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पानी को तरसता पाकिस्तान का ग्वादर कैसे बनेगा दुबई?

११ मई २०१८

पाकिस्तान के अधिकारी बरसों से ख्वाब देख रहे हैं कि कभी सिर्फ मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले ग्वादर को दुबई की तरह ड्यूटी फ्री पोर्ट और फ्री इकोनोमिक जोन बनाया जाए. क्या अब उनका यह सपना पूरा होगा?

Pakistan Erdbeben in Pakistan Insel in der Arabischen See
तस्वीर: Reuters

ग्वादर अरब सागर में रणनीतिक रूप से अहम लोकेशन पर है, जहां से ईरान और फारस की खाड़ी बहुत करीब हैं. पाकिस्तानी अधिकारी इसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना के तहत एक क्षेत्रीय व्यावसायिक, औद्योगिक और शिप हब बनाना चाहते हैं. इस कोरिडोर के जरिए चीन को पाकिस्तान के रास्ते मध्य और पूर्व और अन्य इलाकों तक जुड़ने का छोटा और सुरक्षित व्यापारिक रूट मिलेगा. दूसरी तरफ पाकिस्तान को उम्मीद है कि इससे उसकी अपनी अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.

ग्वादर जब दुबई बनेगा तो देखा जाएगा, लेकिन अभी तो धूल से सराबोर यह इलाका पानी के लिए तरस रहा है. स्थानीय पत्रकार साजिद बलोच कहते हैं, "पिछले तीन साल से यहां बारिश नहीं हुई है." बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार के तहत चलने वाले ग्वादर विकास प्राधिकरण में काम करने वाले अब्दुल रहीम कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन ग्वादर की प्यास को और बढ़ा रहा है. उनका कहना है, "मैं कहूंगा कि जलवायु परिवर्तन की वजह बारिश होनी बंद हो गई हैं- पहले यहां हर सीजन में खूब बारिश हुआ करती थी. लेकिन अब ग्वादर में पानी का संकट पैदा हो रहा है. अब यहां ताजा पानी नहीं बचा है."

पास ही में अकरा कौर जल भंडार है जो दो साल से सूखा पड़ा है. रहीम कहते हैं कि इस जलभंडार में अब काफी दूर स्थित स्रोतों से पानी लाया जाएगा. उनके मुताबिक जो पानी लाया जा रहा है, उसमें कुछ दूषित भी है जिससे पानी जनित हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. रहीम कहते हैं कि भूजल को भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि जमीन के नीचे मौजूद पानी भी खारा हो चुका है.

ग्वादर पोर्ट से जुड़ी परियोजना का पहला चरण पूरा हो गया है और अब वहां लगभग एक लाख लोग रहते हैं. वहां विकास इसी रफ्तार से जारी रहा तो 2020 तक वहां की आबादी बढ़ कर पांच लाख हो जाएगी. ऐसा पोर्ट अथॉरिटी की वेबसाइट पर कहा गया है. ग्वादर प्रायद्वीप की एक तरफ गहरे समंदर वाला पोर्ट है जिसे चीनी सरकारी कंपनी चाइन ओवरसीज होल्डिंग कंपनी विकसित कर रही है, जबकि दूसरी तरफ स्थानीय हार्बर है.

ग्वादर में व्यापारिक गतिविधियां शुरू होने से उसे सिर्फ मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में कोई ज्यादा फायदा नजर नहीं आता. हार्बर के पास रहने वाले एक मछुआरे रसूल बख्श का कहना है, "हम लोग प्यास से मर रहे हैं. हमारे अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं. बिजली आती जाती रहती है. हर जगह कूड़ा पड़ा है, उसे उठाने वाला कोई नहीं है. पहले इन सब समस्याओं को दूर करिए, उसके बाद इसे दुबई बनाने का सपना देखिए."

बख्श का कहना है कि इलाके के ज्यादातर लोग टैंकर से पानी लेते हैं जो मिरानी बांध से ढाई घंटे का सफर तय करके यहां पहुंचता है. लेकिन बख्श कहते हैं कि टैंकर महीने में सिर्फ एक या दो बार ही आता है और पानी की किल्लत बहुत बढ़ गई है. प्रांतीय योजना और विकास सचिव मोहम्मद अली कक्कड़ ने दिसंबर में एक सरकारी समिति को बताया था कि ग्वादर शहर में हर दिन कुल 65 लाख गैलन पानी की जरूरत है जबकि टैंकरों से सिर्फ 20 लाख गैलन पानी की ही आपूर्ति हो रही है.

पानी की किल्लत से निपटने के लिए चीनी विशेषज्ञों की मदद से ग्वादर में खारे पानी को मीठे पानी में बदलने के दो प्लांट लगाए गए हैं. इनमें छोटा वाला प्लांट प्रति दिन पोर्ट को दो लाख गैलन पानी मुहैया करा सकता है जबकि बड़ा वाला प्लांट इसका दुगना पानी मुहैया करा पाएगा. हाल ही में बड़े प्लांट का काम पूरा हुआ है. लेकिन ग्वादर विकास प्राधिकरण के महानिदेशक सज्जाद बलोच कहते हैं कि ये दोनों प्लांट जेनरेटर की बिजली पर निर्भर हैं क्योंकि इन्हें चलाने के लिए ग्वादर में पर्याप्त पावर ग्रिड नहीं हैं. कुछ मछुआरों का कहना है कि वे अब पोर्ट से पीने का साफ पानी खरीद रहे हैं और तीन लीटर की कैन के लिए उन्हें 50 पाकिस्तानी रुपये देने पड़ रहे हैं.

एके/एमजे (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)

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