अब एफ्रो-अमेरिकियों को खलनायक बना रहे हैं ट्रंप
२ सितम्बर २०२०पूरे साल एक अदद ठोस चुनावी मुद्दा तय करने के बाद अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को शायद वह हाथ लग गया है. दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ट्रंप ने चुनावी रैलियों के लिए "लॉ एंड ऑर्डर” यानि कानून और व्यवस्था को नारा बनाया है. चार साल पहले हुए राष्ट्रपति चुनावों के दौरान भी ट्रंप ने ऐसा ही तीन शब्दों का नारा दिया था - "बिल्ड दि वॉल” जिसने उन्हें पद तक पहुंचा दिया था.
मेक्सिको के साथ लगी अमेरिकी सीमा पर दीवार बनाने का नारा सीधा और स्पष्ट होने के साथ साथ काफी गूढ़ भी था. देश के श्वेत नागरिकों को यह एक तरह का संदेश था कि बाहरी अश्वेत लोगों के कारण उनकी जिंदगी पर जो बुरा असर पड़ता है, उसे रोका जाना चाहिए. इस हफ्ते कानून और व्यवस्था के नारे से ट्रंप देश के अश्वेत लोगों को निशाने पर ले रहे हैं.
हाल ही में अमेरिका के केनोशा, विस्कॉन्सिन में एक श्वेत पुलिसकर्मी ने एक अश्वेत अमेरिकी जेकब ब्लेक पर उसके तीन बच्चों के सामने ही लगातार कई गोलियां चलाईं थीं. इसके बाद केनोशा में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. मंगलवार को खुद ट्रंप केनोशा पहुंचे और वहां पुलिस प्रशासन एवं प्रदर्शनों की चपेट में आने से प्रभावित हुए कारोबारियों से मिले जबकि ब्लेक के परिवार से मुलाकात नहीं की. राष्ट्रपति ट्रंप ने वहां हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों को "घरेलू आतंक” की संज्ञा दी और "हिंसक भीड़” की कड़ी निंदा की. ट्रंप ने कहा, "पुलिस-विरोधी और अमेरिका-विरोधी दंगाईयों ने केनोशा का नाश किया है.”
चुनाव के केवल नौ सप्ताह पहले ट्रंप के ऐसे संदेशों से कई खतरों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इससे ट्रंप के शासन में स्वास्थ्य और आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे लाखों अमेरिकियों की समस्या नजरअंदाज होती है. चुनाव में डेमोक्रैट उम्मीदवार जो बाइडेन ट्रंप पर कोरोना महामारी के सामने हथियार डालने के लगातार आरोप लगाते रहे हैं. अब हिंसा के ऐसे इक्का दुक्का मामलों को मुख्य नारा बना कर एक तरह से ट्रंप वैसा ही करते नजर आ रहे हैं. अमेरिका में कोरोना महामारी के कारण अब तक 184,000 लोगों की जान जा चुकी है और अब भी निकट भविष्य में इसका अंत होता नहीं दिख रहा है.
इतिहास से सबक
अमेरिकी चुनाव का इतिहास देखें तो हिंसा और कानून-व्यवस्था वाला फॉर्मूला उनसे पहले भी रिचर्ड निक्सन जैसे राष्ट्रपतियों के काम आ चुका है. सन 1968 के राष्ट्रपति चुनाव में निक्सन ने ऐसे ही नारे देकर श्वेत अमेरिकी वोटरों का एकमुश्त समर्थन जुटा लिया था. लेकिन अगली बार 1970 के संसदीय चुनाव में जब वह दोबारा जीतने की कोशिश में लगे थे, तब यही नारा काम नहीं आया और रिपब्लिकन पार्टी को बहुत नुकसान हुआ. इस नारे का विश्लेषण करते हुए अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर केविन क्राउज कहते हैं कि इसका मतलब हुआ अगर ट्रंप के शासन में ऐसी हिंसक वारदातें होती रहती हैं तो इस नारे से उन्हें ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा.
