रिनाटो ग्रबिच बेलग्रेड के एक मछुआरे हैं और साथ ही अपना रेस्तरां भी चलाते हैं. लेकिन सिर्फ यही इनका परिचय नहीं है. ग्रबिच खुदकुशी की कोशिश करने वालों की जान बचाते हैं.
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55 वर्षीय यह एथलीट उन लोगों की जान भी बचाते हैं जो डेन्यूब नदी में कूदकर जान देने की कोशिश करते हैं. अब तक रिनाटो 29 लोगों को खुदकुशी करने से बचा चुके हैं. हाल में ही इन्होंने एक 16 साल की लड़की को डूबने से बचाया था.
वर्ष 1946 में बने पेनसिवो ब्रिज को सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड के हताश लोगों की पहली पसंद माना जाता है. वर्ष 2014 तक सर्बिया की इस राजधानी में केवल सड़क और रेलवे पुल से ही डेन्यूब नदी की पार किया जा सकता था.
हालांकि शहर का मुख्य बैंकरोव पुल भी आत्महत्या की कोशिश करने वालों को आकर्षित करता है लेकिन ग्रबिच के मुताबिक ये डेन्यूब नदी के सामने महज एक छोटा सा तालाब या पूल नजर आता है.
देखिए, सबसे ज्यादा खुदकुशी कहां करते हैं लोग
सबसे ज्यादा खुदकुशी कहां करते हैं लोग
पिछले 145 साल में खुदकुशी की दर 60 फीसदी बढ़ गई है. और सबसे ज्यादा लोग खुदकुशी कहां करते हैं? देखिए WHO के मुताबिक, हर एक लाख लोगों पर खुदकुशी करने वालों की संख्या...
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गुयाना, 44.2
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दक्षिण कोरिया, 28.9
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श्रीलंका, 28.8
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लिथुआनिया, 28.2
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सूरीनाम, 27.4
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तंजानिया, 24.9
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नेपाल, 24.9
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कजाखस्तान, 23.8
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बुरुंडी, 23.1
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भारत, 21.1
तस्वीर: A. Spyra
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डेन्यूब नदी यूरोप के 10 देशों से बहती हुई बड़ी आकर्षक और मनमोहक नजर आती है. लेकिन यूरोप की यह दूसरी सबसे बड़ी नदी कई किलोमीटर तक तो किसी को भी बहाकर ले जा सकती है, और जाड़े में तो इसका तापमान कभी कभार ही शून्य से अधिक होता है.
रिनाटो ग्रबिच पिछली चार पीढ़ियों से इस नदी किनारे बने अपने घर में रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि कुछ लोग दिल के दौरे से भी जान गवां बैठते हैं. दो साल पहले एक 73 वर्षीय बुजुर्ग की मौत पानी में 66 फुट अंदर नीचे चले जाने के कारण हो गई थी. जो नहीं डूबते या बचे रहते हैं वे चिल्लाते या तैरते हैं.
हर साल प्रशासन सर्बिया के पुलों से खुदकुशी की कोशिश करने जैसे तकरीबन 25 से 30 मामले दर्ज करता है. ग्रबिच कहते हैं कि उनका 90 फीसदी समय मछली पकड़ने में बीतता है, लेकिन पिछले दो दशकों मे जिन भी लोगों को उन्होंने खुदकुशी करने से बचाया है उससे उन्हें एक नई पहचान मिली है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2012 के डेटा मुताबिक, खुदकुशी के मामले में सर्बिया का स्थान यूरोपीय देशों में तीसरा है.
यह भी देखिए, नील नदी के किनारे कैसा है जीवन
नील नदी के किनारे जीवन
तीन उभरते हुए फोटोग्राफरों ने अपनी तस्वीरों में नील नदी के आसपास के इलाकों के जीवन को दर्शाया. ये तस्वीरें मिस्र, इथियोपिया और सूडान की हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
रशीद शहर के निवासी
ये फोटोग्राफर राजनीतिक पहलुओं पर नहीं बल्कि आम इंसानों की रोजमर्रा की जिंदगी की तस्वीरें खींचना चाहते थे. महमूद याकूत ने रशीद शहर के निवासियों को अपना विषय बनाया. यहां रहने वालों के रोजगार के लिए नील डेल्टा की उपजाऊ जमीन वरदान है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
नील पर मछली के फार्म
मिस्र के शहर रशीद से यह नदी भूमध्य सागर में जाकर गिरती है. इस इलाके में ज्यादातर लोगों का रोजगार मछली पकड़ना है. लकड़ी से बनाए गए फिश फार्म पानी पर तैरते दिखाई देते हैं, जिन पर छोटी झोपड़ियां बनी हुई हैं. झोपड़ी में एक बिस्तर और एक छोटा सा किचन है, यहां से परिवार का कोई एक व्यक्ति फार्म की निगरानी करता है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
शहर की जिंदगी
रशीद में अतीत और वर्तमान आपस में आकर मिलते हैं. प्राचीन समय से ही यह बंदरगाही इलाका व्यापार के लिए अहम माना जाता है. लोगों का जीवन बेहद सादा है. मिस्र का यह शहर अपने निवासियों के बड़े दिल और अच्छे व्यवहार के लिए मशहूर है.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
महिलाओं की भूमिका
इस शहर की महिलाएं ज्यादातर घर पर रहती हैं. वे घरेलू काम करती हैं और बच्चों को पालती हैं. तंदूरों में रोटियां भी बनाती हैं और बाजार में सब्जियां और घर पर तैयार पनीर बेचती हैं. गरीबी के बावजूद यहां के निवासी आपस में मिल बांट कर रहना पसंद करते हैं.
