जापान में मंगलवार को हुए विमान हादसे में 379 लोगों की जान बच गई. इसमें एक बड़ी भूमिका एक ऐसी चीज की रही, जो मामूली दिखती है लेकिन अब तक बहुत बार जानें बचा चुकी है.
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मंगलवार शाम को जापान एयरलाइंस के एक विमान में आग लग जाने के बाद सभी 379 यात्रियों और चालकदल के सदस्यों की जान बचने को किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा है. टोक्यो के हानेदा हवाई अड्डे पर उतरने के तुरंत बाद यह विमान वहां खड़े कोस्ट गार्ड के एक विमान से टकरा गया जिसके बाद इसमें आग लग गई. कोस्ट गार्ड के विमान में छह लोग सवार थे जिनमें से एक की जान चली गई.
जब विमान में आग लगी तो कॉकपिट में पायलटों को उसका पता तक नहीं चला और आग का गोला बना विमान रनवे पर चलता रहा. जब विमान रुका तो चालक दल के सदस्यों ने पायलटों को आग के बारे में बताया और आनन-फानन में यात्रियों को विमान से बाहर निकाला गया.
लीक्विड हाइड्रोजन से चलने वाला पहला विमान
जर्मनी की एक कंपनी लीक्विड हाइड्रोजन से चलने वाले विमान की पहली पब्लिक उड़ान पूरी कर ली है.
तस्वीर: Antonio Bronic/REUTERS
ना आवाज, ना कंपन
यह दुनिया का पहला विमान है जिसने लीक्विड हाइड्रोजन ईंधन से अपनी पहली उड़ान पूरी की है. टेस्ट पायलट योहानेस गारबिनो-एंटोन कहते हैं कि इसमें जरा भी आवाज या कंपन नहीं है.
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भविष्य का ईंधन
इस वक्त दुनियाभर में ऐसे विमान ईंधन खोजने के लिए शोध हो रहे हैं जो कम खर्च और कम कार्बन उत्सर्जन में आधुनिक विमानों की आवाजाही सुनिश्चित कर सके. हाइड्रोजन उन्हीं ईंधनों में से एक माना जा रहा है.
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क्या है नयी तकनीक
जर्मनी की कंपनी H2FLY ने यह तकनीक विकसित की है जिसमें लीक्विड हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया है. लीक्विड हाइड्रोजन को सौर और पवन ऊर्जा से भी बनाया जा सकता है.
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दोगुनी माइलेज
कंपनी का दावा है कि इस ईंधन से विमान मौजूदा ईंधन के मुकाबले दोगुने समय तक चल सकता है. हाइड्रोजन गैस से विमान करीब 720 किलोमीटर जा सकता है और लीक्विड हाइड्रोजन से 1,400 किलोमीटर तक, यानी पेरिस से लिस्बन तक.
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लंबी दूरी की यात्रा संभव
H2FLY के संस्थापक योसेफ कालो कहते हैं कि पहली बार हमने फ्यूल सेल और इलेक्ट्रिक मोटर को चलाने के लिए लीक्विड हाइड्रोजन का प्रयोग किया है, जो साबित करता है कि लंबी दूरी तक भी हाइड्रोजन से विमान चलाये जा सकते हैं.
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हाइड्रोजन की दिक्कत
लेकिन हाइड्रोजन की समस्या है उसका वजन. इसके लिए विमानों को बड़े फ्यूल टैंक के साथ दोबारा डिजाइन करना होगा और उन्हें हवाई अड्डों पर ज्यादा जगह व सुविधाओं की जरूरत होगी.
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2024 की तैयारी
विशेषज्ञों का अनुमान है कि पूरा ढांचा बदलने में 10 से 20 साल तक लग सकते हैं. H2FLY अब 40 सीटों वाले विमान बना रही है जो लगभग 2,000 किलोमीटर की यात्रा पाएंगे.
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इन यात्रियों को बचाने में चालक दल की फुर्ती तो काम आई ही, दशकों पहले की एक ऑस्ट्रेलियाई खोज ने भी जानें बचाने में अहम भूमिका निभाई. यह खोज एक स्लाइडर यानी रबर की बनी फिसलपट्टी है जिसके जरिए विमान से आपातकालीन स्थिति में यात्रियों को निकाला जाता है.
