कैरियन प्रजाति के कौवों की समझदारी का एक और प्रमाण मिला है. वे 3 तक गिनती गिन सकते हैं. अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि वे ऐसा इंसान के बच्चों की तरह बोलकर भी कर सकते हैं.
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कैरियन कौवों को ‘पंखों वाले बंदर' कहा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी समझदारी का स्तर काफी कुछ इंसानों जैसा है. वे इंसानों के चेहरे पहचान सकते हैं. बीजों को फोड़ने के लिए वे सड़क पर फेंक देते हैं ताकि कारों के पहियों के नीचे आकर वे खुल जाएं. यहां तक कि वे 3 तक गिनती भी गिन सकते हैं.
अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ये कौवे इंसान के बच्चों की तरह बोल-बोलकर भी गिन सकते हैं. साइंस पत्रिका में छपे एक शोध में बताया गया है कि इन कौवों के गिनने का तरीका इंसानों जैसा है. यानी ऐसा करने वाली यह इंसान के अलावा एकमात्र प्रजाति है.
संख्याएं बोलने की क्षमता
जर्मनी की ट्यूबिंगेन यूनिवर्सिटी में बायोलॉजिस्ट डायना लियाओ और उनके सहयोगियों ने यह शोध किया है. लियाओ के मुताबिक कैरियन प्रजाति के कौवे बहुत हद तक इंसानों जैसे होते हैं. साइंस पत्रिका से बातचीत में लियाओ ने बताया कि कौवों के इसी गुण ने उन्हें शोध करने के लिए प्रेरित किया.
कहां से कहां पहुंच गए कॉकरोच
कहा जाता है कि दुनिया खत्म हो जाएगी लेकिन कॉकरोच खत्म नहीं होंगे. रसोई और बाथरूम की पाइपों में छिपे रहने वाले ये जीव कितनी भी कोशिश कर लो, खत्म नहीं होते. पर ये हमेशा ऐसे छिपकर रहने वाले जीव नहीं थे.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
कहां पैदा हुए कॉकरोच
एक ताजा अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि कॉकरोच कहां पैदा हुए और फिर कैसे पूरी दुनिया में फैल गए. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि कॉकरोच का जन्म दक्षिण पूर्व एशिया में हुआ और वहां से ये पूरी दुनिया में फैल गए.
तस्वीर: Ardea/IMAGO
पूरी दुनिया में कैसे पहुंचे
बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में असिस्टेंट प्रोफेसर स्टीफन रिचर्ड्स बताते हैं कि इंसान के पीछे-पीछे कॉकरोच पूरी दुनिया में पहुंच गए. वह बताते हैं, “यह सिर्फ कॉकरोच की बात नहीं है. यह इंसानियत और कॉकरोच की कहानी है.“
तस्वीर: Ardea/IMAGO
2,100 साल पहले जन्मे
वैज्ञानिकों ने छह महाद्वीपों में 17 देशों के 2,800 कॉकरोच के अध्ययन के बाद पाया कि सबसे ज्यादा पाई जाने वाली प्रजाति जर्मन कॉकरोच संभवतया एशियाई कॉकरोच से 2,100 साल पहले विकसित हुए होंगे.
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सैनिकों के साथ यात्रा
ये कॉकरोच दो मार्गों से पूरी दुनिया में पहुंचे होंगे. करीब 1,200 साल पहले शायद सैनिकों के खाने के सामान के साथ ये मध्य -पूर्व पहुंचे होंगे. वहां से डच और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों के साथ ये 270 साल पहले यूरोप पहुंचे होंगे.
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फिर मिली नई दुनिया
यूरोप पहुंचने के बाद भाप के इंजन और घर के अंदर लगी पानी और सीवेज की पाइपों ने इन्हें एक नई दुनिया दे दी और ये नमी भरी जगहों पर बस गए. आज तक वे सबसे ज्यादा वहीं पाए जाते हैं.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
अब कीटनाशक बनाएंगे
वैज्ञानिक कहते हैं कि कॉकरोच की दुनियाभर की इस यात्रा से इतिहास में पर्यावरण में आए बदलावों के बारे में जानने में मदद मिल सकती है. इससे कीटनाशकों को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
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शोधकर्ता कहते हैं कि इंसानी भाषा की एक विशेष बात यह है कि इंसान किसी भी शब्द को ध्वनि के साथ यानी बोलकर कह सकता है. जैसे कि पांच संतरे देखकर वे इस संख्या को बोलकर बता सकते हैं. लेकिन एकदम पांच तक पहुंचने से पहले इंसान अपने बचपन में एक-एक करके उन्हें गिनता है. जैसे कि वह एक, दो, तीन, चार, पांच करके पांच तक गिनेगा या फिर एक-एक करके.
