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जंग को नए मुकाम पर ले जा चुका है तालिबान

२० अक्टूबर २०१६

अफगानिस्तान में तालिबान पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुका है. आतंकवादी एक के बाद नए नए इलाकों पर कब्जा करते जा रहे हैं. अब वे पहले से कहीं ज्यादा घातक हैं और सरकारी फौजों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

Afghanistan | Kampf um Kunduz
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. Rahim

बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में इसी महीने की शुरुआत में हुई अफगानिस्तान डोनर कॉन्फ्रेंस में तो खासा उत्साह देखा गया था लेकिन देश के भीतर की स्थिति इसके एकदम उलट दिखाई दे रही है. अफगानिस्तान के दक्षिणी प्रांत हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्करगढ़ समेत कई शहरों में तालिबानी बहुत तेजी से कब्जा बढ़ा रहे हैं. लश्करगढ़ में तो युद्ध पूरे चरम पर हो रहा है. शहर को जाने वाली सारी उड़ानें रद्द कर दी गई हैं. गवर्नर के घर के ठीक सामने गोलियां और मोर्टार बरस रहे हैं. शहर बाकी देश से पूरी तरह कटा हुआ है.

15 साल पहले पश्चिमी फौजें तालिबान के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अफगानिस्तान में घुसी थीं. 2014 में ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय सैनिक देश से जा चुके थे और तालिबान को काबू में रखने की जिम्मेदारी देश की सरकार पर आ गई थी. इस काम में सरकार कितनी सफल हो पाई है इसका अंदाजा तालिबान के बढ़ते लड़ाकों की संख्या से लगाया जा सकता है. नाटो के मुताबिक तालिबान के पास इस वक्त लगभग 30 हजार लड़ाके हैं जो वे कम से कम पांच प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा करने के बहुत करीब पहुंच चुके हैं. कुंदूज और उरुजगान में तो एक एक बार वे अपना झंडा फहरा भी चुके हैं. उत्तरी प्रांत कुंदूज में अक्टूबर की शुरुआत में और उरुजगान में सितंबर के मध्य में कुछ समय के लिए तालिबान का कब्जा हो गया था. इस वजह से दसियों हजार लोग अपने घरों से भागने को मजबूर हुए थे.

देखिए तस्वीरें: लड़की बनी लड़ाका

अमेरिका का अनुमान है कि इस साल के आखिर तक चार लाख लोग बेघर हो चुके होंगे. हालांकि तालिबान ने साल की शुरुआत में जितनी सफलता हासिल कर लेने का दावा किया था, उतनी नहीं मिल पाई है क्योंकि उन्हें किसी प्रांत की राजधानी पर पूरा कब्जा नहीं मिल पाया है. वे जहां जहां जीते भी, वहां बाद में सरकारी सेनाओं ने उन्हें वापस धकेल दिया. लेकिन इसका रणनीतिक फायदा जरूर मिला है. अफगानिस्तान में फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन के प्रमुख आलेक्सी युसपोव कहते हैं, "ये बात तो अफगानिस्तान भी जानता है कि सिर्फ सैन्य तरीकों से तो वह नहीं जीत सकता. अगर वे शहरों या प्रांतों पर कब्जा कर लेते हैं तो एक राजनीतिक विकल्प के प्रतिनिधित्व के उनके दावे को बल मिलेगा."

सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि 2014 में विदेशी फौजों के चले जाने का तालिबान ने भरपूर फायदा उठाया है. इस बीच उन्होंने खुद को मजबूत किया है. अब वे पहले से ज्यादा संगठित और पेशेवर हो गए हैं. एक साल पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट ने भी कहा था कि तालिबान की रणनीतिक योजनाएं बेहतर हुई हैं और वे उन योजनाओं को ज्यादा कारगर तरीके से लागू भी कर रहे हैं. इसी साल मार्च में अफगानिस्तान ऐनालिसिट्स नेटवर्क ने तालिबान की नई यूनिट स्थापित होने की खबरें दी थीं. इन खबरों के मुताबिक ये नई यूनिट कहीं ज्यादा प्रशिक्षित और बेहतर हथियारों से लैस रेड यूनिट्स हैं जिनके पास बहुत अच्छे प्रशिक्षित स्नाइपर्स भी हैं.

देखिए, ऐसे होते हैं अफगान

यह मजबूत और बेहतर तालिबान अफगान सेनाओं पर भारी पड़ रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसी महीने खबर छापी थी कि मार्च से अगस्त के बीच 4500 अफगान सैनिक और पुलिसवाले मारे गए जबकि आठ हजार घायल हुए. हालांकि नई भर्तियों के जरिए इस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश हो रही है लेकिन तालिबान अपने उस अभियान का प्रचार करने में कामयाब रहा है जिसे उसने 'सर्वनाश के लिए युद्ध' नाम दिया था. नाटो प्रवक्ता जनरल चार्ल्स क्लीवलैंड के मुताबिक सोशल मीडिया पर भी उसकी मौजूदगी बढ़ी है. यानी तालिबान अब पहले से कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती है.

वीके/एके (डीपीए)

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