बाघों को बचाने की तमाम कोशिशों के बावजूद 2016 उनके लिए बेहद खराब साबित हो रहा है. वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 100 बाघों की मौत हो चुकी है.
विज्ञापन
दुनिया में इस समय सबसे ज्यादा बाघ भारत में हैं. पिछले कुछ सालों में भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि भी हुई है लेकिन इसके बावजूद तस्करों और सिकुड़ते जंगलों की वजह से बाघों के सामने अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती बनी हुई है. राष्ट्रीय पशु और जंगल का राजा कहलाने वाले ये बाघ, इस साल जीवन संघर्ष की लड़ाई में बाजी हारते हुए नजर आ रहे हैं. पिछले 10 महीने में ही 36 बाघों को तस्करों ने अपना शिकार बनाया.
2016 के चिंताजनक आंकड़े
केरल के त्रिशूर के चिड़ियाघर में इसी गुरुवार एक बाघिन की मौत हो गई, इसके साथ ही इस साल देश में मरने वाले बाघों की संख्या 100 तक पंहुच गई है जबकि 2015 में पूरे 12 महीनों में 91 बाघ मारे गए थे. वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी के अनुसार इस साल अब तक देश के विभिन्न राज्यों में 100 बाघ मारे जा चुके हैं. यानी इस साल अब तक हर महीने औसतन 10 बाघों की मौत हुई है. वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने कुछ दिनों पहले राज्यसभा में जानकारी देते हुए कहा, "राज्यों ने अभी तक 73 बाघों की मौत की जानकारी दी है. इनमें 21 की तस्करों द्वारा मारे जाने की पुष्टि हुई है. सात मामलों में स्वाभाविक मौत हुई है. शेष 45 मामलों की जांच की जा रही है."
कभी बाघों की संख्या के मामले में देश में पहले स्थान पर रहने वाले मध्यप्रदेश का रिकॉर्ड निराशाजनक है. यहां इस साल अब तक 20 बाघों की मौत हो चुकी हैं. राज्य के वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने पिछले दिनों विधानसभा में जानकारी दी कि पिछले डेढ़ साल में 34 बाघों की मौत हुई है. बाघों की मौत को लेकर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी यानी एनटीसीए मध्यप्रदेश सहित 4 राज्यों से रिपोर्ट मांगी है.
तस्वीरों में जानें: कैसे बचें इन जानवरों से
पिछले दशक में हुआ है सुधार
पिछले 100 सालों में बाघों की कुल संख्या में लगभग 96 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. एक अनुमान से अनुसार सौ साल पहले दुनिया में एक लाख से ज्यादा बाघ थे जो ताजा गणना में 3890 रह गए हैं. वैसे 2010 के मुकाबले अभी बाघों की संख्या में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई. तब दुनिया में केवल 3200 बाघ रह गए थे. भारत में भी पिछले दशक बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है. 2008 की गणना में देश में केवल 1,411 बाघ बचे थे जो 2010 में बढ़ कर 1706 हो गए. 2014 में कुछ और बढ़ कर बाघों की संख्या 2226 हो चुकी है. हालांकि वन्यजीवन विशेषज्ञ बाघों की संख्या को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे प्रयासों को सराहा है. इस साल अप्रैल में नई दिल्ली में हुई वैश्विक बाघ सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, "संवेदना और सह अस्तित्व के लिए प्रोत्साहित करने वाली हमारी सांस्कृतिक विरासत ने प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता में एक अहम भूमिका निभायी है." प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1973 में की गई थी.
यह भी देखिए: बाघ और शेर बेच खाने वाले
बाघ और शेर बेच खाने वाले
राजनैतिक और आर्थिक समस्याओं से घिरे लेबनान के चिड़ियाघरों में रखे गए जानवर तक तस्करी के शिकार हो रहे हैं, खासकर वहां के शेर. देखिए उन्हें बचाने के लिए पशु अधिकार कार्यकर्ता कैसे प्रयास कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/M. Jay
अमीरों का शगल
आर्थिक तंगी से निपटने के लिए जू में शेर, बाघ और चीते की दुर्लभ किस्मों की ब्रीडिंग कर अमीरों को पालतू बनाने के लिए बेचा जाता है. बाकी तमाम देशवासी तो इस जू में जानवरों को देखने आने के लिए 3 यूरो का टिकट तक खरीदने की हालत में नहीं हैं.
