सेक्स त्याग दें तो 'मर्द' हो जाती हैं यहां की लड़कियां
वीके/ओएसजे (एएफपी)३ अगस्त २०१६
बाल्कन देशों में एक अनोखी परंपरा है. लड़कियां सेक्स त्याग दें तो उन्हें पुरुष बराबर दर्जा मिल जाता है. लेकिन यह समाज की विडंबना को भी दिखाता है.
विज्ञापन
अल्बानिया के छोटे से गांव में रहने वालीं शकुर्ता हसनपापजा जब 16 साल की थीं तो उन्हें शादी में धकेला जाने लगा. उनके सामने उस जबरदस्ती की शादी से बचने का एक ही रास्ता था. एक प्राचीन परंपरा, जिसके तहत लड़कियां ताउम्र सेक्स ना करने की कसम खा लेती हैं. शकुर्ता ने कसम उठा ली और ताउम्र कुंवारी रहने का फैसला कर लिया. एक ही झटके में उसकी जिंदगी तितर-बितर हो गई. उन्होंने सेक्स को त्याग दिया, शादीशुदा जिंदगी से मुंह मोड़ लिया और कभी मां ना बन सकने का भविष्य चुन लिया. लेकिन बदले में उन्हों जो मिला वह भी कम नहीं था. उन्हें पुरुष प्रधान समाज में एक पुरुष की तरह जीने का मौका मिला. अब वह परिवार की मुखिया थीं. उनका नाम भी बदल गया था. अब उन्हें एक मर्दाना नाम मिल गया था, शकुर्तन. आज जब वह 70 की उम्र पार कर चुकी हैं, शकुर्तन ही कहलाना पसंद करती हैं. वह बताती हैं, "मैंने पुरुष हो जाने को चुना. जो मुझे पसंद करते हैं, मुझे शकुर्तन कहते हैं. जो लोग मुझे सताना चाहते हैं वे शकुर्ता कहते हैं."
वैसे, अब यह परंपरा लगभग दम तोड़ चुकी हैं. शकुर्ता आखिरी ऐसी चंद महिलाओं में से हैं जिन्होंने शादी के बजाय ताउम्र वर्जिन रहने का चुनाव किया था. अल्बानिया और बाकी बाल्कन देशों में अब ऐसा शायद ही कोई करता हो. मुश्किल से 10 ऐसी महिलाएं बची हैं.
यह अनोखी परंपरा कितनी पुरानी है, कोई नहीं जानता. सबने अपने पुरखों से सुना है कि लेके दुकाजिनी के कानून में ऐसा लिखा है. मध्ययुगीन कानून के तहत इन लड़कियों को वर्जिनेशा कहा जाता था. और आमतौर पर यह खूंखार कबीलों में चलता था. कोई भी लड़की दो तरह से वर्जिनेशा बन सकती थी. अगर परिवार के सारे पुरुष मारे जाएं या चले जाएं. ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए लड़की वर्जिनेशा हो जाती थी. या फिर शादी से बचने के लिए ऐसा करती थी क्योंकि बिना वर्जिनेशा हुए तो उसे शादी करनी हो होती. ना करती तो खून की नदियां बह जातीं. शादी का न्योता ठुकराना बहुत बड़ा अपमान माना जाता था और उसका नतीजा पारिवारिक दुश्मनी में निकलता था.
वर्जिनेशा को बहुत अधिकार मिलते थे. वह धूम्रपान कर सकती थी, शराब पी सकती थी, मर्दों की तरह पैंट पहन सकती थी और परिवार के बड़े फैसले ले सकती थी. यानी वर्जिनेशा होने पर समाज उसे मर्द का दर्जा दे देता था.
भारत में महिलाओं के क्या कानूनी अधिकार हैं, देखें
पर्दे के पीछे कैसी हैं ईरानी औरतें
ईरानी महिला सुनते ही अगर आपके जहन में भी पर्दे में छिपी औरत की तस्वीर उभरती है तो ये तस्वीरें आपको चौंका देंगी. ईरानी फोटोग्राफर समाने खोसरावी ने पर्दे के पीछे की जिंदगी को कागज पर उतारा है, और हमने उसे इंटरनेट पर...
तस्वीर: Samaneh Khosravi
घर से बाहर जाना हो तो
ईरान की एक महिला जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह ढक लेती है. लेकिन इस ढकने में भी वह हॉलीवु़ड की नकल की कोशिश करती है. और पर्दे के भीतर कैसी है उसकी जिंदगी?
