खगोलविदों ने एक ग्रह की पहचान की है जो आकार में तो बृहस्पति से भी बड़ा है लेकिन रुई की तरह मुलायम और हल्का है.
विज्ञापन
वैज्ञानिकों को एक नया बाह्य ग्रह यानी एग्जोप्लेनेट मिला है, जो आकार में बृहस्पति से भी बड़ा है. बृहस्पति की तरह यह भी एक गैसीय ग्रह है. हमारे सौरमंडल में बृहस्पति के अलावा, शनि, यूरेनस और नेपच्यून भी गैसीय ग्रह हैं.
अंतरिक्ष में रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड
रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको ने अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. वह कुल मिलाकर 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
अंतरिक्ष में 879 दिन
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड अब रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको के नाम दर्ज हो गया है. 59 वर्ष के कोनोनोंको 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
पिछला रिकॉर्ड
अब तक अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड रूसी एस्ट्रोनॉट गेनादी पडाल्का के नाम था जिन्होंने 879 दिन, 11 घंटे, 29 मिनट और 48 सेंकड बिताए थे. यह रिकॉर्ड 2015 में बना था.
तस्वीर: AP/NASA/BILL INGALLS
पांच बार अंतरिक्ष यात्रा
ओलेग कोनोनेंको 2008 से अब तक पांच बार अंतरिक्ष यात्रा कर चुके हैं. वह कहते हैं, “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की हर यात्रा अलग होती है क्योंकि वहां लगातार बदलाव होते रहते हैं और उसी हिसाब से तैयारी करनी पड़ती है. लेकिन अंतरिक्ष की यात्रा मेरा बचपन का सपना था.“
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
1,000 दिन की ओर
कोनोनेंको की मौजूदा यात्रा 15 सितंबर 2023 को शुरू हुई थी. जब तक यह अभियान खत्म होगा वह कुल मिलाकर 1,000 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके होंगे.
तस्वीर: Shamil Zhumatov/AFP/Getty Images
रिकॉर्ड के लिए नहीं
पेशे से इंजीनियर कोनोनेंको ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं अंतरिक्ष में रिकॉर्ड बनाने नहीं जाता बल्कि इसलिए जाता हूं कि मुझे अपने काम से प्यार है. जब मैं बच्चा था, तब से अंतरिक्ष में जाने के बारे में सोचा करता था. पृथ्वी की कक्षा में रहने और काम करने का मौका मुझे बार-बार यहां आने को प्रेरित करता है.”
तस्वीर: Mikhail Metzel/AFP/Getty Images
छोटी शुरुआत से बड़ी मंजिल तक
कोनेनेंको रूस तुर्कमेनिस्तान के चारद्जू में जन्मे थे जो तब सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. उनके पिता ड्राइवर थे और मां तुर्कमेनिस्तान एयरपोर्ट पर टेलीफोन ऑपरेटर. पहली कोशिश में वह इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने में नाकाम रहे थे और उन्होंने मकैनिक के तौर पर काम किया. लेकिन दूसरी कोशिश में वह कामयाब रहे.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
6 तस्वीरें1 | 6
मंगलवार को वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने इस ग्रह की खोज की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह एग्जोप्लेनेट गैसीय ग्रह जरूर है लेकिन इतना घना नहीं है जितने कि हमारे सौर मंडल के गैसीय ग्रह हैं. इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि यह रुई के फाहे जैसा है.
मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के खालिद बरकूई इस वैज्ञानिक दल के प्रमुख हैं. उन्होंने बताया, "मूल रूप से यह एक मुलायम ग्रह है क्योंकि ठोस पदार्थों के बजाय हल्की गैसों से बना है."
वास्प-193बी
इस ग्रह को वास्प-193-बी (WASP) नाम दिया गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रहों के गैर-पारंपरिक निर्माण और विकास के अध्ययन में वास्प जैसे ग्रह बहुत लाभदायक साबित हो सकते हैं. इस ग्रह की खोज की पुष्टि पिछले साल हो गई थी लेकिन पृथ्वी पर मौजूद शक्तिशाली टेलीस्कोप के जरिए इसकी दोबारा पुष्टि करने में वक्त लग गया.
इस बारे में एक शोध पत्र इसी हफ्ते "नेचर एस्ट्रोनॉमी" पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. शोध के मुताबिक यह ग्रह मुख्यतया हाइड्रोजन और हीलियम से बना है. यह पृथ्वी से 1,200 प्रकाश वर्ष दूर है. वैज्ञानिक कहते हैं कि भार और आकार के लिहाज से यह अब तक खोजा गया दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है.
