भारत में 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर लोगों के खुद अपना जेंडर तय करने के हक को सुरक्षित कर दिया था. लेकिन आज भी जन्म प्रमाणपत्र से लेकर पासपोर्ट तक, सरकारी दस्तावेजों में जेंडर बदलवाना आसान नहीं हो पाया है.
विज्ञापन
नूर शेखावत 19 जुलाई को ऐसा महसूस कर रही थी जैसा उनका नया जन्म हुआ हो. 31 साल की नूर को उसी दिन जयपुर नगरपालिका ने एक नया जन्म प्रमाणपत्र जारी किया था जिसमें उनका चुना हुआ जेंडर ट्रांसजेंडर दर्ज किया गया था.
राजस्थान में पहली बार इस तरह का प्रमाणपत्र दिया गया था. नूर को जन्म के समय पुरुष जेंडर दिया गया था और उनके पुराने जन्म प्रमाणपत्र में यही जेंडर दर्ज था. लेकिन अब नए प्रमाणपत्र ने उनकी चुनी हुई लैंगिक पहचान पर मोहर लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया अधिकार
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश में कहा था कि ट्रांसजेंडरों को अपना जेंडर तय करने का अधिकार है और राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को उनके तय किये हुए जेंडर को मान्यता देनी होगी.
कैसा है भारत के पहले ट्रांसजेंडर पेरेंट्स का परिवार
04:41
इसके बावजूद असलियत यह है कि अभी भी ट्रांसजेंडरों को अलग अलग आवश्यक दस्तावेजों में अपना जेंडर बदलवाने में कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है. कई सरकारी विभाग लिंग बदलने की सर्जरी का मेडिकल सर्टिफिकेट भी मांगते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा था कि ऐसी सर्जरी के प्रमाण पर जोर देना अनैतिक और गैर-कानूनी है.
नूर लम्बे समय से अपने सभी दस्तावेजों में अपना जेंडर बदलवाना चाहती थीं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक वो अपने राज्य में ड्राइविंग लाइसेंस पाने वाली पहली ट्रांसजेंडर भी हैं. अब को अपने स्कूल की 10वी और 12वी की मार्कशीटों में भी अपना जेंडर बदलवाना चाहती हैं और ग्रेजुएशन पूरी करना चाहती हैं.
ट्रांसजेंडरों को अपनी पहचान को लेकर कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ती है. पहले तो खुद को ही अपनी पहचान समझाने का संघर्ष, उसके बाद परिवार और समाज से स्वीकृति पाने की चिंता और उसके बाद सरकारी दस्तावेजों में भी अपनी पहचान दर्ज कराने की लड़ाई.
कई मोर्चों पर जंग
नूर ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि उनके परिवार ने उन्हें कभी एक ट्रांसजेंडर के रूप में स्वीकार नहीं किया, जिसकी वजह से उन्हें छोटी उम्र में ही अपना घर छोड़ देना पड़ा. उन्हें कॉलेज भी पहले ही साल में छोड़ना पड़ा क्योंकि दूसरे छात्र उन्हें लगातार परेशान करते थे.
लेकिन बाद में उन्होंने आगे बढ़ने की ठानी और नए जन्म प्रमाणपत्र के लिए आवेदन भरा, जिसे मंजूर कर लिया गया. यह राजस्थान का पहला ऐसे जन्म प्रमाणपत्र है जिसमें जेंडर के तौर पर ट्रांसजेंडर लिखा हुआ है.
2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों के संरक्षण) अधिनियम नाम से एक कानून लाया गया, जिसके तहत एक ट्रांसजेंडर पहचान पत्र जारी किया जाता है. लेकिन आज भी कई सरकारी दस्तावेजों में जेंडर बदलने को लेकर अलग अलग विभागों और अलग अलग राज्यों में अलग नियम हैं.
ट्रांसजेंडर ऐक्टिविस्टों के मुताबिक सबसे ज्यादा दिक्कत पासपोर्ट पर अपना जेंडर बदलवाने में आती है, जिसके लिए कई लोगों को अदालतों के दरवाजे भी खटखटाने पड़े हैं.
लैंगिक पहचान बदलना कहां है आसान और कहां मुश्किल
कई देशों ने लैंगिक पहचान बदलने के लिए मेडिकल या मनोवैज्ञानिक जांच की अनिवार्यता समाप्त कर दी है. जानिए किन किन देशों ने दिया आसानी से लैंगिक पहचान बदलने का अधिकार.
