तालिबान ने अफगानिस्तान में तीन प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा कर लिया है, जिनमें सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाने वाला उत्तर-पूर्वी शहर कुंदूज भी है.
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अफगान अधिकारियों ने बताया है कि तालिबान ने कुंदूज समेत तीन राजधानी शहरों पर कब्जा कर लिया है. तालिबानी लड़ाके तेजी से अन्य शहरों की ओर बढ़ रहे हैं जिनमें पश्चिम में हेरात और दक्षिण में कंधार शामिल हैं.
अमेरिकी फौजें इस महीने के आखिर तक ही अफगानिस्तान में मौजूद हैं जिसके बाद नाटो का दो दशक तक चला अभियान पूरी तरह खत्म हो जाएगा. जब से नाटो फौजों की वापसी शुरू हुई है, तालिबान ने हमले तेज कर दिए हैं और वे एक के बाद एक इलाकों पर कब्जा करते जा रहे हैं.
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कुंदूज में स्थिति
प्रांत के एक विधायक के मुताबिक तालिबान ने रविवार को कुंदूज शहर में कई अहम सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया जिसके बाद सरकारी फौजों के पास हवाई अड्डे और अपने सैन्य अड्डे पर ही नियंत्रण बचा है.
तस्वीरों मेंः दानिश सिद्दीकी की मौत
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.
तस्वीर: Mumbairt/CC
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दो लाख 70 हजार की आबादी वाला कुंदूज शहर मध्य एशिया के साथ अफगानिस्तान के संपर्क के लिहाज से एक अहम शहर है. साथ ही उत्तरी प्रांतों के लिए भी यह एक संपर्क सूत्र है.
कुंदूज से विधायक अमरूद्दीन वली ने बताया, "कल दोहपर को भारी लड़ाई शुरू हुई. सारे सरकारी मुख्यालय तालिबान के कब्जे में हैं. एएनडीएसएफ (अफगान फौज) के पास बस अपना अड्डा और एयरपोर्ट ही बचे हैं, जहां से वे तालिबान का विरोध कर रहे हैं.”
सेना के एक प्रवक्ता ने रविवार को कहा कि सरकारी फौजें खोए हुए क्षेत्रों को वापस पाने के लिए जल्दी ही एक बड़ा अभियान शुरू करेंगी. उधर तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद का कहना है कि प्रांत के बड़े हिस्से पर कब्जा किया जा चुका है और अब वे एयरपोर्ट के भी नजदीक हैं.
कुंदूज में स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि कुल 14 शव अस्पताल लाए गए जिनमें से बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं. इसके अलावा 30 लोगों के घायल होने की भी खबर है.
कई अन्य प्रांतों पर कब्जा
तालिबान ने उत्तरी प्रांत सर ए पुल की राजधानी में भी कई सरकारी भवनों पर कब्जा कर लिया है. सर ए पुल प्रांत की काउंसिल के सदस्य मोहम्मद नूर रहमानी ने बताया कि सरकारी अधिकारी मुख्य शहर के बाहर एक सैन्य अड्डे में चले गए हैं.
बीते शुक्रवार तालिबान ने दक्षिणी निमरोज प्रांत की राजधानी जरांज पर नियंत्रण कर लिया था, जो कई साल में उसके कब्जे में आई किसी प्रांत की पहली राजधानी थी.
तस्वीरों मेंः दो दशक से जारी युद्ध की कीमत
अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध की कीमत
सितंबर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ अफगानिस्तान में युद्ध अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध बन चुका है. अब स्पष्ट हो चुका है कि संसाधनों और जिंदगियों की असीमित कीमत चुकाने के बाद भी अमेरिका यह युद्ध जीत नहीं पाया.
