दुनिया भर में, कोयला उत्पादक देश, जीवाश्म ईंधन से निजात पाने के लिए एक न्यायसंगत बदलाव के संघर्ष में लगे हैं. लेकिन यूक्रेन के डोनबास इलाके को लगता है कि बंद हुई खदानें एक पारिस्थितिकीय विनाश की ओर इशारा कर रही हैं.
तस्वीर: Guillaume Ptak
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82 साल की पेंशनर ल्युडमिला इवानोव्ना तारासोवा कोमीशुवाखा नदी की ओर निगाह डालते हुए कहती हैं, "युद्ध शुरू होने से पहले, मैं इसी पानी से अपना बागीचा सींच लेती थी. लेकिन अब ये किसी लायक नहीं रहा.” इधर वो ये बता रही होती हैं उधर नदी का पानी नारंगी बेचैनी में बहता जाता है. (विषैले पदार्थो ने पानी का रंग बदल दिया है और उसका इस्तेमाल करना संभव नहीं.)
पूर्वी यूक्रेन में जोलोते के बाहरी हिस्से में एक छोटे से लकड़ी के मकान में तारासोवा रहती हैं. पास में ही बहने वाली कोमीशुवाखा नदी, सेवेरस्की डोनेट्स नदी की सहायक नदी है. वही युद्ध से तबाह डोनबास इलाके में ताजे पानी का प्रमुख स्रोत है. हाल के सप्ताहों में, यूक्रेन का सबसे पूर्वी भाग एक बार फिर सबकी नजरों में आ गया है. सीमा पर सेना के अप्रत्याशित जमावड़े के साथ ही उस पर रूसी हमले का खतरा मंडराने लगा है.
डोनबास में साढ़े 60 लाख निवासियों की रिहाइश है. वो यूक्रेन का सबसे बड़ा औद्योगिक ठिकाना ही नहीं, एक प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र भी है. 200 साल के दरमियान अनुमानतः 15 अरब टन कोयला इस इलाके से निकाला जा चुका है.
सोवियत संघ के पतन के बाद डोनबास की कई खदानों से लाभ मिलना बंद हुआ तो वे बंद होने लगीं. यूक्रेन और रूस से सहायता प्राप्त अलगाववादियों के बीच सात साल पहले संघर्ष छिड़ा, तबसे कई और खदानें बेकार और जर्जर हो चुकी हैं.
पहली नजर में ये भले ही पर्यावरण की जीत नजर आती हो लेकिन वास्तव में ये उस पारिस्थितिकीय विनाश की की लिखित घोषणा है जो बंद खदानों के बहुत खराब प्रबंधन की वजह से अवश्यंभावी हो जाता है.
नारंगी हो गई कोमीशुवाखा नदी. तस्वीर: Guillaume Ptak
दूषित पानी की चपेट में लाखों लोग
जब एक खदान काम करना बंद कर देती है, तो पानी को भूमिगत शाफ्टों और चैंबरों के जरिए लगातार निकालना होता है ताकि वो बाढ़ की शक्ल न अख्तियार कर ले. इसके चलते भूजल, भारी धातुओं से दूषित हो सकता है. वो आगे चलकर आसपास की मिट्टी में भी धंसकर उसे खेती के लिहाज से बेकार कर देता है.
यूक्रेन के सामरिक अध्ययनों के राष्ट्रीय संस्थान की 2019 की एक रिपोर्ट ने बाढग्रस्त खदानों के रासायनिक प्रदूषण को अलगाववादियों के प्रभाव वाले इलाकों में रहने वाले कम से कम तीन लाख लोगों के लिए एक आपात खतरा कहा है, जबकि संपर्क रेखा के करीब रहने वाला हर चौथा निवासी- पीने के पानी के भरोसेमंद स्रोत से पहले ही महरूम है. ये संपर्क रेखा, जमीन का वो हिस्सा है जो सरकार और गैर-सरकार नियंत्रित भूभागों को अलग करता है.
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस ऑफ यूक्रेन में सीनियर रिसर्च फेलो जलविज्ञानी एवगेनी याकोवलेव, डोनबास इलाके के सूरतेहाल के हवाले से कहते हैं, "पेट और आंत के गंभीर संक्रमणों वाली बीमारियों के मामले, खासकर चार साल से कम उम्र के बच्चों में, यूक्रेन की औसत से दर्जनों गुना ज्यादा हो चुके हैं.”
