तालिबान ने अफगानिस्तान के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग को यह कह कर बंद कर दिया है कि उसकी "जरूरत नहीं थी." इससे पहले तालिबान चुनाव आयोग और महिलाओं के मामले के मंत्रालय जैसे संस्थानों को भी बंद कर चुके हैं.
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अगस्त 2021 में देश में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने अफगान लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कई संस्थानों को बंद कर दिया है. मानवाधिकार आयोग को बंद कर दिया जाना भी इसी सिलसिले का हिस्सा है.
सरकार के डिप्टी प्रवक्ता इनामुल्लाह समांगानी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमारे पास मानवाधिकारों से जुड़ी गतिविधियों के लिए कुछ और संगठन हैं जो न्यायपालिका से जुड़े हुए हैं.
मानवाधिकार आयोग का काम तब से रुका हुआ था जब से पिछले साल तालिबान ने देश में सत्ता हासिल की और आयोग के सर्वोच्च अधिकारी देश छोड़ कर चले गए. आयोग के काम में देश में दो दशकों तक चले युद्ध में गई जानों का रिकॉर्ड रखना भी शामिल था.
वीकेंड पर तालिबान सरकार ने अपने पहले सालाना बजट की घोषणा की. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और शांति को बढ़ावा देने वाले एक समन्वय आयोग को भी बंद कर दिया गया. समांगानी ने कहा कि बजट "वस्तुगत तथ्यों पर आधारित था" और उसमें उन्हीं विभागों की जगह थी जो सक्रिय और उपयोगी हैं.
उन्होंने बताया, "इन विभागों को जरूरी नहीं समझा जा रहा है, इसलिए इन्हें भंग कर दिया गया है. लेकिन अगर भविष्य में इनकी फिर से जरूरत पड़ी तो इन्हें फिर से शुरू किया जा सकता है."
वित्तीय संकट
अफगानिस्तान इस समय लगभग पूरी तरह से विदेशी मदद पर निर्भर है. तालिबान करीब 50 करोड़ डॉलर के वित्तीय घाटे का सामना कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच में एसोसिएट विमेंस राइट्स डायरेक्टर हीथर बार ने कहा कि इन संस्थानों के बंद होने की वजह से अफगानिस्तान के हालात बिगड़ रहे हैं.
उन्होंने ट्वीट किया, "एक ऐसी जगह का होना जहां आप जा सकें, मदद मांग सकें और न्याय की मांग कर सकें, इसका बहुत महत्व था." तालिबान ने शुरू में तो अपने पहले शासनकाल के मुकाबले ज्यादा नरम शासन का वादा किया था, लेकिन धीरे धीरे अफगान लोगों और विशेष रूप से महिलाओं की आजादी को घटाया जा रहा है.
महिलाओं को माध्यमिक शिक्षा से दूर कर दिया गया है, अकेले सफर करने नहीं दिया जाता और घर के बाहर खुद को पूरी तरह से ढक कर रखने के लिए कह दिया गया है. पुरुषों और महिलाओं के साथ खाना खाने पर भी पाबंदी लगा दी गई है.
सीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
तेजी से बिगड़ रहे हैं अफगानिस्तान में हालात
तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद से अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग थलग हो गया है और हालत और खराब होते जा रहे हैं. देश की लगभग आधी आबादी भूख से तड़प रही है और तालिबान महिलाओं के अधिकारों को और सीमित करता जा रहा है.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP
व्यापक भुखमरी
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के मुताबिक अफगानिस्तान की लगभग आधी आबादी तीव्र भूख का सामना कर रही है और मदद पर निर्भर है. जैसे इस तस्वीर में काबुल में लोगों में चीन से आई रसद बांटी जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक प्रवक्ता ने बताया, "पूरे देश में लोग अभूतपूर्व स्तर पर भूख का सामना कर रहे हैं." उन्होंने बताया कि 1.97 करोड़ लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/IMAGO
सूखा और आर्थिक संकट
इसके अलावा पूरे देश में सूखा पड़ा हुआ है और गंभीर आर्थिक संकट भी जारी है. संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ एंथिया वेब ने कहा कि डब्ल्यूएफपी ने सिर्फ इसी साल 2.2 करोड़ लोगों की मदद कर भी दी है. हालांकि उन्होंने बताया कि अब अफगानिस्तान में अपने कार्यक्रम जारी रखने के लिए संस्था को 1.4 अरब डॉलर चाहिए.
तस्वीर: Javed Tanveer/AFP
सख्त होते नियम
तालिबान ने शुरू में कहा था कि इस बार उनके पहले शासनकाल के मुकाबले ज्यादा संयम बरतेंगे, लेकिन महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर अंकुश बढ़ते जा रहे हैं. उन्हें माध्यमिक शिक्षा से दूर कर दिया गया है, अकेले सफर करने नहीं दिया जाता और घर के बाहर खुद को पूरी तरह से ढक कर रखने के लिए कह दिया गया है. काबुल में इस तरह के नाकों की मदद से नियंत्रण रखा जाता है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
नए नियमों का विरोध
देश के आजाद ख्याल इलाकों में इन नए नियमों का विरोध बढ़ रहा है. विरोध प्रदर्शन में शामिल एक महिला ने कहा, "हम जिंदा जीवों की तरह जाने जाना चाहते हैं; इंसानों की तरह जाने जाना चाहते हैं, घर के कोने में बंद गुलामों की तरह नहीं." प्रदर्शनकारियों ने पूरे चेहरे को नकाब से ढकने के नए नियम के खिलाफ नारा भी लगाया, "बुर्का मेरा हिजाब नहीं है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
15 डॉलर का एक बुर्का
काबुल में बुर्के बेचने वाले एक व्यापारी ने बताया कि नए नियमों की घोषणा के बाद बुर्कों के दाम 30 प्रतिशत बढ़ गए थे. हालांकि अब दाम सामान्य हो गए हैं क्योंकि डीलरों को पता चल गया है कि बुर्कों की मांग बढ़ी ही नहीं है. इस व्यापारी ने कहा, "तालिबान के मुताबिक बुर्का अच्छी चीज है, लेकिन ये महिलाओं के लिए आखिरी विकल्प है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
साथ में रेस्तरां नहीं जा सकते
अफगान मानकों के हिसाब से आजाद ख्याल माने जाने वाले हेरात में भी पुरुषों और महिलाओं के साथ खाना खाने पर पाबंदी लगा दी गई है. एक रेस्तरां के मैनेजर सैफुल्ला ने माना कि वो ये दिशा निर्देश लागू करने पर मजबूर हैं, बावजूद इसके कि "इसका व्यापार पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ रहा है." उन्होंने बताया कि अगर यह प्रतिबंध चलता रहा तो उन्हें मजबूरन कर्मचारियों को नौकरी से निकलना पड़ेगा.
तस्वीर: Mohsen Karimi/AFP
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
तालिबान के नए नियमों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. जीसात देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा, "हम और ज्यादा प्रतिबंधात्मक हो रहे नियमों की निंदा करते हैं" और "महिलाओं और लड़कियों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने" के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए. इस तस्वीर में तालिबान के कुछ लड़ाके संगठन के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद ओमर की मौत की वर्षगाांठ के एक समारोह में बैठे हैं. (फिलिप बोल)