ठंडे बस्ते में अर्जेंटीना और ब्राजील की साझा करंसी की योजना
अलेक्सांडर बुश
२७ जनवरी २०२३
यह चर्चा गर्म थी कि अर्जेंटीना और ब्राजील यूरो के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुद्रा संघ की योजना बना रहे हैं. हालांकि, मौजूदा बातचीत से पता चलता है कि उनका मुख्य मकसद द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना है.
विज्ञापन
अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में मंगलवार को आयोजित लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन देशों के समुदाय (CELC) के शिखर सम्मेलन से पहले यह बात तेजी से फैली थी कि अर्जेंटीना और ब्राजील एक ऐसी साझा मुद्रा प्रचलन में लाना चाहते हैं, जो दोनों देशों के लिए मान्य हो. इस मुद्रा को कथित तौर पर 'सुर' कहा गया. इस चर्चा की वजह यह थी कि इन दोनों देशों के राष्ट्रपति की राय प्रकाशित हुई थी, जिसमें कहा गया था कि वे इस मामले पर बातचीत फिर शुरू कर रहे हैं.
इस कदम से यूरो के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुद्रा संघ का निर्माण होगा. फिलहाल यूरो दुनिया का सबसे बड़ा मुद्रा संघ है, जो यूरोप के 20 देशों में मान्य है.
दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 13 फीसदी है और लैटिन अमेरिका की 5 फीसदी. ऐसे में इस संभावित मुद्रा संघ की चर्चा पूरे यूरोप के कारोबारी गलियारों में रही. हालांकि, दक्षिण अमेरिका में कोई खास हलचल देखने को नहीं मिली.
करीब 50 साल पहले दोनों देशों में साझा मुद्रा लागू करने की पहल शुरू हुई थी. दोनों देशों के नेताओं ने यह सपना देखा था. हालांकि, अब तक इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है.
किस देश में चुनावों पर होता है सबसे ज्यादा खर्च
लोक सभा चुनाव हों या विधान सभा चुनाव या स्थानीय निकायों के चुनाव, भारत में चुनावों में बेतहाशा खर्च किया जाता है. लेकिन क्या ऐसा सिर्फ भारत में होता है? आइए जानते हैं इस मामले में बाकी दुनिया का हाल.
तस्वीर: Raminder Pal Singh/NurPhoto/imago images
भारत का सबसे महंगा चुनाव
कुछ लोगों का मानना है कि भारत में 2019 में हुए लोक सभा चुनाव देश के इतिहास में सबसे महंगे चुनाव थे. निजी संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक इन चुनावों में 600 अरब रुपये, या उस समय के हिसाब से आठ अरब डॉलर से थोड़ा ज्यादा, खर्च हुए.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
अमेरिका, 2016
स्वतंत्र शोध संस्था सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (सीआरपी) ने अनुमान लगाया है कि अमेरिका में 2016 में हुए चुनावों में लगभग भारत जितना ही, यानी करीब आठ अरब डॉलर, खर्च हुआ.
तस्वीर: Brendan Smialowski/AFP/Getty Images
अमेरिका, 2020
सीआरपी के अनुमान के मुताबिक 2020 में अमेरिका में हुए चुनावों में 16 अरब डॉलर से भी ज्यादा खर्च हुए. यह संभवतः पूरी दुनिया में सबसे महंगे चुनाव थे.
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
अमेरिका, 2022
स्वतंत्र शोध संस्था सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (सीआरपी) ने अनुमान लगाया है कि अमेरिका में 2022 में हुए मध्यावधि चुनावों में करीब नौ अरब डॉलर खर्च हुए हैं. इसमें से जॉर्जिया में सीनेट की सीट के लिए हुआ चुनाव सबसे ज्यादा महंगा रहा. यहां 40 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा खर्च किया गया.
तस्वीर: Oliver Contreras - Pool via CNP/picture alliance
ब्राजील
ब्राजील में 2022 में हुए चुनावों में वहां की स्थानीय मुद्रा रियाइस में 12.6 अरब खर्च हुआ, जो करीब 2.4 अरब डॉलर के बराबर है. अनुमान है कि वोटरों को लुभाने के लिए जो रकम खर्च हुई उसे मिला दें तो यह धनराशि काफी ज्यादा हो जाएगी.
तस्वीर: Andre Penner/AP Photo/picture alliance
ब्रिटेन
इन सबकी तुलना में कई अमीर देशों में चुनावी अभियान पर इतना खर्च नहीं होता. जैसे ब्रिटेन में 2019 में हुए संसदीय चुनावों में अभियान बस महीने भर से थोड़े ज्यादा समय तक चला और उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च पर कड़ा नियंत्रण रखा गया. ब्रिटेन के चुनाव आयोग के मुताबिक 2019 के चुनावों में करीब 5.6 करोड़ पौंड या करीब 6.8 करोड़ डॉलर खर्च हुए.
