भारत में डीजल और पेट्रोल पर कौन-कौन से टैक्स लगते हैं
ऋषभ कुमार शर्मा
६ मई २०२०
भारत में डीजल की बेस प्राइस 18.49 रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल की कीमत 17.96 रुपये प्रति लीटर है. लेकिन इनकी कीमत हमेशा 70 रुपये प्रति लीटर के आसपास ही बनी रहती है. ऐसे कितने और कौन-कौन से टैक्स इन पर लगते हैं.
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भारत सरकार ने 6 मई से डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी और पेट्रोल पर 10 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी है. केंद्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि पेट्रोल और डीजल पर 8 रुपये प्रति लीटर रोड सेस बढ़ाया गया है. साथ ही पेट्रोल पर 2 रुपये प्रति लीटर अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी और डीजल पर 5 रुपये प्रति लीटर अतिरिक्त एक्साइज ड्यूडी बढ़ाई गई है. हालांकि इस बढ़ोत्तरी का असर खुदरा कीमतों पर नहीं पड़ेगा.
बिजनेस टुडे के मुताबिक इस बढ़ोत्तरी के साथ भारत दुनिया में पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाला देश बन गया है. भारत में डीजल-पेट्रोल की खुदरा कीमतों पर कुल टैक्स अब 69.3 प्रतिशत हो गया है. कच्चे तेल के उत्पादन से आपकी गाड़ी की टंकी में आने तक किस-किस चीज का पैसा जुड़ता है, आइए जानते हैं.
कुछ जरूरी चीजें जो इस आर्टिकल को पढ़ने से पहले हमको जान लेनी चाहिए.
टैक्स- टैक्स लगाने का अधिकार चुने हुए प्रतिनिधियों यानी संसद और विधानसभाओं के पास ही होता है. इसलिए टैक्स में कटौती या बढ़ोत्तरी इन सदनों में बिल लाकर ही की जा सकती है. इसलिए टैक्स संबंधी अधिकतर बदलाव सालाना बजट के दौरान किए जाते हैं जिससे उन्हें सदन से पास करवाया जा सके.
ड्यूटी- ड्यूटी का मतलब किसी सामान के बॉर्डर पार करने पर लगने वाले टैक्स से होता है. जैसे आयात होने वाले सामानों पर इम्पोर्ट ड्यूटी या आयात शुल्क होता है. साथ ही किसी सामान के बनकर तैयार होने पर उस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी भी इसमें शामिल है.
सेस- सेस यानी टैक्स के ऊपर टैक्स. ये किसी विशेष मकसद के लिए होते हैं. और वह मकसद पूरा होने पर इन्हें हटा लिया जाता है. जैसे किसान सेस और स्वच्छ भारत सेस. सेस को कोई सरकार एक सामान्य आदेश के जरिए भी लगा सकती है.
भारत में पेट्रोल-डीजल दोनों की कीमत रोज बाजार के हिसाब से तय होती है. भारत में 85 प्रतिशत कच्चे तेल का आयात होता है. कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल में होती हैं. 1 बैरल में 159 लीटर होते हैं. भारत में मुख्य तौर पर डीजल-पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी, वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) और डीलर कमीशन होते हैं. लेकिन इनमें छोटे-छोटे बहुत सारे टैक्स और सेस शामिल होते हैं.
पेट्रोल
6 मई को दिल्ली में पेट्रोल की खुदरा कीमत 71.26 रुपये है. रिफायनरी में एक लीटर पेट्रोल तैयार होने पर उसकी कीमत 17.96 रुपये प्रति लीटर होती है. इसमें 32 पैसे का भाड़ा जुड़ जाता है. इस तरह इसकी कीमत 18.28 रुपये प्रति लीटर हो जाती है. फिर इस पर केंद्र सरकार की तरफ से 32.98 रुपये की एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है. इस एक्साइज ड्यूटी को अलग-अलग कर देखें तो 2.98 रुपये की बेसिक एक्साइज ड्यूटी, 12 रुपये की विशेष अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी और 18 रुपये का रोड और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस शामिल है. इस तरह पेट्रोल की कीमत 51.26 रुपये हो जाती है.
एक्साइज ड्यूटी प्रतिशत में ना होकर सीधे रुपये में होती है. इसके बाद प्रति लीटर 3.56 रुपये डीलर कमीशन लिया जाता है. इससे कीमत 54.82 पहुंच जाती है. इस कीमत पर राज्य सरकार अपना वैल्यू एडेड टैक्स लगाती है. दिल्ली में अभी वैट 16.44 रुपये है. इन सबको जोड़ने पर दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 71.26 रुपये पहुंच जाती है.
क्या संभव है पेट्रोल और डीजल के बिना जीना
जर्मनी की संसद के उपरी सदन ने 2030 से पेट्रोल और डीजल कारों को सड़क पर उतरने की अनुमति न देने का पक्ष लिया है. कार उद्योग इसे असंभव मानता है तो ग्रीन पार्टी ने इसका समर्थन किया है. क्या तकनीकी तौर पर ये संभव है.
