वैज्ञानिकों ने पिछले सालों में भगदड़ के कारण हुईं दुर्घटनाओं का एक नक्शा तैयार किया है और ऐसी घटनाएं रोकने के उपाय सुझाए हैं.
विज्ञापन
वैज्ञानिकों ने सन 1900 के बाद से अब तक भगदड़ या भीड़भाड़ के कारण हुई घटनाओं का एक डेटाबेस तैयार किया है. वे उम्मीद कर रहे हैं कि इस डेटाबेस के आधार पर दुनियाभर में भीड़भाड़ के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए समुचित उपाय उठाए जा सकेंगे.
इस डेटाबेस में 1900 से 2019 के बीच हुईं 281 उन घटनाओं को शामिल किया गया है जिनमें या तो कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई या दस से ज्यादा लोग घायल हुए. आंकड़े दिखाते हैं कि भारत और पश्चिमी अफ्रीका भगदड़ की दुर्घटनाओं के सबसे बड़े केंद्र बनते जा रहे हैं. पिछले तीन दशक में इस तरह की घटनाएं घातक होने की संभावना लगातार बढ़ी है. अन्य खतरनाक इलाकों में दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व हैं.
शोधकर्ता कहते हैं कि पिछले बीस साल में भीड़ के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है. 1990 से 1999 के बीच हर साल औसतन तीन ऐसी घटनाएं होती थीं जो 2010 से 2019 के बीच बढ़कर 12 प्रतिवर्ष हो गईं.
जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्लाउडियो फेलिचियानी और ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के डॉ. मिलाद हागानी का यह शोध सेफ्टी साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है. वे कहते हैं कि सुरक्षा उपायों को मजबूत करने के लिए ऐसा डेटाबेस होना और उसका विश्लेषण करना जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके.
विज्ञापन
जहां गरीबी, वहां ज्यादा हादसे
डॉ. हागानी ने कहा, "पिछले 20 साल ही में भगदड़ आदि की घटनाओं में 8,000 से ज्यादा लोगों की जान गई है और 15,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. समय के साथ-साथ खेलों की घटनाओं के दौरान दुर्घटनाएं कम हुई हैं और धार्मिक आयोजनों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं. हमारे पास ऐसे पुख्ता संकेत हैं कि बीते 30 साल में खेल आयोजनों के दौरान अपनाए गए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों ने सुरक्षा को मजबूत किया है.”
शोध के मुताबिक देशों की आय के स्तर और दुर्घटनाओं में सीधा संबंध दिखाई दिया है. शोधकर्ता कहते हैं कि कम या मध्यम आय वाले देशों में दुर्घटनाएं ज्यादा हुई हैं. डॉ. हागानी ने बताया, "भारत और कुछ कम हद तक पश्चिमी अफ्रीका भीड़ वाले हादसों के केंद्र नजर आते हैं. ये तेजी से विकसित हो रहे इलाके हैं और इनकी आबादी भी बढ़ रही है. गांवों से शहरों की ओर पलायन को संभालने के लिए ढांचागत सुविधाएं तैयार नहीं हैं.”
मिल गया काबुल की भगदड़ में खोया सोहेल
अगस्त में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तमाम लोग देश छोड़कर भागना चाहते थे, तो एक भगदड़ मच गई थी. उस भगदड़ में दो महीने का सोहेल अपने परिवार से बिछड़ गया था. पांच महीने बाद सोहेल मिल गया है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
पांच महीने बाद मिला नन्हा सोहेल
काबुल की भगदड़ में अपने माता-पिता से बिछड़ा सोहेल तब दो महीने का था. 19 अगस्त को सोहेल लापता हो गया था.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
भागते मां-बाप के हाथों से छूटा
तालिबान के आने के बाद जब लोग किसी भी तरह काबुल से बाहर निकलना चाहते थे तब सोहेल को दीवार के ऊपर से एक अमेरिकी सैनिक को सौंपा गया था
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
भटकते रहे माता-पिता
सोहेल के पिता मिर्जा अली अहमदी अमेरिकी दूतावास में सिक्यॉरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. उन्हें, उनकी पत्नी और चार अन्य बच्चों को एक अमेरिकी विमान से काबुल से बाहर निकाला गया.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
महीनों तक पता नहीं चला
वे लोग तो अमेरिका चले गए लेकिन दो महीने का सोहेल पीछे छूट गया. महीनों तक वे दर-दर भटकते रहे लेकिन सोहेल का कहीं पता नहीं चला.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
