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भारत: जितनी दिख रही, उससे कहीं ज्यादा बेरोजगारी

३० अप्रैल २०२२

सिर्फ बेरोजगारी दर के आधार पर भारत में बेरोजगारी की सही तस्वीर नहीं मिल पा रही है. इसलिए अर्थशास्त्री अन्य आंकड़ों के जरिए इसकी भयावह स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं.

सीजन के आधार पर मिलने वाले अस्थायी रोजगारों में अनिश्चितता बनी रहती है.
सीजन के आधार पर मिलने वाले अस्थायी रोजगारों में अनिश्चितता बनी रहती है.तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

भारत में रोजगार की तलाश करने वाले लोगों की संख्या में जबरदस्त गिरावट हुई है. दरअसल भारत में पहले से ही कम लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर दिसंबर, 2021 में और लुढ़ककर 40 फीसदी के खतरनाक आंकड़े पर पहुंच गई. माने न सिर्फ भारत में रोजगार की उम्र वाले लोगों में से आधे से ज्यादा ने अब किसी रोजगार की तलाश ही छोड़ दी है और घर बैठने का निश्चय किया है. बल्कि ऐसा करने वाले लोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं.

अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमईआई) के जारी किए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अर्थव्यवस्था में भाग लेने वाले कामगारों का हिस्सा 2016 के मुकाबले पंद्रह प्रतिशत और कम हो गया है.

लेबर फोर्स को समझना जरूरी

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट को समझने से पहले लेबर फोर्स को समझना जरूरी है. तो 15 साल से अधिक उम्र के ऐसे सभी लोग जो या तो कोई नौकरी कर रहे हैं या फिर करना चाहते हैं, लेबर फोर्स का हिस्सा होते हैं. भारत में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन न सिर्फ दुनिया के औसत से बहुत कम है, बल्कि लगातार गिर भी रहा है.

दुनिया भर में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर करीब 60 फीसदी है, यानी काम करने वाली उम्र के सभी लोगों में 60 फीसदी या तो काम कर रहे हैं या फिर काम ढूंढ़ रहे हैं. जबकि भारत में पिछले दस सालों में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर गिरते-गिरते दिसंबर, 2021 में 40 फीसदी पर जा पहुंची है. जबकि पांच साल पहले यह 47 फीसदी थी. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर में इस भयंकर गिरावट के चलते बेरोजगारी दर, रोजगार के क्षेत्र में खलबली की गलत तस्वीर पेश कर रही है.

बेरोजगारी दर से नहीं मिल रही सही तस्वीर

दरअसल बेरोजगारी दर को लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन के आधार पर मापा जाता है. मसलन अगर रोजगार कर सकने की उम्र के 100 लोग हों लेकिन उनमें से सिर्फ 60 ही काम करना चाहते हों तो लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर 60 फीसदी हो जाएगी. और अगर इन 60 में से 6 को काम न मिले तो बेरोजगारी दर 10 फीसदी मानी जाएगी.

अब सोचिए कि लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट गिरकर 40 फीसदी हो जाए यानी देश में रोजगार की उम्र वाले सिर्फ 40 फीसदी लोग ही रोजगार में लगे हों या रोजगार करना चाहते हों. और इन 40 में से 4 को काम न मिले. तब भी बेरोजगारी दर 10 फीसदी ही रहेगी. जिससे ऐसा लगेगा कि नौकरियों के मोर्चे पर कोई खास समस्या नहीं है. लेकिन सच इससे कहीं खतरनाक होगा. यूं तो अब छह के बदले सिर्फ चार ही लोग बेरोजगार हैं, लेकिन उनके अलावा 20 लोग ऐसे भी होंगे, जो काम की तलाश ही छोड़ चुके होंगे. ऐसा तब होता है, जब रोजगार वाली उम्र के लोग काम की तलाश कर-करके ऊब चुके होते हैं.

सीजन के आधार पर मिलने वाले अस्थायी रोजगारों में अनिश्चितता बनी रहती है.तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

रोजगार दर जैसे आंकड़ों का इस्तेमाल

भारत में ऐसा ही हो रहा है. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन गिरता दिख रहा है. लेकिन ये बात नजरअंदाज हो जा रही है कि जब लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन गिरता है, तो बेरोजगारी दर कम होती है क्योंकि कम लोग ही नौकरियों की मांग कर रहे होते हैं, जिससे नीति निर्माताओं के सामने स्थिति की गलत तस्वीर बनती है.

