इच्छा मृत्यु देने वाले डॉक्टर को झकझोर गईं दो महिलाएं
२१ मार्च २०२४77 साल के बेर्ट काइजर यूथेनेशिया (इच्छा मृत्यु) देने वाले डॉक्टर हैं. वह नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम में रहते हैं. रिटायरमेंट के बाद भी ऐसी ख्वाहिश करने वाले मरीजों की मदद करते हैं. उनके देश में यूथेनेशिया को कानूनी मान्यता है. अपने करियर में 140 से ज्यादा लोगों को इच्छा मृत्यु देने वाले डॉक्टर काइजर को अक्सर दो बुजुर्ग महिलाओं की याद आती है. दोनों को डॉक्टर काइजर के सामने एक साथ मौत की ड्रिप लगाई गई थी.
इक्वाडोर में भी इच्छा मृत्यु की इजाजत मिली
काइजर बताते हैं कि 74 साल की मोनिक डिमेंशिया से जूझ रही थीं और 88 साल की लोएस मांसपेशियों की गंभीर बीमारी से. दोनों 50 साल से एक दूसरे के साथ थीं. बुढ़ापे में एक वक्त ऐसा आया जब पता चल गया कि लोएस के पास ज्यादा वक्त नहीं है. इसके बाद 2019 में दोनों ने एक साथ, एक ही समय पर इच्छा मृत्यु का फैसला किया. इस दौरान दोनों एक टीवी डॉक्यूमेंट्री का भी हिस्सा बनीं. डॉक्यूमेंट्री में लोएस ने कहा, "मैं मोनिक के बिना नहीं रह सकती."
इसके जवाब में मोनिक ने तुरंत कहा, "और मैं तुम पर निर्भर हूं."
मोनिक और लोएस के आखिरी पल
इच्छा मृत्यु के लिए दोनों ने डॉक्टर काइजर को चुना. डॉक्टर से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "हममें से एक ने अपना दिमाग खो दिया है, दूसरे के पैर बेकार हो गए हैं."
उनके आखिरी लम्हों के बारे में डॉक्टर काइजर कहते हैं कि अस्पताल में दाखिल होने के बाद "उन्होंने एक दूसरे चूमा, फिर एक दूसरे को 'थैंक्यू' और 'आई लव यू' कहा. इसके बाद आपस में नजरें मिलाते हुए एक दूसरे से पूछा कि 'क्या तुम तैयार हो?' दोनों का जवाब था, हां."
फिर "दोनों महिलाएं एक ही बेड पर लेट गईं, उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़ा था. दोनों की बांह में ड्रिप लगी थी और जल्द ही दोनों नींद में चली गईं." डॉक्टर काइजर के मुताबिक, उनके करियर में ऐसा मामला पहली बार आया था जब, "दो लोग बिल्कुल एक ही समय में बेहोशी चाहते हों, आप नहीं चाहते कि कोई एक, दूसरे को दम तोड़ते हुए हुए देखे."
उन दोनों की स्मृतियां आज भी डॉक्टर काइजर के जेहन में घुमड़ती हैं, "भावनात्मक रूप से मेरे लिए भी वह बहुत ही मुश्किल था. दोनों बहुत ही शानदार इंसान थीं. मोनिक अपनी डिमेंशिया की बीमारी के बारे में पूरी तरह सजग थीं. आम तौर डिमेंशिया से जूझने वाले ज्यादातर लोगों को अपनी बीमारी की गंभीरता का अहसास नहीं होता."
क्या है इच्छा मृत्यु
नीदरलैंड्स और बेल्जियम यूरोप में इच्छा मृत्यु को सबसे पहले कानूनी मान्यता देने वाले देश हैं. इच्छा मृत्यु के तहत डॉक्टर की मदद से इंसान को अपना जीवन समाप्त करने का अधिकार मिलता है. लेकिन इसकी इजाजत, एक डॉक्टर और एक स्वतंत्र विशेषज्ञ के मूल्यांकन के बाद ही मिलती है. पहले यह देखा जाता है कि क्या इच्छा मृत्यु चाहने वाला इंसान किसी ऐसी बीमारी से बुरी तरह जूझ रहा है, जिसका कोई इलाज नहीं है. मोनिस और लोएस के मामले में दो अलग अलग डॉक्टरों की मदद लेना अनिवार्य था.
नीदरलैंड्स में इच्छा मृत्यु चाहने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. हाल ही में आए आंकड़ों के मुताबिक 2022 में देश में 8,720 लोगों ने इच्छा मृत्यु के जरिए अपना जीवन समाप्त किया. यह संख्या नीदरलैंड्स में 2022 में हुई कुल मौतों की 5.1 फीसदी है. इनमें से ज्यादातर लोग लाइलाज कैंसर से जूझ रहे थे.
सक्रिय और निष्क्रिय इच्छा मृ्त्यु
इच्छा मृत्यु की वकालत करने वाले संगठन इसे गरिमा के साथ जीवन के खत्म करने का अधिकार कहते हैं. विरोधी कहते हैं कि इच्छा मृत्यु का अधिकार, बेहतर मेडिकल केयर के अभाव और आर्थिक व सामाजिक ताने बाने के बिखराव को दर्शाता है. आलोचकों के मुताबिक, यूथेनेशिया आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों पर दबाव डालता है.
दुनिया में अभी नौ देशों में सक्रिय इच्छा मृत्यु (एक्टिव यूथेनेशिया) को कानूनी मान्यता है. ये देश नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्पेन, कनाडा, पुर्तगाल, लक्जमबर्ग, इक्वाडोर, न्यूजीलैंड और कोलंबिया हैं. एक्टिव यूथेनेशिया के तहत लाइलाज बीमारियों से जूझ रहे लोगों को चिकित्सकीय मदद से मृ्त्यु दी जाती है, यानी उन्हें जानलेवा दवा दी जाती है.
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कई देशों में निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (पैसिव यूथेनेसिया) की इजाजत है. इसके तहत गंभीर लाइलाज बीमारी के उपचार के दौरान, मरीज की मर्जी से उसका इलाज बंद करने जैसे कदम उठाए जाते हैं. आम तौर पर मरीज की सहमति से जीवनरक्षक दवाएं या लाइफ सपोर्ट सिस्टम बंद करना, इस प्रक्रिया का हिस्सा हो सकते हैं. भारत में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता दी. हालांकि इसकी एक लंबी प्रक्रिया है.
ओएसजे/आरपी (एएफपी)