खबरों से पता चला
सोहेल के बारे में कई जगह समाचार छपे. उन समाचारों को काबुल में भी लोगों ने पढ़ा. और तब बात एक टैक्सी ड्राइवर हामिद सफी तक पहुंची.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
सोहेल को मिला नया नाम
सफी ने बताया कि उन्होंने सोहेल के घरवालों को काफी खोजा फिर उसे वे अपने घर ले गए. उन्होंने उसे मोहम्मद आबिद नाम भी दिया और अपने फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें पोस्ट की.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
दादा को सौंपा सोहेल
सारी मालूमात के बाद सोहेल के दादा मोहम्मद कासिम रजावी सफी से मिले. दोनों परिवारों के बीच सात हफ्ते तक बातचीत होती रही. इस बीच पुलिस को भी दखल देना पड़ा.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
आखिरकार घर लौटा सोहेल
रजावी ने जब अपने पोते को सफी से गोद में लिया तो सफी फूट-फूटकर रो रहे थे. पांच महीने में ही सोहेल उनका अपना हो गया था.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
अब अमेरिका का सफर
सोहेल के सौंपे जाने को उसके माता-पिता वीडियो चैट से देख रहे थे. रजावी बताते हैं कि वे खुशी से नाचने-गाने और उछलने लगे थे. परिवार को उम्मीद है कि सोहेल के अमेरिका जाने का प्रबंध जल्दी ही किया जाएगा जहां वह महीनों बाद अपनी अम्मी से मिल पाएगा.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
9 तस्वीरें1 | 9
डॉ. हागानी ने कहा कि उत्तर भारत खासतौर पर अत्याधिक घनी आबादी वाला इलाका है जहां धार्मिक परंपराओं का बहुत प्रभाव है और लोग कुछ समय के लिए छोटी जगहों पर बड़ी संख्या में जमा होते हैं.
यह शोध दिखाता है कि 1970 के दशक में भगदड़ के कारण जितने भी हादसे हुए, उनमें से लगभग सभी खेल आयोजनों के दौरान हुए. लेकिन 1973 में कथित ‘ग्रीन गाइड' के प्रकाशन की शुरुआत के बाद से इन हादसों में कमी आनी शुरू हो गई. यह मार्गदर्शिका खेल आयोजनों के लिए सुरक्षा प्रबंधन के बारे में दिशा-निर्देश, डिजाइन और योजना के बारे में जानकारियां प्रकाशित करती है.
अपने शोध में शोधकर्ता लिखते हैं, "यूके में भीड़ के कारण हादसे आम हुआ करते थे. हम उम्मीद करते हैं कि यूके में सीखे गए सबक वैश्विक स्तर पर अपनाये जा सकेंगे. हालांकि हम जानते हैं कि बहुत से देशों के पास ऐसे सुधारों के लिए समुचित धन नहीं है.”
धार्मिक आयोजनों के खतरे
हालांकि खेल आयोजनों में हादसों की संख्या कम हो रही है, शोधकर्ता कहते हैं कि धार्मिक आयोजन अब ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं. एसोसिएट प्रोफेसर फेलिचियानी ने एक लेख में बताया कि खेल आयोजनों जैसे सुरक्षा उपायों को धार्मिक आयोजनों में अपनाना आसान नहीं है क्योंकि वहां कोई टिकट नहीं होती और लोगों की संख्या भी तय नहीं होती, जिस कारण भीड़-प्रबंधन बेहद मुश्किल हो जाता है.
बीते 10 सालों में भगदड़ के इन भयानक हादसों में सैकड़ों लोगों की जान गई
29 अक्टूबर की रात, दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल की तंग गलियों में हैलोवीन पार्टी के दौरान भगदड़ मची. इस हादसे में 145 से ज्यादा लोग मारे गए. पिछले एक दशक में ऐसे ही कई भयानक हादसे सैकड़ों जिंदगियां ले चुके हैं.
तस्वीर: HEO RAN/REUTERS
मक्का: 2,300 लोगों की मौत
24 सितंबर, 2015 को, सालाना हज के दौरान मक्का के मीना में भगदड़ मची थी. ये हादसा 'शैतान' की दीवार पर पत्थर मारने की रस्म के दौरान हुआ था. इसमें करीब 2,300 लोगों की मौत हुई थी.
तस्वीर: Ozkan Bilgin/AA/picture alliance
इंडोनेशिया: 133 लोगों की मौत
1 अक्टूबर, 2022 को पूर्वी जावा के मलंग में एक फुटबॉल स्टेडियम में भगदड़ मच गई. इसमें चालीसबच्चों समेत 133 लोगों की मौत हो गई थी. हादसा तब हुआ जब फैंस की अनियंत्रित भीड़ को पुलिस ने आंसू गैस से काबू में करने की कोशिश की. दहशत के बीच संकरे रास्ते से निकलने की कोशिश में कई कुचले गए और कई लोगों की दम घुटने से मौत हुई.