तस्वीर: Frank Augstein/AP Photo/picture alliance
फ्रांस
फ्रांस में भी चुनावी खर्च पर कड़ा नियंत्रण है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2022 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनावों में सभी उम्मीदवारों ने कुल मिला कर 8.3 करोड़ यूरो या करीब 8.8 करोड़ डॉलर खर्च किए. राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने सबसे ज्यादा, 1.67 करोड़ यूरो, खर्च किए. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Thomas Coex/AFP/Getty Images
7 तस्वीरें1 | 7
साझा मुद्रा की जगह साझा व्यापार इकाई
ब्राजील-अर्जेंटीना के अर्थशास्त्री फैबियो गियाम्बियागी ने नए सिरे से शुरू हुई इस चर्चा की आलोचना की और इसे 'समय की बर्बादी' बताया. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि दोनों देशों की अलग-अलग आर्थिक स्थितियां और अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने से जुड़ी सरकारी विफलताएं, मौजूदा समय में साझा मुद्रा को लागू करने की परियोजना में सबसे बड़ी रुकावट हैं.
जाहिर है कि वह ऐसा सोचने वाले अकेले नहीं थे. मंगलवार को शिखर सम्मेलन में यह स्पष्ट हो गया कि फिलहाल साझा मुद्रा लागू करने की कोई योजना नहीं है. बल्कि, दोनों देश व्यापार को बढ़ावा देने और सुविधाजनक बनाने के लिए एक साझा मूल्य इकाई को विकसित करने पर बातचीत आगे बढ़ाना चाहते हैं. ब्यूनस आयर्स में दोनों राष्ट्राध्यक्षों लूला दा सिल्वा और अल्बर्टो फर्नांदेज ने इस बात की घोषणा की.
इन योजनाओं के तहत दोनों देशों की मुद्राएं, अर्जेंटीना की पेसो और ब्राजील की रियल, अपने अस्तित्व में बनी रहेंगी. साथ ही, आने वाले समय में नई मूल्य इकाई को परिभाषित किया जाएगा. इसका मकसद दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को बढ़ाना और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना है.
ब्राजील: कैसे बदल रहा है दुनिया का सबसे बड़ा कैथोलिक ईसाई देश
ब्राजील दुनिया का सबसे बड़ा कैथोलिक ईसाई देश है, लेकिन अब इवैंजेलिकल संगठन और पेंटेकोस्टल चर्च देश में समाज और यहां तक की राजनीति को भी बदल रहे हैं. जल्द ही ये बहुमत में होंगे.
तस्वीर: Ian Cheibub
ईसा मसीह के लिए संगीत
नोर्मा की मां, नानी और परनानी कैनडॉम्ब्ल धर्म के अनुयायी थे और ओरिक्सा नाम के अफ्रीकी-ब्राजीली देवी देवताओं की आराधना करते थे. नोर्मा खुद 30 सालों तक कैनडॉम्ब्ल मंदिर में पुजारन थीं, लेकिन फिर वह एक पेंटेकोस्टल चर्च में शामिल हो गईं और एक पादरी बन गईं. उनका जीवन कठिन है और उसे जीने के लिए उन्हें अपनी आस्था से शक्ति मिलती है. चर्च में प्रार्थना गीत गाने के लिए वो अपनी नतिनी के साथ रियाज करती हैं.
तस्वीर: Ian Cheibub
अपराध से उपासना तक
हाथ में बाइबल लिए खड़े निलटन परेरा कभी रियो दे जेनेरो के ड्रग माफिया के सदस्य और एक कुख्यात अपराधी थे. लेकिन एक बार ड्रग तस्करी के लिए जेल की सजा भुगतने के बाद वो एक इवैंजेलिकल मिशनरी बन गए. आज वो एक सफाई कर्मी की नौकरी करते हैं और खाली समय में पैस्टर की भूमिका अदा करते हैं.
तस्वीर: Ian Cheibub
मोहावस्था और भूत भगाना
रियो दे जेनेरो के करीब स्थित जीसस क्रिस्टो नाम के मिशनरी चर्च के सदस्यों ने एक किशोर लड़के की बाहें पकड़ी हुई हैं. उन्हें दृढ़ विश्वास है कि इस युवक को एक शैतान ने अपने बस में किया हुआ है. वो भूत भगाने की एक विधि के जरिए लड़के को मुक्त कराना चाहते हैं.
