1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
अपराधनेपाल

नेपाल में हर साल क्यों लापता हो रहे हजारों बच्चे

लेखनाथ पांडे
१६ दिसम्बर २०२२

नेपाल का हर समुदाय लापता हो रहे बच्चों के बढ़ते मामलों को लेकर चिंतित है. उन्हें डर है कि मजदूरी कराने और यौन शोषण के लिए उनके बच्चों की तस्करी की जा रही है.

Economic crisis in Nepal - Copyright: Manish Ku
नेपाल का हर समुदाय लापता हो रहे बच्चों के बढ़ते मामलों को लेकर चिंतित हैतस्वीर: Manish Kumar/DW

सरकारी बाल सुरक्षा एजेंसी ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार परिषद' (एनआरसीआर) के मुताबिक, नेपाल में औसतन हर दिन कम से कम 6 बच्चे लापता होते हैं. हालांकि, उनमें से दो-तिहाई आखिरकार मिल जाते हैं, लेकिन एक-तिहाई का कोई अता-पता नहीं चलता. एनआरसीआर के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2006 से जुलाई 2022 तक कम से कम 36,612 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज हुई. उनमें से कुल 23,259 बच्चे बाद में मिल गए, लेकिन करीब 36 फीसदी यानी 13,353 बच्चे अब तक लापता हैं. लापता बच्चों में से 16 मृत पाए गए या मिलने के बाद उनकी मौत हो गई.

यमन युद्ध में अब तक 11 हजार से ज्यादा बच्चे या तो मारे गए या घायल हुए

जुलाई  2021 और जुलाई 2022 के बीच कम से कम 4,646 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई. इनमें लड़कियों की संख्या 3,431 थी. लापता बच्चों में से 4,269 वापस मिल गए, लेकिन 377 बच्चे अब भी लापता हैं. इनमें 90 लड़के और 287 लड़कियां हैं.

हिमालय की गोद में बसे इस देश के लोगों में बंधुआ मजदूरी या यौन शोषण के लिए नाबालिग बच्चों की तस्करी को लेकर चिंता बढ़ रही है. नेपाल में 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को नाबालिग माना जाता है. देश की कुल तीन करोड़ आबादी में 40 फीसदी संख्या नाबालिगों की है.

सबसे ज्यादा प्रभावित हुई लड़कियां

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में करीब 35,000 लोगों को मानव तस्करों ने अपना शिकार बनाया है. इनमें 15,000 पुरुष थे, 15,000 महिलाएं और करीब 5,000 नाबालिग.

एनएचआरसी की सदस्य लिली थापा ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस बात की ज्यादा संभावना है कि लापता बच्चों की तस्करी बंधुआ मजदूरी या यौन शोषण के लिए की गई हो. लापता बच्चों में कई नाबालिग लड़कियां भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, "काठमांडू जैसे बड़े शहरों में कथित तौर पर कई बच्चे बेहतर शिक्षा पाने के लिए अपना घर छोड़कर चले गए, लेकिन इस बात की ज्यादा संभावना है कि वे होटल, रेस्तरां या घरों में नौकर के तौर पर काम कर रहे हों. हालांकि, कई बच्चे काम की तलाश में भारत भी जा सकते हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने परिवार से संपर्क नहीं किया.”

एनएचआरसी के अनुसार, सीमा पार के तस्करों ने ज्यादातर गरीब परिवार के बच्चों को निशाना बनाया है और उन्हें यौन शोषण के लिए भारत के रेड-लाइट इलाकों में भेजा है.

नेपाल पुलिस के प्रवक्ता तेक प्रसाद राय ने कहा कि लापता बच्चों में से कुछ से ईंट भट्ठों, होटलों, रेस्तरां और डांस बार में काम कराए जाने की संभावना है.

बीमार बच्चों के लिए जर्मनी के अस्पतालों में जगह नहीं

राय ने डीडब्ल्यू को बताया, "नेपाल पुलिस लापता नाबालिगों और तस्करी की गई महिलाओं को खोजने के लिए भारत में भी जांच अभियान चला रही है, लेकिन हमारे पास यह डेटा नहीं है कि जितने बच्चे लापता हैं उनमें से कितने को मानव तस्करों ने अपना शिकार बनाया है.”

राय ने यह भी कहा कि अंग निकालने के उद्देश्य से भी कुछ बच्चों की तस्करी की जाती है, लेकिन ऐसे मामले काफी कम होते हैं. उन्होंने कहा कि कई अन्य देशों, खासकर अफ्रीका और खाड़ी देशों में पर्यटन के बहाने लोगों की तस्करी की जाती है.

एनसीआरसी के राम बहादुर चंद ने डीडब्ल्यू को बताया कि हाल के वर्षों में लड़कियों को शिकार बनाए जाने के मामले तेजी से बढ़े हैं. पिछले 16 वर्षों में लापता हुए 36,612 बच्चों में से 60 फीसदी से अधिक यानी 21,946 लड़कियां थीं. पिछले पांच वर्षों में लापता हुए 16,785 नाबालिगों में से 71 फीसदी यानी 11,916 लड़कियां थीं.

चंद ने कहा, "लगभग 70 फीसदी लापता लड़कियों की उम्र करीब 14 साल या उससे ज्यादा है.”

बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के प्रयास में सरकार

नेपाल की जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहना अंसारी के मुताबिक, देश में बच्चों के लापता होने के मामले जिस तरह से बढ़ रहे हैं उससे पता चलता है कि बच्चों को खोजने में सरकार दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. लापता होने वाले बच्चों की असल संख्या ज्यादा हो सकती है, क्योंकि हो सकता है कि कुछ मामले दर्ज न हुए हों.वहीं दूसरी ओर पुलिस प्रवक्ता राय इस बात से सहमत नहीं दिखते. वह कहते हैं कि नेपाल में लापता नाबालिगों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में ‘बहुत कम' हो सकती है. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "जब कोई बच्चा लापता हो जाता है, तो हमें सूचना दी जाती है, लेकिन जब वह मिल जाता है तो परिवार वाले हमें इसकी सूचना नहीं देते. इस वजह से लापता होने वाले बच्चों के आंकड़े ज्यादा दिखते हैं. अगर ऐसा नहीं होता, तो लापता बच्चों को खोजने के लिए रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी कई बार अनुरोध किए जाते. महिला, बाल और वरिष्ठ नागरिक मंत्रालय के प्रवक्ता यमलाल भुसाल ने कहा कि उनके पास इस बात का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है कि नेपाल से जो बच्चे लापता हो रहे हैं वे कहां जा रहे हैं या इसके पीछे किसका हाथ है.

भुसाल के मुताबिक, सरकार बच्चों के गायब होने के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए नीतियां और योजनाएं तैयार कर रही है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हम मौजूदा नीतियों की समीक्षा कर रहे हैं और नई नीतियां बना रहे हैं. साथ ही, कई कार्य योजनाएं भी लागू की जा रही हैं, ताकि लापता बच्चों का पता लगाने के लिए अलग-अलग एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल बनाया जा सके.”

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें