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जी7 के दूसरे दिन माइग्रेशन, एआई और चीन पर चर्चा

१४ जून २०२४

जी7 शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन आप्रवासन, चीन की चुनौती और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुद्दे पर चर्चा हुई. सम्मेलन में कैथोलिक धर्मगुरु पोप फ्रांसिस भी हिस्सा ले रहे हैं.

इटली में जी7 देशों के शीर्ष नेता
यह बैठक ऐसे वक्त में हो रही है जब दुनिया पर्यावरण, युद्ध और आर्थिक बोझ तले दबी हुई है.तस्वीर: Guglielmo Mangiapane/REUTERS

इटली में हो रहे जी7 शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन मौजूदा वैश्विक संकटों पर चर्चा हुई. इसमें हिंद-प्रशांत इलाका, आर्थिक सुरक्षा समेत आप्रवासन और चीन के मुद्दे अहम हैं. चीनी कंपनियों पर अमेरिकी पाबंदियां, इलेक्ट्रिक वाहनों पर यूरोप की नीति और रूस को चीन का समर्थन, ये सब 14 जून को बातचीत का हिस्सा हैं. नेताओं ने मानव तस्करी को खत्म करने के तरीकों समेत उन देशों में निवेश बढ़ाने पर चर्चा की जहां से लोग इस तरह की खतरनाक यात्राएं शुरु करते हैं. 

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बैठक के दौरान नेताओं ने दुनिया में कुपोषण और खाद्य सुरक्षा को मजबूती देने का इरादा जताया है. जी7 का अपुलिया फूड सिस्टम्स  इनिशिएटिव खाद्य सुरक्षा और पोषण के रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने से जुड़ा कदम है. खबरों में यह भी कहा गया है मेजबान इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के हस्तक्षेप के बाद इस सम्मेलन के बाद जारी होने वाले संयुक्त बयान में गर्भपात को अधिकार मानने पर राजी होने की बात से परहेज किया गया है. 

यह बैठक ऐसे वक्त में हो रही है जब दुनिया पर्यावरण, युद्ध और आर्थिक बोझ तले दबी हुई है. पोप फ्रांसिस, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दुनिया के 10 देशों के शीर्ष नेताओं के साथ इसमें शामिल हैं. मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक से मुलाकात की. 

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने यूक्रेन की आर्थिक मदद के प्लान को बड़ी सफलता कहातस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance

जी7 देश और चीन की चुनौती

बैठक में पहले दिन जहां यूक्रेन का मुद्दा छाया रहा, वहीं दूसरे दिन चीन की चुनौती केंद्र में है. सम्मेलन में चीन के रूस को दिए जाने वाले सहयोग पर कड़ा रुख अपनाने की बात कही गई है. चीन की बढ़ती औद्योगिक ताकत और रूस के लिए उसका लगातार समर्थन, पश्चिमी देशों में चिंता का विषय है. अमेरिका ने इसी हफ्ते चीन स्थित उन कंपनियों पर पाबंदियां लगाई हैं, जो रूस को सेमीकंडक्टर निर्यात करती हैं. इस बीच ताइवान पर चीन का बेहद आक्रामक रवैया और फिलीपींस के साथ सामुद्रिक विवाद भी गर्म है.

यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ 10 वर्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पत्रकारों से कहा,"चीन रूस को हथियार नहीं दे रहा है, लेकिन हथियार बनाने की क्षमता और तकनीक दे रहा है. वह वास्तव में रूस की मदद कर रहा है."

ईयू ने भी व्यापारिक दबाव बढ़ाते हुए इसी हफ्ते चीन के इलेक्ट्रिक वाहनों पर 38.1 फीसदी तक की ड्यूटी लगा दी है. यह बढ़ोतरी जुलाई से लागू होगी. हालांकि, इस बात का डर बना हुआ है चीन की तरफ से भी बदले की कार्रवाई होगी. अहम बात यह भी है कि चीन की घरेलू कंपनियों को मिलने वाली सरकारी छूट से निपटने के मसले पर जी7 देशों में मतभेद हैं. यूरोप चीन के साथ बड़े पैमाने पर व्यापारिक युद्ध लड़ने को तैयार नहीं है.

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी आप्रवासन के मुद्दे पर यूरोप का सहयोग चाहती हैंतस्वीर: Guglielmo Mangiapane/REUTERS

जी7 में पोप फ्रांसिस की हिस्सेदारी

इस बार जी7 के सम्मेलन में एक खास बात है कैथोलिक धर्मगुरु पोप फ्रांसिस, जो पहली बार इसमें हिस्सा ले रहे हैं. पोप फ्रांसिस ने अपने संबोधन में कहा कि यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता पर भारी ना पड़े. उन्होने कहा कि यह तकनीक इस युग की बदलावकारी घटना है लेकिन इस पर बहुत करीब से 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बयान के अलावा वह शीर्ष नेताओं से वार्ता भी करेंगे. इनमें बाइडेन, जेलेंस्की और तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप अर्दुआन शामिल हैं.

सम्मेलन के दूसरे दिन माइग्रेशन का मुद्दा भी चर्चा का अहम विषय रहा. इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी इस बात पर जोर देती रही हैं कि यूरोप उन्हें अपने देश में अफ्रीका से आने वाले गैरकानूनी आप्रवासियों को रोकने में मदद करे. मेलोनी ने अफ्रीका में विकास परियोजनाएं शुरु की हैं, ताकि इस मसले के बुनियादी कारणों से निपटा जा सके. ज्यादातर नेता 14 जून को ही लौट जाएंगे, हालांकि अगले दिन भी कुछ द्विपक्षीय बैठकें हो सकती हैं.

पहले दिन यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच 10 वर्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हुएतस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS

जी7 सम्मेलन के पहले दिन छाया रहा यूक्रेन

सम्मेलन के पहले दिन जी7 देश यूक्रेन को 5,000 करोड़ डॉलर का कर्ज देने पर राजी हो गए. यह राशि पश्चिमी देशों में जब्त की गई रूसी परिसंपत्तियों पर मिलने वाले लाभ से जुटाई जाएगी ताकि यूक्रेन में रूसी युद्ध के खिलाफ यूक्रेन को जरूरी मदद मिले. इस सहमति को पश्चिमी देशों की एकजुटता के बड़े संकेत के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, इस पर पूरी तरह से विस्तृत और स्पष्ट जानकारी अभी बाकी है लेकिन बताया जा रहा है कि अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन और ईयू भी इस कर्ज में अपनी तरफ से योगदान देंगे.

उम्मीद जताई गई है कि साल के अंत तक यूक्रेन को आर्थिक मदद पहुंच जाएगी. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक कदम है. यह रूसी राष्ट्रपति को बिल्कुल साफ संदेश देता है कि वह केवल यह आस लगाकर बैठ नहीं सकते कि यूक्रेन की मदद करने वाले देशों की आर्थिक दिक्कतों की वजह से वह युद्ध जीत जाएंगे."

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने 13 जून को एक समझौते पर दस्तखत किए, जिसे रूसी राष्ट्रपति को दिया गया एकजुटता का संदेश कहा गया. जेलेंस्की ने कहा कि यह समझौता यूक्रेनी स्वतंत्रता के लिए अमेरिकी सहयोगा की विश्वसनीयता पर मोहर लगाता है. यूक्रेन रूस के खिलाफ डटे रहने के  लिए आर्थिक मदद की गुहार लगाता रहा है. 2022 में शुरु हुए यूक्रेन युद्ध ने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है और यूरोप पर इस युद्ध का आर्थिक बोझ गहराया है.

एसबी/एसएम (रॉयटर्स, एपी)

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