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पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के तीन कारगर उपाय

टिम शाउएनबेर्ग
१८ फ़रवरी २०२२

तेजी से बदलते मौसम, जंगल की आग और शहरों का शोरगुल हमें बीमार कर रहा है. पक्षियों को भी नुकसान पहुंचा रहा है. सिर्फ यूरोप में हर साल लाखों लोग हृदय रोग की चपेट में आ रहे हैं. आखिर इन समस्याओं से निपटने का क्या उपाय है?

शहरों को ग्रीन बनाना जरूरी हो गया है
शहरों को ग्रीन बनाना जरूरी हो गया हैतस्वीर: Givaga/Zoonar/picture alliance

संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि शहरों में होने वाला शोर हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा हानिकारक है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, यातायात, निर्माण स्थलों और अन्य स्रोतों से लगातार होने वाले शोर की वजह से बार्सिलोना और काहिरा से लेकर न्यूयॉर्क तक हर जगह, दुनिया भर के लोगों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग और मानसिक बीमारी का खतरा बढ़ गया है. 

ध्वनि प्रदूषण

सिर्फ यूरोप में, तेज और लगातार होने वाले शोर की वजह से हर साल 4,80,000 लोग हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं और करीब 12,000 लोगों की असमय मौत हो रही है.   

जानवरों की दुनिया में, ध्वनि प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा समस्या पक्षियों को हो रही है. जेब्रा फिंच, गौरैया और टिट जैसे पक्षी ऊंची आवाज में गा रहे हैं या ऊंची आवाज निकाल रहे हैं, ताकि अपने साथियों से बातचीत कर सकें. हालांकि, इस वजह से कई बार पक्षियों के बीच गलतफहमियां पैदा होती हैं. इससे नर पक्षी को मादा पक्षी खोजने में परेशानी होती है.

रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक, शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ और जंगल लगाने से ध्वनि प्रदूषण कम हो सकता है. इससे शोर भी कम होगा और जलवायु भी बेहतर होगी. उदाहरण के लिए, शोर को कम करने वाली दीवार के पीछे पंक्ति में पेड़ लगाने से शोर का स्तर करीब 12 डेसिबल तक कम हो सकता है.

साइकिल के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर और कार के इस्तेमाल को कम करके भी यातायात के शोर को कम किया जा सकता है. शहरों में ग्रीन जोन बनाने से इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा और हवा की गुणवत्ता बेहतर होगी.

साइकिल के जरिए शोर और प्रदूषण कम हो सकता हैतस्वीर: Aurelien Morissard/Photoshot/picture alliance

प्रकृति के साथ छेड़छाड़

प्रवासी पक्षी अब सर्दियों में दक्षिण की ओर नहीं उड़ रहे हैं और पौधे समय से पहले फल दे रहे हैं. साथ ही, पक्षी समय से पहले ही अपने बच्चों के लिए घोंसले बना रहे हैं जबकि उस समय उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त कीड़े भी नहीं होते.

जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ वैश्विक स्तर पर औसत तापमान में वृद्धि हुई है, बल्कि हजारों वर्षों से स्थापित जीवन चक्र को भी नुकसान पहुंच रहा है. पहाड़ी इलाकों से लेकर तटीय क्षेत्रों, जंगलों और घास के मैदान तक कोई भी जगह इन बदलावों से अछूता नहीं है. पेड़-पौधे से लेकर इंसान और पक्षी तक इस बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं.

जिस गति से धरती गर्म हो रही है उस गति से पशु और पेड़-पौधे बढ़ते तापमान के साथ सामंजस्य नहीं बैठा सकते. इससे यह खतरा तेजी से बढ़ रहा है कि जमीन और समुद्र के सभी पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो सकते हैं. इससे इंसानों को अप्रत्याशित स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.

जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने के लिए, हमें उत्सर्जन में काफी ज्यादा और तेजी से कटौती करनी चाहिए. शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवन चक्र में बदलाव से निपटने के लिए, अलग-अलग प्रजातियों की रक्षा करनी होगी. पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना होगा. साथ ही, वन्यजीव गलियारा बनाना होगा. यह एक मात्र तरीका है कि अलग-अलग प्रजातियां धरती पर मौजूद रहें और उन्हें यह मौका मिल सके कि वे प्राकृतिक वातावरण में रहते हुए नई परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठा सकें.

जैव विविधता और इको सिस्टम को बचाने की सख्त जरूरततस्वीर: Satyajit Shaw/DW

जंगल की आग

जंगल में आग लगना मौसम के हिसाब से स्वाभाविक घटना है. हालांकि, गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ने, तेज गर्मी और सूखा पड़ने से जंगलों में लंबे समय तक आग लग रही है. साथ ही, आग लगने की संभावना भी बढ़ रही है.

पिछले साल कैलिफोर्निया और साइबेरिया से लेकर तुर्की और ऑस्ट्रेलिया तक के जंगलों को आग ने नष्ट कर दिया. आग लगने की वजह से आसपास के शहरों की हवा की गुणवत्ता पूरी तरह खराब हो गई. कई दिनों तक लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया. काफी ज्यादा मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ.

जंगल की आग भी जल प्रदूषण, समुद्री जीवन और जैव विविधता के नुकसान का कारण बन सकती है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, कुछ एहतियाती उपाय जंगल की आग और उससे होने वाले नुकसान को कम करने में मदद कर सकते हैं. पड़ोसी इलाकों के बीच बेहतर सहयोग, उपग्रह से निगरानी, आकाशीय बिजली गिरने का पूर्वानुमान, बेहतर पूर्वानुमान प्रणाली और अग्निशामक क्षमता से काफी मदद मिल सकती है.

विशेषज्ञ आग से निपटने के पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करने की भी सलाह देते हैं. जंगलों में छोटी-छोटी झाड़ियों को नियंत्रित तौर पर जलाने से जंगल में लंबे समय तक लगने वाली आग को कम किया जा सकता है, क्योंकि ये छोटी-छोटी झाड़ियां ही आग को दूर-दूर तक फैलाने और इंधन का काम करती हैं. कुछ पारिस्थितिकी तंत्र में आग के फायदे भी हो सकते हैं, क्योंकि कुछ फूल और पौधे तभी उगते हैं जब उनके बीज आग से गर्म होते हैं.

धरती को बचाने वाले कार्बन सिंक

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