अमेरिका और चीन दोनों ही भारतीय इंजीनियरिंग उत्पादों के बड़े बाजार हैं. ऐसे में दोनों के बीच चल रही व्यापारिक जंग का असर भारत पर भी पड़ सकता है.
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इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (ईईपीसी) ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक हितों को लेकर तनाव नहीं गहराएगा, क्योंकि इससे भारत का व्यापार प्रभावित होगा. ईईपीसी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत का इंजीनियरिंग उत्पाद निर्यात 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष 2017-18 के आरंभिक 11 महीनों (अप्रैल-फरवरी) में अमेरिका को 47 फीसदी से ज्यादा और चीन को 76 फीसदी रहा. ईईपीसी के अध्यक्ष रवि सहगल ने एक बयान में कहा, "अमेरिका और चीन के व्यापारिक हितों के टकराव से पैदा हुए वैश्विक व्यापार तनाव में हमारे खतरे बड़े हैं. हम इस दोतरफा जंग में नहीं फंसना चाहेंगे."
कहां कहां बंद करेगा अमेरिका अपना कारोबार
उत्तर कोरिया के परमाणु दावों से तिलमिलाये अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा कि अमेरिका उन देशों के साथ कारोबारी संबंध खत्म कर सकता है जो उत्तर कोरिया के साथ व्यापार करते हैं. लेकिन क्या यह संभव है.
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वैश्विक कारोबार
वैश्विक कारोबार की बात करें तो उत्तर कोरिया कोई बहुत बड़ा खिलाड़ी नहीं है. साल 2015 के सीआईए फैक्टबुक के आंकड़ों मुताबिक यह दुनिया के 100 आयात-निर्यात करने वालों देशों की सूची में भी नहीं आता. लेकिन हैरानी की बात है कि जिन देशों के साथ इसके कारोबारी संबंध हैं वह दुनिया के बड़ी अर्थव्यवस्थायें हैं.
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चीन
उत्तर कोरिया के साथ लगभग 1420 किमी की सीमा साझा करने वाला चीन इसका सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के आंकड़ो मुताबिक साल 2015 में उत्तर कोरिया के 83 फीसदी निर्यात में चीन की हिस्सेदारी थी वहीं इसके आयात में भी इसका 85 फीसदी हिस्सा रहा.
अब सवाल है कि क्या अमेरिका के लिये चीन के साथ कारोबारी संबंध खत्म करना संभव है. अमेरिका और चीन के कारोबारी संबंध में अगर कोई उतार-चढ़ाव आता है तो उसका असर वैश्विक स्तर पर देखने को मिलेगा. कनाडा और मैक्सिको के बाद चीन ही ऐसा तीसरा बड़ा देश है जो अमेरिका से सबसे अधिक चीजें खरीदता है. वहीं अमेरिका भी चीन से अपनी जरूरत का करीब 21 फीसदी सामान खरीदता है.
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भारत और अमेरिका
भारत, उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. इसका उत्तर कोरिया के साथ 3.1 फीसदी आयात और 3.5 फीसदी निर्यात होता है. लेकिन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ संबंध खत्म करना भी अमेरिका के लिये आसान नहीं है. रणनीतिक और कारोबारी लिहाज से अमेरिका के लिये भारत एशिया में बेहद महत्वपूर्ण है.
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एशियाई पड़ोसी
उत्तर कोरिया के अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ भी व्यापारिक संबंध हैं. निर्यात की बात करें तो पाकिस्तान के साथ भी इसके संबंध हैं, इसके बाद सऊदी अरब के साथ भी यह निर्यात साझेदारी रखता है. इसके अलावा कई छोटे मुल्कों के साथ इसके कारोबारी संबंध हैं. अफ्रीकी महीद्वीप के बुर्किना फासो और जांबिया जैसे देश भी उत्तर कोरिया के साथ कारोबार करते हैं.
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अन्य साझेदार
उत्तर कोरिया में वस्तुओं की आपूर्ति करने में रूस की अहम भूमिका है. रूस, थाईलैंड और फिलीपींस जैसी अर्थव्यवस्थाओं के भी इसके साथ व्यापारिक संबंध हैं. छोटे स्तर पर ही सही उत्तर कोरिया के जर्मनी के साथ भी व्यापारिक संबंध हैं.