तस्वीर: Animals Lebanon/Maglebanon
जानवरों के लिए अभियान
एनीमल्स लेबनान के निदेशक जेलन मायर बताते हैं, "इनमें से ज्यादातर जानवरों को जू से खरीदा जाता है, इसीलिए हम यहां ध्यान दे रहे हैं." डॉयचे वेले से बातचीत में मायर ने कहा, "एक जू को जानवर नहीं बेचने चाहिए. और इसीलिए इस अवैध तस्करी को रोकने के लिए सरकार ने कानून में नए सुधारों को मंजूरी दी है."
तस्वीर: DW/M. Jay
दुख भरी कहानी
कम खुराक और बेहद खराब स्थिति में रखी गई इस युवा शेरनी को तस्करों के हाथ से तो छुड़ा लिया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका. इसकी सर्जरी हुई और स्वस्थ करने के कई दूसरे प्रयास भी. लेकिन इस "क्वीन" शेरनी को जिंदा नहीं बचाया जा सका. इसी के साथ एनीमल्स लेबनान ने अपना अभियान छेड़ा. जू से बाहर निकाले जाने वाले शेर किसी निजी "केयर" में दो साल से अधिक नहीं जी पाते.
तस्वीर: Animals Lebanon
पैसों की तंगी
लेबनान के जू बहुत बुरे हाल में हैं. जानवरों को बेहद खराब स्थिति में रखा जाता है. एनीमल्स लेबनान का कहना है कि "इन्हें अक्सर बिना खाना, पानी या छाया के छोड़ा जाता है." जाजू शहर के जू में इन शेरों और बाघ को ही देखिए जो कुपोषित दिख रहे हैं.
तस्वीर: DW/M. Jay
पानी की किल्लत
जू के बत्तखों और दूसरे पक्षियों को भी पानी नहीं मिलता. ऐसे में बड़े जानवरों को खाने पीने के लिए क्या मिल पाता होगा इसकी कल्पना की जा सकती है. जू मालिक टिकट से होने वाली आय में दिलचस्पी नहीं रखते क्योंकि जानवरों की तस्करी से कहीं ज्यादा कमाई हो सकती है. एक शेर करीब 10,000 डॉलर में बिकता है.
तस्वीर: DW/M. Jay
हरकत में आई लेबनान की सरकार
इस शेर के बच्चे को किसी टीवी शो का हिस्सा बनाने के लिए जू से ले जाया गया था. ज्यादातर शावकों को निजी मालिकों को बेचा जाता है. लेबनान के कृषि मंत्री अकरम चेहाएब ने "तस्करों और गैरलाइसेंसी दुकानों से सभी जानवरों को जब्त करने के लिए सभी कानूनी रास्ते आजमाने" का वादा किया है.
तस्वीर: Animals Lebanon
बच्चों के लिए
कई अमीर पेरेंट्स अपने मासूस और नासमझ बच्चों की जिद पूरी करने के लिए इन जानवरों को खरीदते हैं. बजाए बच्चों को समझाने के उन्हें वे खिलौने के तौर पर दिए जाते हैं. ये बच्चे जब अपने खास पालतू जानवरों की तस्वीरें स्कूलों में अपने दोस्तों को दिखाते हैं तभी यह बात एनीमल्स लेबनान जैसे समूहों तक पहुंचती है.
तस्वीर: DW/M. Jay
मंकी बिजनेस
चिड़ियाघरों में जारी इस गलत कारोबार को रोकने के लिए यूरोपीय संघ से आर्थिक सहायता प्राप्त कई यूरोपीय जूकीपर्स को भी लेबनान के चिड़ियाघरों के कर्मचारियों के पास भेजा जाता है. यह लोग तस्करी करने वालों को समझा कर सही रास्ते पर लाने और उन्हें जानवरों के हितों के बारे में सोचने के लिए तैयार करते हैं.
तस्वीर: DW/M. Jay
8 तस्वीरें1 | 8
बाधक हैं तस्कर
बाघ संरक्षण अभियान को सबसे ज़्यादा नुकसान बाघों की तस्करी करने वाले पहुंचा रहे हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और ट्रैफिक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाघों की तस्करी अभी भी जारी है. इसके अनुसार पिछले 15 सालों में एशिया में कम से कम 1755 मरे और तस्करी के लिए जा रहे बाघ बरामद हुए हैं. इन 1755 में से 540 भारत में बरामद हुए जो कुल संख्या का लगभग 30 फीसदी है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार दक्षिण भारत में बाघों की तस्करी के मामले सबसे ज्यादा दिखे जबकि मध्य प्रदेश में बाघों के शव की बरामदगी में वृद्धि हुई है. यानी बाघ संरक्षण अभियान को सबसे ज़्यादा खतरा तस्करों से ही है. जानकार मानते हैं कि अगर तस्करी के लिए बाघों की हत्या न हो रही होती तो भारत में बाघों की संख्या कहीं अधिक होती.
