मोदी सरकार पर एनसीईआरटी की किताबों में इतिहास के साथ छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं. कुछ ऐसे ही आरोप दो दशक पहले वाजपेयी सरकार और उस समय के शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी पर भी लगे थे.
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2022 में एनसीईआरटी ने स्कूलों की जिन किताबों में बदलाव किये थे वो किताबें अब बाजार में आ गई हैं. इनमें प्राचीन और मध्ययुगीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के बारे में अभी तक पढ़ाए जाने वाले कई तथ्यों को हटा दिया गया है. मम्लूक, तुगलक, खिलजी, लोधी और मुगल साम्राज्य समेत सभी मुस्लिम साम्राज्यों के बारे में जानकारी देने वाले कई पन्नों को हटा दिया गया है.
जाति व्यवस्था से भी जुड़ी काफी जानकारी को हटा दिया गया है, जैसे वर्ण प्रथा वंशानुगत होती है, एक श्रेणी के लोगों को अछूत बताना, वर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध आदि. 2002 के गुजरात दंगे, आपातकाल, नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे जान आंदोलनों आदि जैसी आधुनिक भारत की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी को भी हटा दिया गया है.
गांधी की हत्या का सच
लेकिन मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि नई किताबों में कुछ ऐसे अतिरिक्त बदलाव भी नजर आ रहे हैं जिनके बारे में एनसीईआरटी ने 2022 में घोषणा नहीं की थी. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी सामग्री में कई विषय शामिल हैं.
12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की किताब में गांधी की हत्या से जुड़े कई तथ्यों को अब हटा दिया गया है. जैसे, "हिंदू-मुस्लिम एकता लाने की उनकी निरंतर कोशिशों ने हिंदू चरमपंथियों को इतना भड़का दिया कि उन्होंने गांधीजी की हत्या करने की कई बार कोशिश की."
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अखबार के मुताबिक गांधी की हत्या के बाद आरएसएस जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाए जाने की जानकारी को भी हटा दिया गया है. गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे "पुणे का एक ब्राह्मण" था और "एक चरमपंथी हिंदू अखबार का संपादक था" जैसे तथ्यों को भी 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब से हटा दिया है.
गुजरात दंगों की जानकारी गायब
इनके अलावा कक्षा 11वीं की समाजशास्त्र की किताब में से 2002 गुजरात दंगों के बारे में आखिरी बची जानकारी को भी हटा दिया गया. पहले इस किताब में लिखा था कि दंगों के बाद गुजरात में जो हुआ वह दिखाता है कि सांप्रदायिक हिंसा से घेटोकरण भी बढ़ता है, लेकिन अब ये लाइनें गायब हैं. अखबार का कहना है कि इसी के साथ अब कक्षा छठी से 12वीं तक की एनसीईआरटी की किसी भी किताब में अब गुजरात दंगों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलेगी.
एनसीईआरटी का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से बच्चों की पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ और इसलिए बच्चों की मदद करने के लिए उनके पाठ्यक्रम को कम करने का फैसला लिया गया.
एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी का कहना है कि इसके लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई थी और ये सारे बदलाव उसी समिति के सुझाए हुए हैं. स्कूली किताबों के साथ छेड़छाड़ के इसी तरह के आरोप बीजेपी पर तब भी लगे थे जब 1998 से 2004 तक वो पिछली बार केंद्र में सत्ता में थी.
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2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने दिल्ली और देश के कई इलाकों में सड़कों, शहरों और कई स्थानों के नाम बदल दिए हैं. इस पूरी कवायद में मुगलों की विरासत विशेष रूप से शिकार हुई है.
जनवरी 2023 को दिल्ली में राष्ट्रपति भवन परिसर के बगीचे का नाम मुगल गार्डन से बदल कर अमृत उद्यान कर दिया गया. मुगल गार्डन को मुगलों ने नहीं बनाया था. 1911 में जब अंग्रेजों ने दिल्ली को अपनी नई राजधानी बनाने का फैसला किया तब सर एडविन लुट्येन्स ने नई राजधानी, राष्ट्रपति भवन और उसके अंदर मुगल गार्डन का डिजाइन बनाया. बागीचे का नाम मुगलों के नाम पर रखा क्योंकि उसका डिजाइन मुगलों की शैली से प्रेरित था.
उत्तर प्रदेश की न्यायिक राजधानी के रूप में जाने जाने वाले इलाहाबाद का नाम मुगलों की देन था. कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर ने इसे इलाहाबास यानी 'अल्लाह का घर' नाम दिया था, जिसे बाद में उनके बेटे शाह जहां ने बदल कर इलाहाबाद कर दिया. 2018 में इसका नाम बदल कर प्रयागराज कर दिया. माना जाता है कि प्राचीन भारत में इसका यही नाम था.
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मुगलसराय
मुगलसराय उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा के करीब एक छोटा सा शहर है. यहां का रेलवे स्टेशन उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शनों में से एक है. फरवरी, 1968 में इसी स्टेशन के बाहर आरएसएस नेता दीनदयाल उपाध्याय की लाश मिली थी. सितंबर 2017 में शहर का नाम बदल कर 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर' कर दिया गया. 2018 में रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन' कर दिया गया.
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औरंगजेब रोड
नई दिल्ली में कई आलीशान कोठियों और दफ्तरों वाली औरंगजेब रोड का नाम मुगल साम्राज्य के छठे सम्राट औरंगजेब के नाम पर रखा गया था. 2015 में इसका नाम बदल कर 'डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम रोड' कर दिया गया. नामकरण के प्रस्ताव को लाने वाले बीजेपी सांसद महेश गिरी ने तब कहा था कि औरंगजेब के नाम से क्रूरता और यातनाएं याद आती हैं जब कि पूर्व राष्ट्रपति कलाम के नाम से देश के प्रति उनके प्रेम की याद आती है.
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फैजाबाद
फैजाबाद उत्तर प्रदेश का वो जिला है जिसकी राजधानी है अयोध्या शहर. इसके इस नाम का मुगलों से कोई संबंध नहीं है. फैजाबाद शहर को अवध के नवाबों ने बसाया था. माना जाता है कि नवाब सफ्दर जंग के समय इसका नाम फैजाबाद पड़ा. 2018 में पूरे जिले का ही नाम बदल कर अयोध्या कर दिया गया.
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डलहौजी रोड
मुगलों की विरासत से मुंह मोड़ने की कवायद के बीच एक मुगलई नाम अपना लेने की शायद यह एकलौती मिसाल है. अंग्रेजों के गवर्नर-जनरल लार्ड डलहौजी के नाम से जानी जाने वाली दिल्ली की डलहौजी रोड का नाम 2017 में दारा शिकोह रोड कर दिया गया था. दारा शिकोह शाहजहां के बड़े बेटे थे जिनका औरंगजेब ने कत्ल करवा दिया था. कहा जाता है कि वो सूफी इस्लाम और वेदांत के बीच समन्वय के हिमायती थे.
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राजपथ
गणतंत्र दिवस की परेड के लिए मशहूर राजपथ दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क का नाम हुआ करता था. भारत की आजादी से पहले अंग्रेजों ने इसका नाम 'किंग्सवे' रखा था. आजादी के बाद इसका नाम 'राजपथ' रख दिया गया. 2022 में इसे बदल कर 'कर्त्तव्य पथ' नाम दे दिया गया.
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रेस कोर्स रोड
प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास के करीब से गुजरने वाली सड़क को रेस कोर्स रोड के नाम से जाना जाता था. 2016 में इसे 'लोक कल्याण मार्ग' का नया नाम दे दिया गया.
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