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बढ़ते तूफान बढ़ा रहे हैं विशेषज्ञों की चिंता

प्रभाकर मणि तिवारी
२८ मई २०२१

भारत में चक्रवाती तूफान तो पहले भी आते रहे हैं. लेकिन हाल के वर्षों में इनमें आने वाली तेजी पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों के लिए गहरी चिंता का विषय बनती जा रही है.

चक्रवाती तूफान यास का असर देखते पश्चिम बंगाल में दीघा के लोग.
चक्रवाती तूफान यास का असर देखते पश्चिम बंगाल में दीघा के लोग.तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/Reuters

समुद्र विज्ञानियों का कहना है कि समुद्री सतह के तापमान में होने वाली वृद्धि ही बार-बार आने वाले तूफानों की मुख्य वजह है. हाल में पश्चिमी तट पर आए ताउते ने भारी तबाही मचाई थी और उसका असर खत्म होते न होते पूर्वी तट पर खासकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल में यास ने बड़े पैमाने पर बर्बादी मचाई है. दुनिया भर में अब तक आए 36 सबसे भयावह उष्णकटिबंधीय तूफानों में से 26 बंगाल की खाड़ी से शुरू हुए हैं.

एहतियाती उपायों के जरिए जान के नुकसान पर तो अंकुश लगाने में कुछ हद तक कामयाबी मिली है. लेकिन संपत्ति, पर्यावरण और खेतों को होने वाला नुकसान की भरपाई लगभग असंभव है. मिसाल के तौर पर यास की वजह से समुद्र के खारे पानी ने सुंदरबन इलाके में हजारों एकड़ खेतों को बर्बाद कर दिया है. उनको खेती के लायक बनाने में कई बरस लग सकते हैं.

समुद्र का बढ़ता तापमान

जलवायु परिवर्तन पर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कुछ साल पहले तैयार एक कार्य योजना में कहा गया था कि वर्ष 2021 से 2050 के दौरान समुद्र के तापमान में 1.8 से 2.4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो सकती है. इसके कारण चक्रवाती तूफान का सिलसिला तेज होगा और समुद्र के जलस्तर में लगातार वृद्धि होगी. इसमें कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ने की वजह से वर्ष 2100 तक सुंदरबन का पूरा इलाका समुद्र में डूब जाएगा.

जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञानी डॉक्टर सुगत हाजरा कहते हैं, "अरब सागर कभी ठंडा हुआ करता था, लेकिन अब यह एक गर्म पानी का कुंड बन गया है. इस वजह से चक्रवाती तूफानों के लिए आदर्श स्थिति बनती जा रही है. उष्णकटिबंधीय तूफान गर्म पानी से अपनी ऊर्जा खींचते हैं और यही वजह है कि वे गर्म पानी के ऐसे क्षेत्रों में बनते हैं जहां तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है.” डॉक्टर हाजरा बताते हैं कि बंगाल की खाड़ी पर पैदा होने वाले ऐसे तूफान जलवायु परिवर्तन की ठोस मिसाल हैं.

आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में पानी का तापमान दुनिया के बाकी हिस्सों के मुकाबले ज्यादा है. समुद्री जल का तापमान 28 डिग्री सेंटीग्रेड या उससे ऊपर होने पर ऐसे तूफान पैदा होते हैं. लेकिन बंगाल की खाड़ी में यह तापमान 30 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच है जो ऐसे तूफानों के लिए आदर्श है. यही वजह है कि बीते एक साल के दौरान यहां चार ऐसे भयावह चक्रवाती तूफान आ चुके हैं.

इंग्लैंड स्थित संगठन क्रिश्चियन एड ने अपने एक हालिया अध्ययन में कहा था कि बीते साल बंगाल के तटवर्ती इलाकों में अंफान तूफान की वजह से करीब 49 लाख लोग विस्थापित हुए थे. यह दुनिया भर में वर्ष 2020 के दौरान किसी प्राकृतिक आपदा से विस्थापित होने वालों की सबसे बड़ी तादाद है. इससे वर्ष 2020 के दौरान सबसे ज्यादा मौतें तो हुईं ही, करीब 13 अरब डॉलर का नुकसान भी हुआ.

