अर्जन्टीना का एक मानसिक रोग अस्पताल इलाज के लिए अनोखा तरीका अपना रहा है. वहां लोग नाचते हैं, गाते हैं और खूब हंसते है.
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ब्यूनोस आयर्स के साइकियाट्रिक अस्पताल को देखने से कोई सुकून नहीं मिलता. एक पुरानी सी इमारत जिसके भीतर मानसिक बीमारियां झेल रहे लोग रहते हैं, यह बात सोचकर ही मन उदास हो जाता है. लेकिन फिर, वहां से टैंगों की धुनें सुनाई देने लगती हैं. ऐसी धुनें जो मन को झूमने पर मजबूर कर दें. अंदर मरीज झूम ही रहे हैं. वे इन धुनों पर नाच रहे हैं.
अर्जेंटीना के इस बोरदा अस्पताल में अब मरीज गोलियां लेने के लिए लाइन नहीं लगाते. वे लाइन लगाते हैं डांस करने के लिए. अर्जेंटीना का मशहूर टैंगो डांस इन लोगों के मर्ज का इलाज बन गया है. महीने में दो बार टैंगो की क्लास होती है जिसका नाम है, “हम टैंगों के लिए पागल हैं.” डांस टीचर लॉरा सीगादे बताती हैं, “मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोग यूं तो पैसिव रिसेप्टर होते हैं लेकिन टैंगो के मामले में वे ट्रांसमीटर हो जाते हैं.”
देखिए, पागलपन का एक चेहरा यह भी
पागलखाने का ये अनदेखा चेहरा
यहां देखिए 1994 में बने बांग्लादेश के मशहूर पबना मेंटल हॉस्पिटल के पागलखाने में मानसिक रोगियों की स्थिति को दर्शाती कुछ दुर्लभ तस्वीरें.
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पहला मानसिक अस्पताल
पबना मानसिक अस्पताल की शुरुआत एक घर में 1957 में हुई. 1959 में इसे एक अस्पताल में स्थानांतरित किया गया था. 60 बिस्तरों वाले अस्पताल से अब यह 500 बिस्तरों वाला बन चुका है.
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मानसिक रोग
बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख वयस्क मानसिक रोग से ग्रस्त बताए जाते हैं, मोटे तौर पर भारत में ऐसे रोगियों की संख्या कुल आबादी के 5 प्रतिशत के आसपास यानि 5 करोड़ होने का अनुमान है. इनमें से केवल आधे को ही किसी तरह का उपचार मिल पाता है.
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गलत धारणाएं
हर तरह के मानसिक रोगियों को 'पागल' नहीं कहा जा सकता. लेकिन ऐसी नकारात्मक राय के कारण ही कई लोग इस बारे में बात करने या इलाज के लिए जाने से हिचकिचाते हैं. इसके अलावा कम पढ़ी लिखी जनता में मानसिक रोगियों के बारे में कई भ्रांतियां भी हैं.
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एम वार्ड
पबना मानसिक अस्पताल के पुरुष वार्ड यानि एम वार्ड की तस्वीर. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे कई विकासशील देशों में मानसिक बीमारी को गंभीरता से ना लेना एक बड़ा संकट है.
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परिवार का साथ नहीं
मानसिक रोगियों को उनके परिवार और समाज से अलग नहीं किया जाना बल्कि उनके उपचार में परिवार वालों के साथ संपर्क बनाए रखना चाहिए. सच्चाई ये है कि एक बार पागलखाने में डालने के बाद कई लोग मरीज का हालचाल पूछने भी नहीं पहुंचते.
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हिंसक प्रवृत्ति
कुछ रोगी जो बहुत हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें अलग वार्ड में रखा जाता है. तस्वीर में देखें 1994 में ली गई हिंसक गतिविधियों में संलग्न लोगों की तस्वीर.
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बेचैन रोगी
कई रोगी लगातार नाचते गाते रहते हैं तो कुछ खुद को फिल्मी सितारे या कोई और मशहूर हस्ती मानने लगते हैं. रोगियों में बेचैनी दिखाई देना आम बात है.
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सीगादे बताती हैं कि हम उन्हें बीमार नहीं इंसान महसूस कराने की कोशिश करते हैं. वह कहती हैं, “लोग यहां बीमार बनकर आते हैं लेकिन जब लौटते हैं स्टूडेंट बनकर. तब उनके चेहरे पर मुस्कुराहट होती है.”
बोरदा अर्जेंटीना में पुरुषों का सबसे बड़ा मानसिक रोग अस्पताल है. लेकिन टैंगो में तो जोड़ा होता है, यानी पुरुष के साथ महिला भी होती है. डांस पार्टनर बाहर से आती हैं. ऐसी महिलाएं जिन्हें टैंगो पसंद है, यहां इन मरीजों के साथ डांस करने के लिए आती हैं. अस्पताल में मानसिक रोग विशेषज्ञ गिलेर्मो होनिग कहते हैं कि टैंगो से मरीजों की रचनात्मकता और शरीर के प्रति उनकी जागरूकता का अभ्यास हो जाता है.