2017 में याकोवलेव ने डोनबास मे कोयला खदानों के बाढ़ में डूबने और पानी की गुणवत्ता पर उसके असर को लेकर सबसे ताजा व्यापक सर्वे किया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "केंद्रीकृत सप्लाई सिस्टम के बाहर बतौर सैंपल जो 90 फीसदी पानी लिया गया वो पीने लायक नहीं है.”
जोलोटी की निवासी बुजुर्ग जो कोमीशुवाखा नदी के पास के इलाके में रहती हैं. तस्वीर: Guillaume Ptak
डोनबास का अधिकांश पानी 300 किलोमीटर लंबी सिवेरस्काई डोनेट्स-डोनबास नहर से आता है. इसकी देखरेख का जिम्मा यूक्रेन की एक सार्वजनिक कंपनी वोडा डोनबासु पर है. लेकिन पानी का ये रास्ता लड़ाई के मोर्चे के ऐन भीतर पड़ता है लिहाजा अक्सर क्षतिग्रस्त भी हो जाता है. इसके चलते विवश लोग कुओं के दूषित पानी का सहारा लेते हैं.
इस अग्रिम पंक्ति के दोनों तरफ के अध्ययनों में याकोवलेव का अध्ययन आखिरी था. और 2017 से यूक्रेन के नियंत्रण से बाहर के इलाकों में पर्यावरणीय क्षति का कोई डाटा उपलब्ध नहीं कराया गया है.
पिछले कुछ साल के दौरान यूक्रेन सरकार, डोनेत्स्क और लुहान्स्क के स्वयंभू जनतांत्रिक राज्यों पर आवश्यक पर्यावरणीय सावधानियों के बगैर खदानों को बंद कर देने का आरोप लगाती रही है.
रेडियोधर्मी नदियां?
विशेष चिंता, येनाकीवे में युनकोम कोयला खदान क्षेत्र से जुड़ी है जहां 1979 में मीथेन गैस को निकालने के लिए सोवियत अधिकारियों ने 0.3 किलोटन का भूमिगत एटमी बम विस्फोट किया था.
2018 में अलगाववादी प्रशासन ने खदान की देखरेख में आ रही महंगी लागत को देखते हुए उसे बंद करने का फैसला किया. यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा है कि उस फैसले की वजह से खदान के निचले स्तरों पर पानी रिसने लगा, बम की वजह से भूजल दूषित हो गया और उसके चलते कालमियस और सेवेरस्काई डोनेट्स नदियों में, यहां तक कि काला सागर से आगे भी, सक्रिय रेडियोन्यूक्लाइडों की मौजूदगी की आशंका बढ़ गई.
स्वयंभू डोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक (डीपीआर) के ऊर्जा मंत्रालय ने इस बीच किसी किस्म की समस्या से इंकार किया है. उसने डीडबल्यू को बताया कि मौजूदा यूक्रेन में कठिन पर्यावरणीय हालात के उलट डीपीआर में कोई पर्यावरणीय क्षति नहीं हो रही है.
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कोमीशुवाखा नदी का प्रदूषित पानी
फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि यूक्रेन सरकार के लिए अलगाववादियों को जिम्मेदार ठहराना आसान है, लेकिन वो उन समस्याओं का हल नहीं निकाल पा रही जो उसकी अपनी तरफ बनी हुई है. फ्रांसीसी मानवाधिकार एनजीओ एक्टेड के समन्वयक बेनो गेरफोल्ट के मुताबिक, यूक्रेन के सरकारी प्रतिनिधि अक्सर उत्तेजक बयानबाजी में फंसे रहते हैं. और इन मुद्दों का सीमा-पार सहयोग से हल करने में कम रुचि रखते हैं.
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
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कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
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पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
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न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
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समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
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बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
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खदानों का नेटवर्क आपस में जुड़ा है. इसे देखते हुए संघर्ष रेखा के एक सिरे पर होने वाला नुकसान और नजरअंदाजी एकाएक पूरे देश के लिए समस्या बन सकती है. मई 2018 में, अलगाववादी सीमा के पीछे स्थित बाढ़ग्रस्त रोडीना और होलुबोव्स्का कोयला खदानों का पानी, सरकार अधिकृत भूभाग की जोलोते खदान में 2000 घन मीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घुस गया.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस जल प्लावन से निपटने में असमर्थ रहने पर जोलोटे की व्यवस्थाएं तब से दिन रात खदान का दूषित पानी खींच रही हैं और उसे बगैर साफ किए, कोमीशुवाखा नदी में उड़ेल दे रही हैं.
