संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के प्रथम सचिव ने कहा है कि आतंकवाद दुनिया के सामने एक बड़ा संकट है. उन्होंने दुनिया को साथ मिलकर इससे लड़ने और हराने का आग्रह किया है.
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भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि अधिक शांतिपूर्ण और सुरक्षित दुनिया सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रों को अपने आप को फिर से संगठित करने की जरूरत है. द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं वर्षगांठ की स्मृति के मौके पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के प्रथम सचिव आशीष शर्मा ने कहा कि आतंकवाद समकालीन दुनिया में युद्ध छेड़ने के माध्यम के रूप में सामने आया है और इससे पृथ्वी पर उसी तरह का नरसंहार होने का खतरा है जो दोनों विश्व युद्धों के दौरान देखा गया था. शर्मा ने कहा, "आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और इसे सिर्फ वैश्विक कार्रवाई से हराया जा सकता है."
भारत ने यूएन में देशों से अपील की कि वे युद्ध छेड़ने के समकालीन प्रारूपों से लड़ने और दुनिया में अधिक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खुद को समर्पित करें. हालांकि भारत ने इस मौके पर किसी देश का नाम नहीं लिया है, लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि भारत पाकिस्तान पर देश में आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाता आया है. इससे पहले भी भारत यूएन के मंच का इस्तेमाल आतंकवाद के मुद्दे को जोर शोर से उठाने के लिए कर चुका है.
शर्मा ने विशेष बैठक में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत के योगदान का जिक्र किया और बताया कि कैसे औपनिवेशिक शासन के अधीन होने के बाजवूद भारत के 25 लाख जवान द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े. उन्होंने बताया कि दूसरे विश्व युद्ध में सेवा देते हुए भारत के 87,000 जवान मारे गए या फिर लापता हो गए और लाखों जवान गंभीर रूप से घायल हो गए.
कश्मीर गलीचे का कभी दुनिया में नाम था. हजारों लोगों को रोजी रोटी देने वाला ये उद्योग आज मुश्किल में है. पत्रकार गुलजार बट ने श्रीनगर में देखा कि किस हाल में हैं रंग, डिजाइन और बारीकी के लिए मशहूर कालीन बुनने वाले कारीगर.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
कश्मीरी हस्तकला
कश्मीरी कालीन हाथ से बुना जाने वाला गलीचा है जो कश्मीरी हस्तकला के साथ निकट रूप से जुड़ा है.
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ईरान से आई कला
कश्मीर के कालीन उद्योग की शुरुआत 15वीं सदी में हुई बताते हैं. कश्मीर के सुलतान जैनुल आबदीन ईरान से कारीगर लाए थे.
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सिल्क और ऊन
कश्मीरी गलीचे की खासियत ये है कि इसमें ऊन और तसर का इस्तेमाल किया जाता है. खास ये भी है कि बुनाई गांठ डालकर होती है.
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बुनाई के औजार
गलीचे की बुनाई के लिए जिन औजारों का इस्तेमाल होता है उनमें लोहे का कंघा, ब्लेड और कैंची शामिल है.
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लकड़ी के बीम
जिस करघे पर कालीन बुनी जाती है उसमें लकड़ी को दो बीम होते हैं. इस बीच बीम के लिए धातु का इस्तेमाल भी होने लगा है.
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गलीचे का डिजाइन
कालीन बनाने के लिए जिस डिजाइन का इस्तेमाल होता है उसे तालीम कहते हैं. वह कागजों पर होता है जिसे बुनाई के दौरान धागों के बीच टांग दिया जाता है.
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अहम बाजार
कश्मीर के गलीचों का खास बाजार जर्मनी सहित यूरोप के देशों में है. हाल के सालों में कालीन के निर्यात में भारी गिरावट आई है.
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गिरता कारोबार
उद्योग संघ के आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में करीब 80 करोड़ का निर्यात हुआ था तो 2017-18 में ये गिरकर 22 करोड़ रह गया.
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रोजगार पर आफत
श्रीनगर के आलमगरी और गुलशन बाग इलाकों में अभी भी कुछ बुनकर बचे हैं. ज्यादातर बुनकरों ने रोजगार छोड़ दिया है. जो बचे हैं वे बदहाल हैं.
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कोरोना की मार
कश्मीर के कालीन उद्योग पर कोरोना की मार भी पड़ी है. लॉकडाउन ने खासी तबाही मचाई है. कारोबार अभी तक फिर से पटरी पर नहीं आ पाया है.
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टूटे फूटे घर
बचे हुए कारीगर अपने टूटे फूटे घरों में रहते हैं और रोजमर्रा की जिंदगी चलाना मुश्किल हो रहा है. कारीगर महीने में 2000 से 3000 रुपये कमाते हैं.