पहली बारः खत्म हो गया परीक्षण में शामिल सारे मरीजों का कैंसर
८ जून २०२२
अमेरिका में एक प्रयोग में शामिल हुए एक दर्जन से ज्यादा मरीजों का कैंसर ठीक होने को वैज्ञानिकों ने अद्भुत नतीजा बताया है. ये मरीज एक छोटी क्लिनिकल ट्रायल का हिस्सा थे.
विज्ञापन
न्यूयॉर्क के मेमॉरियल सलोन केटरिंग (एमएसके) कैंसर सेंटर की एक क्लिनिकल ट्रायल में शामिल हुए गुदा कैंसर के मरीजों का कैंसर पूरी तरह ठीक हो गया. सेंटर ने बताया कि इन मरीजों को एक प्रायोगिक दवा डोस्टरलाइमैब दी गई थी. रविवार को यह अध्ययन न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ था.
सबका कैंसर ठीक हुआ
प्रकाशित अध्ययन में गुदा कैंसर से पीड़ित रहे 12 मरीजों का ब्यौरा दिया गया है. अध्ययन के मुताबिक मरीजों को हर तीन हफ्ते पर डोस्टरलाइमैब दी गई. यह प्रयोग छह महीने तक चला. प्रयोग के दौरान डॉक्टर यह मानकर चल रहे थे कि मरीजों को इसके बाद कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और सर्जरी आदि जैसे पारंपरिक इलाज कराने होंगे.
लेकिन छह महीने बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रयोग में शामिल सभी मरीजों का कैंसर ठीक हो गया था. ऐसा पहली बार है जबकि किसी परीक्षण में सभी कैंसर के मरीजों को सकारात्मक नतीजे मिले हैं. इसलिए वैज्ञानिकोंके बीच इस दवा को लेकर खासा उत्साह है और वे इसे दिशा बदलने वाला प्रयोग मान रहे हैं.
मेमॉरियल सलोन केटरिंग सेंटर के डॉ. लुईस डियाज जूनियर ने न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें किसी और ऐसे अध्ययन की जानकारी नहीं है जिसमें हर मरीज का कैंसर ठीक हो गया हो. उन्होंने कहा, "मेरे विचार में कैंसर के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है."
विज्ञापन
इम्यूनोथेरेपी
यह प्रयोग इम्यूनोथेरेपी पर आधारित था. इम्यूनोथेरेपी में ऐसी दवाएं दी जाती हैं जिनका काम शरीर की रोगों से लड़ने वाली क्षमता को बढ़ाना होता है ताकि शरीर इतना ताकतवर हो जाए कि कैंसर को ठीक कर सके. एमएसके ने एक बयान में कहा कि प्रयोग में गुदा के कैंसर से पीड़ित ऐसे मरीजों को शामिल किया गया था जिनमें एक खास तरह का कैंसर म्यूटेशन था.
ऐसे गुदा कैंसर को "मिसमैच रिपेयर डेफिशिएंट" (MMRd) रेक्टल कैंसर कहा जाता है. इस तरह के कैंसर में कीमोथेरेपी का ज्यादा असर नहीं होता है. परीक्षण के दौरान शोधकर्ता देखना चाहते थे कि क्या सिर्फ इम्यूनोथेरेपी से ऐसे कैंसर को ठीक किया जा सकता है, जो अन्य उत्तकों और अंगों में ना फैला हो.
इच्छामृत्यु को वैध बनाने वाला दुनिया का पहला देश
ठीक 20 साल पहले एक अप्रैल 2002 को नीदरलैंड्स ने इच्छामृत्यु को कानूनी वैधता दी. ऐसा करने वाला नीदरलैंड्स दुनिया का पहला देश था. आज भी कई देश ऐसे हैं जहां इच्छामृत्यु गैरकानूनी माना जाता है.
तस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance
नीदरलैंड्स
दुनिया के जिन मुठ्ठी भर देशों में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता मिली है उनमें नीदरलैंड्स का नाम प्रमुखता से आता है. कानूनी मान्यता देने वाला विश्व के सभी देशों में नीदरलैंड्स पहला था. यहां सन 2002 से ही इसे वैधता मिली.
तस्वीर: Roos Koole/ANP/picture alliance
बेल्जियम
नीदरलैंड्स के अलावा बेल्जियम दूसरा ऐसा देश है जहां गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी बहुत कड़ी शर्तों के साथ अपनी जान देने की कानूनी अनुमति है. हालांकि शर्तों का ठीक से पालन ना करने पर मरने में मदद करने वाले को एक से तीन साल की जेल हो सकती है.
तस्वीर: Yves Logghe/AP Photo/picture alliance
ऑस्ट्रेलिया
विक्टोरिया यहां का पहला राज्य है जहां जून 2019 में इच्छामृत्यु का कानून लागू हुआ है. यह सिर्फ उन लोगों पर लागू है जो जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और उनका दिमाग ठीक काम कर रहा हो. साथ ही जिनके जीवन के अब सिर्फ छह महीने बाकी हों. उम्मीद है कि इसके बाद क्वीन्सलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया राज्यों में भी ऐसे कानून पास किए जा सकते हैं.
