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राजनीतिकनाडा

जस्टिन ट्रूडो: एक दशक के बाद सत्ता से विदाई

७ जनवरी २०२५

जस्टिन ट्रूडो को भारत में एक ऐसे कनाडाई प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाएगा, जिनके दौर में दोनों देशों के रिश्ते सबसे खराब हालात से गुजरे.

2023 जस्टिन ट्रूडो और नरेंद्र मोदी
जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत के साथ रिश्ते बेहद खराब हो गएतस्वीर: Sean Kilpatrick/The Canadian Press via AP/picture alliance

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी. उनके नौ साल के शासन का अंत हुआ. यह एक ऐसा दौर था जिसमें कई बदलाव हुए, राजनीतिक विवाद उभरे और जनता की राय बदलती रही.

इस दौरान उन्होंने कनाडा को आर्थिक चुनौतियों, एक वैश्विक महामारी और बढ़ते राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच संभाला. हालांकि उनके कार्यकाल को प्रगतिशील विचारों के लिए सराहा गया, लेकिन विवादों और पार्टी की लोकप्रियता में गिरावट उनके पद छोड़ने का कारण बना.

भारत-कनाडा संबंधों पर असर

ट्रूडो के कार्यकाल में भारत और कनाडा के संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आए. 2018 में ट्रूडो का भारत दौरा विवादों में रहा. उनकी सरकार पर सिख अलगाववादियों के प्रति नरमी बरतने के आरोप लगे, जिससे भारत नाराज हुआ. उनके साथ उस यात्रा पर जसपाल अटवाल की मौजूदगी ने तनाव बढ़ा दिया, जिन पर भारत ने खालिस्तानी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था.

भारत ने खालिस्तानी आंदोलन पर ट्रूडो के रुख की आलोचना की. ट्रूडो ने सार्वजनिक तौर पर भारत की एकता का समर्थन किया, लेकिन उनके कदम अक्सर इसके विपरीत माने गए. कोविड-19 महामारी के दौरान भारत द्वारा वैक्सीन की आपूर्ति को लेकर उन्होंने भारत की प्रशंसा की, लेकिन व्यापार और कूटनीतिक संबंधों में प्रगति सीमित रही.

2023 में जस्टिन ट्रूडो ने संसद में एक भाषण में आरोप लगाया कि सिख खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंट शामिल थे, और उनके पास इसके पुख्ता सबूत हैं. हालांकि भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया लेकिन यह तनाव लगातार बढ़ता गया और एक-दूसरे के उच्चायुक्तों को वापस बुलाने तक पहुंच गया.

ट्रूडो की खालिस्तानी आंदोलन पर नरमी और भारत के साथ व्यापार संबंधों की कमी ने उनके कार्यकाल के अंत तक दोनों देशों के बीच रिश्तों को ठंडा कर दिया. उनके इस्तीफे के बाद यह देखना होगा कि उनका उत्तराधिकारी भारत-कनाडा संबंधों को कैसे संभालता है.

शानदार शुरुआत

2015 में जब ट्रूडो सत्ता में आए, तो उन्हें एक युवा, ऊर्जावान और बदलाव लाने वाले नेता के रूप में देखा गया. वह कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के बेटे हैं और उन्होंने लिबरल परंपराओं को आगे बढ़ाया. उनकी जीत ने एक दशक लंबे कंजर्वेटिव शासन को समाप्त किया और विविधता, लैंगिक समानता और पर्यावरण सुरक्षा पर आधारित सरकार की शुरुआत की.

शुरुआती दौर में उनके फैसलों ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई. उन्होंने भांग को वैध किया, राष्ट्रीय जलवायु योजना लागू की और 10 डॉलर प्रति दिन चाइल्डकेयर योजना शुरू की. उनकी समानता पर आधारित कैबिनेट, जिसमें पुरुष और महिलाएं बराबर थीं, को दुनिया भर में सराहा गया.

ट्रूडो की माइग्रेशन नीति और समावेशी नजरिए ने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई. उनके इस रुख ने कनाडा को एक सहिष्णु देश के रूप में पेश किया. वह "रोलिंग स्टोन" पत्रिका के कवर पर भी छपे, जिसमें उन्हें "हमारा राष्ट्रपति क्यों नहीं हो सकते?" जैसे सवालों के साथ दिखाया गया.

चुनौतियां और विवाद

लेकिन ट्रूडो का कार्यकाल विवादों से भी अछूता नहीं रहा. पर्यावरण पर उनकी नीतियां, जैसे कार्बन टैक्स और एक रुकी हुई पाइपलाइन परियोजना को खरीदना, आलोचना का केंद्र बनीं. पर्यावरणविद उन पर जलवायु के प्रति प्रतिबद्धता से पीछे हटने का आरोप लगाते रहे, जबकि कंजर्वेटिव उन्हें आर्थिक विकास बाधित करने वाला मानते रहे.

कोविड-19 महामारी ने उनकी नेतृत्व क्षमता की कड़ी परीक्षा ली. जहां कनाडा की मृत्यु दर कई देशों से कम रही, वहीं वैक्सीन अनिवार्यता जैसे मुद्दों ने ग्रामीण इलाकों में विरोध को हवा दी. तब "ट्रूडो विरोधी" झंडे और प्रदर्शन आम हो गए थे.

बढ़ती महंगाई, मकानों की कमी और आर्थिक समस्याओं ने उनके खिलाफ असंतोष बढ़ा दिया. कई लोगों ने उनकी नीतियों को इन समस्याओं का समाधान करने में विफल बताया. वित्त मंत्री क्रिस्टीया फ्रीलैंड का इस्तीफा और विशेष चुनावों में सुरक्षित लिबरल सीटें खोना उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े करते रहे.

इस्तीफे का फैसला

दबाव और गिरती लोकप्रियता के चलते ट्रूडो ने इस्तीफे का एलान किया. अपने आधिकारिक निवास के बाहर एक भावुक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "देश को अगले चुनाव में असली विकल्प की जरूरत है.” उन्होंने इसे कनाडा और लोकतंत्र के प्रति अपने प्रेम का निर्णय बताया.

उनका इस्तीफा ऐसे समय पर हुआ जब लिबरल पार्टी को खुद को फिर से संगठित करने की जरूरत थी. नए नेता के चयन तक ट्रूडो कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहेंगे.

विपक्षी कंजर्वेटिव नेता पीयर पोइलियव्रे ने इसे एक जरूरी और देरी से लिया गया फैसला बताया. एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने लिबरल सरकार की नीतियों की आलोचना की और इसे जनता के लिए निराशाजनक करार दिया.

लिबरल पार्टी के अंदर उनके इस्तीफे पर मिली-जुली प्रतिक्रिया रही. पार्टी अध्यक्ष सचित मेहरा ने उनके सुधारवादी कदमों की प्रशंसा की.

इनके सपनों की राह में रोड़ा बना भारत-कनाडा तनाव

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ट्रूडो का कार्यकाल बड़े बदलावों और गहरे विवादों का दौर रहा. उन्होंने भांग को वैध किया, लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया और महामारी का प्रबंधन किया. लेकिन आर्थिक समस्याओं और राजनीतिक विवादों ने उनकी लोकप्रियता को कम कर दिया.

कनाडा की राजनीति में यह बदलाव महत्वपूर्ण है. नए नेता को पार्टी की गिरती लोकप्रियता और मजबूत विपक्ष का सामना करना होगा. भारत और कनाडा के बीच बेहतर संबंध बनाना और देश की आंतरिक समस्याओं का हल निकालना उनके लिए बड़ी चुनौतियां होंगी.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)

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