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समाज

अफगानिस्तान में बढ़ रहे हैं तालिबान विरोधी प्रदर्शन

८ सितम्बर २०२१

तालिबान की सरकार के सामने विरोध प्रदर्शनों से निपटने की चुनौती होगी. जब से वे सत्ता में आए हैं, रोज प्रदर्शन हो रहे हैं.

तस्वीर: HOSHANG HASHIMI/AFP

काबुल की एक सड़क पर सैकड़ों महिलाओं का एक समूह नारेबाजी कर रहा है. जैसे ही हथियारबंद तालिबान संगीनें तानते हैं, वे तेजी से आड़ लेने को छितर जाती हैं. तालिबान हवा में गोलियां चलाते हैं. महिलाओं में से एक तुरंत कैमरे के सामने आकर बोलने लगती है.

वह कहती हैं, "ये लोग (तालिबान) अन्यायी हैं. इनमें कोई इंसानियत भी नहीं है. वे हमें प्रदर्शन का अधिकार भी नहीं दे रहे. वे मुसलमान नहीं, काफिर हैं."

गोलियों की आवाज तेज होती जाती है और अफरा-तफरी बढ़ती जाती है.

इस प्रदर्शन में किसी की जान जाने की कोई खबर नहीं है. मंगलवार को हुए इस विरोध प्रदर्शन के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए गए हैं. उनमें तालिबान को हवा में बंदूकें ताने देखा जा सकता है.

रोज हो रहे हैं प्रदर्शन

तालिबान को अफगानिस्तान पर काबिज हुए महीनाभर होने को आया है. इस दौरान लगभग रोज विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. देशभर में कई जगहों पर छोटे-छोटे समूहों में इस तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं. आमतौर पर महिलाएं इन प्रदर्शनों की अगुआ होती हैं. ये छोटे-छोटे प्रदर्शन तालिबान के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं.

मंगलवार को तालिबान ने अपनी अंतरिम सरकार का ऐलान किया है. नई सरकार में मुल्ला हसन अखुंद को अंतरिम प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. उन्होंने ही तालिबान के पिछले शासन के अंतिम सालों में सरकार का नेतृत्व किया था. दो लोगों को अंतरिम उपप्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. इनमें एक नाम मुल्ला अब्दुल गनी बरादर का है, जिन्होंने अमेरिका के साथ हुई बातचीत का नेतृत्व किया और अफगानिस्तान से अमेरिका की पूरी तरह विदाई से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर किए.

तस्वीरेंः तालिबान के राज में अफगानिस्तान

सरकार का गठन करने से पहले तालिबान ने लोगों से कहा था कि सरकार बनने तक धैर्य रखें और उसके बाद उनकी परेशानियों को हल किया जाएगा.

एक तालिबान प्रवक्ता ने महिला प्रदर्शनकारियों के संदर्भ में कहा था, "उनसे हमने थोड़ा धीरज धरने को कहा था जबकि व्यवस्था खड़ी की जा रही है. जब संस्थाएं बन जाएंगी और काम करने लगेंगी तब हम उनकी बात सुनेंगे."

अंतरिम सरकार की चुनौती

अब जबकि एक अंतरिम सरकार का गठन हो गया है तो समाज के तौर पर अफगानियों की अपेक्षाएं बढ़ेंगी क्योंकि पिछले दो दशक के लोकतांत्रिक शासन के दौरान उनका जीवन तालिबान के अनुरूप नहीं रहा है.

मसलन, पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर 1996-2001 के बीच राज किया, लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं थी और महिलाओं के काम करने पर कड़ी पाबंदियां लगी हुई थीं. धार्मिक पुलिस को बहुत ज्यादा ताकत हासिल थी और वे किसी को भी नियम तोड़ने के आरोप में कोड़े लगा सकते थे.

तालिबान को ताकत कहां से मिलती है

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इस बार सत्ता में आए तालिबान ने वादा किया है कि वे ज्यादा सहनशील होंगे. उनके इस वादे पर अफगान जनता और विदेशी ताकतों की भी पैनी नजर है. लेकिन प्रदर्शनकारियों की मांगें इससे भी कहीं ज्यादा हैं.

करो या मरो की स्थिति

हेरात शहर में छात्राएं कहती हैं कि वे नई सरकार में महिलाओं का ज्यादा प्रतिनिधित्व चाहती हैं. हेरात यूनिवर्सिटी के बिजनेस स्कूल में पढ़ने वालीं दरिया ईमानी कहती हैं, "महिलाएं समाज में हमारा रुतबा और हमारी नौकरियां बचाने के लिए सड़क पर उतरी हैं. हमारे लिए यह करो या मरो की स्थिति है."

ईमानी बताती हैं कि उनकी चचेरी बहनें मंगलवार को काबुल में विरोध प्रदर्शनों में शामिल थीं. वह कहती हैं, "हम बहादुर नहीं हैं. हम बस अपने मूलभूत अधिकारों को बचाने को आतुर हैं."

तस्वीरेंः अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध

तालिबान नेताओं ने महिला अधिकारों को लेकर अब तक यही कहा है कि महिलाओं को शरिया कानून के दायरे में आजादी दी जाएगी. अपनी पहली ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान प्रवक्ता ने कहा था कि महिलाएं समाज में बराबर की जिम्मेदारी उठाएंगी लेकिन शरिया के दायरे में. हालांकि ऐसे भी संकेत दिए जा चुके हैं कि सरकार में वरिष्ठ पदों पर महिलाएं नहीं होंगी. अब तक अंतरिम सरकार में किसी महिला को कोई पद नहीं दिया गया है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

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