एक मरीज मैक्सिमिलानो कहते हैं, “मुझे लगा कि आज मैं एक बेहतर डांसर बन गया हूं. राहत भी ज्यादा है.” मैक्सिमिलानो अस्पताल में भर्ती नहीं हैं. वह सिर्फ आउटडोर मरीज हैं, डॉक्टर दिखाने आते हैं लेकिन उन्होंने क्लास में दाखिला ले लिया है, उन दर्जनों मरीजों के साथ जो अस्पताल में भर्ती हैं.
इस टैंगो वर्कशॉप की शुरुआत मनोवैज्ञानिक सिलवाना पर्ल ने की है. क्लास से पहले वह खुद मरीजों को जमा करने के लिए गलियारों के चक्कर लगाती हैं. ज्यादातर मरीज आने से मना करते हैं. जैसे कोई कहता है कि मेरे पास वक्त नहीं है. लेकिन पर्ल जानती हैं कि कैसे समझाना है. वह बताती हैं, “अस्पताल में एक रूटीन होता है. टैंगो वर्कशॉप उस रूटीन को तोड़ती है. दरअसल, हम इन सिजोफ्रेनिक मरीजों की बोरियत भरी जिंदगी में घुसपैठ करना चाहते हैं. कला उनके भीतर सोये हुए जज्बात जगाती है और उन्हें एक दूसरे से, दुनिया से जोड़ती है.”
खुशहाल जीवन के 10 नुस्खे
खुशहाल जीवन जीने के 10 नुस्खे
जीवन को आगे बढ़ाने में खुशहाली एक इंजन की तरह काम करती है. हम जीवन से संतुष्ट रहें तो मानसिक परेशानियां भी दूर रहती हैं. देखिए खुशहाल रहने के कुछ कारगर नुस्खे...
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लोगों से जुड़ें
खुशहाली में संबंधों का बहुत बड़ा हाथ होता है. जो व्यक्ति ज्यादा लोगों से घुलते मिलते हैं, वे ज्यादा स्वस्थ और खुश पाए गए हैं.
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दूसरों के लिए भी!
किसी और के लिए कुछ करना भी परम सुख देता है. इससे हमारे रिश्ते तो प्रगाढ़ होते ही हैं, खुद का मन भी खिल जाता है.
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शरीर का ख्याल रखें
हमारे दिमाग का शरीर से सीधा संबंध है. शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो जहन में भी परेशानी रहेगी. इसलिए जरूरी है कि हम शरीर को स्वस्थ और सुडौल रखने की पूरी कोशिश करें.
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लक्ष्य तय करें
हमें भविष्य से अच्छी उम्मीदें होना भी खुशहाली के लिए जरूरी है. अपने लिए लक्ष्य तय करें ताकि भविष्य के बारे में सोच कर अच्छा लगे.
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आसपास का सौंदर्य
आपके आसपास दुनिया में बहुत कुछ बहुत सुंदर है. जरूरी है कि आप अपने इर्दगिर्द के सौंदर्य को पहचानें और उसके बारे में अच्छा महसूस करें.
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सकारात्मक नजरिया
जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. एक ताजा रिसर्च के मुताबिक खुशी, कृतज्ञता, प्रेरणा और गौरव जैसी भावनाओं के एहसास से हम जीवन में आगे की ओर बढ़ने को प्रेरित होते हैं.
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नई चीजें सीखें
नई चीजें सीखने से हम पर सकारात्मक असर पड़ता है. इससे नए आयडिया आते हैं और हम जिज्ञासु बने रहते हैं.
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वापसी के रास्ते
जीवन में हताशा छाए रहने का बहुत बुरा असर पड़ता है. किसी भी नाकामी के बाद वापसी के रास्तों के बारे में सोचें और खुद को हर हाल में सकारात्मक रखने की कोशिश करें.
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खुद के साथ सहज
अपने व्यक्तित्व और अपने शरीर के साथ सहज होना बहुत जरूरी है. अगर हम हर समय खुद के प्रति आलोचनात्मक नजरिया रखेंगे तो खुशहाली से दूर रहेंगे. हम सब अपने आप में खास हैं, यह मान लेने में ही समझदारी है.
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मकसद
वे लोग जिनके जीवन में कोई लक्ष्य होता है, आमतौर पर ज्यादा खुशहाल रहते हैं. उन्हें घबराहट, बेचैनी और अवसाद जैसी दिक्कतें कम होती हैं. जीवन का मकसद आप पर निर्भर करता है. वह धार्मिक मान्यताओं पर आधारित भी हो सकता है और काम या नौकरी से जुड़ा भी. स्रोत: www.actionforhappiness.org
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और जहां टैंगो क्लास चल रही है, वहां आप हंसी-ठहाके सुन सकते हैं. वहां लगता नहीं है कि जिंदगी से हार मान बैठे लोगों का जमावड़ा है. 53 साल की डांस टीचर रोके सिलेस कहती हैं, “यह किसी भी सामान्य क्लास जैसा है. हर कोई अपना पूरा जोर लगाता है और मूव्स पूरे करने की कोशिश करता है. ऐसा नहीं है कि जो बता दिया बस उतना कर लिया. ये लोग खुद से सीखते हैं. कर-कर के सीखते हैं.”