चंद्रमा के छिपे हिस्से से चीनी यान जो नमूने लाया था, उनसे बेहद अहम जानकारी मिली है. चांद के उस हिस्से पर कभी सक्रिय ज्वालामुखी हुआ करते थे.
चीनी यान चांग ई 6, चंद्रमा के छिपे हिस्से पर उतरने वाला पहला यान हैतस्वीर: CNSA/Xinhua/AP/IMAGO
विज्ञापन
चंद्रमा के उस हिस्से पर, जो धरती से दिखाई नहीं देता, अरबों साल पहले ज्वालामुखी सक्रिय थे. नई रिसर्च ने इस रहस्य से पर्दा उठाया है. वैज्ञानिकों ने चीन के चांग'ई-6 मिशन द्वारा लाई गई मिट्टी और पत्थरों के नमूनों का विश्लेषण कर यह जानकारी दी.
चांग'ई-6, चंद्रमा केदूरस्थ हिस्से से नमूने वापस लाने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन है. इन नमूनों में वैज्ञानिकों को ज्वालामुखीय चट्टानों के टुकड़े मिले, जिनकी उम्र लगभग 2.8 अरब साल आंकी गई है. इसके अलावा, एक चट्टान का टुकड़ा 4.2 अरब साल पुराना पाया गया. यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चंद्रमा के इस हिस्से से पहले कोई डेटा उपलब्ध नहीं था.
पहली बार हुई पुष्टि
एरिजोना यूनिवर्सिटी के प्लेनेटरी वॉल्केनो एक्सपर्ट क्रिस्टोफर हैमिल्टन ने इस खोज को चंद्रमा के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने में अहम बताया. उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र से नमूने पाना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसा इलाका है, जिसके बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं थी."
नील आर्मस्ट्रॉन्ग के तीसरे साथी क्यों नहीं उतरे थे चांद पर?
विज्ञान और चमत्कार, आमतौर पर ये दोनों एक-दूसरे से कोसों दूर माने जाते हैं. लेकिन ठीक 55 साल पहले विज्ञान की पीठ पर सवार हम इंसानों ने एक अद्भुत चमत्कार किया था. कभी ना भूल पाने वाली यह तारीख थी, अपोलो 11 की मून लैंडिंग.
तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance
इंसानी इतिहास के सबसे यादगार हासिलों में से एक
55 साल पहले की यही तारीख थी... 20 जुलाई 1969 का दिन जब इंसान ने वह कमाल कर दिखाया जो पहले कभी नहीं हुआ था. इंसान पहली बार अपनी दुनिया से परे एक जीवनविहीन निरे वीरान पिंड पर पहुंचा. सफेद सूट में पैक, पीठ पर ऑक्सीजन सिलिंडर लादे दो लोगों ने वहां पांव धरे, जहां पहले कभी कोई इंसान नहीं पहुंच सका था.
उन दो लोगों ने जिस मिट्टी पर कदमों के निशान छोड़े, वो हमारी इस पृथ्वी से बहुत दूर किस्से-कहानियों और गीतों की जमीन थी. उन दो लोगों के नाम थे: नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन बज आल्ड्रिन. 16 जुलाई, 1969 को जब एक सैटर्न वी रॉकेट अपोलो 11 मिशन को लेकर केप कैनेडी से रवाना हुआ, तो इसकी तैयारी करते अमेरिका को कई साल हो चुके थे.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
अंतरिक्ष की होड़
इस तारीख के आठ साल पहले 25 मई 1961 को तब राष्ट्रपति रहे जॉन एफ. कैनेडी ने अपोलो 11 के लिए एक असीम महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया कि इंसानों को चांद की धरती पर उतारेंगे और उन्हें सुरक्षित पृथ्वी पर वापस भी लाएंगे. उन दिनों सोवियत संघ और अमेरिका में एक होड़ मची थी. पहली-पहली बार अंतरिक्ष में ये और वो करने की.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
मानव ने तय किया एक अकल्पनीय लक्ष्य
अप्रैल 1961 में सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अंतरिक्ष पहुंचाया. यह कारनामा पहली बार हुआ था. इससे अमेरिका ने खुद पर बहुत दबाव बढ़ा लिया. उसे अंतरिक्ष में ऐसी कामयाबी की तलाश थी, जो नाटकीय और अकल्पनीय हो. आखिरकार इस लक्ष्य की शिनाख्त हुई और 25 मई 1961 को कैनेडी ने कांग्रेस के साझा सत्र में कहा कि चांद पर मानव अभियान भेजेंगे.
