलाव करते हुए लड़कियों के सेकंड्री स्कूलों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. यह आदेश उस दिन जारी हुआ, जिस दिन स्कूलों को खुलना था.
तालिबान के आने के बाद बड़ी संख्या में महिलाओं को सरकारी नौकरियों से हटा दिया गया है. कई मामलों में तनख्वाहें घटा दी गईं और महिलाकर्मियों को घर भेज दिया गया. अफगानिस्तान में महिलाओं पर किसी पुरुष के बिना यात्रा करने पर प्रतिबंध है. उन्हें घर से बाहर निकलने पर खुद को पूरी तरह ढक कर रखना होता है. नवंबर महीने में ही उन्हें पार्कों, मेलों, जिम और मनोरंजन के अन्य सार्वजनिक आयोजनों में जाने से रोक दिया गया था.
तालिबान इन सभी पाबंदियों का आधार इस्लामिक कानून शरिया को बताते हैं. तालिबान के सुप्रीम लीडर हैबतुल्ला अखुंदजादा और उनके करीबी नेता आधुनिक शिक्षा के विरोधी हैं. खासकर महिलाओं और लड़कियों को लेकर.
हालांकि, प्रशासन में अब बहुत से अधिकारी ऐसे हैं, जो इन नियमों से सहमति नहीं रखते. खासकर निचली पंक्ति के तालिबान चाहते हैं कि महिलाओं की शिक्षा जारी रहे. वे महिलाओं को प्रशासन का हिस्सा बनाने की भी उम्मीद रखते हैं.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता
कई अधिकारी कहते हैं कि लड़कियों के स्कूल जाने पर लगाया गया प्रतिबंध अस्थाई है. वे फंड की कमी से लेकर सिलेबस को इस्लामिक आधार पर बदलने में लग रहे वक्त जैसी वजहें बताते हैं.
प्रतिबंध लगने के बाद से बहुत सी लड़कियों की समय से पहले ही शादी कर दी गई. बहुत से मामलों में तो उन्हें उनके पिता की मर्जी से बुजुर्गों के साथ ब्याह दिया गया. देश की आर्थिक हालत भी खस्ता है. गरीबी के कारण भी बहुत से परिवारों ने अपनी बेटियों को सुरक्षित भविष्य की चाह में ब्याह दिया था, क्योंकि 'वे घरों में खाली बैठी थीं'.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय महिलाओं के अधिकारों, खासकर शिक्षा को लेकर चिंता जताता रहा है. वे अफगानिस्तान को आर्थिक और वित्तीय मदद करने के लिए इन अधिकारों को बनाए रखने की शर्त भी रखते हैं. सितंबर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक बयान में कहा था, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगान महिलाओं और लड़कियों को भूला नहीं है."
वीके/वीएस (एएफपी, एपी)