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कलासंयुक्त राज्य अमेरिका

कला जगत में धीरे धीरे आती महिला क्रांति

२३ नवम्बर २०२२

फ्रीडा कालो, जॉर्जिया ओकीफ, ऐलिस नील, ट्रेसी एमीन जैसे कुछ बड़े नामों की वजह से ऐसा लगता है कि कला जगत के दरवाजे महिलाओं के लिए खुले हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पश्चिमी कला जगत में पुरुषों का ही वर्चस्व है.

फ्रीडा कालो
फ्रीडा कालो, अपनी पेंटिंग 'मी ट्वाइस' के साथतस्वीर: CSU Archives/Everett Collection/picture alliance

1768 में लंदन में रॉयल अकैडमी ऑफ आर्ट्स की स्थापना के साथ लैंगिक बराबरी की तरफ एक उम्मीद भरी शुरुआत की गई थी. अकैडमी के 40 संस्थापक सदस्यों में दो महिला चित्रकारों को भी शामिल किया गया था. लेकिन बाद के सालों में यह कदम सिर्फ एक अच्छी शुरुआत तक ही सीमित रह गया.

उसके बाद कम से कम 1930 के दशक तक किसी और महिला को अकैडमी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नहीं चुना गया. फ्रीडा कालो, जॉर्जिया ओकीफ, ऐलिस नील, ट्रेसी एमीन जैसे कुछ बड़े नामों की वजह से ऐसा लगता है कि उसके बाद से कला जगत के दरवाजे महिलाओं के लिए खुले हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पश्चिमी कला जगत में पुरुषों का ही वर्चस्व है.

पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस के मुताबिक अमेरिका के 18 अग्रणी संग्रहालयों में 87 प्रतिशत कलाकृतियां पुरुषों की है. मैड्रिड के प्रादो में 35,572 कलाकृतियों में से 335 कलाकृतियां - यानी एक प्रतिशत से भी काम - महिलाओं की हैं. इनमें से भी सिर्फ 84 को प्रदर्शित किया गया है.

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लेकिन अब रवैया बदल रहा है. 2020 में प्रादो ने सिर्फ महिलाओं के लिए एक प्रदर्शनी का आयोजन किया था और क्यूरेटर कार्लोस नवारो के शब्दों में इस प्रदर्शनी ने संग्रहालय के "ऐतिहासिक स्त्री-द्वेष" को रेखांकित कर दिया. सर्बियाई परफॉरमेंस कलाकार मरीना अब्रामोविच ऐसा सोलो शो मिलने वाली पहली महिला बनेंगी जो अगले साल रॉयल अकैडमी की सभी मुख्य गैलरियों में लगाया जाएगा.

अपनी सभी कलाकृतियों में महिला कलाकारों की कलाकृतियों की हिस्सेदारी बढ़ाना ऐसे संग्रहालयों के मुश्किल है जिनका ध्यान काफी बीत चुके वक्त पर केंद्रित होता है. पेरिस की लूव्र के पास तो कम से कम यही बहाना है. वहां सिर्फ 1848 चित्र हैं. इन्हें बनाने वाले 3,600 चित्रकारों में सिर्फ 25 महिलाएं हैं.

लेकिन ब्रिटेन के टेट संग्रहालय में सुधार की गुंजाइश है. 1900 से पहले के उसके संग्रह में सिर्फ पांच प्रतिशत कलाकृतियां महिलाओं द्वारा बनाई हुई हैं, लेकिन 1900 से बाद के कलाकारों में यह संख्या बढ़ कर 20 प्रतिशत है और 1965 के बाद के कलाकारों में 38 प्रतिशत.

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टेट की ब्रिटिश कला प्रदर्शनी के प्रमुख पॉली स्टेपल ने बताया, "टेट की चारों गैलरियों में हर नई प्रदर्शनी के साथ लैंगिक संतुलन में और सुधार आ जाता है. टेट मॉडर्न ने जब 2016 में अपने नए डिस्प्ले खोले, तब सभी सोलो डिस्प्ले में से आधे महिला चित्रकारों को समर्पित थे और तब से इस संतुलन को बना कर रखा गया है."

निजी खरीदारों की बात करें तो बदलाव धीरे धीरे हुआ है. कला बाजार की अंदर की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने नाम जाहिर ना करने का अनुरोध करते हुए बताया, "आज सभी संग्रहालय बराबरी पर ध्यान देते हैं, महिला चित्रकारों की एकल प्रदर्शनियों की संख्या बढ़ रही है...लेकिन हकीकत में नीलामी घरों में महिलाओं की कलाकृतियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है."

बीसवीं सदी के बाद से महिलाओं का कला के कोर्सों में ज्यादा स्वागत हो रहा है और इस वजह से यहां भी हालात बदल रहे हैं. मार्किट ट्रैकर आर्टप्राइस की 2022 की रिपोर्ट ने पाया कि 40 की उम्र से कम के सबसे ज्यादा बिकने वाले चोटी के 10 चित्रकारों में आठ महिलाएं थीं.

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हाल ही में आई किताब "कला की कहानी, बिना पुरुषों के" की लेखिका केटी हेस्सेल कहती हैं कि बीते समय को दोषी ठहराना काफी नहीं है. उन्होंने एएफपी को बताया कि इटली की आर्टीमीसिया जेंटिलेशी या फ्लेमिश चित्रकार क्लारा पीटर्स जैसी महिला चित्रकारों को "उनके जीवनकाल में जाना जाता था लेकिन उन्हें बीतती सदियों के साथ भुला दिया गया है."

इन भुला दिए गए नामों को खोज कर निकालना बहुत लोकप्रिय रहा है. उनके पॉडकास्ट, 'द ग्रेट वीमेन आर्टिस्ट्स', के 3,00,000 से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. अवेयर नाम के एक शोध समूह की संस्थापक कैमिल मोरिनो कहती हैं, "कोई महिला किसी चीज का आविष्कार कर सकती है इसकी कल्पना करना लंबे समय तक एक मानवशास्त्रीय टैबू रहा है."

मोरिनो 2009 में जब पेरिस में सेंटर पोम्पिदो में क्यूरेटर थीं तो दो सालों तक उन्होंने वहां महिला चित्रकारों की कलाकृतियों के अलावा कुछ भी दीवारों पर नहीं टांगा, "यह साबित करने के लिए कि बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी की पूरी कहानी बताने के लिए संग्रहालयों के पास ऐसी पर्याप्त पेंटिंग हैं."

हेसेल कहती हैं कि नए आयामों भी खोज अभी भी बाकी है. वो अल्जीरिया की बया और सिंगापुर की जॉर्जेट चेन के बार में बताते हुए कहती हैं कि उन गैर-पश्चिमी नामों के उदाहरण हैं जो "असल में कभी भी हमारे इतिहास का हिस्सा रहे ही नहीं."

सीके/एए (एएफपी)

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