तस्वीर: Iulianna Est/Zoonar/picture alliance
संयुक्त राष्ट्र के 25 सदस्य
अंतरराष्ट्रीय लेस्बियन और गे एसोसिएशन के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के कम से कम 25 सदस्य देश "निषेधात्मक अपेक्षाओं के बिना कानूनी रूप से लैंगिक पहचान की अनुमति देते हैं." लेकिन सिर्फ कुछ ही देश ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को एक सरल से बयान के आधार पर अपनी पहचान बदलने की इजाजत देते हैं.
तस्वीर: Michael M. Santiago/Getty Images
स्वीडन
स्वीडन 1972 में ही लैंगिक पहचान बदलने को कानूनी मान्यता देने वाला देश बन गया था. लेकिन हाल ही में वहां नाबालिगों के लिए रीअसाइनमेंट हॉर्मोन ट्रीटमेंट पर पाबंदियां लगाई गई हैं.
तस्वीर: Iulianna Est/Zoonar/picture alliance
अर्जेंटीना
अर्जेंटीना को ट्रांसजेंडर अधिकारों के क्षेत्र में अगुवाई के लिए जाना जाता है. वहां 2012 में सिर्फ एक बयान के आधार पर राष्ट्रीय पहचान पत्र में लैंगिक पहचान बदलने की इजाजत दे दी गई थी. इसके बाद कई लैटिन अमेरिकी देशों ने ऐसा किया, जिनमें बोलीविया, चिली, कोलंबिया, इक्वाडोर, पेरू और उरुग्वे शामिल हैं.
तस्वीर: ZUMA Wire/imago
चिली
चिली में ऑस्कर जीतने वाली फिल्म "अ फैंटास्टिक वुमन" की अंतरराष्ट्रीय सफलता ने एक लैंगिक पहचान कानून के लिए समर्थन जुटाने का काम किया. 2019 में यह कानून पास हो गया. फिल्म में मुख्य भूमिका ट्रांसजेंडर अभिनेत्री डैनिएला वेगा ने निभाई थी.
स्कॉटलैंड में हाल ही में लोगों के लिए अपनी लैंगिक पहचान खुद निर्धारित करना आसान बनाने के लिए एक कानून पारित किया गया था. लेकिन कानून स्वीकृति नहीं मिली.
तस्वीर: David Cheskin/empics/picture alliance
डेनमार्क
डेनमार्क 2014 में बिना मेडिकल या मनोवैज्ञानिक जांच कराए लैंगिक पहचान बदलने के लिए वयस्कों को आवेदन करने की अनुमति देने वाला पहला यूरोपीय देश बन गया था. उसके बाद बेल्जियम, आयरलैंड, माल्टा और नॉर्वे ने भी वैसा ही किया.
स्पेन ने फरवरी 2023 में बयान के आधार पर लैंगिक पहचान बदलने की अनुमति दे दी. इसे देश की 'बराबरी मंत्री' आइरीन मोंटेरो ने "आगे की तरफ एक विशाल कदम" बताया है. स्पेन ऐसा करने वाले यूरोप का सबसे बड़ा देश बन गया है. 14 साल तक के नाबालिग भी अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावकों की इजाजत से आवेदन कर सकते हैं.
तस्वीर: Susana Vera/REUTERS
जर्मनी
जून 2022 में जर्मनी की सरकार ने निजी बयान के आधार पर लैंगिक पहचान बदलने की अनुमति देने की योजना की घोषणा की. देश में 2018 में ही जन्म प्रमाण पत्रों पर तीसरे जेंडर को शामिल करने को कानूनी मान्यता दे दी गई थी.
तस्वीर: lev dolgachov/Zoonar/picture alliance
फ्रांस
फ्रांस में भी ट्रांसजेंडर लोगों को अपनी लैंगिक पहचान बदलने की अनुमति है, लेकिन उन्हें अदालत से स्वीकृति लेनी होती है.
तस्वीर: Julien Mattia/Le Pictorium/IMAGO
भारत
भारत में 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे जेंडर को मान्यता दी. पड़ोसी देशों में से बांग्लादेश में 2018 से ट्रांसजेंडर लोग तीसरे जेंडर के रूप में बतौर मतदाता अपना पंजीकरण करा पा रहे हैं. पाकिस्तान 2009 में तीसरे जेंडर को कानूनी मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया था. नेपाल में 2013 में नागरिकता प्रमाणपत्रों में एक ट्रांसजेंडर श्रेणी जोड़ दी गई.
तस्वीर: Ayush Chopra/SOPA Images via ZUMA Press Wire/picture alliance
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में 2013 में पासपोर्ट में एक तीसरी लैंगिक श्रेणी जोड़ने की अनुमति दे दी गई.
तस्वीर: Subel Bhandari/dpa/picture alliance
अमेरिका
अमेरिका में 2021 में विदेश मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को पासपोर्ट में 'X' श्रेणी चुनने की इजाजत दे दी. (एएफपी)