तस्वीर: Ian Cheibub
अमेजॉन में बपतिस्मा
डेविड बेली (बाएं से दूसरे) एक अमेरिकी मिशनरी हैं जो 1970 के दशक में अपने माता पिता के साथ ब्राजील के मूल निवासियों के बीच कैथोलिक ईसाई धर्म का प्रचार करने यहां आए थे. वे अपने लक्ष्य में इतने सफल रहे कि आज एक मूल निवासी पादरी टियागो क्रिकाती (बाईं तरफ) उनके मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं. यह तस्वीर मारनहाओ प्रांत के क्रिकाती इलाके की है जहां वो एक बपतिस्मा समारोह में शामिल हुए हैं.
तस्वीर: Ian Cheibub
संगीत, नृत्य की अहमियत
पीले कपड़े पहने और एक हाथ हवा में उठाए ये किशोर लड़कियां क्रिकाती मूल निवासी इलाके में एक समर्पण समारोह में प्रार्थना कर रही हैं. ब्राजील में 15वां जन्मदिन बहुत विशेष माना जाता है और इस दिन किशोरावस्था से वयस्कता में कदम रखने का जश्न मनाया जाता है. इवैंजेलिकल समूहों ने इस समारोह को अपने रिवाजों में शामिल कर लिया है.
तस्वीर: Ian Cheibub
5 तस्वीरें1 | 5
बिल्कुल अलग पड़ोसी
अर्थशास्त्रियों के लिए इस बात को मानना काफी मुश्किल है कि दोनों देश साझा मुद्रा लागू करेंगे. हालांकि, वे इस बात से थोड़ा इत्तेफाक रखते हैं कि व्यापार के लिए एक साझा मूल्य इकाई को विकसित किया जा सकता है.
मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों के संदर्भ में दोनों देश काफी अलग हैं. ब्राजील में फ्लोटिंग विनिमय दर और स्वतंत्र केंद्रीय बैंक है. वहीं अर्जेंटीना में बजट घाटे को संतुलित करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश पर मुद्रा की छपाई होती है. यही वजह रही कि 2022 में अर्जेंटीना की वार्षिक मुद्रास्फीति दर 95 फीसदी पहुंच गई, जबकि ब्राजील में यह 6 फीसदी से भी कम थी.
ब्राजील का विदेशी मुद्रा भंडार 300 अरब डॉलर से अधिक है. इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर इसकी वित्तीय स्थिति काफी मजबूत है. वहीं अर्जेंटीना पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का 40 अरब डॉलर से अधिक का बकाया है. अगर IMF का सहयोग न मिलता, तो यह देश दिवालिया हो गया होता.
दर्द के निशान को बना दिया सुंदर
जलने, कटने या अन्य किसी वजह से अपने शरीर पर निशान लेकर जीने वाली ब्राजील की महिलाओं के लिए एक अनूठा प्रयास शुरू हुआ है. यह उन्हें निशानों के साथ जीने में ही राहत दिलाने की कोशिश है.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
निशान बने कैनवास
निशान बने कैनवास
ब्राजील के साओ पाउलो की टैटू आर्टिस्ट कार्ला मेंडेस ने 150 से ज्यादा महिलाओं को राहत पहुंचाई है. अपने कौशल से उन्होंने इन महिलाओं के शरीर पर बने निशानों को कलाकृतियों में बदल दिया है.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
हीरे हैं हम
अपने शरीर पर निशान लेकर जीने वाली ब्राजील की महिलाओं के लिए शुरू किए गए इस प्रयास का नाम है – वी आर डायमंड्स. यानी हम हीरे हैं.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
दर्द की यादगार
दर्द की यादगार
इस प्रोजेक्ट के तहत महिलाओं के निशानों को टैटू के जरिए ढक दिया जाता है और वे किसी सुंदर कलाकृति से नजर आते हैं. दर्द की यादगार ये निशान तब राहत में बदल जाते हैं.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
आत्मसम्मान पर असर
कार्ला मेंडेस के स्टूडियो में आने वाली बहुत सी महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं या फिर किसी हादसे अथवा बीमारी के कारण उनके शरीर पर निशान छूट गए. इन निशानों ने उनके आत्मसम्मान को भी प्रभावित किया.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
निशुल्क टैटू
वी आर डायमंड्स प्रोजेक्ट के तहत इन महिलाओं को निशुल्क ये टैटू दिए जाते हैं, बशर्ते वे अपनी कहानी बताने को राजी हों और अपनी तस्वीरें प्रोजेक्ट की वेबसाइट के लिए दें.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
दोबारा मिली जिंदगी
टैटू बनवाने वाली बहुत सी महिलाओं का कहना है कि उन्हें जैसे जिंदगी दोबारा मिल गई है. एक कार हादसे का शिकार हुई लिलियाना ओलीवेरा कहती हैं कि उनकी बाजू का निशान एक खूबसूरत तितली और पत्तियों में बदल गया.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
असीम शांति
ओलीवेरा का टैटू बनने में दस घंटे का समय लगा. इसके बाद उन्हें असीम शांति मिली. समाचार एजेंसी रॉयटर्स को उन्होंने बताया, “यह मुझे जिंदगी में वापस ले आया है. मैं फिर से एक और हो गई.”
