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वायु प्रदूषण से गर्भवती मां और उसके बच्चे को भी खतरा

शिवांगी सक्सेना
१३ नवम्बर २०२५

प्रदूषित हवा में सांस लेने से गर्भ में बच्चे का स्वास्थ्य बिगड़ता है. इससे समय से पहले जन्म और गर्भपात का खतरा बढ़ रहा है.

गुवाहाटी के एक अस्पताल में एक प्रेग्नेंट महिला का अल्ट्रासाउंड करती डॉक्टर, फाइल फोटो
कई डॉक्टर प्रदूषण को प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान सिगरेट पीने से भी ज्यादा खतरनाक मान रहे हैंतस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

भारत में वायु प्रदूषण का गर्भावस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. इस हवा में सांस लेने का असर गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चे की सेहत पर सीधे पड़ता है. लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत और दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण, खासकर पीएम 2.5, के उच्च स्तर से गर्भपात और समय से पहले जन्म का खतरा बढ़ जाता है. हर साल लगभग तीन लाख से अधिक गर्भपात प्रदूषण के कारण हो रहे हैं.

बढ़ते प्रदूषण के चलते जन्म के समय बच्चे का वजन कम रह जाता हैं. आईआईटी दिल्ली और अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (मुंबई) ने ब्रिटेन और आयरलैंड के संस्थानों के साथ मिलकर हाल ही में इस विषय पर अध्ययन किया है. स्टडी में पाया गया कि गर्भावस्था में पीएम 2.5 के अधिक संपर्क में आने से समय से पहले डिलीवरी का जोखिम लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. वहीं जन्म के समय बच्चे का वजन कम होने का जोखिम करीब 40 प्रतिशत तक ज्यादा होता है. ऐसे बच्चे, जो प्रदूषित हवा में पलते हैं, उनके विकास में रुकावट आती है. बच्चों को आगे चलकर सांस की परेशानी, एनीमिया और दिल की बीमारी हो सकती है.

क्या प्रदूषण कम कर रहा है भारत में धूप के घंटे?

उत्तर भारत के बिहार, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे इलाकों में पीएम 2.5 प्रदूषकों का स्तर बहुत ज्यादा है. जबकि देश के दक्षिण और पूर्वोत्तर हिस्सों में यह कम है. यही वजह है कि उत्तर भारत के राज्यों में समय से पहले जन्म के मामलों की संख्या भी अधिक पाई गई. हिमाचल प्रदेश में 39 प्रतिशत, उत्तराखंड में 27 प्रतिशत, राजस्थान में 18 प्रतिशत और दिल्ली में 17 प्रतिशत बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ. वहीं पंजाब ऐसा राज्य रहा, जिसमें जन्म के समय सबसे ज्यादा बच्चों का वजन औसत से कम था. 

पीएम 2.5 क्या होता है?

हवा में धूल हमें दिखती है लेकिन पीएम 2.5 बहुत छोटे होते हैं. पीएम का अर्थ है पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 मतलब 2.5 माइक्रोन, उसका आकार बताता है. ये इतने बारीक होते हैं कि आंखों से नहीं दिखते. ये इंसानी बाल की मोटाई से लगभग तीस गुना छोटे होते हैं. 

फैक्ट्रियों और गाड़ियों के धुंए, लकड़ी, कचरा या पराली जलाने से ये कण हवा में फैल जाते हैं. सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. ये फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और खून में भी मिल सकते हैं. इससे सांस की परेशानी, दिल की बीमारी, स्ट्रोक और बच्चों के विकास में दिक्कत जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

आईआईटी दिल्ली के अध्ययन से पता चलता है कि गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे का वजन कम हो सकता है. साथ ही पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन के अधिक स्तर से बच्चे का जन्म 37 हफ्ते तक पहले हो सकता है.

मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है गंभीर असर

प्रदूषण का असर मां से कहीं ज्यादा बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है. प्रदूषित हवा में पीएम 2.5 जैसे बहुत बारीक कण और कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं. सांस लेते समय ये गंदी हवा गर्भवती महिला के शरीर में प्रवेश करती है. जिससे ये कण फेफड़ों से होकर खून में पहुंच जाते हैं. गर्भ में पल रहे बच्चे को बढ़ने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन चाहिए होती है. ये प्रदूषक खून में ऑक्सीजन की मात्रा घटा देते हैं. ऑक्सीजन की कमी से बच्चे का विकास रुक सकता है.

नई दिल्ली के बीएलके मैक्स अस्पताल में स्त्रीरोग विभाग की निदेशक डॉ तृप्ति शरण ने डीडब्ल्यू को बताया कि डॉक्टर, गर्भवती महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ड्रग्स या सिगरेट ना लेने की सलाह देते हैं. लेकिन प्रदूषण इससे भी ज्यादा हानिकारक हो सकता है. प्रदूषक, हवा के रास्ते सीधे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. ये मां और बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचाता है. 

डॉ तृप्ति शरण कहती हैं कि प्रेग्नेंट महिलाओं पर प्रदूषण का असर सिगरेट पीने से भी बुरा हो सकता हैतस्वीर: Dr. Tripti Sharan

डॉ. तृप्ति कहती हैं, "प्लेसेंटा मां और बच्चे के बीच एक कनेक्शन होता है. इसके जरिए ऑक्सीजन और पोषण बच्चे तक पहुंचता है. जिससे बच्चा सही ढंग से बढ़ सके. पीएम 2.5 जैसे प्रदूषित कण प्लेसेंटा के जरिए बच्चे तक पहुंच जाते हैं. प्लेसेंटा को भी नुकसान होता है. प्लेसेंटा के ठीक से काम ना करने पर बच्चे को जरूरी ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिलते. मां का गर्भाशय जल्दी सिकुड़ने लगता है. जिससे बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है."

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ करुणाकर मरीकिनति भारत और ब्रिटेन में प्रैक्टिस करते हैं. वह डीडब्ल्यू से बातचीत में बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 और अन्य प्रदूषकों के संपर्क में आने से मां के शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है. महिलाओं में हाइपरटेंशन, प्री‑एक्लेम्सिया, तनाव, एंग्जायटी और अस्थमा जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं. इनसे भी बच्चे तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की आपूर्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है. ये प्रभाव विशेष रूप से दूसरी और तीसरी तिमाही में अधिक दिखाई देता है. उस समय भ्रूण का तेज विकास और अंगों का निर्माण हो रहा होता है.

जन्म के बाद बच्चे का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है

भारत की तरह अन्य देशों में भी प्रदूषण बड़ी समस्या है. प्रदूषण बच्चे के लिए दीर्घकालिक समस्याएं पैदा कर सकता है. इसलिए गर्भावस्था के दौरान मां का विशेष ध्यान रखने की जरुरत है. 

डॉ करुणाकर मरीकिनति कहते हैं कि प्रदूषण नवजात शिशुओं में दीर्घकालिक बीमारियों को भी जन्म दे सकता हैतस्वीर: Dr. Karunakar Marikinti

डॉ करुणाकर मरीकिनति कहते हैं, "ऐसे वातावरण में पैदा होने वाले बच्चों को जन्म के बाद भी सांस की बीमारियां, फेफड़ों और दिल की समस्याएं, विकास में रुकावट और एनीमिया जैसी परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपना विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है. उन्हें सबसे अच्छा फेस मास्क पहनना चाहिए. प्रदूषित हवा में कम समय बिताना चाहिए. साथ ही, ऐसे क्षेत्रों में जाने से बचना चाहिए जहां हवा ज्यादा गंदी है. अगर संभव हो तो सुरक्षित और साफ वातावरण के लिए गांव जैसी किसी जगह पर जाकर रहना सही रहेगा.”

हालांकि सभी प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए गांव या साफ जगह पर जाकर रहना विकल्प नहीं हो सकता. खासकर तब जब भारत के सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं उतनी कारगर नहीं हैं. 

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