वैज्ञानिक जानना चाहते थे कि क्या कैरियन कौवे भी ऐसा ही करते हैं. इसके लिए डायना लियाओ और ट्यूबिंगेन यूनिवर्सिटी में उनके सहयोगी, प्राणीविज्ञानी आंद्रियास नीडर ने तीन कौवों पर अध्ययन किया. इन तीनों को यूनिवर्सिटी की ही न्यूरोबायोलॉजी लैब में पाला-पोसा गया है.
कैसे सिखाया गया?
वैज्ञानिकों ने इन कौवों को अरबी गिनती को एक से चार तक पढ़ना सिखाया. हर अंक पर उन्हें आवाज निकालनी होती थी. इसके लिए गिटार और ड्रम जैसी आवाजों का इस्तेमाल किया गया. मसलन, गिटार की धुन पर वे एक बोलते और ड्रम की धुन पर तीन.
गिनती पूरी करने के बाद इन कौवों को स्क्रीन पर अपनी चोंच से एक बटन को दबाना होता था. जो कौवे सही अंक पढ़ते, उन्हें खाने में एक कीट मिलता था.
कुत्ते की पूंछ इतना डांस क्यों करती है
हम सोचते हैं, कुत्ता पूंछ हिलाकर खुशी जाहिर करता है. लेकिन कुत्ता तो अक्सर बहुत तेज-तेज पूंछ हिलाता है, तो क्या इसका मतलब हुआ कि उसकी खुशी भी इसी अनुपात में होती है? कुत्तों के इस "पूंछ डांस" की पहेली आखिर है क्या?
तस्वीर: Nataliya Nazarova/Zoonar via picture alliance
खुश कुत्ते की तस्वीर
मान लीजिए, आपके साथ एक कुत्ता रहता है. उसके साथ आपका राब्ता यूं है कि आप उसके इंसान, वो आपका कुत्ता. आप बड़ी देर बाद घर लौटते हैं, आहट पहचानकर कुत्ता पहले ही दरवाजे पर खड़ा है और कूदकर आपसे लिपट गया है. वो आपको देखकर बहुत खुश हुआ, इसका सबसे मजबूत संकेत देती है एक लय में डोलती उसकी पूंछ.
तस्वीर: David Becker/Zumapress/picture alliance
पूंछ की लय
पूंछ के हिलने की अपनी एक लय होती है. कभी कुत्ता सिर को एक तरफ झुकाकर पूंछ हिलाता है, तो कभी पीछे के हिस्से को थोड़ा सा टेढ़ा कर लेता है. पूंछ के हिलने की दिशा के आधार पर भी कुत्ते की भावना मापी जाती है. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर कुत्ता दाहिनी ओर पूंछ हिला रहा है, मतलब अच्छा महसूस कर रहा है. वहीं बाईं ओर पूंछ हिलाने का मतलब यह समझा जाता है कि वो डर या तनाव में है, पीछे हटना चाहता है.
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कुत्ते पूंछ हिलाते क्यों हैं?
एक हाइड्रोजन एटम, एक ऑक्सीजन एटम, मिलकर बना हाइड्रॉक्सिल आयॉन. कुत्ते का पूंछ हिलाना कैमेस्ट्री इक्वेशन की तरह स्पष्ट नहीं है. वैज्ञानिक अब भी इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन एक हालिया स्टडी में शोधकर्ताओं ने इसके कुछ अनुमान बताए हैं. इसके मुताबिक, बात इतनी नपी-तुली नहीं कि हिलती पूंछ माने कुत्ता खुश. बायोलॉजी लेटर्स में छपे इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पहले हुए शोधों को भी खंगाला है.
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पालतू बनाए जाने का विकासक्रम
माना जाता है कि कुत्तों को पालतू बनाने की शुरुआत 15,000 से 50,000 साल पहले हुई. दुनिया में जहां कहीं भी इंसान रहते हैं, वहां कुत्ते भी पाए जाते हैं. यानी इंसानों का हजारों साल से कुत्तों के साथ सीधा रिश्ता है. ऐसे में मुमकिन है कि पूंछ हिलाना, कुत्ते के लिए संवाद का एक तरीका है. पूंछ सीधी है कि मुड़ी हुई, वो हिल रही है कि नहीं, ये इंसान को समझ आने वाले सबसे जाहिर संकेत हैं.