‘ट्रुथ हाउंड्स' नाम के एक खोजी एनजीओ के हालिया विश्लेषण ने पाया कि इस नदी का पानी क्लोराइड, सल्फेट और मैंगनीज के स्तर से जुड़े कानूनी सुरक्षा पैमानों को काफी लांघ चुका है. जोलोते के नागरिक-सैन्य प्रशासन के प्रमुख ओलेकसाई बाबचेन्को कहते हैं, "तकनीकी उद्देश्यो के लिए भी, मवेशियों के लिए भी, पानी नहीं बचा है. फसलों को पानी देना भी मुमकिन नहीं रह गया है.”
नदी का प्रदूषण तेजी से दिखता भी जा रहा है, तो स्थानीय लोग पानी के लिए अन्य जगहों का रुख कर रहे हैं. पेंशनर तारासोवा कहती हैं, "अपने बागीचे के लिए मैं अब बारिश का जमा पानी इस्तेमाल करती हूं.” खाना पकाने के लिए वो एक स्थानीय जल धारा से पानी लाकर उसे उबालती हैं लेकिन पीने के लिए वो जोलोते के एक स्टोर के बोतलबंद पानी पर ही भरोसा करती हैं. 82 साल की महिला के लिए वहां तक आनाजाना भी एक चुनौती है.
वह कहती हैं, "ये आसान तो नहीं है, लेकिन मैं और कर भी क्या सकती हूं?” डोनबास की कोयला खदानों में पानी भर जाने से मीथेन गैस का रिसाव भी हुआ है. उससे विस्फोटों और भूकंपों के खतरे भी बढ़े हैं. भूजल का स्तर बढ़ने पर, दबी हुई मिट्टी की सघनता गिर जाती है और वो खिसकने लगती है, जिससे भूकंपीय हरकत होती है.
बाबचेन्को कहते हैं, "जोलोते की इन खदानो में आएं तो यहां गैस की गंध आती है जैसे किसी ने रसोई में चूल्हे का बटन खुला छोड़ दिया हो.” और फिर धंसाव तो है ही. बड़ी तादाद में खदान वाले इलाकों में शाफ्ट जब बाढ़ आने पर ढह जाते हैं तो उनके ऊपर की जमीन खिसकने और धंसने लगती है. कुछ अनुमानों के मुताबिक डोनबास में 12 हजार हेक्टेयर यानी 29 हजार एकड़ का कुल इलाका धंसाव के खतरे की चपेट में है.
ओएसीसी ने आगाह किया है कि उसके चलते भूस्खलन हो सकते हैं और इंजीनियरिंग और संचार के बुनियादी ढांचे फेल हो सकते हैं- गैस लाइनें, सीवेज और जल-आपूर्ति प्रणालियां भी इनमें शामिल हैं. जलविज्ञानी याकोवलेव कहते हैं कि समूचे शहर रहने लायक नहीं बचेंगे.
जोलोते के बारे में बाबचेंको कहते हैं, "जमीन धंस रही है, तो इमारतों में दरारें उभरने लगी हैं. एक स्थानीय स्कूल को लगातार मरम्मत की जरूरत रहती है.”
युद्ध क्षेत्र और न्यायसंगत परिवर्तन का संकल्प
पिछले महीने ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में यूक्रेन ने 2035 तक कोयला छोड़ने का संकल्प किया था. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि डोनबास में दो सदी पुराने उद्योग को समेटना और कामगारों के अधिकारों और रोजीरोटी की सुरक्षा करते हुए फॉसिल ईंधन से छुटकारा पाकर न्यायसंगत बदलाव को सुनिश्चित करना एक चुनौती है और ये दूसरे कोयला उत्पादक देशों से काफी अलग है.
बाबचेंको के मुताबिक नियमित बमबारी के बावजूद जोलोते की बचीखुची कोयला खदानों में करीब 3500 लोग अब भी काम करते हैं. उनका कहना है कि बड़े पैमान पर निवेश किए बगैर उन्हें बंद करना एक सामाजिक-आर्थिक तबाही की तरह होगा.