जैक ग्रांट को श्रेय
इस स्लाइडर की खोज ऑस्ट्रेलियाई खोजी जैक ग्रांट ने की थी. ग्रांट का जन्म 1921 में हुआ था. ग्रांट ऑस्ट्रेलिया की विमानन कंपनी क्वांतस में सुरक्षा निरीक्षक थे. 1975 में गिल्ड ऑफ एयर पायलट्स एंड एयर नेविगेटर्स द्वारा स्लाइड राफ्ट के खोजी के रूप में मान्यता दी गई थी. यह संस्था विमानन उद्योग में असाधारण उपलब्धियों के लिए लोगों को सम्मानित करती है.
दुनिया के सबसे बड़े विमान हादसे
हवाई सफर को सबसे सुरक्षित सफर माना जाता है. लेकिन इसके इतिहास में कई दर्दनाक हादसे भी दर्ज हैं. एक नजर दुनिया की सबसे बड़ी हवाई दुर्घटनाओं पर.
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25 मई 1979, 273 मौतें
मरने वालों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़े हादसों में दसवें नंबर पर है अमेरिका के इलेनॉय में 25 मई 1979 को हुई दुर्घटना. अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट 191 शिकागो से उड़ान भरने के चंद मिनटों में ही क्रैश हो गई और इसमें सवार सभी 258 मुसाफिर, 13 चालक दल के सदस्य और दो लोग जमीन पर मारे गए थे.
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19 फरवरी 2003, 275 मौतें
ईरान में केरमेन के पास पहाड़ी इलाके में 19 फरवरी 2003 को बड़ा विमान हादसा हुआ जिसमें विमान पर सवार सभी 275 लोग मारे गए थे. विमान ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के जवानों को लेकर जा रहा था.
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3 जुलाई 1988, 290 मौतें
3 जुलाई 1988 को हरमुज जलमडमरूमध्य में ईरान एयर की फ्लाइट को अमेरिकी नौसेना ने मार गिराया था, जिसमें विमान पर सवार सभी 290 लोग मारे गए थे. अमेरिकी सरकार का कहना था कि उसकी नेवी ने विमान को गलती से कोई लड़ाकू विमान समझ लिया था. तेहरान से दुबई जा रही ये उड़ान नियमित रूट पर नहीं थी.
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17 जुलाई 2014, 298 मौतें
17 जुलाई 2014 को एम्सटरडैम से कुआलालंपुर जा रहे मलेशिया एयरलाइंस के विमान को यूक्रेन में दोनेत्सक इलाके में मार गिराया गया. विमान पर सवार सभी 283 यात्री और चालक दल के 15 सदस्य मारे गए. डच सेफ्टी बोर्ड ने 2015 में अपनी जांच में कहा कि विमान को रूस समर्थक विद्रोहियों ने जमीन से हवा में मार करने वाली बक मिसाइल से गिराया था.
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19 अगस्त 1980, 301 मौतें
सऊदी अरब की राजधानी रियाद से 19 अगस्त 1980 को उड़ाने भरने के बाद ही सऊदिया एयरलाइंस की फ्लाइट 163 में आग लग गई. हादसे में सभी 287 यात्रियों समेत 301 लोग मारे गए.
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23 जून 1985, 329 मौतें
23 जून 1985 का दिन एयर इंडिया के इतिहास में एक दर्दनाक दिन था जब जमीन से 31 हजार फीट की ऊंचाई पर आयरलैंड के आसमान में उसके एक विमान को बम से उड़ा दिया गया. इसमें चालक दल के 22 सदस्यों समेत 329 लोग मारे गए थे. कनाडा की जांच में इसके लिए सिख अलगाववादी संगठन बब्बर खालसा के सदस्यों को जिम्मेदार बताया गया था.
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3 मार्च 1974, 346 मौतें
3 मार्च 1974 को टर्किश एयरलाइंस का एक विमान पेरिस के पास जंगलों में क्रैश हो गया. हादसे में विमान पर सवार सभी 346 लोग मारे गए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
12 नवंबर 1996, 349 मौतें
हवाई दुर्घटनाओं के इतिहास का तीसरा सबसे दर्दनाक हादसा हरियाणा के चरखी दादरी में हुआ था जब आकाश में सऊदी अरब और कजाखस्तान के विमान टकरा गए. हादसे में दोनों विमानों में सवार 349 लोग मारे गए.