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विकल्प
बुंडेसराट ने एमिशन फ्री कारों की बात की है. यह इलेक्ट्रिक कारों के अलावा बायो ईंधन के इस्तेमाल से भी संभव है, जिसकी मदद से मौजूदा मोटर भी चलाई जा सकती हैं. हाइड्रोजन गैस की मदद से चलने वाली कारें भी संभव है, लेकिन तकनीकी अभी उपलब्ध नहीं है.
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गुणवत्ता
सबसे बड़ी समस्या तय की जाने वाली दूरी है. इस समय इंजीनियर इसी समस्या पर काम कर रहे हैं. फिलहाल ओपेल और टेस्ला की कारों से 500 किलोमीटर की दूरी तय करना संभव है. कंपनियां बेहतर बैटरी बनाने पर भारी निवेश कर रही हैं. 14 साल में समस्या खत्म हो सकती है.
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दूरी
से चलने वाली कारों में दूरी की उतनी समस्या नहीं है. टोयोटा मिराई या हय्डाई जैसी कारें एक फिलिंग में 500 से 600 किलोमीटर की दूरी तय कर रही है. निर्माता कंपनियों का कहना है कि टैंक का आकार बिना किसी मुश्किल के बढ़ाया जा सकता है.
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रिफिलिंग
एक समस्या बैटरी को रिचार्ज करने की है. इसमें फिलहाल कई घंटे लगते हैं. इस समय 300 किलोवाट रिचार्जिंग स्टेशन बनाने पर काम चल रहा है. पोर्शे की इलेक्ट्रिक कार तीन से चार साल में 400 किलोमीटर चलने लायक बैटरी 15 मिनट में चार्ज कर सकेगी.
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कीमत
यह बहुत बड़ी समस्या है. इस समय छोटी इलेक्ट्रिक कारों की कीमत उस आकार की पेट्रोल कारों के मुकाबले दोगुनी है. मसलन 400 किलोमीटर तय करने वाली रेनो की इलेक्ट्रिक कार की कीमत 33,000 यूरो है. हालांकि बिक्री बढ़ने के साथ कीमतें गिर रही हैं, लेकिन उसके बहुत कम होने की उम्मीद नहीं है.
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चार्जिंग स्टेशन
अगले 14 सालों में इसकी संरचना बनाना संभव होगा. यूरोपीय संघ के अनुसार जर्मनी में 2020 तक 1,50,000 चार्जंग स्टेशन काम करने लगेंगे. लेकिन अभी तक बैटरी चार्ज करने की संरचना बड़े शहरों में है. फिलहाल शहरों में 6,500 और देहातों में 2,860 चार्जिंग स्टेशन हैं.
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सरकारी मदद
अभी सिर्फ 230 ऐसे स्टेशन हैं जहां जल्दी बैटरी चार्ज की जा सकती है. यानि आधे घंटे में 80 प्रतिशत बैटरी चार्ज हो जाए. सरकार ने इलेक्ट्रो मोबिलिटी प्रोग्राम के तहत मदद देनी शुरू की है. देश भर में चार्जिंग स्टेशन बनाने के लिए 30 करोड़ यूरो की मदद दी जाएगी.
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पुराने पेट्रोल पंप
मौजूदा पेट्रोल पंपों की जरूरत बनी रहेगी. योजना के अनुसार 2030 से पेट्रोल और डीजल कारों को रजिस्टर नहीं किया जाएगा, लेकिन पुरानी कारें सड़क पर रहेंगी और उनके लिए पेट्रोल और डीजल की जरूरत होगी. अनुमान है कि 2050 के बाद सड़क पर पेट्रोल और डीजल कारें नहीं रहेंगी.
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पर्यावरण
यह भी सवाल है कि बैटरी कितनी पर्यावरण सम्मत है. फिलहाल लिथियम बैटरी का उत्पादन उतना पर्यावरण सम्मत नहीं है. एक तो उसके लिए दुर्लभ धातु चाहिए जिसे निकालने के लिए अत्यंधिक ऊर्जा की जरूरत होती है. दूसरे उसे बनाने के लिए भी बहुत ऊर्जा चाहिए.
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बिजली की जरूरत
2050 तक जब सारी गाड़ियां बैटरी से चलेंगी तो देश की करीब 4 करोड़ गाड़ियों को चलाने के लिए 120 टेरावाट बिजली की जरूरत होगी. यह जर्मनी के मौजूदा बिजली उत्पादन का 124 प्रतिशत है. यानि जर्मनी को और 24 प्रतिशत बिजली का इंतजाम सौर और पवन ऊर्जा से करना होगा.
