औपचारिक हैंडओवर के बिना खत्म हुआ जी20
२३ नवम्बर २०२५
दक्षिण अफ्रीका में आयोजित दो दिवसीय जी20 शिखर सम्मेलन रविवार (23 नवंबर) को पूरा हुआ. लेकिन इस सम्मेलन में अमेरिका की गैर-हाजिरी की चर्चा लगातार होती रही. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और समूह की अगली अध्यक्षता संभालने वाला देश अमेरिका पूरी तरह से सम्मेलन से अनुपस्थित रहा. ट्रंप प्रशासन के बहिष्कार के कारण ना तो राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और ना ही कोई औपचारिक अमेरिकी प्रतिनिधि शिखर सम्मेलन में शामिल हुआ. यही वजह रही कि दक्षिण अफ्रीका ने अध्यक्षता के औपचारिक हैंडओवर से भी इनकार कर दिया.
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने परंपरा के अनुरूप लकड़ी के गैवेल से मेज पर प्रहार कर जोहान्सबर्ग में आयोजित इस बैठक की समाप्ति की घोषणा की. आमतौर पर यह गैवेल अगले साल की अध्यक्षता संभालने वाले राष्ट्र को सौंपा जाता है, लेकिन हॉल में कोई अमेरिकी नेता मौजूद नहीं था जिसे यह सौंपा जा सके.
अमेरिका ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया जिसका उद्देश्य धनी और विकासशील राष्ट्रों को एक मंच पर लाना है. ट्रंप प्रशासन ने यह आरोप लगाया था कि दक्षिण अफ्रीका की सरकार अफ्रीकी श्वेत अल्पसंख्यक पर हिंसक दमन कर रही है.
वाइट हाउस ने अंतिम क्षण में यह कहा था कि वह दक्षिण अफ्रीका में अपने दूतावास के एक अधिकारी को जी20 अध्यक्षता हस्तांतरण के लिए भेजना चाहता है. लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. दक्षिण अफ्रीका ने कहा कि राष्ट्रपति रामाफोसा के लिए यह "अपमान” होगा कि वह गैवेल किसी जूनियर अधिकारी को सौंपें. आखिरकार दक्षिण अफ्रीकी विदेश मंत्रालय के अनुसार सम्मेलन के लिए कोई अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल मान्य नहीं किया गया.
दक्षिण अफ्रीका ने कहा कि जी20 अध्यक्षता का औपचारिक हस्तांतरण बाद में, संभवतः विदेश मंत्रालय में किया जाएगा. ट्रंप ने पहले घोषणा की थी कि अगले वर्ष का जी20 शिखर सम्मेलन अमेरिका के डोरल, फ्लोरिडा स्थित उनके गोल्फ क्लब में आयोजित किया जाएगा.
राष्ट्रपति रामाफोसा ने कहा, "इस जी20 शिखर सम्मेलन का यह गैवेल औपचारिक रूप से इस बैठक को समाप्त करता है और अब यह जी20 की अगली अध्यक्षता, अमेरिका को हस्तांतरित होता है, जहां हम अगले वर्ष फिर मिलेंगे.” उन्होंने अपने भाषण में अमेरिकी अनुपस्थिति का कोई उल्लेख नहीं किया.
उद्घाटन दिन ही घोषणा जारी
अफ्रीकी महाद्वीप पर आयोजित पहला जी20 शिखर सम्मेलन शनिवार को परंपरा से अलग रहा जब नेताओं ने उद्घाटन दिवस पर ही घोषणा पत्र जारी किया. आमतौर पर घोषणा पत्र शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन जारी किया जाता है.
घोषणा इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह अमेरिका के विरोध के बावजूद जारी की गई. ट्रंप प्रशासन कई महीनों से दक्षिण अफ्रीका द्वारा जी20 एजेंडा में जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने की आलोचना कर रहा था. अर्जेंटीना ने भी घोषणा का विरोध किया. ट्रंप के करीबी माने जाने वाले अर्जेंटीना के राष्ट्रपति खावियर मिलेई शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए.
चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान और कनाडा सहित अन्य जी20 देशों ने घोषणा पत्र का समर्थन किया. घोषणा में गरीब देशों से जुड़े उन मुद्दों पर वैश्विक ध्यान देने की अपील की गई, जिनमें जलवायु आपदाओं के बाद पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत, कर्ज बोझ कम करने के उपाय और हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने का समर्थन शामिल है.
रामाफोसा ने कहा, "दक्षिण अफ्रीका ने अपनी अध्यक्षता के माध्यम से अफ्रीका और ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं को जी20 एजेंडे के केंद्र में रखा है.” अपने भाषण के बाद, रामाफोसा को अन्य नेताओं ने गले लगाकर बधाई दी. अमेरिकी बहिष्कार के कारण छाए तनाव की स्थिति के बीच उन्होंने एक माइक्रोफोन में अनजाने में कहा, "यह आसान नहीं था,” जो प्रसारण में सुनाई दे गया.
जी20 के प्रभाव पर सवाल
दक्षिण अफ्रीका ने अपने घोषणा पत्र को अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जीत बताया, जो खासकर ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट” नीति के उलट है. हालांकि जी20 घोषणाएं बाध्यकारी नहीं होतीं, और उनकी दीर्घकालिक प्रभावशीलता को लेकर सवाल बने रहते हैं.
घोषणा में दक्षिण अफ्रीका की कई प्राथमिकताओं को शामिल किया गया, लेकिन कुछ ठोस प्रस्ताव अंतिम दस्तावेज में जगह नहीं बना सके. उदाहरण के लिए, वैश्विक आर्थिक असमानता पर एक नया अंतरराष्ट्रीय पैनल बनाने का प्रस्ताव शामिल नहीं हुआ. यह पैनल संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित जलवायु परिवर्तन पैनल की तरह कार्य कर सकता था.
1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद गठित जी20 में 19 राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ शामिल हैं. दुनिया में रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में तनाव बढ़ने के बीच इसके प्रभाव को लेकर सवाल उठते रहे हैं.
122 बिंदुओं वाले जोहान्सबर्ग घोषणा पत्र में यूक्रेन का केवल एक बार उल्लेख किया गया, जिसमें विश्व संघर्षों को समाप्त करने की अपील की गई. इस शिखर सम्मेलन का रूस-यूक्रेन युद्ध पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं दिखा, जबकि यूरोपीय देशों, यूरोपीय संघ और रूस के प्रतिनिधि एक ही कमरे में मौजूद थे.
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा कि अफ्रीका में आयोजित पहली बैठक "मील का महत्वपूर्ण पत्थर” है, लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह समूह "भू-राजनीतिक संकटों पर साझा मानक खोजने में संघर्ष कर रहा है.”
कुछ विश्लेषकों ने इस शिखर सम्मेलन को गरीब देशों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक उपलब्धि बताया. अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन ऑक्सफैम के मैक्स लॉसन ने कहा, "यह इतिहास में पहली बार है जब विश्व नेताओं की बैठक में असमानता के संकट को एजेंडे के केंद्र में रखा गया.”
नामीबिया के राष्ट्रपति नेटुम्बो नांडी-नदैतवाह ने कहा, "अफ्रीकी दृष्टिकोण से विकास प्राथमिकताओं पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है.” नामीबिया उन 20 से अधिक छोटे देशों में शामिल था जिन्हें जी20 सदस्यों के साथ अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था.