वह कहते हैं, "हमें खदानों को बंद करने के लिए पर्यावरणीय लिहाज से सुरक्षित तरीकों में निवेश के साथ साथ कामगारों के लिए सामाजिक और रोजगार कार्यक्रमों में भी निवेश करना होगा.”
बाबचेंको कहते हैं, "बहुत से लोग फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड के अनुभवों के बारे में हमसे बात करते हैं.” "लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि इनमें से कोई भी देश, सक्रिय सैन्य संघर्ष क्षेत्र नहीं रहा है.”
पवन ऊर्जा का भविष्य
बिजली उत्पादन में हवा की अहमियत बढ़ती ही जा रही है. बड़ी बड़ी टरबाइनें यानी पवनचक्कियां बनने लगी हैं- ज्यादा ऊंची और ज्यादा कारगर. दुनिया में करीब सात प्रतिशत बिजली पवन ऊर्जा से मिल ही रही है. तो आगे क्या?
तस्वीर: Jan Oelker
तब और अब
पवन ऊर्जा का इस्तेमाल सदियों से होता रहा है. उससे पानी खींचा जाता है, अनाज पीसा जाता है, लकड़ी काटी जाती है और जहाजों को उनके ठिकानों तक वही पहुंचाती हैं. यूरोप में 19वीं सदी के दौरान सैकड़ों हजारों पवनचक्कियां लगाई गई थीं. नीदरलैंड्स के लोग उसका इस्तेमाल अधिकतर दलदल को सुखाने में करते हैं. आज पवन ऊर्जा से साफ बिजली पैदा होती है. वे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ImageBroker/J. Tack
कोयले को मात देती हवा
पवनचक्कियां अक्सर सबसे सस्ती ऊर्जा पैदा करती हैं. नये कोयले या एटमी ऊर्जा संयंत्र से मिलने वाली बिजली आज दो से तीन गुना ज्यादा महंगी पड़ती है जबकि पवन ऊर्जा विशेष रूप से सस्ती है. भविष्य के अनुमानों के मुताबिक पवन ऊर्जा की लागत और गिरेगी- यानी 2030 तक, अच्छे हवादार ठिकानों में महज 0.04 डॉलर प्रति किलोवॉट घंटा की लागत मिलेगी.
तस्वीर: picture alliance / Zoonar
20 गुना अधिक बिजली
उत्तरी जर्मनी में विल्हेल्मशाफेन के पास लगाई गई एक विशाल पवनचक्की 6,000 किलोवॉट बिजली पैदा करती है और वहां के 10,000 लोगों की घरेलू बिजली की जरूरतों को पूरा करती है. 25 साल पुराने मॉडलों से सिर्फ 500 किलोवॉट ही मिल पाती थी- करीब 500 लोगों के लिए उतनी बिजली पर्याप्त थी. आधुनिक टरबाइनें अब आसमान में 180 मीटर तक ऊंची उठी रहती हैं. जितनी ऊंची होंगी उतनी हवा खींचेंगी.
तस्वीर: Ulrich Wirrwar/Siemens AG
समंदर में धंसे विशाल डैने
समंदर में हवा ज्यादा भरोसेमंद और ताकतवर होती है. दुनिया की कुल पवन ऊर्जा का करीब पांच फीसदी हिस्सा, तट पर बने पवनचक्की पार्कों से आता है. जैसे ये नीदरलैंड्स के तट पर बना एक पवन पार्क है. ऐसी टरबाइनों से करीब 10,000 किलोवॉट बिजली मिल जाती है. 2025 से उनकी क्षमता 15,000 किलोवॉट तक बढ़ने का अनुमान है. तब 40,000 से ज्यादा लोगों को बिजली मिल सकती है.
तस्वीर: Siemens Gamesa
सबसे आगे है चीन
दुनिया की तमाम नयी पवनचक्कियों में से आधी इस समय चीन में स्थापित हैं. अकेले 2020 में देश ने 52 गीगावॉट क्षमता वाली पवनचक्कियां निर्मित की हैं. ये 50 एटमी ऊर्जा संयंत्रों से मिलने वाली बिजली के बराबर है. पवन विस्तार में अग्रणी देश डेनमार्क और जर्मनी हैं. डेनमार्क अपने यहां बिजली की करीब 50 फीसदी मांग पवन ऊर्जा से पूरी करता है. जर्मनी को 25 फीसदी बिजली पवन ऊर्जा से मिलती है.