उसके 50 साल बाद एक बार फिर ट्रंप उसी फॉर्मूले को आजमाते दिख रहे हैं. ट्रंप के राष्ट्रपति काल में जब 2018 में संसदीय चुनाव हुए तो ट्रंप की पार्टी को काफी नुकसान हुआ, जब उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के समय वाला मेक्सिकन प्रवासी-विरोधी अजेंडा आगे बढ़ाया और उससे मिलता जुलता संदेश देते हुए कहा कि लैटिन अमेरिकी प्रवासियों से भरे कैरावैन अमेरिका में घुसने की कोशिश में लगे हैं. 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप उन मेक्सिकन प्रवासियों के बजाए विरोध प्रदर्शन और हिंसा करने वाले एफ्रो-अमेरिकी लोगों के बारे में धारणा बना रहे हैं. इसे गलत रणनीति बताते हुए क्राउज कहते हैं, "दिक्कत यह है कि अगर आप सत्ता में हैं तो फिर आप ही कानून और व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसको मुद्दा बना कर कोई सत्ताधारी अपने लिए नहीं अपने विरोधी के लिए केस तैयार करता है.''
विपक्षी बाइडेन का भी वही रास्ता
क्राउज का मानना है कि जो बाइडेन भी ट्रंप की रणनीति का जवाब देने के लिए इतिहास से सबक ले रहे हैं. डेमोक्रैट उम्मीदवार बाइडेन ने पेंसिल्वेनिया में दिए भाषण में लोगों से सवाल किया, "क्या आप पहले से बेहतर हैं?” उनसे पहले यह सवाल फ्रैंकलिन रूजवेल्ट और रॉनल्ड रीगन भी पूछ चुके हैं जिन्होंने पदासीन राष्ट्रपतियों को हराया था. हाल में बाइडेन पूछते नजर आ रहे हैं कि "यह कौन मानेगा कि अगर डॉनल्ड ट्रंप फिर से चुने जाते हैं तो अमेरिका में हिंसा कम हो जाएगी? वह हमसे कहते रहते हैं कि अगर वह (ट्रंप) राष्ट्रपति हों तो हम सुरक्षित महसूस कर सकेंगे. लेकिन, वही तो राष्ट्रपति हैं.”
वफादार समर्थकों के वोट पाने की जुगत
चार साल पहले जिन अधिकतर श्वेत, उपनगरीय और ग्रामीण अमेरिकियों ने उनका समर्थन किया था, उन्हें अपने साथ रखने के लिए फिलहाल ट्रंप के पास यही सबसे बड़ा नारा है. उनका चुनाव अभियान इस बार मिनेसोटा और न्यू हैंपशर जैसे राज्यों पर खास ध्यान दे रहा है, जहां अमेरिका के राष्ट्रीय औसत से भी अधिक अनुपात में श्वेत अमेरिकी वोटर हैं. इन राज्यों में ट्रंप को यह नारा अतिरिक्त फायदा पहुंचा सकता है.
मई में जॉर्ज फ्लॉयड नाम के एक एफ्रो-अमेरिकी की मौत के बाद से पूरे देश में नस्लीय अन्याय पर गर्म बहस छिड़ी हुई है. इसके बाद से अमेरिका के अलग अलग हिस्सों में फैली विरोध की आग को अब केनोशा की घटना से एक बार फिर नई चिंगारी मिल गई है. ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप की मशीनरी कुछ और श्वेत वोटरों को यह विश्वास दिलाने में कामयाब होती लग रही है कि उनका शहर या कस्बा ऐसी हिंसा का अगला शिकार हो सकता है. हाल के सर्वेक्षण दिखाते हैं कि फ्लॉयड की घटना के बाद ‘ब्लैक लाइव्ज मैटर' आंदोलन को मिला जनसमर्थन अब सामान्य स्तर पर आ चुका है.
आरपी/एमजे (एपी)
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