तालिबान के संस्थापकों में से एक और इस्लामी कानून के जानकार ने कहा है कि अफगानिस्तान में एक बार फिर से कठोर सजा लागू की जाएगी.
विज्ञापन
मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी तालिबान के संस्थापकों में से एक हैं और इस्लामी कानून की कठोर व्याख्या के जानकार हैं. उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान में फिर से फांसी की सजा दी जाएगी और दोषियों के हाथ काटे जाएंगे. हालांकि उन्होंने कहा कि यह सार्वजनिक तौर पर नहीं होगा. पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया था तो ऐसी सजा सार्वजनिक तौर पर दी जाती थी.
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के साथ एक साक्षात्कार में मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने अतीत में तालिबान की फांसी पर नाराजगी के दावे को खारिज कर दिया. पिछले शासन में फांसी की सजा स्टेडियम में दी जाती थी, जिसे देखने के लिए भारी भीड़ जमा होती थी. तुराबी ने साथ ही अफगानिस्तान के नए शासकों के खिलाफ किसी भी साजिश के लिए दुनिया को चेतावनी दी है.
देखिए, काबुल की जेल जहां कैदी बन गए जेलर
काबुल की जेल में अब कैदी बन गए जेलर
काबुल की यह पुल ए चरखी जेल अब खाली बियाबान पड़ी है. कभी यहां हजारों तालिबान कैद थे, जिन्हें रिहा कर दिया गया है.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
कैदी बन गए जेलर
जो तालिबान इस जेल में कभी कैदी थे, आज वही इसके प्रशासक हैं. 15 अगस्त को काबुल में घुसने के बाद तालिबान ने इन कैदियों को रिहा कर दिया था.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
उनका कुछ सामान
जेल के खाली कमरों में कैदियों का सामान अब भी पड़ा दिखाई देता है. कहीं पुराने जूते पड़े हैं तो कहीं कपड़े.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
उकेरा गया इतिहास
दीवारों पर बनीं ये तस्वीरें उस वक्त की गवाह हैं जब तालिबान कैदी के रूप में यहां बंद थे और आजादी उनके लिए सपना हुआ करती थी.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
यातनाओं के निशान
पुल ए चरखी का लंबा और काफी हिंसक इतिहास रहा है. कभी यहां बड़े पैमाने पर कत्ल हुए और यातनाएं दी गईं.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
बुरी हालत
जेल में 1970 और 1980 के दशक के समय की कई सामूहिक कब्रें भी मिली थीं. जब देश में अमेरिका समर्थित सरकार थी तो जेल की हालत काफी खराब थी और इसमें भारी भीड़ थी.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
हमेशा भीड़ रही
जेल के 11 विशाल कमरों में 5,000 कैदियों के लिए जगह बनाई गई थी लेकिन अक्सर यहां 10 हजार से ज्यादा कैदी रहते थे.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
दंगे भी हुए
उन्हीं कैदियों में तालिबान भी शामिल थे जो यातनाएं दिये जाने की शिकायत करते थे. जेल में अक्सर दंगे हो जाते थे.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
तालिबान का संघर्ष
तालिबान कैदियों ने मिलकर सामूहिक संघर्ष भी किया और अपने लिए कई सहूलियतें हासिल कीं जैसे मोबाइल फोन की सुविधा या फिर कमरों से बाहर ज्यादा समय बिताना.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
पलट गया पासा
अब इस जेल की सुरक्षा तालिबान बंदूकधारी करते हैं और प्रशासन का जिम्मा पूर्व कैदियों के हाथ में दे दिया गया है.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
फिर आने लगे हैं कैदी
जेल में अब भी एक हिस्सा है जहां पिछले कुछ हफ्तों में गिरफ्तार किए गए करीब 60 लोगों को रखा गया है. इनमें से ज्यादातर कैदी नशे के आदि हैं.
तस्वीर: STRINGER/REUTERS
10 तस्वीरें1 | 10
काबुल में उन्होंने कहा, "स्टेडियम में सजा के लिए सभी ने हमारी आलोचना की, लेकिन हमने उनके कानूनों और उनके दंड के बारे में कभी कुछ नहीं कहा." उन्होंने कहा, "कोई हमें नहीं बताएगा कि हमारे कानून क्या होने चाहिए. हम इस्लाम का पालन करेंगे और कुरान के आधार अपने कानून बनाएंगे."
तालिबानी शासन कैसा होगा
15 अगस्त को जब से तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और देश पर अपना नियंत्रण जमा लिया, अफगानी जनता और दुनिया यह देख रही है कि क्या वे 1990 के दशक के अंत के अपने कठोर शासन को फिर से बनाएंगे या नहीं.