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भारत में पेट्रोल-डीजल सीधा आयात नहीं होता बल्कि कच्चे तेल का आयात होता है. भारत में पेट्रोल-डीजल के आयात पर इम्पोर्ट पैरिटी मैकिनिज्म का उपयोग होता है. यानी अगर कच्चे तेल की जगह पेट्रोल-डीजल का आयात होता तो उन पर किस हिसाब से टैक्स लगता. इसके आधार पर पेट्रोल पर 2.5 प्रतिशत बेसिक कस्टम ड्यूटी, 2.98 रुपये प्रति लीटर अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी और 10 रुपये की एक और अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी लगती है. हालांकि ये सब बेस प्राइस में शामिल होते हैं.
डीजल
रिफायनरी में तैयार होने पर एक लीटर डीजल की बेस प्राइस 18.49 रुपये प्रति लीटर होती है. दिल्ली पहुंचने में इस पर 29 पैसे प्रति लीटर भाड़ा लगता है. इसकी कीमत हो जाती है 18.78 रुपये. फिर इस पर केंद्र सरकार की तरफ से 31.83 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगती है. इसमें 4.83 रुपये बेसिक एक्साइज ड्यूटी, 9 रुपये विशेष अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी और 18 रुपये का रोड और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस लगता है. इससे कीमत पहुंचती है 50.61 रुपये. इस पर 2.52 रुपये प्रति लीटर डीलर कमीशन लगता है. इससे कीमत होती है 53.13 रुपये.
इस पर राज्य सरकार की तरफ से 16.26 रुपये वैट लगाया जाता है. इसके लगते ही एक लीटर डीजल की कीमत दिल्ली में 69.39 रुपये हो जाती है जो 6 मई को दिल्ली में 1 लीटर डीजल की कीमत है. पेट्रोल की तरह ही डीजल की बेस कीमतों में 2.5 प्रतिशत प्रति लीटर की बेसिक कस्टम ड्यूटी, 4.84 रुपये प्रति लीटर की अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी और 10 रुपये की एक और अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी शामिल होती है.
ये दिल्ली की कीमतों का हिसाब है. अलग-अलग राज्यों में राज्य सरकारों की तरफ से कई दूसरे छोटे-छोटे टैक्स भी लगाए जाते हैं जो वहां पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बढ़ा देते हैं. साथ ही वैट भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकता है. यहां तक की कुछ राज्य अलग-अलग शहरों में वैट की दरें और कुछ अतिरिक्त टैक्स भी रखते हैं. जैसे महाराष्ट्र के मुंबई में पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्त टैक्स लगते हैं. एक्साइज ड्यूटी सीधे रुपये में होती है जबकि वैट प्रतिशत में होता है. ऐसे में पेट्रोल-डीजल की बेस प्राइस बढ़ने पर वैट अपने आप बढ़ जाता है.
केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने के बाद भी कीमतें ना बढ़ने की वजह कच्चे तेल की कीमतों में जारी गिरावट है. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के चलते भारत सस्ते में ज्यादा तेल खरीद पा रहा है. सरकार इसका फायदा उठाकर अपने खजाने को भरना चाह रही है. भारत के अलावा दूसरे देशों की बात करें तो इटली में डीजल-पेट्रोल पर 64 प्रतिशत, फ्रांस और जर्मनी में 63 प्रतिशत, ब्रिटेन में 62 प्रतिशत, स्पेन में 53 प्रतिशत, जापान में 47 प्रतिशत, कनाडा में 33 प्रतिशत और अमेरिका में 19 प्रतिशत टैक्स लगता है.
इस आर्टिकल में इस्तेमाल कई आंकड़े पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल और तेल कंपनियों की वेबसाइट से लिए गए हैं.
कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल या डीजल ही नहीं मिलता है, इससे हर दिन इस्तेमाल होने वाली ढेरों चीजें मिलती हैं. एक नजर कच्चे तेल से मिलने वाले अहम उत्पादों पर.
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ब्यूटेन और प्रोपेन
कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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तरल ईंधन
प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है. फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है.
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नैफ्था
पेट्रोल, कैरोसिन और डीजल बनाने की प्रक्रिया में जो अपशेष मिलता है, उससे बेहद ज्वलनशील तरल नैफ्था भी बनाया जाता है. नैफ्था का इस्तेमाल पॉकेट लाइटरों में किया जाता है. उद्योगों में नैफ्था का इस्तेमाल स्टीम क्रैकिंग के लिए किया जाता है. नैफ्था सॉल्ट का इस्तेमाल कीड़ों से बचाव के लिए किया जाता है.
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नैपाम
कच्चे तेल से मिलने वाला नैपाम विस्फोटक का काम करता है. आग को बहुत दूर भेजना हो तो नैपाम का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह धीमे लेकिन लगातार जलता है. पेट्रोल या कैरोसिन के जरिए ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बहुत जल्दी जलते हैं और तेल से वाष्पीकृत भी होते हैं.
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मोटर ऑयल
गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
ग्रीस
मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पेट्रोलियम जेली
आम घरों में त्वचा के लिए इस्तेमाल होने वाला वैसलीन भी कच्चे तेल से ही निकलता है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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मोम
ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था.
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चारकोल
असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है.
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प्लास्टिक
कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.