भारत में लेबर फोर्स पॉर्टिसिशिपेसन रेट में जितनी तेज गिरावट आ रही है, ऐसे में रोजगार दर जैसे कुछ अन्य तरीकों का इस्तेमाल कर भारत में रोजगार की स्थिति का अनुमान लगाना होगा. रोजगार दर, काम कर सकने योग्य जनसंख्या में से रोजगार में लगे लोगों का आंकड़ा दिखाती है. जिससे समझ आता है कि कितने लोग पूरी तरह से रोजगार से बाहर हैं.

बेरोजगारी का असर अर्थव्यवस्था के हर पैमाने पर दिखता है.तस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance

आंकड़ों से कहीं ज्यादा बेरोजगारी

इसके लिए नौकरी करने वाली उम्र की कुल जनसंख्या को आधार मानें और उनके मुकाबले नौकरी में लगे लोगों को गिनें तो हमें रोजगार दर की जानकारी मिलती है. रोजगार दर हमें लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट में आई गिरावट की ज्यादा सही तस्वीर दिखाती है और श्रम बाजार में मची खलबली का ज्यादा अच्छा अंदाजा देती है. आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में रोजगार कर सकने वाली जनसंख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही हैं, जबकि ऐसे लोग लगातार कम होते जा रहे हैं, जो किसी नौकरी में लगे हैं.

सीधे आंकड़ों की बात करें तो तस्वीर एकदम साफ हो जाएगी. दिसंबर, 2021 में भारत में रोजगार की उम्र के लोगों की संख्या करीब 108 करोड़ थी. जिसमें से करीब 40 करोड़ यानी 37.5 फीसदी नौकरियों में लगे हुए थे. इसकी तुलना दिसंबर, 2016 के आंकड़ों से करें तो तब भारत में रोजगार के उम्र की लोगों की संख्या करीब 96 करोड़ थी, जिसमें से 41 करोड़ से ज्यादा यानी करीब 43 फीसदी लोग नौकरियों में लगे हुए थे. यानि पिछले पांच सालों में 12 करोड़ से ज्यादा नए लोग नौकरियां कर सकने की उम्र सीमा में आ गए लेकिन इसी दौरान देशभर में नौकरी कर रहे कुल लोगों की संख्या 80 लाख कम हो गई. मतलब ये हुआ कि बेरोजगारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा रही.

महिलाओं की भागीदारी

भारत का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट इतना कम होने के पीछे बड़ी वजह महिलाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट बहुत कम होना है. सीएमआईई के डाटा के मुताबिक दिसंबर, 2021 में पुरुषों का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट जब 67 फीसदी था, तब महिलाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 10 फीसदी से भी कम था. सीधे-सीधे कहें तो काम करने की उम्र वाली 10 महिलाओं में से सिर्फ 1 ही काम कर रही थी या काम की तलाश में थी. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों की मानें तो भारत में महिलाओं की लेबर फोर्स में हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी है, जबकि इस मामले में दुनिया का औसत करीब 47 फीसदी है.

ऐसी कई वजहें हैं, जिनके चलते महिलाओं में नौकरी की चाह कम हो जाती है. कानून-व्यवस्था, सार्वजनिक यातायात, महिलाओं के प्रति हिंसा, सामाजिक रूढ़ियां महिलाओं के काम न ढूंढ़ने के मामले में अहम रोल निभाते हैं.

पंजाब में गेहूं काटती महिलाएंतस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

महिलाओं की रोजगार की चाह कम क्यों?

साथ ही अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान की अनदेखी भी इसकी वजह है. अर्थशास्त्री मानते हैं कि भारत में अब भी महिलाओं के श्रम की सटीक माप नहीं की जा सकी है क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय महिलाएं अपनी इच्छा से घरेलू रोजगारों में बिना किसी मेहनताने के लगी हुई हैं.

एक मसला ये भी है कि महिलाओं के लायक रोजगार और उसके लिए परिस्थितियों का बेहद अभाव है. जानकार ये भी बताते हैं कि साल 2016 के बाद से लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन में आई कमी से ज्यादातर ऐसे घर प्रभावित हुए हैं, जहां एक से ज्यादा लोग नौकरी करते थे. ऐसे घरों में नौकरी में लगे किसी न किसी शख्स की नौकरी जरूर गई है.

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