दुनिया की बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनियों में शामिल फाइजर ने भारत सरकार से कहा है कि उसकी कोविड वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर कोई चिंता नहीं है.
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भारत में कोरोना की दूसरी लहर के कारण मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है और मृतकों का आंकड़ा भी बढ़ा है. इस बीच कई राज्यों में कोरोना के टीके की उपलब्धता नहीं होने की शिकायतें भी आ रही हैं. इस बीच फाइजर भारत में अपनी वैक्सीन को जल्द स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार से बातचीत कर रही है. इस वैक्सीन को स्वीकृति मिलने के बाद कंपनी इसकी देश में सप्लाई करेगी. कंपनी ने भारत सरकार से कहा है कि उसकी कोरोना वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर कोई चिंता नहीं है.
भारत चाहता है कि विदेशी वैक्सीन का छोटे स्तर पर ट्रायल हो. देश में कोरोना के मरीजों की संख्या हर रोज नए रिकॉर्ड बना रही है. भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या दो करोड़ के पार चली गई है. संक्रमण की रफ्तार इतनी तेज है कि महज 137 दिन में एक करोड़ से दो करोड़ के करीब मामले पहुंच गए हैं. केंद्र सरकार ने अप्रैल के मध्य में विदेशी वैक्सीन की बिक्री को आसान बना दिया था, जिन्हें पश्चिम और जापान में मंजूरी मिल चुकी है.
हालांकि कंपनियों को अभी भी आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिलने के 30 दिन के भीतर स्थानीय ट्रायल की जरूरत होगी. इससे पहले, कंपनियों को स्वीकृति से पहले परीक्षण करना आवश्यक था. फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्ना को भारत को अपने टीके बेचने के लिए आमंत्रित किया गया है, लेकिन अभी तक ऐसा करने के लिए किसी ने भी आवेदन नहीं किया है. देश की दवा नियामक की स्थानीय सुरक्षा से जुड़ी स्टडी की शर्त को पूरा करने में नाकाम रहने के बाद फाइजर ने फरवरी में भारत में अपनी कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी में इस्तेमाल के लिए स्वीकृति देने के आवेदन को वापस ले लिया था.
कंपनी की एक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "कंपनी ने आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आवेदन वैक्सीन की 95 फीसदी प्रभावशीलता के डेटा के साथ किया था." साथ ही उन्होंने कहा कि सुरक्षा और प्रभावशीलता डेटा का समर्थन अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी एजेंसियां द्वारा किया गया है जिसका अनुमोदन भारत करता है. फाइजर की वैक्सीन को कई एक्सपर्ट ने कोरोना संक्रमण के खिलाफ सबसे कारगर माना है. फाइजर अपने जर्मन पार्टनर बायोएनटेक के साथ मिलकर वैक्सीन का उत्पादन करता है, उसने दोहराया है कि वह सिर्फ सरकारी ठेकों के जरिए वैक्सीन की सप्लाई करेगा.
एए/सीके (रॉयटर्स)
कहीं मदद, कहीं मुनाफाखोरी: त्रासदी के दो चेहरे
भारत में कोरोना की ताजा लहर ने भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है. सरकारी तंत्र नाकाम हो चुका है और आम लोग सरकार की जगह मददगार नागरिकों के भरोसे हैं. ऐसे में त्रासदी में मुनाफाखोरी के अवसर ढूंढने वालों की भी कमी नहीं है.
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS
हाहाकार
कोरोना की ताजा लहर ने पूरे देश पर कहर बरपा दिया है. रोजाना संक्रमण के 3,00,000 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और रोज 3,000 से ज्यादा कोविड मरीजों की मौत हो जा रही है. दवाओं, अस्पतालों में बिस्तर और यहां तक कि ऑक्सीजन की भी भारी कमी हो गई है. अस्पतालों में भर्ती मरीज कोविड-19 से तो मर ही रहे थे, अब वो ऑक्सीजन की कमी से भी मर रहे हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
नाकाम तंत्र
चारों ओर फैले इस हाहाकार ने देश में सरकारी तंत्र के खोखलेपन और महामारी से लड़ने की तैयारों में कमी को उजागर कर दिया है. हालत ऐसे हो चले हैं कि आम लोगों के अलावा अस्पतालों को ऑक्सीजन हासिल करने के लिए सोशल मीडिया पर एसओएस संदेश डालने पड़ रहे हैं.
तस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/imago images
सोशल मीडिया बना हेल्पलाइन
सरकारी तंत्र की विफलता को देखते हुए कुछ लोग आगे बढ़ कर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. लोग सोशल मीडिया पर अपनी जरूरत डाल रहे हैं और मदद करने वाले किसी तक दवा पहुंचा रहे हैं, किसी तक ऑक्सीजन और किसी तक प्लाज्मा. इनके व्यक्तिगत नेटवर्क से अस्पतालों में रिक्त बिस्तरों की जानकारी भी मिल रही है. इनमें कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, कुछ सामाजिक कार्यकर्ता, कुछ फिल्मी सितारे तो कुछ धर्मार्थ संगठन.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
ऑक्सीजन लंगर
सबसे भयावह कमी है ऑक्सीजन की. ऐसे में कुछ लोगों और कुछ धर्मार्थ संगठनों ने ऑक्सीजन मुहैया करवाने का बीड़ा उठाया है. कुछ लोग घरों तक भी ऑक्सीजन सिलिंडर और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर पहुंचा दे रहे हैं, तो कुछ ने सार्वजनिक स्थलों पर ऑक्सीजन देने का इंतजाम किया है. यह महामारी के लिहाज से खतरनाक भी है, लेकिन लोग इस तरह की सेवाएं लेने को लाचार हैं.
लेकिन इस विकट परिस्थिति में भी मानव स्वभाव के दो चेहरे सामने आए हैं. एक तरफ अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरों की मदद करने वाले लोग हैं, तो दूसरी तरफ ऐसे भी हैं जिन्हें इस त्रासदी में भी जमाखोरी और मुनाफाखोरी सूझ रही है. आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी हो रही है और उन्हें 10 गुना दाम पर बेचा जा रहा है. कई मामले ऐसे ही सामने आए हैं जहां लोगों ने दवा का 10 गुना दाम भी वसूल लिया और दवा भी नकली दे दी.
मानवीय त्रासदी में भी लोग अमानवीय व्यवहार से बाज नहीं आ रहे हैं. एम्बुलेंस सेवाओं में भी ठगी के कई मामले सामने आए हैं, जहां मरीजों या उनके परिवार वालों से चंद किलोमीटर के कई हजार रुपए वसूले गए हैं.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
ऑक्सीजन "डकैती"
ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां ठगों ने ऑक्सीजन के लिए दर दर भटकते लोगों को ऑक्सीजन सिलिंडर बता कर आग बुझाने वाले यंत्र बेच दिए. पुलिस इन मामलों में सख्ती से पेश आ रही है और ऐसे लोगों के अवैध धंधों का भंडाफोड़ कर उन्हें हिरासत में ले रही है.