तस्वीर: Sam Mooy/dpa/picture-alliance
कोलंबिया
2015 में यूथेनेसिया को मान्यता देने वाला कोलंबिया विश्व का चौथा देश बना. हालांकि कोलंबिया की संवैधानिक अदालत ने 1997 में ही इसके पक्ष में फैसला सुनाया था लेकिन डॉक्टर ऐसा करना नहीं चाहते थे. कारण था देश का एक और कानून जिसमें दया-मृत्यु के लिए छह महीने से तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान था.
तस्वीर: Helmut Fohringer/APA/picture alliance
स्विट्जरलैंड
अब तक कई देश इसे कानूनी मान्यता दे चुके हैं लेकिन स्विट्जरलैंड इकलौता देश है जहां जाकर कोई विदेशी भी कानूनी रूप से यूथेनेसिया कर सकता है. अगर मरीज चाहता हो तो मेडिकल मदद देकर किसी के प्राण लेना यहां अपराध नहीं है. तस्वीर में हैं यूथेनेसिया के मशहूर समर्थक वैज्ञानिक डेविड गुडबॉल.
तस्वीर: Alessandro della Bella/dpa/picture-alliance
लक्जमबर्ग
सन 2008 में यूथेनेसिया और मेडिकल मदद से जान देने को यहां भी वैधता मिली. गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए यह एक कानूनी विकल्प बन गया. इसके लिए मरीज को बार बार मांग करनी होती है और कम से कम दो डॉक्टर और एक मेडिकल पैनल से इसके पक्ष में दी गई सलाह लिखित रूप से जमा करानी होती है.
तस्वीर: Jm Niester/dpa/picture-alliance
जर्मनी
सन 2017 में जर्मनी में एक यादगार कदम उठाते हुए कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों को दवा लेकर इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी. मार्च 2017 से एक साल के भीतर इस तरह की मौत चाहने वालों के करीब 108 मरीजों ने आवेदन जमा किया. जिनमें से कइयों ने यूथेनेसिया ड्रग लेकर जान दे भी दी है.
तस्वीर: photothek/picture alliance
अमेरिका
कुछ अमेरिकी राज्यों जैसे ऑरेगन प्रांत में 1997 से इच्छामृत्यु वैध है. बाद में कैलिफोर्निया में भी इसे मान्यता मिल गई. खुदकुशी के इच्छुक व्यक्ति को डॉक्टर दवा देते हैं, जिसे कॉकटेल कहा जाता है. इसे लेते ही मरीज सो जाता है और आधे घंटे के भीतर उसकी मौत हो जाती है.
तस्वीर: Russell Contreras/AP Photo/picture alliance
कनाडा
कनाडा के क्यूबेक प्रांत ने जून 2014 में एक ऐसा कानून अपनाया जो गंभीर रूप से बीमार मरीजों को डॉक्टर की मदद से अपने प्राण त्यागने का अधिकार देता है. यह देश का पहला ऐसा प्रांत बना, जहां प्रभावी ढंग से आत्महत्या में मदद को वैध बनाया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Jensen
भारत
भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने 2018 में "पैसिव यूथेनेसिया" के पक्ष में फैसला सुनाया. इसमें धीरे धीरे मरीज को लाइफ सपोर्ट से हटाया जाता है. कोर्ट ने कहा कि कुछ शर्तों के साथ हर व्यक्ति को गरिमामय मौत पाने का अधिकार है लेकिन इसके लिए व्यक्ति को स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्थिति में यह वसीयत करनी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Solanki
10 तस्वीरें1 | 10
अध्ययन कहता है कि प्रयोग अभी चल रहा है लेकिन जिन 14 मरीजों को दवा दी गई, उन सभी का ट्यूमर खत्म हो गया और किसी पर भी कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं देखा गया. शोधकर्ताओं ने कहा कि किसी भी मरीज को रेडिएशन, सर्जरी या कीमोथेरेपी आदि की जरूरत नहीं है और दो साल से ये मरीज बिल्कुल ठीक हैं. किसी भी मरीज का कैंसर लौटा नहीं है.
शोध में शामिल एमसके की डॉ. ऐंड्रिया केरचक कहती हैं, "मरीजों से ये खुशियों से भरे संदेश और ईमेल पाना अविश्वसनीय रूप से प्रसन्नता देने वाला है. मरीजों को अहसास हो रहा है कि वे अपनी सभी शारीरिक क्रियाएं सामान्य रूप से कर पाएंगे, जो रेडिएशन थेरेपी से संभव ना होता."