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जर्मनी का साथी
साल 2015 में जर्मनी ने उत्तर कोरिया के साथ 29 लाख यूरो का आयात किया था, जिसमें फेरो एलॉय, तार और एक्स-रे से जुड़े उपकरण शामिल थे. वहीं उत्तर कोरिया ने तकरीबन 74 लाख यूरो का निर्यात किया था इसमें मुख्य तौर पर पैकेज दवाइयां शामिल थीं. (एए/आर्थर सुलिफन)
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अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इस्पात और अल्युमीनियम पर आयात शुल्क लगाने और विभिन्न निर्यात संवर्धन स्कीमों को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत के खिलाफ शिकायत भारतीय निर्यात क्षेत्र के लिए चुनौती पूर्ण मसले होंगे. पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस्पात पर 25 फीसदी और अल्युमीनियम पर 10 फीसदी आयात कर लगाकर वैश्विक व्यापार जंग की संभावना बढ़ा दी.
ईईपीसी के बयान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2017-18 के आरंभिक 11 महीनों में भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात अमेरिका को पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 6.25 अरब डॉलर से बढ़कर 21 अरब डॉलर हो गया. हालांकि मूल्य के संदर्भ में कम लेकिन फिर भी भारत ने इसी अवधि में पिछले साल के 1.62 अरब डॉलर के मुकाबले इस साल 2.8 अरब डॉलर का इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात चीन को किया है. भारत ने फरवरी 2018 में भी सबसे ज्यादा इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात अमेरिका को किया. अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले प्रमुख उत्पादों में इस्पात, औद्योगिक मशीनरी, नॉन-फेरस मेटल और ऑटोमोबाइल के उत्पाद हैं.
वहीं, भारत के शीर्ष उद्योग संगठन एसोचैम का कहना है कि अमेरिका के साथ 150 अरब डॉलर का देश का सालाना व्यापार घाटा भारत को वैश्विक व्यापार जंग की स्थिति में जवाबी कार्रवाई करने की इजाजत नहीं देगा. उद्योग संगठन का सुझाव है कि भारत को निर्यात प्रभावित होने पर द्विपक्षीय वार्ता और डब्ल्यूटीओ के जरिए रास्ता तलाशना होगा.
आईएएनएस/आईबी
भारत में और मुश्किल होगा चीनी माल का बिकना
भारत ने पू्ंजीगत और उपभोक्ता मालों पर मानकों को कड़ा कर दिया है. अधिकारियों का तर्क है कि यह कदम चीन से होने वाले सस्ते आयात पर नियंत्रण के लिए किया गया है. दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर भी तनाव बना हुआ है.
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नये नियमों की तैयारी
नये नियम खास तौर पर खिलौनों, इलेक्ट्रॉनिक, मशीनों, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल और निर्माण से जुड़े सामानों पर लागू होंगे. इन सभी क्षेत्रों में भारत में चीन का काफी सामान आयात किया जाता है.
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खिलौनों की जांच
खासतौर पर खिलौनों के लिए की जाने वाली जांच में इस्तेमाल किया जाने वाले केमिकल और ज्वलनशील पदार्थों पर ध्यान दिया जायेगा. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर विशेष ध्यान रहेगा.
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खिलौना बाजार में चीन
भारत के 76 करोड़ डॉलर के खिलौना बाजार में चीन की 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. इसमें पचास रुपये से लेकर 10 हजार रुपये तक के खिलौने शामिल हैं. भारत में ज्यादातर रोबोट भी चीन से भी आयात किये जाते हैं.
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कंपनियों के लिए भी मुश्किल
भारत से कारोबार करने वाली चीन की कंपनियों के लिए आने वाले वक्त में काफी मुश्किलें होगीं. खासकर बिजली वितरण और टेलीकॉम के व्यवसाय में संभावित निवेश करने वाली कंपनियों को सख्त नियमों की सामना करना होगा.
चीन के लिए मुश्किल
रिपोर्ट के मुताबिक जिन भी सेक्टर्स में नये नियम सख्ती से लागू किये जा रहे हैं उसके दो तिहाई बाजार में चीन का प्रभुत्व है. स्टील उद्योग में भी जल्द ही नये दिशा निर्देश जारी किये जाने हैं.
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भारत-चीन का व्यापार
1999 से 2000 के बीच भारत और चीन के बीच 1.83 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. द्विपक्षीय व्यापार 2016-2017 में बढ़कर 71.45 अरब डॉलर हो गया है. लेकिन एक बार फिर चीन के लिए भारत सख्त कानून लागू करने की तैयारी कर रहा है. -एसएस/एमजे (रॉयटर्स)