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12 अगस्त 1985, 509 मौतें
जापान एयरलाइंस का एक विमान 12 अगस्त 1985 को राजधानी टोक्यो से लगभग 100 किलोमीटर दूर हादसे का शिकार हो गया. इस हादसे में कुल 520 लोग मारे गए जिनमें 509 यात्री और 15 चालक दक के सदस्य थे.
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27 मार्च 1977, 583 मौतें
सबसे बड़ा विमान हादसा 27 मार्च 1977 को हुआ था जब स्पेन के द्वीप टेनेरीफ के हवाई अड्डे पर दो विमान रनवे पर एक दूसरे से टकरा गए. दो बोइंग 747 विमानों की इस टक्कर में 583 लोग मारे गए थे.
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इमरजेंसी लैंडिंग के वक्त स्लाइडर राफ्ट या इवैक्युएशन स्लाइडर हजारों लोगों की जानें बचा चुकी है. रबर की बनी यह फिसलपट्टी कुछ पलों में खुल जाती है और लोग विमान से बहुत तेजी से फिसलते हुए बाहर निकल सकते हैं.
2009 के मशहूर विमान हादसे के दौरान भी यह काम में आई थी जब एक पायलट ने विमान को न्यूयॉर्क की हडसन नदी पर उतारा था. यूएस एयरवेज फ्लाइट 1549 के उस हादसे पर क्लिंट ईस्टवुड ने एक चर्चित फिल्म सली बनाई थी, जिसे कई पुरस्कार मिले थे.
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क्या है इतिहास?
वैसे, इवैक्युएशन स्लाइड जैक ग्रांट की खोज से पहले से इस्तेमाल होती रही हैं. 1954 में जेम्स एफ. बॉयल ने एक स्लाइड के लिए पेटेंट अर्जी दी थी और 1956 में उन्हें इसका पेटेंट मिला था. एयर क्रूजर्स कंपनी के मालिक बॉयल ने ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लाइफ वेस्ट की खोज भी की थी, जिसे माए वेस्ट कहा जाता है.
बॉयल ने जो स्लाइडिंग राफ्ट बनाई थी उसे हाथ से खोलना पड़ता था. वे राफ्ट केबिन क्रू अपने साथ लेकर चलते थे और पानी में लैंडिंग होने पर उन्हें खोलकर नाव की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था. 1965 में उस डिजाइन में चालक दल स्लाइड को अपने साथ केबिन में ही रखते थे.
जैक ग्रांट ने उस स्लाइड में तकनीकी बदलाव कर राफ्ट जोड़ दी, जिससे उसे खोलना और इस्तेमाल करना चंद पलों का काम हो गया और विमान के सुरक्षा उपायों में यह एक बेहद अहम जोड़ बन गया है. अब नियम है कि 10 सेकंड्स में इवैक्युएशन राफ्ट खुल जानी चाहिए और चालक दल के पास सभी यात्रियों को बाहर निकालने के लिए 90 सेकंड्स का वक्त होता है.
अब भी हैं कुछ खतरे
हालांकि अब भी इवैक्युएशन राफ्ट पूरी तरह खतरों से मुक्त नहीं है. कई बार इनसे फिसल कर बाहर आने में लोगों को चोट लगी हैं. हालांकि सबसे आम चोटें घिसटने से लगती हैं. लेकिन विमान से कूदने से लगनी वाली चोटों के मुकाबले ये कहीं कम खतरनाक हैं.
दुनिया का सबसे कम उम्र का पायलट
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जापान में हुए हादसे के बाद विशेषज्ञों ने कहा कि सभी जानें इसलिए बच सकीं क्योंकि यात्रियों ने चालक दल के दिशा-निर्देश सुने और उनका पालन किया. यहां तक कि उन्होंने अपना पूरा सामान विमान में ही छोड़ दिया, जिससे उनका निकलना आसान हो गया.
विमान में यात्रा शुरू करने से पहले चालक दल के सदस्य यात्रियों को जो निर्देश देते हैं उनमें बताया जाता है कि आपातकाल की स्थिति में यात्री सामान को साथ लाने की कोशिश ना करें. इसकी एक वजह यह भी है कि सामान स्लाइडिंग राफ्ट को फाड़ सकता है और ऐसा होना कहीं ज्यादा घातक होगा.