रिपोर्टः विवेक कुमार
कहां कहां महिलाएं करवा सकती हैं अपने अंडाणु फ्रीज
अपने शरीर से जुड़े निर्णय लेना दुनिया की आधी आबादी से लिए आज भी आसान नहीं. हाल में एक ट्यूनीशियाई गायिका ने अपने अंडाणु फ्रीज करवाने के फैसला लिया तो तीखी बहस छिड़ गई. जानिए अंडाणु फ्रीज कराने के नियम कैसे हैं.
तस्वीर: Sonia Phalnikar/DW
क्या है ऐग फ्रीजिंग
महिलाओं के अंडाणु फ्रीज करने की तकनीक 80 के दशक में ही आ गई थी. लेकिन अब केवल बीमारी या इनफर्टिलिटी जैसी वजहों से ही नहीं, बल्कि पढ़ाई, करियर जैसे कारणों से भी महिलाएं अपने अंडाणु फ्रीज करवा रही हैं ताकि बड़ी उम्र में भी उनके मां बनने की संभावना बनी रहे.
तस्वीर: picture-alliance/BSIP/L. Souci
ट्यूनीशिया में बहस
31 साल की एक गायिका नर्मीन सफार ने कहा कि वह अपने अंडाणु फ्रीज करवाएंगी. नर्मीन सफार की अपील से देश में महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर तीखी बहस छिड़ गई है. यहां सिंगल महिलाएं केवल कीमोथैरपी जैसे मेडिकल कारणों से ही अंडाणु फ्रीज कर सकती हैं.
तस्वीर: BSIP/picture alliance
जर्मनी
यहां चिकित्सीय कारणों से महिलाओं को अंडाणु फ्रीज करवाने की अनुमति है. मसलन, उनका कैंसर जैसी बीमारी का इलाज होने वाला हो, जिसके चलते उनकी फर्टिलिटी के प्रभावित होने की आशंका हो. इसके अलावा महिलाएं करियर, पढ़ाई या अन्य सामाजिक कारणों से 'सोशल ऐग फ्रीजिंग' भी करवा सकती हैं. यहां अंडाणु फ्रीज करवाने की कोई उम्र सीमा भी नहीं है.
तस्वीर: imago images/Science Photo Library
ब्रिटेन
यहां महिलाओं को 10 साल तक अंडाणु फ्रीज करके रखवाने की इजाजत थी. केवल उन महिलाओं को 55 की उम्र तक अंडाणु फ्रीज करने की अनुमति थी, जिनकी फर्टिलिटी किसी बीमारी के चलते प्रभावित हो. सितंबर 2021 में नियम बदलने की घोषणा हुई, ताकि सब लोगों को यह तय करने का अधिकार मिले कि वे परिवार कब शुरू करना चाहते हैं. अब कोई भी महिला 55 की उम्र तक अंडाणु फ्रीज करवा सकती है.
तस्वीर: epd/imago
इस्राएल
यहां महिलाओं को मेडिकल और नॉन-मेडिकल, दोनों तरह से अंडाणु फ्रीज करवाने की अनुमति है. लेकिन केवल 30 से 41 साल की महिलाएं ही ऐसा कर सकती हैं. फ्रीज किए गए अंडाणु को 54 साल की उम्र तक इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा अंडाणु फ्रीज करने के लिए महिलाएं ज्यादा-से-ज्यादा चार बार ही एग-रीट्रिवल करवा सकती हैं. अधिकतम 20 अंडाणु फ्रीज किए जा सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Grubitzsch
मोरक्को
यहां छह साल तक धार्मिक और नैतिक पक्षों पर चली बहस के बाद 2019 में 'मेडिकली असिस्टेड रिप्रोडक्शन' कानून पास किया गया. इसमें इनफर्टिलिटी का इलाज करवा रही शादीशुदा महिलाओं को अंडाणु फ्रीज करवाने की अनुमति दी गई. सिंगल महिलाओं में से केवल वही ऐसा कर सकती हैं, जिन्हें कैंसर जैसी बीमारियां हैं.
तस्वीर: imago images/Science Photo Library
कनाडा
यहां करीब डेढ़ दशक से महिलाओं को चिकित्सीय कारणों से अंडाणु फ्रीज करवाने की इजाजत है. सोशल ऐग फ्रीजिंग भी कानूनी है. मगर कई दूसरे देशों में सामाजिक और कानूनी दायरे के चलते महिलाओं की चॉइस का यह सवाल अब भी बहस का मुद्दा है.
तस्वीर: picture alliance/All Canada Photos
फ्रांस
इस यूरोपीय देश में 30 की उम्र में पहुंची महिलाओं को अपने अंडाणु फ्रीज करने की कानूनी अनुमति है. पहले यह इजाजत केवल उन्हीं महिलाओं को थी, जो कीमो या रेडियो थेरेपी जैसा कोई ऐसा इलाज करवा रही थीं जिसमें उनकी फर्टिलिटी प्रभावित होने का खतरा था.