तस्वीर: Yudha Prabowo/AP/picture alliance
भारत: 115 लोगों की मौत
13 अक्टूबर, 2013 को, मध्य प्रदेश के दतिया जिले में नवरात्रि के दौरान एक मंदिर के पास भगदड़ मच गई. इसमें कम से कम 115 लोग मारे गए. दुर्घटना के समय सिंध नदी पर बने एक पुल पर करीब 20,000 लोग सवार थे. पुल के ढहने की अफवाह उड़ी. भगदड़ में ज्यादातर रौंदे गए या पानी में बह गए. हादसे में 110 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
केरल: 102 लोगों की मौत
14 जनवरी 2011 की रात केरल के सबरीमाला मंदिर से लौटते समय 102 श्रद्धालुओं की कुचलकर मौत हो गई थी. एक जीप में सवार तीर्थयात्रियों का एक समूह संकरे जंगल के रास्ते से गुजर रहे श्रद्धालुओं की भीड़ में जा घुसा था, जिससे मची भगदड़ में सैंकड़ो लोगों की जान चली गई थी.
तस्वीर: AP
आइवरी कोस्ट: 63 लोगों की मौत
1 जनवरी, 2013 को, आबिदजान के पठारी जिले में नए साल की आतिशबाजी देखने जुटी भीड़ लौटते समय भगदड़ का शिकार हो गई. हादसे में कम से कम 63 लोग, ज्यादातर युवा मारे गए थे.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP/Getty Images
ईरान: 56 लोगों की मौत
7 जनवरी, 2020 को ईरान के केरमन में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की अंतिम यात्रा के दौरान मची भगदड़ में 56 जानें गईं. 3 जनवरी को बगदाद हवाई अड्डे के बाहर अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए. उनकी अंतिम यात्रा में काफी भीड़ उमड़ी थी.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
इथियोपिया: कम से कम 52 मौतें
2 अक्टूबर 2016 को, बरसात के मौसम के आखिर में मनाये जाने वाले पारंपरिक ओरोमो इरिचा उत्सव के दौरान बिशोफ्टु में भीड़ और पुलिस के बीच झड़प भगदड़ का कारण बनी. अधिकारियों के मुताबिक, इसमें 52 लोगों की मौत हुई थी वहीं विपक्ष का कहना था कि आंकड़ा कम से कम 100 था.
तस्वीर: Itomlinson/AP Photo/picture alliance
इस्राएलः 45 लोगों की मौत
30 अप्रैल, 2021 को, लैग बाओमर से माउंट मेरोन तक यहूदियों की तीर्थयात्रा के दौरान मची भगदड़ में कम से कम 45 लोगों की मौत हो गई थी. ये तस्वीर रेस्क्यू के दौरान रोते कर्मियों की है. देश में कोविड -19 महामारी की शुरुआत के बाद से ये सबसे बड़ी सभा थी जो अब काले अक्षरों में दर्ज हो चुका है.
तस्वीर: AMIR COHEN/REUTERS
तंजानिया: 45 लोगों की मौत
21 मार्च, 2021 को तंजानिया की आर्थिक राजधानी दार एस सलाम के एक स्टेडियम में भगदड़ मचने से 45 लोगों की मौत हो गई थी. ये हादसा दिवंगत राष्ट्रपति जॉन मैगुफुली की श्रद्धांजलि सभा के दौरान हुआ था.
तस्वीर: Emmanuel Herman/REUTERS
9 तस्वीरें1 | 9
साल 2000 से 2019 के बीच दुनिया में जितने भी ऐसे हादसे हुए, उनमें से लगभग 70 प्रतिशत भारत में हुए और धार्मिक आयोजनों से संबंधित थे. इनमें से बहुत सी दुर्घटनाएं नदी या पानी के अन्य स्रोत के किनारे हुईं. बड़ी संख्या में पुलों, नदी के किनारों और बस या ट्रेन स्टेशनों आदि पर हुए हैं.
डॉ. फेलिचियानी कहते हैं, "मेरे ख्याल भारत के आंकड़े देखकर समस्या वित्तीय संसाधनों की नजर आती है. उन्हें पता है कि घातक हादसे हो रहे हैं और उन्हें पता है कि कुछ किया जाना चाहिए लेकिन शायद उनके पास वैसे संसाधन या तकनीक उपलब्ध नहीं है, जैसी धनी देशों के पास है.”