तस्वीर: AP Photo/picture-alliance
तीन अंतरिक्षयात्रियों की रवानगी
16 जुलाई 1969 को एक सैटर्न वी रॉकेट ने अपोलो 11 मिशन को लेकर चांद के लिए कूच किया. इसमें तीन अंतरिक्षयात्री थे. मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग. लूनर मॉड्यूल पायलट एडविन बज आल्ड्रिन. और, कमांड मॉड्यूल पायलट माइकल कॉलिन्स. टीवी पर प्रसारित इस लॉन्चिंग को देख रहे लाखों लोग इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने.
तस्वीर: NASA via CNP /MediaPunch/picture alliance
शांति का समंदर
चांद का व्यास तो 3,476 किलोमीटर है. इतने बड़े चांद पर अपोलो 11 मिशन को कहां उतारा जाए, यह तय करने में नासा को दो साल लगे. उसने पांच संभावित जगहों की शिनाख्त की. लेकिन जब लैंडिंग का मौका आया, तो लूनर मॉड्यूल ईगल बहुत रफ्तार में था. ऐसे में जहां उतरने की योजना बनी थी, ईगल उसके पश्चिम में उतरा. इस पॉइंट को "मारे ट्रेंक्विलिटाटिस" कहा जाता है. हिन्दी में कहें, तो शांति का समंदर.
तस्वीर: ingimage/IMAGO
"दी ईगल हैज लैंडेड"
20 जुलाई 1969 को जब अपोलो 11 मिशन चांद पर उतरा, तब उसके लूनर मॉड्यूल ईगल में बस 25 सेकेंड का ईंधन बचा था. लैंडिंग होने पर आर्मस्ट्रॉन्ग ने मिशन कंट्रोल से कहा, "दी ईगल हैज लैंडेड." इसके कुछ घंटों बाद हैच खुला और बतौर मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने पैर बढ़ाए और चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने.
तस्वीर: Neil Armstrong/NASA/dpa/picture alliance
"इंसान का एक छोटा कदम, इंसानियत के लिए महान छलांग"
करीब 20 मिनट बाद बज आल्ड्रिन सीढ़ियों से उतरे और चांद की जमीन पर उनके पांव पड़े. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने मिलकर चांद की सतह पर अमेरिकी झंडा गाड़ दिया. दोनों ने चांद से पत्थर और धूल के नमूने जमा किए. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने चांद पर कुल 21 घंटे, 36 मिनट बिताए. इसमें चांद की सतह पर बिताई गई अवधि थी करीब ढाई घंटा. 21 जुलाई को वापसी का सफर शुरू हुआ, जो 24 जुलाई को हवाई पहुंचने पर पूरा हुआ.
तस्वीर: NASA
तीसरे अंतरिक्षयात्री कॉलिन्स कहां रह गए?
इस ऐतिहासिक सफर में आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन की उपलब्धि के आगे अक्सर कमांड मॉड्यूल पायलट माइकल कॉलिन्स का नाम भुला दिया जाता है. वो भी तो थे अपोलो 11 मिशन का हिस्सा, फिर वो चांद की जमीन पर क्यों नहीं उतरे? दरअसल अपोलो 11 मिशन में दो उपकरणों को सैटर्न वी रॉकेट से लॉन्च किया गया था. एक, लूनर लैंडर ईगल. दूसरा कोलंबिया, जो ऑर्बिट करने वाली एक मदरशिप थी. कॉलिन्स इसी मदरशिप में थे.
तस्वीर: AP/dpa
क्या कर रहे थे माइकल कॉलिन्स
16 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद कॉलिन्स, आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन तीन दिन साथ थे. 20 जुलाई को कोलंबिया के पिछले हिस्से से निकलकर ईगल लैंडिंग के लिए बढ़ता, इसमें कॉलिन्स की अहम भूमिका थी. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ईगल लैंडर में बैठकर चांद की सतह के लिए रवाना हो गए. कोलंबिया को पायलट कर रहे कॉलिन्स 21 घंटे से ज्यादा वक्त तक अकेले चांद का चक्कर लगाते रहे. दुनिया से दूर, हर एक इंसान से दूर, निरे अकेले.