पूरी दुनिया में पवन ऊर्जा उद्योग में करीब 13 लाख लोग काम करते हैं. इनमें से साढ़े पांच लाख लोग चीन में, एक लाख दस हजार लोग अमेरिका में, 90 हजार जर्मनी में, 45 हजार भारत में और 40 हजार ब्राजील में हैं. पवन चक्कियां लगाना और चलाना, कोयले से हासिल ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा महंगा पड़ता है. लिहाजा पवन ऊर्जा का विस्तार ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा कर रहा है.
तस्वीर: Paul Langrock/Siemens AG
नागरिक भी चाहते हैं लाभ कमाना
सघन आबादी वाले इलाकों में पवन ऊर्जा को लेकर अक्सर विरोध देखा जाता है. लेकिन ये धारणा बदल सकती है अगरचे नागरिकों को भी स्थानीय परियोजनाओं में शामिल होने का मौका मिले. जैसे, जर्मनी के फ्रैंकफुर्ट शहर के नजदीक श्टार्कनबुर्ग में बहुत सारे निवासी पवन ऊर्जा के विस्तार के पक्ष में हैं. वे नयी टरबाइनों में निवेश कर रहे हैं. और बिजली बेचकर लाभ भी कमा रहे हैं.
तस्वीर: Energiegenossenschaft Starkenburg eG
पाल जहाजों से डीजल की बचत
अतीत में, पाल नौकाओं और जहाजों से दुनिया भर में माल की ढुलाई होती थी लेकिन फिर डीजल इंजन आ गए. आज आधुनिक नौचालन फिर से हरकत में आ गया है. हवा के अतिरिक्त धक्के के साथ मालवाहक जहाजों की ऊर्जा खपत 30 फीसदी तक कम की जा सकती है. इसके अलावा जहाज भविष्य में हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल ईंधन के रूप में कर पाएंगे.
तस्वीर: Skysails
पानी में तैरती पवनचक्कियां
पवन ऊर्जा के लिए समुद्र में पर्याप्त जगह है. लेकिन कई जगहों पर पानी इतना गहरा होता है कि समुद्र तल पर नींव नहीं पड़ सकती. इसका विकल्प है बुईज़ यानी पानी की सतह पर तैरते उत्प्लवों पर टरबाइनें रख दी जाती हैं. ये उत्प्लव समुद्र तल से लंबी कड़ियों के सहारे बांधे जाते हैं. तैरती पवनचक्कियां यूरोप और जापान में पहले से हैं. ये तूफानों में भी स्थिर रहती हैं.
तस्वीर: vestas.com
घरों के लिए पवन ऊर्जा
लंदन में 147 मीटर ऊंची स्ट्राटा एसई1 नाम की गगनचुंबी इमारत में लगीं टरबाइनें भी ध्यान खींचती हैं. लेकिन ऐसे रूफटॉप इन्स्टॉलेशन आमतौर पर किफायती नहीं होते क्योंकि शहरों में हवा अक्सर काफी कमजोर रहती है. छतों पर तो सौर प्लेटें ही ज्यादा कारगर साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Global Warming Images/A. Cooper
सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा
तीन से 11 महीने में पवनचक्कियां उतनी ऊर्जा पैदा कर देती हैं जितनी उन्हें बनाने में खर्च होती है. इस बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में सीओटू तो नहीं निकलती लेकिन आसपास का सूरतेहाल बदल जाता है. दूसरे ऊर्जा स्रोतों की तुलना में, अब भी पवन ऊर्जा का पर्यावरणीय ग्राफ बेहतर है. जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक पवनचक्कियों की पर्यावरणीय लागत, कोयले की ऊर्जा से 70 गुना कम है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Tack
सौर ऊर्जा की जगह क्या है?
पवन और सौर ऊर्जा संयंत्र मिलकर दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरी कर सकते हैं. पवनचक्कियां 10 किमी प्रति घंटा की रफ्तार वाली हवाओं से बिजली पैदा करती हैं. तीखी धूप वाले इलाकों में सौर प्लेटें सबसे सस्ता ऊर्जा स्रोत हैं. इक्वेटर से और उत्तर और दक्षिण की ओर, पवन और सौर ऊर्जा की मिलीजुली जरूरत होती है. हवादार इलाकों में खासकर, पवनचक्कियां ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकती हैं.