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19 हजार की नौकरी, सालों का इंतजार

१७ फ़रवरी २०२२

पटवारी, क्लर्क और कांस्टेबल जैसी नौकरियों के लिए पंजाब के पोस्ट ग्रैजुएट युवा साल दर साल इंतजार करते चले जा रहे हैं. क्या है ऐसे समाज का भविष्य जहां युवाओं की जिंदगी इस तरह बर्बाद हो रही है?

चुनावों में हर बार रोजगार प्रमुख मुद्दा रहता हैतस्वीर: Charu Kartikeya/DW

जालंधर की एक जानी मानी लाइब्रेरी में बैठे अरुण कुमार और उनके साथी सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाओं और बेरोजगारी से जद्दोजहद करने की तैयारी एक साथ कर रहे हैं. अरुण को पोस्ट ग्रैजुएट हुए चार साल हो गए हैं. उनके पास वाणिज्य में स्नातकोत्तर (एम कॉम) और शिक्षा में स्नातक (बीएड) की डिग्रियां हैं, लेकिन फिर भी नौकरी नहीं है.

वो बताते हैं कि उन्होंने और वहां बैठे उनके सभी साथियों ने तीन से चार सरकारी नौकरियों के इम्तिहान पास भी कर लिए हैं. इम्तिहान पास किये हुए भी 6-7 महीने हो गए हैं लेकिन उनका भविष्य अभी भी अधर में लटका हुआ है क्योंकि परीक्षा करवाने और आवेदन की फीस ले लेने के बाद सरकार भर्ती के लिए आगे की प्रक्रिया को लेकर खामोश हो गई है.

(पढ़ें: भारत में विकराल हो रहा है बेरोजगारी का संकट)

साल दर साल बर्बाद

किसी को कुछ नहीं मालूम कि उसका चयन हुआ भी है या नहीं, भर्ती की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी भी या नहीं और बढ़ेगी भी तो कब बढ़ेगी. अरुण अकेले नहीं हैं जिन्होंने इस मरीचिका के पीछे अपनी जिंदगी के चार महत्वपूर्ण साल गंवा दिए.

कांग्रेस ने एक बार फिर नौकरियां देने का वादा किया हैतस्वीर: Hindustan Times/imago images

उनके साथी नवदीप सिंह ने चार सालों पहले कानून की पढ़ाई (एलएलबी) पूरी कर ली थी. उन्होंने कुछ ही महीनों पहले पंजाब सरकार में क्लर्क के पद के लिए इम्तिहान पास किया लेकिन इस मामले में आगे की प्रक्रिया जैसे किसी शून्य में लटकी हुई है.

नवदीप बताते हैं कि पिछले चार सालों में राज्य सरकार ने न्यायिक सेवाओं में भर्तियों की घोषणा ही नहीं की जिनके लिए वो अपनी योग्यता के हिसाब से आवेदन कर सकें. साथ ही उन्हें यह डर भी है कि इन नौकरियों में उम्र की एक सीमा भी होती है और जल्द ही वो इस सीमा को पार कर जाएंगे.


इसी तरह ग्रैजुएट अक्षय भगत पांच सालों से, पोस्ट ग्रैजुएट विजय भी पांच सालों से, रवि दो सालों से और इनके जैसे न जाने और कितने युवा कितने ही सालों से पटवारी, क्लर्क, कांस्टेबल आदि जैसी सरकारी नौकरी पाने के बस मौके का इंतजार कर रहे हैं.

सरकारी नौकरी की चाह

विजय बताते हैं कि उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से बात करना बंद कर दिया है क्योंकि वो बार बार यही पूछते हैं कि "क्या अभी तक तैयारी ही कर रहे हो?"

ऐसे में अगर आप स्वावलम्बी हों तो दर्द दोगुना हो जाता है. पढ़ाई पूरी किए सालों बीत जाने के बाद अभी तक माता पिता से पैसे लेकर अपना गुजारा करना विजय को इतना अखरता है कि वो जोमाटो में डिलीवरी पहुंचाने की पार्ट टाइम नौकरी करते हैं.

आम आदमी पार्टी ने भी रोजगार के कई वादे किए हैंतस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

निजी क्षेत्र की नौकरियां इन नौजवानों को नहीं लुभातीं. इनका कहना है कि क्लर्क के पद पर उन्हें कम से कम 19,000 रुपए मासिक वेतन मिलेगा जब कि निजी कंपनियां या तो महामारी काल में नौकरियां ही नहीं दे रही हैं या वेतन आठ-दस हजार रुपयों से ज्यादा मासिक वेतन नहीं दे रही हैं. उसके ऊपर से सरकारी नौकरी में रोजगार की सुरक्षा की जो गारंटी है वो निजी क्षेत्र में मिलेगी नहीं.

(पढ़ें: आंदोलनकारी छात्रों पर लाठीचार्ज के बाद रेलवे ने निरस्त की परीक्षा)

केंद्र सरकार की संस्था एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में पिछले विधान सभा चुनावों के समय बेरोजगारी दर 7.8 प्रतिशत थी. जुलाई 2021 में जारी किए एनएसओ के 2019-20 के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में बेरोजगारी दर थी 7.4 प्रतिशत. यानी पांच सालों में कुछ नहीं बदला.

कहीं नहीं है नौकरी

निजी संस्था सीएमआईई के अनुसार पंजाब में इस समय कम से कम आठ लाख लोग बेरोजगार हैं और पिछले पांच सालों में करीब चार लाख लोगों की नौकरी गई है. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सिर्फ संगठित क्षेत्र के आंकड़े हैं जबकि ज्यादा लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं जिनकी गणना सरकार नहीं करती.

कुछ अर्थशास्त्रियों का यहां तक मानना है कि अगर असंगठित क्षेत्र को भी ले लें तो आप पाएंगे कि पंजाब में कम से कम 20 लाख लोग बेरोजगार हैं. कैसे दूर होगी इनकी बेरोजगारी? किसके पास हैं इतनी नौकरियां?

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एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब सरकार में इस समय सिर्फ 12,946 नौकरियां उपलब्ध हैं, जबकि नौकरी के लिए पंजीकरण कराने वालों की संख्या 13 लाख से भी ज्यादा है. निजी क्षेत्र में नौकरियां तो इस से कम संख्या में हैं ही (सिर्फ 10,910), निजी नौकरियों के लिए आवेदक भी बहुत कम हैं (12,041).

जालंधर की उस लाइब्रेरी में उन युवाओं की व्यथा सुनते सुनते मैं यह भी सोच रहा था कि यह कितनी बड़ी त्रासदी है कि इतनी तालीम हासिल कर लेने के बाद भी लोग 19,000 की मासिक वेतन वाली लेकिन स्थिर नौकरी का इस तरह से पीछा कर रहे हैं कि उसके चक्कर में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण साल दर साल गंवाते चले जा रहे हैं.

जाने कब खत्म होगा इनका यह इंतजार और जाने कब खत्म होगा समाज का यह दुर्भाग्य.

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