तस्वीर: NASA
"मैं एकदम अकेला हूं"
कहते हैं कि ये इतना एकांत था, जितना शायद कभी किसी इंसान ने महसूस नहीं किया था. दी गार्डियन अखबार के मुताबिक, उन्होंने अपने कैप्सूल में लिखा था, "मैं अब सच में बिल्कुल अकेला हूं, किसी भी ज्ञात जीवन से एकदम अकेला." बताते हैं कि मिशन की तैयारी के समय से ही कॉलिन्स को डर था कि कहीं उनके दोनों साथियों के साथ हादसा ना हो जाए.
तस्वीर: Abaca/CNP/picture alliance
बहुत मुमकिन था कि कोई हादसा हो जाता
कॉलिन्स को इस बात का हद से ज्यादा खौफ था कि कहीं उन्हें अकेले पृथ्वी पर ना लौटना पड़े. ऐसे किसी हादसे की आशंका बहुत मजबूत थी. तीनों अंतरिक्षयात्रियों को हादसे का पुरजोर अंदेशा था. आर्मस्ट्रॉन्ग ने भी पृथ्वी पर जिंदा लौटने की संभावना 50-50 आंकी थी. कई तरह के खतरे थे. मसलन कहीं लैंडर क्रैश हो गया, तो? इंजन फेल हो गया, तो? वापसी के वक्त इंजन चालू ही ना हुआ, तो?
तस्वीर: The Print Collector/picture alliance
यह डर नासा को भी था
यहां तक कि ईगल के फेल होने की आशंका के मद्देनजर राष्ट्रपति निक्सन का एक भाषण तैयार रखा गया था, जिसमें वह श्रद्धांजलि देते हुए कहते, "नियति का आदेश था कि जो मानव शांति से खोजबीन करने चांद गए, वे अब चिर शांति में हमेशा चांद पर रहेंगे." क्या यह विज्ञान और इंसानी जज्बे से हासिल चमत्कार नहीं था कि यह शोक संदेश पढ़ने की कभी नौबत ही नहीं आई! कि सच में इंसान चांद पर चढ़ा और वापस अपनी दुनिया में लौट आया!
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
13 तस्वीरें1 | 13
धरती से दिखने वाले चंद्रमा के हिस्से पर ज्वालामुखी सक्रिय होने के प्रमाण पहले ही मिल चुके हैं. नासा के लूनर रीकॉन्सेंस ऑर्बिटर सहित अन्य शोधों ने सुझाव दिया था कि चंद्रमा के दूर वाले हिस्से पर भी ज्वालामुखी रहे होंगे. लेकिन अब पहली बार इस क्षेत्र के नमूनों ने इन अनुमानों की पुष्टि की है.
चांग'ई-6 मिशन के तहत जो मिट्टी और पत्थर लाए गए, उनका विश्लेषण विज्ञान पत्रिकाओं ‘नेचर‘ और ‘साइंस‘ में प्रकाशित किया गया है. इस रिसर्च में बताया गया कि चंद्रमा के दूर वाले हिस्से पर एक अरब साल से अधिक समय तक ज्वालामुखीय गतिविधियां होती रहीं. वैज्ञानिक अब यह पता लगाने का प्रयास करेंगे कि इतनी लंबी अवधि तक यह गतिविधियां क्यों बनी रहीं.
क्यों अलग हैं चंद्रमा के दो हिस्से
चंद्रमा के दोनों हिस्सों में स्पष्ट अंतर भी शोधकर्ताओं के लिए पहेली बना हुआ है. दूर वाला हिस्सा गड्ढों से भरा हुआ है, जबकि पास वाले हिस्से पर लावा प्रवाह से बने समतल मैदान अधिक हैं. चीनी विज्ञान अकादमी के रिसर्चर क्यू-ली ली का कहना है कि यह अंतर क्यों है, इसका अब भी पता नहीं चल पाया है.
मंगल के चांद पर क्या पता लगाएगा जापान?
04:24
This browser does not support the video element.
चीन के चंद्रमा मिशन ने पिछले कुछ सालों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं. 2019 में चांग'ई-4, चंद्रमा के दूर वाले हिस्से पर उतरने वाला पहला मिशन बना. इसके बाद 2020 में चांग'ई-5 ने चंद्रमा के पास वाले हिस्से से नमूने जुटाए.चांग'ई-6 ने अब इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए चंद्रमा के छिपे हुए हिस्से के रहस्यों से पर्दा उठाया है.
यह रिसर्च न केवल चंद्रमा के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने में मदद करेगी, बल्कि हमारे सौरमंडल की प्रारंभिक संरचना और विकास पर भी प्रकाश डालेगी.