गुलाम रसूल गलवान ने गलवान घाटी की खोज की थी, अंग्रेजों ने उन्हीं के नाम पर इस घाटी का नाम रखा था. उनके पोते का कहना है कि 1962 में भी चीन ने घाटी पर कब्जा करने की कोशिश की थी.
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लद्दाख की गलवान घाटी, जहां एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा है, उसका गलवान परिवार के साथ संबंध गहरा और भावनात्मक है. इस घाटी का नाम एक स्थानीय एक्सप्लोरर गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा स्थिति के बारे में बात करते हुए उनके पोते मोहम्मद अमीन गलवान ने कहा कि वह उन जवानों को सलाम करते हैं, जिन्होंने चीनी सैनिकों के साथ लड़ते हुए जीवन का बलिदान दिया. मोहम्मद गलवान कहते हैं, "युद्ध विनाश लाता है, आशा है कि एलएसी पर विवाद शांति से हल हो जाएगा."
परिवार के साथ घाटी के गहरे संबंध को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उनके दादा पहले इंसान थे जो इस गलवान घाटी में ट्रैकिंग करते हुए अक्साई चीन क्षेत्र में पहुंचे थे. उन्होंने 1895 में अंग्रेजों के साथ इस घाटी में ट्रैकिंग की थी. मोहम्मद गलवान के मुताबिक, "अक्साई चीन जाने के दौरान रास्ते में मौसम खराब हो गया और ब्रिटिश टीम को बचाना मुश्किल हो गया. मौत उनकी आंखों के सामने थी. हालांकि फिर रसूल गलवान ने टीम को मंजिल तक पहुंचाया. उनके इस काम से ब्रिटिश काफी खुश हुए और उन्होंने उनसे पुरस्कार मांगने के लिए कहा, फिर उन्होंने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए बस इस नाले का नामकरण मेरे नाम पर कर दिया जाए."
मोहम्मद गलवान कहते हैं कि यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस पर कब्जा करने की कोशिश की है, बल्कि अतीत में ऐसे प्रयास भारतीय सैनिकों द्वारा निरस्त किए गए थे. उनके मुताबिक, "चीन की नजर 1962 से घाटी पर थी, लेकिन हमारे सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया, अब फिर वे ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं, दुर्भाग्य से हमारे कुछ जवान शहीद हो गए, हम उन्हें सलाम करते हैं."
गलवान के पोते कहते हैं कि एलएसी में विवाद अच्छा संकेत नहीं है और सबसे अच्छी बात यह होगी कि मुद्दों को शांति से हल किया जाए.
आईएएनएस
भारत-चीन के बीच हिंसक टकराव कब कब हुआ
1962 के बाद पहली बार भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए. इसके पहले भी दोनों सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
लद्दाख (2020)
अप्रैल महीने से ही लद्दाख में चीन और भारतीय सेना की हलचल बढ़ गई थी. चीनी सेना की भारतीय क्षेत्र में हस्तक्षेप बढ़ने और गश्त बढ़ने के बाद भारत ने ऐतराज जताया और सैन्य स्तर पर भी बातचीत चल रही थी. लेकिन 15 जून को गलवान घाटी में जो हुआ शायद ही किसी ने इसके बारे में सोचा होगा. एलएसी पर खूनी संघर्ष के बाद 20 भारतीय सैनिक मारे गए और कुछ जख्मी हो गए.
तस्वीर: Reuters/PLANET LABS INC
डोकलाम (2017)
2017 की गर्मियों में चीन की सेना ने डोकलाम के पास सड़क निर्माण की कोशिश की. यह वह इलाका है जिसपर भूटान और चीन दावा पेश करता आया है. इसलिए भारतीय सेना ने विवादित क्षेत्र का हवाला देते हुए सड़क निर्माण का कार्य रुकवा दिया था. 28 अगस्त को दोनों देशों की सेना के पीछे हटने के बाद इस संकट का समाधान हुआ. यह गतिरोध 72 दिनों तक बना रहा.
अरुणाचल (1987)
जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश को 1986 में राज्य का दर्जा दे दिया तब चीनी सरकार ने इसका विरोध किया. चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पार की और समदोरांग चू घाटी में दाखिल होने के बाद हेलीपैड निर्माण शुरू कर दिया. भारतीय सेना ने इसका विरोध किया. दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध शुरू हो गया.
तस्वीर: Prabhakar Mani
1975 का हमला
1967 के युद्ध के बाद एक बार फिर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं थी. 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया था. असम राइफल्स के जवान गश्त लगा रहे थे और उसी दौरान उन पर हमला हुआ. हमले में भारत के चार जवानों की मौत हो गई थी.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Wong
नाथु ला और चो ला (1967)
1967 में भारत और चीनी सैनिकों के बीच टकराव दो महीने तक चला. उस दौरान चीनी सैनिकों ने सिक्किम सीमा की तरफ से घुसपैठ कर दी थी. नाथु ला की हिंसक झड़प में 88 भारतीय सैनिकों की मौत हुई वहीं 300 से अधिक चीनी सेना के जवान मारे गए.
तस्वीर: Getty Images
1962 का युद्ध
1962 में चीन और भारत के बीच टकराव बढ़ते हुए युद्ध में तब्दील हो गया. 20 अक्टूबर से लेकर 21 नवंबर तक युद्ध चला और भारतीय सेना के करीब 1,383 जवानों की मौत हुई और चीनी सेना के 722 सैनिक मारे गए.