देखिए, टाइगर मंदिर के पीछे का सच
टाइगर मंदिर के पीछे छुपी सच्चाई
आमतौर पर टाइगर या तो आपको चिड़ियाघरों में दिखते हैं या जंगल सफारी पर. लेकिन क्या आपने दक्षिणपूर्व एशिया की इस विवादित जगह के बारे में सुना है, जिसे टाइगर टेंपल कहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/T. Weidman
पश्चिमी थाईलैंड के कंचनाबुरी में एक मठ और वन्यजीव पार्क है. पर्यटकों में यह सालों से टाइगर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध रहा है. यहां नारंगी पोशाक पहने बौद्ध भिक्षुओं के आस-पास बाघ या उनके शावकों का दिखना आम बात है.
तस्वीर: Imago/A. Kleb
दूर दूर से पर्यटक यहां भारी कीमत चुका कर टाइगर्स के पास जाने, उन्हें छूने, उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने पहुंचते रहे हैं. इस कारण जंगलों में आजाद रहने के बजाए इन जानवरों को अपना समय कैद में बिताना पड़ता है.
तस्वीर: Getty Images/AFPP. Kittiwongsakul
दुनिया भर के कई वन्यजीव संरक्षक इस मठ पर उंगलियां उठाते रहे हैं. उनका मानना है कि यहां जंगली जानवरों को पालतू बनाने की जबरन कोशिश होती है ना कि किसी तरह की पूजा. इसके अलावा बाघ के अंगों की तस्करी का भी आरोप था.
तस्वीर: Reuters/C. Subprasom
मंदिर से खतरे में पड़ी प्रजातियों के शरीर के हिस्से और उत्पाद भी मिले. कई दशकों से जारी विरोध के स्वरों के कारण अब स्थिति बदल रही है. थाई प्रशासन ने इस मंदिर को दिया गया चिड़ियाघर का लाइसेंस रद्द कर दिया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जून 2016 में ही थाईलैंड के वन्यजीव विभाग ने मॉनेस्टरी से 137 टाइगरों को जब्त किया. उन्हें वहां 40 फ्रीजर में जमाए हुए और 20 बोतलों में बंद बाघ के बच्चों के शव मिले.
तस्वीर: Getty Images/D. Pignatelli
यहां से टाइगरों को बेहोश कर सरकारी आश्रयों में पहुंचाया जा रहा है. टेंपल प्रशासन सरकार पर उन्हें तंग करने का आरोप लगा रहा है.
तस्वीर: Reuters/C. Subprasom
टाइगर मंदिर पर वन्यजीव तस्करी के आरोप हैं और उस पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है. मंदिर के कर्मचारियों पर बाघों के साथ गलत व्यवहार करने, उनकी हत्या कर बाघ की त्वचा, मांस और हडिडयां बेचने का आरोप है. यह सब थाईलैंड में गैरकानूनी है.
तस्वीर: Getty Images/T. Weidman
7 तस्वीरें1 | 7
लोगों को जोड़ने की जरूरत
बाघों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट सिकुड़ते जंगल नहीं बल्कि शिकारी तस्कर हैं. इस साल जिन 100 बाघों की मौत हुई है उनमे से 36 बाघों का जीवन शिकारियों ने खत्म किया है. यानी तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद सरकार बाघों को अवैध शिकार होने से नहीं बचा पाई. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार उन बाघों का शिकार अधिक हो रहा है जिन्हें टाइगर फार्म्स में पाला जाता है. तस्करों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अधिक कारगर नहीं हो पाई है. बाघ के शिकार के अपराध में दोष साबित होने की दर बहुत कम है जबकि ऐसे मामलों में गुप्तचर सूचनाओं की संख्या ना के बराबर होती है. इसमें सुधार के लिए नागरिकों का सहयोग जरूरी है.
विशेषज्ञों के अनुसार इस समस्या से निपटने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी. तस्करी के खिलाफ जंगल के आस पास रहने वाले लोग कारगर हो सकते हैं. खासतौर पर टाइगर पार्क के आस पास रहने वाले लोगों को संरक्षण योजना में शामिल करके तस्करों पर लगाम कसी जा सकती है.