भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को कर्ज देने की ब्याज दर (रेपो रेट) को 0.50 प्रतिशत बढ़ा दिया है. आरबीआई ने कहा है कि इसका उद्देश्य बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाना है.
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रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता में बताया कि मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) की आम सहमति से रेपो दर में आधा प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है. इससे रेपो दर 4.40 से बढ़ कर 4.90 हो गई है.
रेपो दर यानी वो दर जिस पर आरबीआई दूसरे बैंकों को कर्ज देता है ताकि बैंकों के पास पर्याप्त नकदी रहे. इसे बढ़ाने से वो रिजर्व बैंक से कम नकदी उधार लेते हैं जिससे अर्थव्यवस्था में नकदी की आपूर्ति पर दबाव बनाया जाता है. उम्मीद की जाती है कि ऐसा करने से महंगाई पर लगाम लगेगी.
छलांगें मारती महंगाई दर
बढ़ती महंगाई केंद्रीय बैंक के लिए लगातार चिंता का कारण बनी हुई है. ताजा प्रेस वार्ता में दास के बयानों से संकेत मिला कि यह चिंता और बढ़ती ही जा रही है. दास ने बताया कि एमपीसी ने महंगाई दर के अनुमान को बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है. पहले समिति ने इसके 5.7 प्रतिशत तक रहने का अनुमान लगाया गया था.
थोक और खुदरा दोनों महंगाई दरें कई महीनों से लगातार ऊपर ही जा रही हैं. अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो आठ साल में उसका सबसे ऊंचा स्तर है. यह खुदरा महंगाई दर की लगातार सात महीनों में सातवीं उछाल थी. आरबीआई का लक्ष्य होता है कि यह दर दो से छह प्रतिशत के बीच ही रहे.
थोक महंगाई दर तो कई महीनों से दो अंकों में है. अप्रैल में वो 15.08 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. खुदरा दर लगातार 13 महीनों से दो अंकों में है. दास ने प्रेस वार्ता में कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से महंगाई का वैश्वीकरण हो गया है और भारत भी इस स्थिति से अछूता नहीं है.
यूक्रेन युद्ध की छाया
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि युद्ध चलता चला जा रहा है इसलिए हमें आगे के खतरों के प्रति भी सजग रहना होगा. पिछले महीने भी आरबीआई ने बढ़ती महंगाई दर का मुकाबला करने के लिए रेपो दर को 40 बेसिस अंक बढ़ा दिया था.
रेपो दर के साथ साथ केंद्रीय बैंक ने कैश रिजर्व अनुपात (सीआरआर) को भी 50 बेसिस अंक बढ़ा कर 4.50 प्रतिशत कर दिया था. ब्याज दरों के बढ़ने की घोषणा का तुरंत शेयर बाजार पर असर पड़ा था और सूचकांक काफी नीचे गिर गए थे.
लेकिन आरबीआई के उन कदमों का महंगाई दर पर अभी तक असर नहीं पड़ा है. जानकारों ने आशंका व्यक्त की है कि जब तक महंगाई दर नीचे नहीं आ जाती तब तक आने वाले महीनों में भी केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को इसी तरह बढ़ाता रहेगा.
पुतिन के युद्ध का दुनिया पर असर
रूस के यूक्रेन पर हमले का असर पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है. खाने पीने की चीजों और ईंधन की कीमतें आसमान पर हैं. कुछ देशों में तो महंगाई के कारण लोग सड़कों पर उतर आए हैं.
तस्वीर: PIUS UTOMI EKPEI/AFP via Getty Images
यूक्रेन के कारण महंगाई
जर्मनी में लोगों की जेब पर यूक्रेन युद्ध का असर महसूस हो रहा है. मार्च में जर्मनी की मुद्रास्फीति दर 1981 के बाद सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है.
तस्वीर: Moritz Frankenberg/dpa/picture alliance
केन्या में लंबी लाइन
केन्या के नैरोबी में पेट्रोल पंपों के सामने लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. तेल महंगा हो गया है और सप्लाई बहुत कम है. इसका असर खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की बाकी चीजों पर भी नजर आ रहा है.
तस्वीर: SIMON MAINA/AFP via Getty Images
तुर्की में ब्रेड हुई महंगी
रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है और रूसी उत्पादों पर लगे प्रतिबंधों के कारण गेहूं की आपूर्ति प्रभावित हुई है. यूक्रेन भी गेहूं के पांच सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. नतीजतन कई जगह ब्रेड महंगी हो गई है.
तस्वीर: Burak Kara/Getty Images
इराक में गेहूं बस के बाहर
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से इराक में गेहूं के दाम आसमान पर हैं. इराक ने फिलहाल यूक्रेन के मुद्दे पर निष्पक्ष रुख अपनाया हुआ है. हालांकि देश में पुतिन समर्थक पोस्टर बैन कर दिए गए हैं.
तस्वीर: Ameer Al Mohammedaw/dpa/picture alliance
लीमा में प्रदर्शन
पेरू की राजधानी लीमा में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करते लोगों की पुलिस से खासी झड़प हुई. सरकार ने कुछ समय के लिए कर्फ्यू भी लगाकर रखा था लेकिन जैसे ही कर्फ्यू हटाया गया, प्रदर्शन फिर शुरू हो गए.
तस्वीर: ERNESTO BENAVIDES/AFP via Getty Images
श्रीलंका में संकट
श्रीलंका इस वक्त ऐतिहासिक आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. पहले से ही खराब देश की आर्थिक हालत को यूक्रेन युद्ध ने और ज्यादा बिगाड़ दिया है और लोग अब सड़कों पर हैं.
स्कॉटलैंड में लोगों ने महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया. पूरे युनाइटेड किंग्डम में ट्रेड यूनियनों ने बढ़ती महंगाई का विरोध किया है. पहले ब्रेक्जिट, फिर कोविड और अब यूक्रेन युद्ध ने लोगों की हालत खराब कर रखी है.
तस्वीर: Jeff J Mitchell/Getty Images
मछली पर मार
ब्रिटेन के राष्ट्रीय डिश फिश एंड चिप्स पर यूक्रेन युद्ध का असर नजर आ रहा है. सालभर में 38 करोड़ ‘फिश एंड चिप्स’ खाने वाले ब्रिटेन में अब रूस से आने वाली व्हाइट फिश और खाने का तेल इतना महंगा हो गया है कि लोगों को इससे मुंह मोड़ना पड़ा है. फरवरी में यूके की मुद्रास्फीति दर 6.2 प्रतिशत थी.
तस्वीर: ADRIAN DENNIS/AFP via Getty Images
नाइजीरिया के लिए मौका
यूक्रेन युद्ध को नाइजीरिया के उत्पादक एक मौके की तरह देख रहे हैं. वे रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. देश के सबसे धनी व्यक्ति अलीको दांगोट ने हाल ही में नाइजीरिया का सबसे बड़ा खाद कारखाना खोला है.