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इंसानों के साथ जुड़ाव का नतीजा
पूंछ हिलाने का संबंध डोमेस्टिकेशन प्रोसेस से हो सकता है. कुछ पुराने शोध भी बताते हैं कि कुत्तों को पालतू बनाने के क्रम में इंसानों ने उनसे खास बर्ताव की उम्मीद की होगी. जैसे कि उन्हें वश में करना, आज्ञाकारी बनाना. मुमकिन है इसी वजह से कुत्तों में ये आदत बनी हो और आनुवांशिक याददाश्त के कारण उनके भीतर अब भी वही गुण मौजूद हो.
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लय के लिए हमारा खिंचाव
शोध के लेखकों का अनुमान है कि कुत्तों को पालतू बनाने के दौरान जाने-अनजाने इंसानों ने उनके पूंछ हिलाने को सराहा हो. क्योंकि हम इंसान ऐसी लयबद्ध हरकतों से आकर्षित होते हैं, हमें ऐसी अभिव्यक्तियां भाती हैं.
तस्वीर: Przemyslaw Iciak/Zoonar/picture alliance
भौंकना बनाम पूंछ हिलाना
कुत्ते का बड़ी देर तक भौंकते रहना या उसकी लगातार नाचती दुम, आपको दोनों में से क्या ज्यादा पसंद है? कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि शायद पालतू कुत्तों ने भी इंसानी वरीयताओं के मुताबिक खुद को ढालते हुए ये आदत विकसित हो. भौंकने की आवाज से इंसान नाराज होता हो, कुत्ते को चुप कराता हो और मुमकिन है कि कुत्तों ने ये भांपकर इंसानी पसंद के हिसाब से संवाद-संकेत का अलग तरीका विकसित किया हो.
तस्वीर: EDUARDO MUNOZ/REUTERS
हम सिर्फ बोलकर तो नहीं बात करते
इंसान के पास अभिव्यक्ति के लिए भाषा की गुंजाइश है. हम लिख सकते हैं, बोल सकते हैं, हमारे पास सैकड़ों भाषाओं के विकल्प हैं. तकरीबन हर दुनियावी चीज और भाव को समझने-समझाने के लिए खास शब्द हैं. तब भी हम सिर्फ बोलकर नहीं बात करते. हाथ हिलाते हैं, पुतलियां नचाते हैं. ये भी अभिव्यक्ति के संकेत हैं. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि कुत्ता भी पूंछ हिलाकर भाव जाहिर करता है, जिसे हम आसानी से समझ लेते हैं.
तस्वीर: James Speakman/empics/picture alliance
जानवरों के खुश होने का तरीका
हमारी तरह जानवर भी कई भाव महसूस करते हैं. जैसे दर्द, डर, भूख, सेक्स की चाह. लेकिन जानवर के लिए खुशी का क्या मतलब है, इसे हम अक्सर अपने दायरे में बांध देते हैं. उनकी भावना का इंसानीकरण करने लगते हैं. मुमकिन है कि इससे जानवरों के प्रति करुणा पैदा होती हो, लेकिन वैज्ञानिक नजरिये से "एनिमल हैपीनेस" की कोई ठोस परिभाषा नहीं है.
तस्वीर: Bastien Chill/IMAGO
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एक हजार बार परीक्षण के बाद कौवों ने आमतौर पर सही गिनती गिनना सीख लिया. लियाओ कहती हैं कि यह इस बात का संकेत था कि वे काम को समझ गए थे. हालांकि तीन या चार तक पहुंचने में वे गलतियां करने लगे थे.
लियाओ बताती हैं, "उन्हें नंबर एक तो बहुत पसंद था लेकिन चार उन्हें कतई पसंद नहीं था.” कई बार तो अंक 4 के प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर करने के लिए उन्होंने आवाज निकालने के बजाय स्क्रीन पर चोंच मारकर परीक्षण बंद करने का भी इशारा किया.
शोधकर्ता कहते हैं कि यह अध्ययन इस बात को भी पुख्ता करता है कि कुछ पक्षी जानकारियां साझा करने के लिए आवाजों का इस्तेमाल करते हैं.