तुराबी की टिप्पणियां यह बताती हैं कि कैसे तालिबान के नेता एक रूढ़िवादी और कठोर नजरिए में उलझे हुए हैं, भले ही वे वीडियो और मोबाइल फोन जैसी तकनीकों को स्वीकार कर रहे हों.
तुराबी अब 60 साल के हो गए हैं. वे तालिबान के पिछले शासन के दौरान न्याय मंत्री और तथाकथित सदाचार प्रचार एवं अवगुण रोकथाम विभाग के प्रमुख थे. उस समय दुनिया ने तालिबान द्वारा दी जाने वाली सजाओं की निंदा की थी. कठोर सजा काबुल के खेल स्टेडियम में या खुले मैदान पर दी जाती थी. सजा को देखने के लिए अक्सर सैकड़ों अफगान पुरुष आते थे.
विज्ञापन
गोली मारकर दी जाती थी सजा
सजायाफ्ता हत्यारों को आमतौर पर एक ही गोली में मार दिया जाता था. सजा को अंजाम पीड़ित परिवार देता था, जिसके पास "ब्लड मनी" लेने के बदले दोषी को जिंदा रहने देने का विकल्प होता. जो लोग चोरी के दोषी होते थे उनके हाथ काट दिए जाते थे. हाईवे पर डकैती के दोषी का एक हाथ और एक पांव काट दिया जाता था.
सुनवाई और दोषी ठहराने की प्रक्रिया शायद ही कभी सार्वजनिक होती थी और न्यायपालिका भी अक्सर इस्लामी मौलवियों के पक्ष की ओर झुकाव रखता, ऐसे मौलवियों का कानूनी ज्ञान कम और वे धार्मिक निषेधाज्ञा तक सीमित रहते थे.
तस्वीरों मेंः नया अफगानिस्तान
नये अफगानिस्तान की झलक
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान, इसकी एक झलक इन चंद तस्वीरों में मिल सकती है. देखिए...
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
नया अफगानिस्तान
नया अफगानिस्तान कैसा होगा अभी स्पष्ट नहीं है. फिलहाल जो तस्वीरें आ रही हैं वे ढकी छिपी हैं. पर्दे से क्या निकलेगा, उसकी बस झलक मिल रही है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
मर्दों की दुनिया
अफगानिस्तान से जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं उनमें दिख रहा है जन-जीवन सामान्य हो रहा है. हेरात के इस रेस्तरां में ग्राहकों को भोजन का आनंद लेते देखा जा सकता है. लेकिन एक चीज पहले से अलग है. ग्राहकों में कोई महिला नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
पर्दे की दीवार
कॉलेजों से ऐसी तस्वीरें लगातार आ रही हैं जिनमें लड़के और लड़कियों के बीच एक पर्दे की दीवार खींच दी गई है. यह अब आधिकारिक नीति है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI AFP via Getty Images
आजादी का सवाल
हेरात में ये महिलाएं मस्जिद जा रही हैं. लेकिन बाकी कहीं जाने के लिए उनके पास आजादी कम ही है. जैसे कि देश के संस्कृति आयोग के उपाध्यक्ष अहमदुल्लाह वासिक ने कहा है कि महिलाओं के लिए खेलों की दुनिया में अब जगह नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
संघर्ष भी जारी
कुछ लोगों ने संघर्ष जारी रखा है. कई शहरों में महिलाएं विरोध प्रदर्शन करती दिख रही हैं.
तस्वीर: REUTERS
दूसरा रुख
कुछ महिलाएं कहती हैं कि वे तालिबान के राज में खुश हैं. पिछले दिनों ऐसी महिलाओं ने भी एक मार्च निकाला. इस मार्च तो तालिबानी बंदूकाधारियों की सुरक्षा मिली थी.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
जगह जगह जांच
तालिबान के बंदूकधारी जगह जगह नाके लगाए खड़े दिखते हैं. पश्चिमी कपड़े और जीवनशैली धीरे-धीरे गायब होती जा रही है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
काम की तलाश
काबुल में ये मजदूर काम का इंतजार कर रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बद से बदतर हो रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. 98 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं, जो फिलहाल 72 फीसदी पर है.
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
तुराबी कहते हैं कि इस बार जज जिनमें महिलाएं भी शामिल होंगी, मामलों का फैसला करेंगे, लेकिन अफगानिस्तान के कानूनों की नींव में कुरान होगा. उनके मुताबिक वैसी ही सजा बहाल की जाएगी.
तुराबी कहते हैं, "सुरक्षा के लिए हाथ काटना बहुत जरूरी है." इससे भय पैदा होगा. तुराबी का कहना है कि मंत्रिमंडल इसका अध्ययन कर रहा है कि सजा को सार्वजनिक रूप से देना चाहिए या नहीं. उनके मुताबिक सजा के लिए एक नीति बनाई जाएगी.