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AFP
एक खूनी अभियान
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत अफगानियों ने चुकाई है. ब्राउन विश्वविद्यालय के "युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के कम से कम 47,245 नागरिक मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 66,000-69,000 अफगान सैनिकों के भी मारे जाने का अनुमान है. अमेरिका ने 2,442 सैनिक और 3,800 निजी सुरक्षाकर्मी गंवाएं हैं और नाटो के 40 सदस्य राष्ट्रों के 1,144 कर्मी मारे गए हैं.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
भारी विस्थापन
युद्ध की वजह से 27 लाख से भी ज्यादा अफगानी लोग दूसरे देश चले गए. इनमें से अधिकतर ईरान, पाकिस्तान और यूरोप चले गए. जो देश में ही रह गए उनमें से 40 लाख देश के अंदर ही विस्थापित हो गए. देश की कुल आबादी 3.6 करोड़ है.
तस्वीर: Aref Karimi/DW
पैसों की बर्बादी
"युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक अमेरिका ने इस युद्ध पर 2260 अरब डॉलर खर्च दिए हैं. अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक सिर्फ युद्ध लड़ने में ही 815 अरब डॉलर खर्च हो गए. युद्ध के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्र निर्माण की अलग अलग परियोजनाओं में 143 अरब डॉलर खर्च हो गए. इतिहास में पहली बार एक युद्ध के लिए अमेरिका ने उधार भी लिया और पिछले सालों में वो 530 अरब डॉलर मूल्य के ब्याज का भुगतान कर चुका है.
तस्वीर: Gouvernement Media and Information Center
यह खर्च अभी भी चलता रहेगा
अमेरिका ने सेवानिवृत्त सैनिकों के इलाज और देखभाल पर 296 अरब डॉलर खर्च किए हैं. यह खर्च आने वाले कई सालों तक चलता रहेगा.
अमेरिकी सरकार का अनुमान है कि राष्ट्र निर्माण पर हुए खर्च में से अरबों रुपए बेकार चले गए. नहरें, बांध और राज्य मार्गों का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया, नए अस्पताल और स्कूल खाली पड़े हैं और भ्रष्टाचार भी पनपा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. S. Arman
जाने का खर्च अलग है
कई लोगों को डर है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और महिलाओं के लिए अधिकारों के क्षेत्र में अफगानिस्तान में जो भी थोड़ी-बहुत तरक्की हुई है, वो अमेरिका के यहां से चले जाने के बाद संकट में पड़ जाएगी. पिछले 20 सालों में देश में अनुमानित जीवन-काल 56 से बढ़कर 64 हो गया है. मातृत्व मृत्यु दर आधे से भी ज्यादा कम हो गई है. साक्षरता दर आठ प्रतिशत बढ़ कर 43 प्रतिशत पर पहुंची है. बाल विवाह में भी 17 प्रतिशत की कमी आई है.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
अनिश्चितता का दौर
निश्चित रूप से अमेरिका एक स्थिर, लोकतांत्रिक अफगानिस्तान बनाने के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया और अब जब अमेरिकी सैनिक देश छोड़ रहे हैं, अफगानिस्तान का भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ नजर आ रहा है. (एपी)
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AFP
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पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने उत्तरी प्रांतों में अपने हमले तेज किए हैं. ये इलाके उसके पारंपरिक गढ़ माने जाने वाले दक्षिणी इलाकों से बाहर हैं लेकिन उसकी पकड़ तेजी से मजबूत हुई है. इनमें अफगानिस्तान के व्यापारिक साझादी तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान से लगती सीमाओं पर स्थित अहम शहर भी शामिल हैं.
तखार प्रांत से आने वाले सांसद अशरफ आयनी ने रविवार को बताया कि उनके प्रांत की राजधानी भी तालिबान के नियंत्रण में आ चुकी है. उन्होंने कहा कि तालिबान ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया और कैदियों को आजाद कर दिया, जिसके बाद सरकारी अधिकारी पास के एक शहर में चले गए.
शनिवार को उत्तरी जाव्जान प्रांत की राजधानी शेबेरगान में भारी लड़ाई हुई. तालिबान ने दावा किया है कि उसने अब पूरा प्रांत कब्जा लिया है.