एक ऐसी इमारत जहां -80 डिग्री पर इंसानी शव संभाले जाएंगे. जिस दिन विज्ञान मृत्यु से जीतेगा उस दिन इन शवों में फिर से जान फूंकने की कोशिश की जाएगी.
विज्ञापन
इंसान हमेशा से मौत से जीतना चाहता है, वह अमर होना चाहता है. अमेरिका में मृत्यु के खिलाफ एक ऐसी ही लड़ाई छेड़ने की तैयार हो रही है. कई सालों की प्लानिंग के बाद अमेरिका के टेक्सस प्रांत में टाइमशिप बिल्डिंग का निर्माण शुरू हो चुका है. खास वास्तु शास्त्र के आधार पर बनाई जा रही इस इमारत में हजारों शवों को बर्फीले तापमान पर जमा कर रखा जाएगा. अगर भविष्य में कभी इंसान मौत के खिलाफ जीत सका तो यहां रखे मुर्दों को फिर से जिंदा करने की कोशिश की जाएगी.
न्यू साइंटिस्ट वेबसाइट ने इस प्रयोग को क्रायोजेनिक्स का केंद्र कहा है. भौतिक विज्ञान में क्रायोजेनिक्स का मतलब होता है कि बेहद निम्न तापमान पर तत्व के उत्पादन और व्यवहार का अध्ययन करना.
इमारत को मशहूर आर्किटेक्ट स्टीफन वैलेंटाइन ने डिजायन किया है. यहां सिर्फ शव ही नहीं रखे जाएंगे बल्कि कोशिकाएं, उत्तक, डीएनए और अंग भी संभाले जाएंगे. वैलेंटाइन के मुताबिक यह पृथ्वी पर ऐसा सबसे बड़ा केंद्र होगा जहां जीवन और क्रायोप्रिजर्वेशन का काम व्यापक स्तर पर होगा. प्रोजेक्ट का मकसद इंसान को ऐसे भविष्य में ले जाना है जहां मौत की जगह चिरयौवन होगा.
जानिये, क्या है मृत्यु का विज्ञान
मृत्यु का विज्ञान
मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है. चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है.
तस्वीर: J. Rogers
विकास से विघटन तक
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है. 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है. 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है.
तस्वीर: colourbox/S. Darsa
भीतर खत्म होता जीवन
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है. जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है. शरीर में लचक कम होती चली जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Murat
कोशिकाओं का बदलता संसार
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं. यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है. उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं.
तस्वीर: Colourbox
बीमारियों का जन्म
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं. हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है. धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warmuth
लापरवाही से बढ़ता खतरा
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है. वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं.
तस्वीर: Imago
शट डाउन
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है. मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है. स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/Klaus Rose
आखिरकार मौत
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है. धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है. ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु या प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं.
तस्वीर: Imago/epd
मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है. शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है.
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen
विघटन शुरू
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है. ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं.
तस्वीर: racamani - Fotolia.com
बच नहीं, सिर्फ टाल सकते हैं
मौत को टालना संभव नहीं है. ये आनी ही है. लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं.
तस्वीर: dapd
10 तस्वीरें1 | 10
क्रायोप्रिर्जेवेशन एक ऐसी प्रणाली है जिसके तहत इंसान और पशुओं के शरीर को बेहद निचले तापमान पर सुरक्षित रखा जाता है. इसमें जैविक सामग्री को माइनस 80 डिग्री से माइनस 196 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जाता है. क्रायोप्रिजर्वेशन से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि भविष्य में विज्ञान मृत्यु से जीत जाएगा और इन शरीरों में फिर से जान फूंकी जा सकेगी.
हालांकि क्रायोनिक्स की आलोचना भी होती है. आलोचकों मुताबिक यह अमीरों का दिमागी फितूर है.