तस्वीर: Samaneh Khosravi
ढीले से नियम
1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. उसके बाद सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए अपना शरीर ढकना जरूरी हो गया. फिर भी युवतियां कई बार इन नियमों से खेल जाती हैं जैसे उत्तरी तेहरान के तोचल की ये लड़कियां. हालांकि यह जान पर खेल जाने जैसा है.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
चेहरा दिखना चाहिए
ईरान में हिजाब चलता है. यानी बाकी पूरा शरीर ढका होना चाहिए लेकिन चेहरा दिख सकता है. वैसे 1936 से 1941 के बीच रजा शाह पहलवी ने सार्वजनिक स्थानों पर पर्दा बैन कर रखा था.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
मर्लिन मुनरो जैकेट
ईरान में लड़कियां ऑनलाइन शॉपिंग खूब करती हैं. मर्लिन मुनरो जैकेट खूब चलती है. युवा डिजाइनर फेसबुक या इंस्टाग्राम के जरिए इन्हें बेचते हैं.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
प्लास्टिक सर्जरी
चेहरे-मोहरे पर बहुत पैसा खर्चते हैं ईरानी. प्लास्टिक सर्जरी खूब हो रही है. हर साल देश में 60-70 हजार लोग सर्जरी करवाते हैं.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
हर साल बढ़ती संख्या
आंकड़े बताते हैं कि जितनी प्लास्टिक सर्जरी ईरान में होती है, उससे वह सबसे ज्यादा सर्जरी कराने वाले देशों में शुमार हो गया है. और आंकड़े हर साल बढ़ते ही जा रहे हैं. जैसे इस लड़की ने नाक की सर्जरी करा ली है.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
आधुनिकता और परंपरा
ईरानी फैशन में आधुनिकता और परंपरा का संगम साफ दिखता है. खोसरावी के कैमरे की निगाह से देखिए.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
घर पर ब्यूटी ट्रीटमेंट
ब्यूटीशियन घर पर सर्विस देती हैं. खोसरावी कहती हैं कि महिलाओं में बालों को रंगवाने कराने का चलन बढ़ रहा है.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
मेनिक्योर, पेडिक्योर
ईरान में विशाल ब्यूटी सलून भी खूब चलते हैं. पुरुष इनके अंदर नहीं आ सकते. महिलाएं इस बंद कमरे में ज्यादा आजाद होती हैं.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
काला शा काला
ऐसा नहीं है कि ईरानी महिलाएं काला रंग ही पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. खोसरावी का कैमरा इसका गवाह है.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
एक्सरसाइज भी
ईरानी लड़कियां फिगर को लेकर वैसे ही चिंतित हैं जैसे कोई और भी. इसलिए वे वर्कआउट करती हैं. फिट रहती हैं.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
हुस्न का जश्न
खोसरावी कहती हैं कि युवतियां सामाजिक हदों का पालन करती हैं लेकिन इन हदों में रहकर हुस्न का जश्न मनाना इन्होंने सीख लिया है.
तस्वीर: Samaneh Khosravi
12 तस्वीरें1 | 12
62 साल की वर्जिनेशा जाना राकीपी, जो बाद में लाली हो गईं, बताती हैं, "आपको मेहमानों के सामने आने से कोई नहीं रोक सकता. आपको सिर झुकाकर खाना परोसने से छुटकारा मिल जाता था." लाली उत्तरी अल्बानिया के एक छोटे गांव में जन्मी थीं लेकिन अब वह डुरेस में रहती हैं. सैन्य खाकी वर्दी पहने और टाई लगाए लाली एक के बाद एक सिगरेट सुलगाती हैं. जब वह हाथ मिलाती हैं तो सामने वाला उनका जोश महसूस कर सकता है. स्थानीय पोर्ट पर लोग उन्हें बॉस कहते हैं. लाली बताती हैं कि वर्जिनेशा की शपथ उठाना उनके लिए आजादी के दरवाजे खोल देने जैसा था. जो महिलाएं शादी करती हैं, वे ताउम्र घरों में, चूल्हा-चक्की में पिसती रहती हैं और वहीं खत्म हो जाती हैं. लाली कहती हैं, "महिलाओं की यह जिंदगी बहुत मुश्किल होती थी. उनके लिए आजाद होना एकदम मना था."
हसनपाजा 1932 में जन्मी थीं. उनकी एक जुड़वां बहन थी. और दो लड़कियों को देखकर उनके माता-पिता के चेहरे बुझ गए थे क्योंकि वे पहले ही अपने तीन बेटे खो चुके थे. उनकी बहन का नाम रखा गया था सोजे, जिसका अर्थ होता है, अब बस. 'मर्द' बनकर हसनपाजा की जिंदगी बदल गई. लेकिन यह कितनी बड़ी विडंबना है कि आजाद होने के लिए औरत को मर्द होना पड़ता है. सब कुछ छोड़ने पड़ता है.
स्कर्ट का कहां क्या हाल है, इन तस्वीरों में जानें
भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार
भारत में महिलाओं के लिए ऐसे कई कानून हैं जो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से जीने के लिए सुविधा देते हैं. देखें ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार...
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
तस्वीर: Fotolia/Ramona Heim
पति की संपत्ति से जुड़े हक
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
तस्वीर: Fotolia/davidevison
पति-पत्नी में ना बने तो
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/CTK/Josef Horazny
अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है. अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता. महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है.
तस्वीर: Fotolia/drubig-photo
घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है. आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना.
तस्वीर: picture-alliance/PIXSELL/Puklavec
क्या है घरेलू हिंसा
केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना भी घरेलू हिंसा के बराबर है. ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है. किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है. लिव इन संबंधों में भी यह लागू होता है.
तस्वीर: picture alliance/abaca
पुलिस से जुड़े अधिकार
एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Sharma
मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति की महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.