यह बृहस्पति से लगभग डेढ़ गुना बड़ा है लेकिन इसका भार उसके मुकाबले 0.139 फीसदी ही है. यह 6.2 दिनों में अपनी कक्षा का चक्कर लगा लेता है. बरकूई कहते हैं कि केपलर-51डी के बाद यह दूसरा सबसे कम घनत्व वाला ग्रह है लेकिन केपलर इसके मुकाबले बहुत छोटा है.
विज्ञापन
कैसे चला पता?
एग्जॉटिक (EXOTIC) लैबोरेट्री में पोस्ट-डॉक्टरेट कर रहे बरकूई ने कहा, "अब तक 5,000 से ज्यादा बाह्य ग्रह खोजे जा चुके हैं लेकिन वास्प का घनत्व उसे बाकी सबसे अनूठा बनाता है. अगर हम यह भी मान लें कि इस ग्रह का केंद्रीय भाग खाली है, तो भी इतने कम घनत्व वाले ग्रह का होना अब तक उपलब्ध मानकों के आधार पर संभव नहीं है."
नासा का नया सुपरसोनिक विमान एक्स-59
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पहली बार अपने नए सुपरसोनिक विमान एक्स-59 को सार्वजनिक किया है. देखिए, क्यों इतना खास है यह विमान.
यह है नासा का नया सुपरसोनिक विमान, जिसे एक्स-59 नाम दिया गया है. यह पहली बार आम लोगों को दिखाया गया है. 30 मीटर लंबे इस विमान के पंखों की चौड़ाई है 10 मीटर.
एक्स-59 एक जेट विमान है जिसे नासा के क्वेस्ट (Quiet SuperSonic Technology) मिशन के तहत विकसित किया गया है. इसी साल इस विमान की टेस्ट फ्लाइट की जाएगी. यह 16,000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ेगा और इसकी स्पीड होगी 1,500 किलोमीटर प्रतिघंटा.
तस्वीर: NASA/ZUMAPRESS.com/picture alliance
कार के दरवाजे जितनी आवाज
सुपरसोनिक विमान में आवाज सिर्फ इतनी होती है जितनी कार के दरवाजे को जोर से बंद करने पर हो सकती है. इस विमान को लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने विकसित किया है जिसके लिए उसे 25 करोड़ डॉलर मिले हैं.
तस्वीर: NASA/ZUMAPRESS.com/picture alliance
सुपरसोनिक तकनीक
सुपरसोनिक स्पीड पर विमान के इर्द-गिर्द हवा की रफ्तार ध्वनि की रफ्तार से भी ज्यादा होती है. अगर कोई विमान ध्वनि की रफ्तार से ज्यादा तेजी से उड़ता है तो बहुत जोर के धमाके जैसी आवाज आती है जिसे सोनिक बूम कहते हैं.
तस्वीर: Boom Supersonic/AP/picture alliance
कहां जाती है आवाज
जब सुपरसोनिक रफ्तार से विमान उड़ता है तो यह आवाज हर दिशा में नहीं आती बल्कि कोन जैसी आकृति वाले विमान के पिछले हिस्से में सुनाई देती है. अमेरिका ने अपने वायु क्षेत्र में सुपरसोनिक विमानों के उड़ने पर पाबंदी लगा रखी है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
20 साल पहले उड़ी थी सुपरसोनिक फ्लाइट
पिछली बार कोई सुपरसोनिक यात्री विमान करीब 20 साल पहले पेरिस, लंदन और न्यूयॉर्क के बीच उड़ा था. लेकिन साल 2000 में पेरिस में उस विमान में हादसा हुआ जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. उसके बाद 2003 में उस विमान की उड़ान बंद कर दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
6 तस्वीरें1 | 6
वास्प को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसे सबसे पहले वाइड एंगल सर्च फॉर प्लेनेट्स (WASP) नामक वैज्ञानिकों के एक संगठन द्वारा देखा गया था. यह संगठन दुनियाभर के अकादमिक संस्थानों ने मिलकर बनाया है, जो दो रोबोटिक ऑब्जरवेटरी चलाते हैं. इनमें से एक उत्तरी गोलार्ध में है और दूसरी दक्षिणी गोलार्ध में.
इन दोनों जगहों पर विशाल टेलीस्कोप लगे हैं जिनमें वाइड एंगल लेंस करोड़ों सितारों से आने वाली रोशनी का आकलन करते हैं. 2006 से 2008 और फिर 2011 से 2012 के बीच जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि वास्प-193बी से आने वाली रोशनी कम-ज्यादा हो रही थी.
जब रोशनी के कम होने की अवधि की गणना की गई तो पाया गया कि रोशनी कम होने की वजह यह थी कि यह ग्रह अपनी कक्षा में चक्कर लगा रहा था. इसी वजह से हर 6.25 दिनों में इसकी रोशनी कम हो रही थी.