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
किसी की मदद हो पाई
टैटू आर्टिस्ट मेंडेस के लिए भी यह शांति की ओर ले जाने वाला एक प्रोजेक्ट है. वह कहती हैं कि इससे उनकी मदद करने की इच्छा पूरी हुई है और वह खुश हैं कि किसी की जिंदगी बदल पाईं.
तस्वीर: Carla Carniel/REUTERS
8 तस्वीरें1 | 8
गलत दिशा में मेहनत करना
अर्जेंटीना का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली है और पूंजी पर सरकार के कठोर नियंत्रण की वजह से देश को डॉलर खरीदने में परेशानी होती है. वहां डॉलर के लिए लगभग दो दर्जन से अधिक विनिमय दरें हैं. ब्लैक मार्केट में डॉलर की कीमत आधिकारिक दर से दोगुनी है.
साथ ही, ब्राजील और अर्जेंटीना के बीच कोई साझा बाजार भी नहीं है. यहां तक कि मुक्त व्यापार क्षेत्र भी नहीं. दक्षिणी साझा बाजार के तौर पर एक स्थानीय मुक्त व्यापार क्षेत्र है, जिसे स्पेनिश नाम मेर्कोसुर के नाम से जाना जाता है. हालांकि, यहां भी कई आयातित उत्पादों पर काफी ज्यादा टैक्स लगता है.
ऐसे हालात में इस नाजुक 'आर्थिक समुदाय' के लिए साझा मुद्रा लागू करने की बात सुनकर यही लगता है कि मेहनत गलत दिशा में करने की कोशिश हो रही है.
अब बड़ा सवाल यह है कि जब आर्थिक स्थितियां इतनी अलग हैं, तो साझा मुद्रा लागू करने की चर्चा क्यों? ब्राजील के राष्ट्रपति लुई इनासियो लूला दा सिल्वा की तरफ से साझा मुद्रा की परियोजना को फिर से चर्चा में लाने का सिर्फ एक कारण है और यह राजनीतिक तर्क पर आधारित है, न कि आर्थिक तर्क पर.
हाल में एक बार फिर से चुनाव जीतकर तीसरी बार राष्ट्रपति बने सिल्वा लैटिन अमेरिका में एकीकरण को बढ़ावा देना चाहते हैं. वह भू-राजनीतिक तौर पर लैटिन अमेरिका की अहमियत बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में एकता कायम करना चाहते हैं. उन्होंने अपने पहले दो कार्यकाल में भी इस दिशा में प्रयास किया है.
तिनके का सहारा
माना जाता है कि साझा मुद्रा से दक्षिण अमेरिका में क्षेत्रीय एकता बढ़ाने के प्रयासों को गति मिल सकती है. ब्राजील के वित्त मंत्री फर्नांडो हद्दाद ने पिछले साल अप्रैल में इस बारे में काफी कुछ कहा था. वहीं आर्थिक संकट से जूझ रही अर्जेंटीना सरकार किसी भी तरह के तिनके के सहारे के लिए खुश है. ब्राजील के साथ जुड़ने से अर्जेंटीना की समस्या कम हो सकती है.
अर्जेंटीना में अक्टूबर में चुनाव है, इसलिए वहां अच्छी खबरों की मांग है. दक्षिण अमेरिका में बड़े पैमाने पर आर्थिक एकीकरण निश्चित रूप से जरूरी है, लेकिन बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं और मुक्त व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाने के बजाय दक्षिण अमेरिकी देश पहले चरण को पूरा करने की जगह सीधे तीसरे चरण पर काम करने की कोशिश कर रहे हैं.
इन तमाम चर्चाओं को लेकर अर्थशास्त्री मोहम्मद ए. अल-अरियन भी संशय में हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "किसी भी देश के पास इसे सफल बनाने और दूसरों को आकर्षित करने के लिए शुरुआती उपाय नहीं हैं."