एक अन्य पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर कौशिक चक्रवर्ती कहते हैं, "बंगाल की खाड़ी के अलावा अरब सागर और हिंद महासागर की सतह का तापमान भी ज्यादा है. नतीजतन ऐसे तूफानों की फ्रीक्वेंसी साल दर साल बढ़ती जा रही है. सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के अलावा बारिश और कृषि उत्पादन पर भी इसका दूरगामी असर होता है.” लेकिन आखिर समुद्री सतह का तापमान बढ़ने की वजह क्या है? डॉक्टर हाजरा और चक्रवर्ती इसके लिए कार्बन उत्सर्जन को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि तूफान और चक्रवात पहले से ही आते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ सालों से ये हर साल आ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर साल तापमान बढ़ रहा है. इससे समुद्री सतह गर्म हो रही है. नतीजतन उसके ऊपर चलने वाले हवाएं भी शीघ्र सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाती हैं. मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि अरब सागर के मुकाबले बंगाल की खाड़ी ज्यादा गर्म है. इस कारण यहां पर बनने वाले कम दबाव के क्षेत्र को तूफान में बदलने के लिए पर्याप्त मौसमी मदद मिल जाती है.

पुणे स्थित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में क्लाइमेट रिसर्च एंड सर्विसेज के प्रमुख केएस होसालिकर कहते हैं, "बंगाल की खाड़ी में बनने वाले हर चार चक्रवातों की तुलना में अरब सागर में एक चक्रवात बनता है. हम बीते डेढ़-दो सौ बरसों के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर इस नतीजे पर पहुंचे हैं.” लेकिन भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के एक अध्ययन में आशंका जताई गई है कि यह अनुपात जल्द ही बदल सकता है. इस अध्ययन में सामने आया है कि अरब सागर में चक्रवातों की फ्रीक्वेंसी और तीव्रता दोनों में वृद्धि हो रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्री सतह के तापमान में होनी बढ़ी ही सबसे प्रमुख वजह है.

कार्बन उत्सर्जन की भूमिका

पर्यावरणविदों ने कोयले को ग्लोबल वार्मिंग की सबसे बड़ी वजह करार दिया है .भारत में कोयला आधारित ताप बिजली घर प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन के सबसे बड़े स्त्रोत रहे हैं. इसकी एक प्रमुख वजह इन संयंत्रों में पुरानी तकनीक का इस्तेमाल होना है. देश के करीब 80 फीसदी संयंत्रों में अब भी पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. अब विशेषज्ञों ने कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है ताकि तेजी से बढ़ते उत्सर्जन पर अंकुश लगाया जा सके. केंद्र सरकार हालांकि कार्बन उत्सर्जन के खतरे को ध्यान में रखते हुए गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने पर जोर दे रही है. लेकिन इस दिशा में अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

डॉक्टर सुगत हाजरा कहते हैं, "हिमालयी इलाके में बढ़ने वाली कार्बन की मात्रा भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है. इलाके के पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ने का असर व्यापक और दूरगामी होगा.” वह कहते हैं कि इस खतरे से निपटने के लिए अभी से एक ठोस नीति बना कर उसे गंभीरता से लागू करना होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने के प्रयासों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देना जरूरी है.

आईआईटी, खड़गपुर में सामुद्रिक अभियंत्रण विभाग के प्रमुख प्रोफेसर भास्करन कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन की वजह से बीते एक दशक के दौरान चक्रवाती तूफानों के स्वरूप और गति में बढ़ोतरी हुई है.” वह बताते हैं कि इस केंद्र में जलवायु परिवर्तन के असर के तमाम पहलुओं का गहराई से अध्ययन किया जाएगा ताकि उनसे निपटने या कम से कम के उसके असर को कम करने के लिए ठोस योजनाएं बनाई जा सके.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोयले से बनने वाली बिजली की जगह हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना सरकार की सबसे अहम प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन यह काम एक दिन या किसी एक संस्था का नहीं है. जलवायु परिवर्तन के असर पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर सामूहिक और सतत प्रयासों की जरूरत है. इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर ईमानदारी से लागू किया जाए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में बार-बार आने वाले चक्रवाती तूफान ऐसे ही तबाही मचाते रहेंगे.

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