तस्वीर: Mahmoud Yakut
रचनात्मकता की लैबोरेटरी
इन फोटोग्राफरों को 2013 में गर्मियों में गोएथे इंस्टीट्यूट में वर्कशॉप के लिए आने का न्यौता दिया गया था. उनकी प्रदर्शनी पहली बार जर्मनी में दिखाई जा रही है. सूडान के अलसादिक मुहम्मद को बर्तन बनाने की कला से लगाव है. नील के साथ के इलाकों में बर्तन बनाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
लाइफलाइन
नील नदी के आसपास के इलाकों में बर्तन बनाने की प्राचीन परंपरा है. असवान बांध बनने तक यह हाल था कि नदी में आने वाली बाढ़ अपने साथ उर्वर मिट्टी लाती थी. खासकर आजकल के हालात में पानी बहुत कीमती चीज है. लोग नील पर पानी के अलावा रोजगार और यातायात के लिए निर्भर हैं.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
प्राचीन परंपराएं
मिट्टी से बने बर्तन काम के भी होते हैं और खूबसूरत भी. सदियों पुरानी इस कला ने समय के साथ अपने रूप बदले. आजकल नूबया के इलाकों में बनने वाले बर्तन दुनिया भर की प्रदर्शनियों में दिखाए जाते हैं. और सूडान के इस इलाके के सदियों पुराने उस इतिहास को दुनिया के सामने लाते हैं जिसपर नील की छाप है.
तस्वीर: Elsadig Mohamed Ahmed
बाइबिल के छात्र
इथियोपिया की झलक ब्रूक जेराई सेंगिस्तू की तस्वीरों में. इथियोपिया में जन्म लेने वाली नील नदी के साथ साथ यहां बसा प्राचीन ईसाई समुदाय मिलता है. आध्यात्म की खोज में ये दुनिया से अलग थलग रहते हैं. यहां रहने वाले छात्र खुद अकेलेपन में जीना चुनते हैं और इनकी शिक्षा दीक्षा 14 साल में पूरी होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
विनम्रता सिखाती नदी
समय समय पर ये छात्र अपने अकेलेपन से निकलकर नील नदी का रुख करते हैं. वे गांव में जाकर खाना मांगते हैं. उनके मुताबिक भिक्षा से विनम्रता आती है और विनम्रता से आध्यात्म की प्राप्ति होती है.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
निरंतरता का प्रतीक
इथियोपिया के इलाके में बहने वाला नील नदी का यह हिस्सा यहां की एकता और निरंतरता का प्रतीक है. गोएथे इंस्टीट्यूट की वर्कशॉप में हिस्सा लेने वाले कई लोग अपने अपने देश गए, जिनमें से कई इन दिनों युद्ध और हिंसा की चपेट में हैं. उनकी शानदार तस्वीरें देसाऊ में केंद्रीय पर्यावरण एजेंसी में 27 मई तक देखी जा सकती हैं.
तस्वीर: Brook Zerai Mengistu
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ग्रबिच ने बताया कि जिन 29 लोगों की उन्होंने जान बचाई, उनमें से एक पोस्टमैन ने दोबारा खुदकुशी की कोशिश करते हुए अपनी जान गवां दी. उन्होंने बताया कि आज से 17-18 साल पहले उन्होंने पहली बार एक जवान लड़के की जान बचाई थी. उस पल को याद करते हुए ग्रबिच बताते हैं कि उस दिन उन्हें बहुत कोशिशें करनी पड़ी थी और उस लड़के से अपना हाथ देने के लिए उसके सामने गिड़गिड़ाना ही पड़ गया था. हालांकि जिन 29 लोगों की जान ग्रबिच ने बचाई, उनमें से सिर्फ दो ही महिलाओं का संपर्क आज ग्रबिच से है. ग्बिक ने बताया कि इनमें से आज एक मां बन चुकी है और अब वह यह समझ चुकी है कि जिदंगी जितना वह समझती थी उससे भी ज्यादा कीमती है. वहीं दूसरी महिला एक मनोरोग विशेषज्ञ है जिसने मुलाकात में ग्रबिच से कहा था कि आज तक इन्होंने जिनकी भी जान बचाई है वे उनके बहुत अहसानमंद है लेकिन सामना करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं.