नूंह से शुरू हुई सांप्रदायिक हिंसा पलवल और सोहना तक भी फैल गई और रात होते होते दिल्ली से सटे गुरुग्राम तक पहुंच गई. 2020 के दंगों के बाद इसे दिल्ली एनसीआर में सांप्रदायिक हिंसा का पहला व्यापक मामला माना जा रहा है.
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अभी तक सभी मामलों में कुल मिलाकर चार लोगों के मारे जाने और कम से कम 45 लोगों के घायल होने की खबर है. मरने वालों में होम गार्ड के दो जवान और गुरुग्राम की अंजुमन मस्जिद के नायब इमाम शामिल हैं. चौथे मृतक की अभी पहचान नहीं हो पाई है.
पूरे मामले की शुरुआत दिल्ली की सीमा से मुश्किल से 60 किलोमीटर दूर नूंह शहर से हुई. बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद ने 31 जुलाई को ब्रजमण्डल जलाभिषेक यात्रा नाम की एक धार्मिक यात्रा का आयोजन किया था जो नूंह से ही शुरू होनी थी.
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पुलिस के हाथ नहीं आता 'मोनू मानेसर'
यात्रा के एक दिन पहले दो मुस्लिम युवकों को गो तस्करी के शक में जान से मार देने के मामले में पांच महीनों से पुलिस से फरार चल रहे बजरंग दल के स्थानीय नेता मोहित यादव उर्फ 'मोनू मानेसर' ने एक वीडियो जारी किया था.
मोनू ने उस वीडियो में लोगों को रैली में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के लिए कहा था और साथ ही कहा था कि वह खुद भी मौजूद रहेगा. मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि इस वीडियो को लेकर नूंह और आस पास के इलाकों में काफी आक्रोश फैल गया.
मोनू पर फरवरी 2023 में हुए एक हत्याकांड में शामिल होने के आरोप हैं. इस मामले में भिवानी में जुनैद और नासिर नाम के दो युवकों का जला हुआ शव मिला था. उनके परिवारों ने आरोप लगाया था कि बजरंग दल के सदस्यों ने उन्हें पीटा था और जान से मार दिया था.
इस शिकायत के आधार पर राजस्थान पुलिस ने मोनू के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, लेकिन अभी तक उसे पकड़ नहीं पाई है. यानी पुलिस के मुताबिक मोनू फरार है लेकिन वही मोनू कभी सोशल मीडिया पर वीडियो जारी करता है तो कभी मीडिया को इंटरव्यू भी देता है.
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बहरहाल नूंह में हिंसा क्यों भड़की इसे लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. एक पक्ष का आरोप है कि यात्रा में बजरंग दल के हथियारबंद सदस्य शामिल थे और उन्होंने नूंह में हिंसा शुरू की.
दोनों पक्षों के आरोप
दूसरे पक्ष का आरोप है कि नूंह में स्थानीय लोगों ने पहले से ट्रकों में पत्थर भर कर रखे हुए थे और उनके द्वारा वही पत्थर यात्रा में शामिल लोगों पर फेंकने की वजह से हिंसा शुरू हुई. पुलिस अभी सभी दावों की जांच कर रही है और अभी तक पुलिस की तरफ से इस संबंध में कोई बयान जारी नहीं किया गया है.
नूंह में हिंसा के दौरान कई गाड़ियों और दुकानों को आग लगा दी गई. स्थिति इतनी बिगड़ गई कि प्रशासन को कई पुलिस स्टेशनों से अतिरिक्त पुलिसकर्मी बुलाने पड़े. बाद में नूंह में कर्फ्यू लगा दिया गया और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं.
देर रात हिंसा गुरुग्राम के एक मुख्य इलाके तक भी पहुंच गई. रात के करीब 12.30 बजे कुछ लोगों ने गुरुग्राम के सेक्टर 57 में अंजुमन मस्जिद पर हमला कर दिया. उन लोगों ने मस्जिद को आग लगा दी और वहां के नायब इमाम और एक और व्यक्ति को घायल कर दिया. नायब इमाम की बाद में अस्पताल में मौत हो गई.
हालात को देखते हुए गुरुग्राम में भी धारा 144 लगा दी गई है और सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद रहने का आदेश दे दिया गया है.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)