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क्यों सब्जियों से दूर भागते हैं बच्चे

१९ अप्रैल २०१९

अगर आपके छोटे बच्चे हैं तो आप जानते ही होंगे कि उन्हें सब्जियां खिलाना कितना मुश्किल काम है. लेकिन चॉकलेट और आइसक्रीम के लिए वे हमेशा तैयार रहते हैं. क्या है इसकी वजह?

Kind am Essen
तस्वीर: picture-alliance/BSIP/Chassenet

सोचिए अगर स्वाद का अहसास ना होता तो जीवन कैसा होता. हमारी स्वाद की समझ कब और कैसे शुरू होती है, ये जानने के लिए हमने बात की स्विटजरलैंड की न्यूट्रिशन साइंटिस्ट क्रिस्टीन ब्रोमबाख से जिन्होंने बताया कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत जन्म से पहले ही हो जाती है.

दरअसल भ्रूण को स्वाद की समझ एमनियोटिक फ्लुइड पीने के कारण होती है. मां जो भी खाती है उसके स्वाद का असर एमनियोटिक द्रव पर पड़ता है. इस तरह से पैदा होने से पहले ही बच्चे को कई चीजों का स्वाद पता होता है लेकिन उसकी बारीकियों की समझ नहीं होती. क्रिस्टीन बताती हैं, "एमनियोटिक द्रव के कारण जन्म से पहले ही हमें स्वाद का अनुभव हो जाता है. और फिर हम मां का दूध पीते हैं जिसका स्वाद हर दिन थोड़ा अलग होता है. ये किसी पेंटिंग के बैकग्राउंड कलर की तरह है, जो वक्त के साथ और अच्छी तरह उभरते रहते हैं."

नवजात बच्चे कड़वी चीजों को खाने से मना कर देते हैं क्योंकि ये एक संकेत जैसे होता है कि वो चीज जहरीली है. उन्हें मीठी चीजें पसंद आती हैं क्योंकि उनमें ज्यादा ऊर्जा होती है. मां का दूध भी थोड़ा बहुत मीठा ही होता है. क्रिस्टीन के अनुसार, "जन्म के समय हमारे पास स्वाद की कम समझ होती है. बस इतना पता होता है कि मीठे को प्राथमिकता देनी है और कड़वे को मना करना है. खट्टी और नमकीन चीज़ों की जहां तक बात है तो यह कहीं न कहीं बीच में आती हैं."

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बच्चे अपने आस पास के लोगों को देखकर अलग-अलग तरह का खाना खाना सीखते हैं. इससे उन्हें अपनी पसंद और नापसंद पता चलती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती है बच्चे देखते हैं कि माता पिता और भाई-बहन क्या खा रहे हैं. इस तरह से वे अलग-अलग तरह के स्वाद का आनंद लेना भी सीखते हैं.

कुछ लोगों के पास कड़वे स्वाद की पहचान करने वाले ज्यादा टेस्ट रिसेप्टर होते हैं. वे कड़वे स्वाद के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं. बच्चों में भी ये ज्यादा होते हैं लेकिन उम्र के साथ ये कम होते रहते हैं. इसलिए बच्चे कड़वेपन के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं और वे हरी सब्जियों की जगह कैंडी खाना ज्यादा पसंद करते हैं. बच्चों का कुछ चीजों को नापसंद करना उनके विकास की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा है.

क्रिस्टीन इस बारे में बताती हैं, "दो या तीन से छह साल की उम्र के बीच हम एक अवस्था से गुजरते हैं जिसे मनोविज्ञानी नियोफोबिया यानी किसी भी नई चीज का डर कहते हैं. यह मानव विकास के साथ ही हम में आया है. यह जरूरी भी है क्योंकि कुछ भी ऐसा खाना जिसे हम जानते ही नहीं हैं, वो हमारे लिए खतरनाक हो सकता है." क्रिस्टीन के अनुसार बच्चे किसी भी नए खाने को स्वीकारने से पहले उसे आठ से सोलह बार तक ट्राय करते हैं.

इसीलिए काफी समय तक बच्चों को फीका खाना पंसद आता है जैसे कि बिना सॉस वाला पास्ता. समय के साथ वो और चीजें पसंद करना सीखते हैं. लेकिन यह आसपास के माहौल पर भी निर्भर करता है. मिसाल के तौर पर जर्मनी में बच्चे चीज, सॉसेज और ब्रेड खाकर बड़े होते हैं. जबकि इटली में पिज्जा, पास्ता और टमाटर को ज्यादा तरजीह दी जाती है. इसी तरह भारत में बचपन से ही मसालों की आदत लग जाती है. दूसरे शब्दों में कहें तो हम वही पसंद करते हैं, जिसकी हमें आदत होती है. और यह आदत तो कोख में मां के खाने के साथ ही लग जाती है.

कारिन फ्राय/आईबी

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