वो दिन जब जूलियस सीजर का कत्ल किया गया
१५ मार्च २०२१15 मार्च के "इडेस ऑफ मार्च" को रोमन भले ही अपने मंगल देवता की पूजा के दिन के रूप में मनाते थे लेकिन आधुनिक दौर में "इडेस ऑफ मार्च" की शब्दावली का संबंध रोमन सम्राट जुलियस सीजर से है. इसी दिन सीजर की हत्या कर दी गई थी. जुलियस सीजर के उत्थान और मार्मिक पतन की यह कहानी विलियम शेक्सपियर के विख्यात नाटक जुलियस सीजर में दर्ज है.
माना जाता है कि "इडुस" शब्द की उत्पत्ति पूर्ण चंद्र यानी फुल मून से जुड़ी है. यानी जब चांद पूरा दिखता है. रोमन लोगों के लिए यह दिन खास था. यूं लातिन में "इडेस" शब्द का मतलब है महीने का आधा भाग. इस तरह इडेस मार्च, मई, जुलाई और अक्टूबर महीनों के 15वें दिन के लिए इस्तेमाल होता आया है. और बाकी के आठ महीनों की 13वीं तारीख के लिए.
लेकिन इन सबमें "इडेस ऑफ मार्च" यानी 15 मार्च की चर्चा ही ज्यादा होती आई है. 44 सदी ईसा पूर्व इसी तारीख को सीजर को अपनी जान गंवनी पड़ी. उनके अपने ही लोगों ने उनकी हत्या कर दी. सीजर ने खुद को रोम का ताउम्र शासक घोषित कर दिया था. इतिहास बताता है कि इस एलान के बाद 15 मार्च को सीजर ने पोंपे थिएटर में अपनी सीनेट की एक आपात बैठक बुलाई. बताया जाता है कि सीजर से सहानुभूति रखने वाले एक साधु ने उसे मार्च के महीने में खासकर 15 मार्च को सावधान रहने की चेतावनी भी दी थी.
और जब यह दिन आ गया और सीजर बैठक के लिए जाने लगा, तो उसने साधु को चहक कर कहा, "तो लो, इडेस ऑफ मार्च भी आ गया." इसके जवाब में उस साधु ने कहा, "ओ सीजर, आया तो है लेकिन गुजरा नहीं है."
सीनेट की बैठक शुरू हुई. और अचानक ही सीजर पर सीनेटरों के एक गुट ने हमला बोल दिया और चाकू घोंपकर उसकी हत्या कर डाली. ये वो गुट था जो खुद को मुक्तिकामी यानी लिबरेटर मानता था. उन्होंने सीजर की हत्या को ये कह कर सही ठहराने की कोशिश की कि वे सीजर के तानाशाही रवैये से गणतंत्र की रक्षा करना चाहते थे.
"इडेस ऑफ मार्च" का ये सीजर का दुखांत बाद में न सिर्फ इतिहास में दर्ज हुआ बल्कि दुर्भाग्य की एक किंवदन्ती भी बन गया. इस बारे में आने वाले दौर में नाटक कहानी कविताएं लिखी गईं. फिल्में बनाईं गईं. और ये ट्रेजेडी का एक आख्यान बन गया.
शेक्सपियर के नाटक जुलियस सीजर में इस ट्रेजेडी को मार्मिक ढंग से उभारा गया है. ये वही नाटक है जिसमें सीजर का दोस्त ब्रुटस उस हमले का सूत्रधार है और जब हमलावरों में सीजर उसे देख लेता है, तो तड़प और अफसोस से भरा उसका विख्यात कथन है, "यू टू ब्रूटस." यानी "ओह ब्रूटस, तुम भी."
इस तारीख का असर लेखन और रचना और सत्ता राजनीति पर ही नहीं पड़ा, ऐतिहासिक घटनाओं के वैज्ञानिक शोध समुदाय में भी इस तारीख को लेकर हचलचें शुरू हो गईं. इतिहास मनोविज्ञान और खगोल विज्ञान में इसे लेकर बहसें भी रही हैं.